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#UpadhyayNayansagarJiMaharaj1972Nirmalsagar
Upadhyay Shri 108 Nayansagarji Maharaj was born on 24-Mar-1972 at Songir (Dhulia) located in the state of Maharashtra and he took Initiation from Acharya Shri Nirmalsagar Maharaj on 30 December 1992 in Etmadpur, Agra.
उपाध्याय नयनसागर जी महाराज
त्याग, बलिदान और अध्यात्म की इस पावन धरती पर युगों-युगों से अनेकों संत विचरण करते आ रहे हैं जिन्होंने अन्धकार की कालरात्रि में पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह उदय होकर अपने अध्यात्म, अहिंसा और अनुशासन का आलोक बिखेरा है। ऐसे ही विलक्षण और निर्मल, कोमल व्यक्तित्व के स्वामी परम पूज्य उपाध्याय श्री नयनसागर मुनिराज जन-जन के हृदय में परमात्मा के रूप में विराजमान हैं।
24 मार्च सन् 1972। बीसवीं शताब्दी के आठवें दशक का प्रथम चरण, अन्धकार के वक्ष को चीरकर स्वर्ण रश्मियों ने जब इस धरा को छुआ तो महाराष्ट्र प्रान्त में स्थित सोनगीर (धूलिया) अनिर्वचनीय आभा से भर उठा जहाँ माता श्रीमती मनोरमादेवी की कुक्षि से, पिता श्री सोनालाल जी के आँगन में एक दिव्य प्रतिभा सम्पन्न बालक ने जन्म लिया। जिन्हें नाम मिला संजयकुमार। शस्य श्यामला धरती आभापूर्ण हो उठी। समग्र भारत की अपार कीर्ति में वृद्धि हुई और ऐतिहासिक जगत् में सदा सर्वदा के लिए सम्मिलित होकर अमर हो गया यह दिन जिसने न केवल माता-पिता को अनुपम गौरव प्रदान किया अपितु पूरा भारत ही धन्य हो उठा।
बालक संजयकुमार का बचपन अनेक विलक्षणताओं का संगम रहा। बुद्धि इतनी तीक्ष्ण कि एक के बाद एक परीक्षा उत्तीर्ण करते गये और शीघ्र ही पड़ोसियों, सहपाठियों तथा शिक्षकों के बीच लोकप्रिय हो गये। सभी के दुःख-दर्द में आगे रहते, स्कूल में इच्छित वस्तु प्रदान कर अपने सहपाठियों को अध्यापक के दंड से बचा लेते, भूखे को भोजन करा देते। संसार में व्याप्त बुराई, असमानता और कष्टों को देख उनका हृदय विह्वल हो उठता तथा नित्य सुबह-सायं मन्दिर में जाकर भगवान से इन कष्टों से मुक्ति का रास्ता पूछते। जिनेन्द्र भगवान मुस्कराते हुए मानो कह रहे हों संजय ! तुम्हें भोगों से विरक्त होकर योग की ओर मुक्ति की राह पकड़नी है, तुम्हें आत्मकल्याण के साथ असीम मानवता को अध्यात्म कर्म का पाठ पढ़ाकर समष्टि कल्याण करना है, अपने आध्यात्मिक परिश्रम की बूँदों से मिट्टी को सींचकर अनेकों कल्पवृक्ष उत्पन्न करने हैं और शिवशंकर की तरह समाज में व्याप्त बुराइयों का विषपान कर अध्यात्म और सुख-समृद्धि का अमृृत प्रदान करना है।
संजय भीतर ही भीतर अनेकों अनुत्तरित प्रश्नों का समाधान खोजते रहते थे। जब कभी माता से संसार की निस्सारता के विषय में प्रश्न करते तो वह भीतर ही भीतर काँप उठती। कहीं पुत्रा संसार त्याग का मन न बना ले उसे और अधिक सुख-सुविधाएं देती। परन्तु संजय को देखने से ही प्रतीत होता यह कोई ऐसी दिव्यात्मा है जो अपने पूर्व जन्म के शेष कार्य को पूर्ण करने के लिए ही इस धरा पर अवतरित हुई है। किशोरावस्था सृजन का महकता गुलदस्ता बनकर बिखरी जब यौवन की दहलीज पर पाँव रखने से पूर्व ही पीडि़त मानवता के उत्थान के दृढ़ संकल्प ने इन्हें मानवता का मसीहा बना दिया।
