नित्याप्रकंपाद्भुत-केवलौघाः,स्फुरन्मनःपर्यय-शुद्धबोधा:। दिव्यावधिज्ञान-बलप्रबोधा:, स्वस्ति-क्रियासु: परमर्षयो न:।१।
श्रीमत वीर हरें भवपीर, भरे सुखसीर अनाकुलताई। केहरि अंक अरीकरदंक, नये हरि पंकति मौलि सुआई।।
मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुन्दार्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलं।।
निर्वाण लाडू चढ़ाने वाले दिन संध्याकाल में श्रावकगण अपने-अपने घरों में दीपावली पूजन करते हैं।
अनादि अनंत काल से भरतक्षेत्र में अनंत चौबीसी अनंत-अनंत काल से होती आयीं हैं
इह विधि मंगल आरति कीजे, पंच परमपद भज सुख लीजे ।
वीतराग वन्दौं सदा, भाव सहित सिर-नाय। कहूँ काण्ड निर्वाण की, भाषा सुगम बनाया।।
गणपति गणीशवर गणेश गणनायक गणीश्चर नाम हैं। गणनाथ गणस्वामी गणाधिप आदि नाम प्रधान हैं।।
जनम जरा मृत्यु छय करै, हरै कुनय जड़ रीति। भव-सागरसौं ले तिरै, पूजै जिन वच प्रीति ।।
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