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Shrutghar Pattwali
Shrutghar Pattwali
अथ खल सकलजगदुदय-करणोदित-निरतिशय-गुणास्पदीभूत-परमजिन शासन-सरस्समभिक्ति -भव्यजन-कमलविकसन-वितिमिर-गुण-किरण सहस्रमहोति महाबीर-सविरि परिनिवृते भगवत्परमषि-गौतम-गणधर साक्षाच्छिष्य लोहायं-जम्बु- विष्णुदेवापराजित- गोवर्द्धन-भद्रबाहु-विशाख-प्रोष्ठिल कृत्तिकार्य जयनागसिद्धार्थतिषेणबुद्धिलादि - गुरुपरम्परीणक्कमाभ्यागत-महापुरुषसन्तति समवद्योतितान्वय-भद्रबागु-स्वामिना उज्जयन्यामष्टाङ्गमहानिमित्त-तत्त्वज्ञेन अकाल्य-दशिना निमित्तेन द्वादश-संवत्सर-काल-वैषम्यमुपलभ्य कथिते सबस्सय उत्तरापचाक्षिणापथम्प्रस्थित: क्रमेणब जनपदमनेक-ग्राम-शत-सङ्ख्यं मुदितजन धन-कनक-सस्य-गो-महिषा-जावि-कुल-समाकीणंम्प्राप्तवान् [1] अतः आचार्य: प्रभाचन्द्रो नामावनितल-ललामभूतेऽथास्मिन्कटवात - नामकोपलक्षिते विविध तरुवर-कुसुः .. कलि -विरचना भवल-लिपुलमल. जलद निबह-नीलोपल तलेबराह दीपि-व्याघ्रद्ध-तरक्षु-व्याल- मृगकुलोपचितोपत्यक- कन्दरदरी-महागुहा गहनाभोगवत्ति समुत्तुङ्ग-शृङ्ग सिखरिणि जीवितशेषमल्पतर-कालमत्रबुध्यात्मनः सुरित-तपस्समाधिमा राधयितुमापृच्छय निरवसेषेण सधं विसृज्य शिष्येणेकेन पृथुलतरास्तीण्णं-तलाम शिलासु शीतलासु स्वदेहं संन्यस्याराधितवान् क्रमेण सप्त-शतमृषीणामाराधितमिति जयतु जिन-यासमिति ।
इस अभिलेखमें तीर्थकर महाबीरके निर्वाणके बाद गौत्तम गणधर, लोहा चार्य, जम्बुस्वामि ये तीन केवली और विष्णुदेव, अपराजित, गोवर्द्धन, भद्रबाहु ये श्रुतकेवली तथा विशाख, प्रोष्टिल, कृतिकार्य, जग, नाग, सिद्धार्थ, धृतिपेण, बुद्धिल ये आठ आचार्य दश पूर्वके धारी हुए हैं। श्रुतकेवली भद्र बाहुस्वामिने अपने अष्टाङ्गनिमित्तज्ञानसे उज्जयिनी में यह अवगत कर लिया कि बारह वर्षका उत्तरापथमें दुष्काल होने वाला है । अतएव वे धन-धान्यसे सम्पन्न अपने संघके साथ दक्षिणापथको चले गये । इस परम्परामें प्रभाचन्द्र नामक एक बहुज्ञ आचार्य हुए !
इस अभिलेखमें इन्द्रभूति, गौतम गणधर, सुधर्म या लोहाचार्य और जम्बूस्वामि इन तीन केलियोंका उल्लेख है। इन केवलियोंके पश्चात् विष्णु, अपराजित, नन्दिमित्र, गोवर्द्धन और भद्रबाहु श्रुत केवली हुए हैं। पर प्रस्तुत अभिलेखमें विष्णुदेव, अपराजित, गोबद्धन और भद्रबाहु इन चार ही श्रुत केलियों के नाम आए हैं। अन्य अभिलेखों तथा हरिवंशपुराणादि ग्रन्थों में दशपूर्वी ग्यारह बतलाए हैं। पर इस अभिलेखमें आठही दापुर्वियोंका उल्लेख आया है। हरिवंशपुराण में तृतीय दशपूर्वीका नाम क्षत्रिय लिखा हुआ है जबकि इम अभिलेखमें कृत्तिकार्य बताया है | विजय, गंगदेव और धर्मसेन इन तीन दशवियों के नाम छुटे हुए हैं। अतः स्पष्ट है कि इस अभिलेखकी आचार्य परम्परा अपूर्ण है । इसमें ख्यातिप्राप्त आचार्योंका ही उल्लेख किया गया है ।
Sanjul Jain Created Article On Date 12 June 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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