जिस प्रकार राख में दबे अँगारे एक फूँक मात्रा से पुनः दहक उठते हैं उसी प्रकार संजय के अन्तःकरण में दबी वैराग्य की चिंगारी पर फूँक मारने का कार्य किया परमपूज्य आचार्य श्री निर्मलसागर महाराज ने जिनके मुख से निःसृत बहुमूल्य शब्द रूपी मंत्रा ने ‘‘क्या आपको अपने आप पर विश्वास नहीं है तुम भी मुभ जैसे बन सकते हो’’ संजय के हृदय को झकझोर डाला और वैराग्य का सागर हिलोरें लेने लगा। उसी समय ‘‘नेमि राजुल’’ नाटक के प्रदर्शन से तो उनके हृदय में वैराग्य का सूर्य पूरी तेजस्विता के साथ उदय हो उठा और वे इतने भावविभोर हो गये कि सम्पूर्ण समाज के समक्ष सारे कपड़े उतार फेंक निर्वस्त्रा हो गये। माता-पिता हतप्रभ, आखिर क्या कमी थी संजय को? पिता का दुलार, माँ की ममता, बहन भाई का स्नेह सुख वैभव सभी कुछ तो था। लेकिन जिसे लाखों करोडों बुझे दिलों का रोशन चिराग बनना था, जिसका अवतरण ही पीडि़त मानवता के उत्थान के लिए हुआ हो और जिसे पहले ही आखिरी साँस लेती, दम तोड़ती भारतीय संस्कृति ने अपने उत्थान के लिए बाँध लिया हो वह भला सांसारिक मोहपाश में कैसे बँध पाता?
इसलिए 28 सितम्बर सन् 1987 को मात्रा 15 वर्ष की अल्पायु में वह अखण्ड ब्रह्मचर्य धारण कर समस्त सुख वैभव को ठोकर मारकर शूल कंकरों की परवाह किये बिना, तलवार की तेज धार पर नंगे पाँव चल पड़ा मोक्ष पथ का पथिक मुक्ति पथ की ओर। मात्रा 25 दिनों में 500 कि.मी. की पदयात्रा की, आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज के पावन चरणों में अहमदाबाद पहुँचे और कर दी गुरुवर से याचना क्षुल्लक दीक्षा की। आचार्य श्री हतप्रभ मात्रा 15 वर्ष की अल्पायु और दीक्षा परन्तु शीघ्र ही उनकी पारखी दृष्टि पहचान गई कि उनके समक्ष कोई अल्पायु किशोर बालक नहीं एक ऐसा दृढ़ संकल्पित महान योगी खड़ा है जो चन्दन की तरह महक कर समस्त विश्व को अपने अध्यात्म के मधुर सौरभ से महकाकर रख देगा, मोमबत्ती की तरह अपने देह को नष्ट कर अन्धकार से अंतिम क्षण तक संघर्ष करते हुए विश्व को ज्योतिर्मय कर देगा, और निग्र्रन्थ परम्परा में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर नया इतिहास रचकर रख देगा। इसलिए आचार्य श्री ने अपना आशीष भरा हाथ संजय के सिर पर रख दिया और 6 मार्च सन् 1988 को संजय क्षुल्लक दीक्षा धारण कर परमपूज्य सुकौशलसागर महाराज कहलाए। समस्त गुजरात प्रान्त के इतिहास ने करवट ली और वहाँ के श्रेष्ठीजनों द्वारा इन्हें ‘बालरत्न’ की उपाधि से विभूषित किया गया।
वैराग्य के विभिन्न स्तरों से गुजरते हुए एत्मादपुर, आगरा में 30 दिसम्बर 1992 का वह दिन दिगम्बर परम्परा में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया जब ज्ञान के अगाध सागर पूज्य श्री गिरनार गौरव आ. श्री निर्मलसागर जी महाराज जी ने आपको मुक्ति पद पर आसीन कर मुनि श्री नयनसागर जी महाराज के नाम से नामकरण किया तथा अभय संस्कृति को मिल गया एक स्तुत्य संरक्षक। तब से लगातार हजारों किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए जन-जन के हृदय में अहिंसा की प्राण प्रतिष्ठा करते हुए, आध्यात्मिक पुनरुत्थान की प्रचण्ड गंगा प्रवाहित कर रहे.
