Site logo
Aug 19
Pictures reference for Bhaktamar Stotra

Pictures reference for Bhaktamar Stotra Bhaktamar stotra book translated in Marathi by Muni Shri 108 Akshay Sagarji Maharaj and Published by Shanti Vidya Gyan Sanwardhan Samiti, Sangli To get this book please contact Mahavir Bhaiya – Jaisinghpur 8975541251

Aug 12
Bhaktambar Stotra 41 to 48

आचार्य मानतुंग कृत “भक्तामरस्तोत्रम” दिगंबर जैन विकी द्वारा प्रस्तुत << Previous 1. Stotra 1 to 8 2. Stotra 9 to 16 3. Stotra 17 to 24 4. Stotra 25 to 32 << 5. Stotra 33 to 40 6. Stotra 41 to 48 41. सर्प विष निवारक रक्तेक्षणं समदकोकिलकण्ठनीलं, ऋाधोद्धतं फणिनमुत्कणमापन्तम्। आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशङ्क-स्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य […]

Aug 12
Bhaktamar Stotra 33 to 40

आचार्य मानतुंग कृत “भक्तामरस्तोत्रम” दिगंबर जैन विकी द्वारा प्रस्तुत > 33. सर्व ज्वर नाशक मन्दारसुन्दरनमेरुसुपारिजात-सन्तानकादिकुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा, गन्धोदबिन्दुशुभमन्दमरुत्प्रपाता, दिव्या दिवः पतति ते वचसां ततिः र्वा ||३३|| अन्वयार्थ – (गन्धोदबिन्दुशुभमन्दमत्प्रपाता) सुगंधित जल की बूंदों और मन्द मन्द वायुके साथ गिरने वाली (उद्धा) ऊर्ध्वमुखी [च] और (दिव्या) देवकृत (मन्दारसुन्दरनमेरुसुपारिजातसन्तानकादिकुसुमोत्करवृष्टिः) मन्दार, सुन्दर, नमेरु, पारिजात और सन्तानक प्रादि कल्पवृक्षों के फूलों […]

Aug 11
Sanskrit and Hindi Bhaktambar Stotra 25 to 32

आचार्य मानतुंग कृत “भक्तामरस्तोत्रम” दिगंबर जैन विकी द्वारा प्रस्तुत << Previous 1. Stotra 1 to 8 2. Stotra 9 to 16 << 3. Stotra 17 to 24 4. Stotra 25 to 32 5. Stotra 33 to 40 >> 6. Stotra 41 to 48 Next >> 25. नजर (दृष्टी दोष) नाशक बुद्धस्त्वमेव विबुधाचितबुद्धबोधात्, त्वं शङ्करोऽसि भुवनत्रयशङ्करत्वात्। […]

Aug 10
Bhaktamar Stotra 17 to 24

आचार्य मानतुंग कृत “भक्तामरस्तोत्रम” दिगंबर जैन विकी द्वारा प्रस्तुत << Previous 1. Stotra 1 to 8 << 2. Stotra 9 to 16 3. Stotra 17 to 24 4. Stotra 25 to 32 >> 5. Stotra 33 to 40 6. Stotra 41 to 48 Next >> 17. सर्व उदर पीडा नाशक नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः, स्पष्टीकरोषि […]

Aug 10
Bhaktamar Stotra 9 to 16

Bhaktamar Stotra 9 to 16 with Audio and Translation for effective reciting. आचार्य मानतुंग कृत “भक्तामरस्तोत्रम” दिगंबर जैन विकी द्वारा प्रस्तुत > 09. सर्वभय निवारक आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं, त्वत्सङ्कथापि जगतां दुरितानि हन्ति। दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकासभाञ्जि ॥९॥ अन्वयार्थ – (तव) तुम्हारा ( अस्तसमस्तदोषम्) निर्दोष (स्तवनम्) स्तवन (आस्ताम्) दूर रहे, किन्तु (त्वत्सङ्कथा) तुम्हारी […]