पूज्य श्री के द्वारा शाकाहार रथ प्रवर्तन तो इतना प्रभावी प्रमाणित हुआ कि भारत में ही नहीं बल्कि भारत की सीमाओं को लाँघकर पूरे विश्व में गूँज उठा। विश्व के अनेकों देशों में बढ़ती शाकाहार प्रवृत्ति इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।
पूज्य श्री इसी प्रकार रत्नमय गंगा प्रवाहित करते हुए जन-मानस के हृदय में छाये विषाद रूपी अन्धकार को तिरोहित करते हुए सुख समृद्धि और शान्ति के पुष्प पल्लवित कर मुझे भी धर्म प्रभावना का शुभाशीष प्रदान करें। इन्हीं मंगल भावनाओं के साथ पूज्य श्री के चरणों में कोटिशः नमन।
#UpadhyayNayansagarJiMaharaj1972Nirmalsagar
उपाध्याय श्री १०८ नयनसागरजी महाराज
Aacharya Shri 108 Nirmal Sagar Ji Maharaj 1946
आचार्य श्री १०८ निर्मल सागरजी महाराज 1946 Acharya Shri 108 Nirmal Sagarji Maharaj 1946
Dhaval Patil Pune-9623981049
Dhaval Patil Pune-9623981049
NirmalSagarJiMaharaj1946VimalSagarJi(Bhind)
Upadhyay Shri 108 Nayansagarji Maharaj was born on 24-Mar-1972 at Songir (Dhulia) located in the state of Maharashtra and he took Initiation from Acharya Shri Nirmalsagar Maharaj on 30 December 1992 in Etmadpur, Agra.
Upadhyay Nayansagar Ji Maharaj
This saint of sacrifice, sacrifice and spirituality has been wandering on the earth from ages to ages, who have risen like the moon of the full moon in the dark night of darkness, to shed light of their spirituality, non-violence and discipline. In the same way, Lord Nayasagar Muniraj, the lord of singular and serene, gentle personality, sits in the heart of the people as a divine being.
24 March 1972. The first phase of the eighth decade of the twentieth century, when the golden rings touched the earth by ripping the chest of darkness, the Songir (Dhulia) located in the state of Maharashtra was filled with indescribable aura, where the mother Mrs. Manoramadevi's kushi, father Mr. Sonalalji's courtyard A child born with divine talent was born in Those who got the name Sanjaykumar. Crop Shyam Earth got thankful. The immense fame of the whole of India increased and it became forever immortal by joining the historic world forever, which not only gave the parents unmatched glory but the whole of India was blessed.
Child Sanjaykumar's childhood was a confluence of many prodigies. The intellect was so sharp that it passed one test after another and soon became popular among neighbors, classmates and teachers. Being ahead of everyone's pain, he would have saved his classmates from the punishment of the teacher by providing the desired item in the school, and made the hungry hungry. Seeing the evil, inequality and sufferings prevailing in the world, his heart would get feverish and every morning and evening he would go to the temple and ask God for a way to get rid of these sufferings. Jinendra God smiling as if you are saying Sanjay! You have to deviate from the pleasures and pursue the path of liberation towards yoga, you have to do societal well-being with autobiography by teaching the lesson of spiritual karma to the infinite mankind, to create many Kalpavrikshas by watering the soil with the drops of your spiritual exertion and society like Shiv Shankar. It is to impart spirituality and happiness and prosperity by poisoning the evils prevailing in it.
Sanjay used to search for solutions to many unanswered questions from within. Whenever I asked the mother about the futility of the world, she would tremble inside. Somewhere the son would not have made up his mind to renounce the world and would have given him more comforts. But it seems from the view of Sanjay that it is some such divine who has descended on this earth only to complete the remaining work of his previous birth. The importance of adolescent creation was scattered as a bouquet when the determination to uplift the suffering humanity before making it to the threshold of puberty made him the Messiah of humanity.
Just as the birds buried in ashes rise again with a blazing volume, in the same way Sanjay's act of blushing the spark of recluse, His Holiness Acharya Shri Nirmalsagar Maharaj, whose mantra in the form of a precious word from his mouth gave you " You do not believe that you can also become like you. ”Shook Sanjay's heart and started taking the ocean of quietness. At the same time, with the performance of the play "Nemi Rajul", the sun of disinterest in his heart rose with full glory and he became so emotional that all the clothes were thrown away in front of the entire society. Stunned parents, what was Sanjay missing? Father's caress, mother's affection, sister brother's affection and happiness was everything. But what was to become the illuminating lamp of millions of millions of hearts, which had been incarnated only for the upliftment of the suffering humanity, and which had already breathed its last, the dying Indian culture has tied itself for its upliftment. Finds?
Therefore, on 28 September 1987, at the young age of 15 years, he was wearing unbroken celibacy and stumbling all the happiness of the glory, regardless of the prickers, walked barefoot on the sharp edge of the sword towards the path of salvation. Quantity 500 km in 25 days On a padyatra, Acharya reached Ahmedabad in the holy feet of Shri Nirmalsagar Ji Maharaj and prayed to Guruvar and took initiation. Acharya Shri Hataprabha volume 15 years of age and initiation but soon his connoisseur's vision recognized that there is no young adolescent boy standing before him, a determined great yogi who smells like sandalwood and smells the whole world from the sweet smell of his spirituality Will keep it, will destroy the body like a candle and light up the world, struggling from darkness to the last moment, and will set a new record in the Nigrantha tradition by creating new history. Therefore, Acharya Shri put his blessed hand on Sanjay's head and on 6 March 1988, Sanjay, wearing the initiation, called Param Pujya Sukaushalsagar Maharaj. The history of entire Gujarat province took a turn and was conferred with the title of 'Balratna' by the eminent people there.
Passing through different levels of disinterest, the day of 30 December 1992 in Etmadpur, Agra was marked in the Digambar tradition in golden letters when the revered Sage of Knowledge Shri Girnar Pride arrived. Shri Nirmalsagar Ji Maharaj ji named you as Muni Shri Nayansagar Ji Maharaj after occupying the post of liberation and Abhay culture got a stalwart patron. Since then, while continuously marching for thousands of kilometers, the great Ganges of spiritual revival flowed in the hearts of the people, revealing the life of non-violence.
The introduction of vegetarian chariot by Pujya Shri proved to be so effective that not only in India but across the world by crossing the boundaries of India. The growing vegetarian trend in many countries of the world is a classic example of this.
Reverend Shree, likewise, while flowing the jewel-filled Ganges, destroying the darkness of the gloom that is in the heart of the people, flourish the flowers of happiness, prosperity and peace, and give me the blessings of religious influence. At the feet of Pujya Shri with these same emotions, bowed down.
Upadhyay Shri 108 Nayansagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ निर्मल सागरजी महाराज 1946 Acharya Shri 108 Nirmal Sagarji Maharaj 1946
आचार्य श्री १०८ निर्मल सागरजी महाराज 1946 Acharya Shri 108 Nirmal Sagarji Maharaj 1946
Aacharya Shri 108 Nirmal Sagar Ji Maharaj 1946
Acharya Shri 108 Nirmalsagarji Maharaj
Dhaval Patil Pune-9623981049
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NirmalSagarJiMaharaj1946VimalSagarJi(Bhind)
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