Deepwali Pooja Prarambha – दीपावली पूजा प्रारंभ

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Language : Hindi

ॐ जय जय जय नमोऽस्तु, नमोऽस्तु, नमोऽस्तु
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियांण।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।

ॐ ह्रीं अनादिमूलमन्त्रेभ्यो नमः।

पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि।

चत्तारि मंगलं अरिहंता मंगल सिद्धा मंगलं
साहू मंगल केवलपण्णत्तो धम्मो मंगलं।
चत्तारि लोगुत्तमा अरिहंता लोगुत्तमा सिद्धा लोगुत्तमा
साहू लोगुत्तमा केवलपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो।
चत्तारि सरणं पव्वज्जामि अरिहंते सरणं पव्वज्जामि
सिद्धे सरणं पव्वज्जामि साहू सरणं पव्वज्जामि
केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि।

ॐ नमोऽर्हते स्वाहा।

पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि।

देव शास्त्र गुरू का अर्घ

जल परम उज्जवल गन्ध अक्षत, पुष्प चरू दीपक धरूँ।
वर धूप निर्मल फल विविध बहु जनम के पातक हरूँ ।।
इह भाँति अर्घ चढ़ाय नित भवि करत शिवपंकति मचूँ।
अरहंत श्रुत-सिद्धान्त गुरू-निर्ग्रन्थ नित पूजा रचूँ।।
वसुविधि अर्घ संजोय के, अति उछाव मन कीन।
जासों पूजो परमपद, देव-शास्त्र-गुरु तीन।

ॐ ह्रीं श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्योऽनर्घपदप्राप्तये अर्धं निर्वपामीति स्वाहा।

विद्यमान बीस तीर्थंकरों का अर्घ

जल फल आठों दर्व अरघ कर प्रीति धरी है,
गणधर इन्द्रनिहू-तैं थुति पूरी न करी है।
ध्यानत सेवक जानके (हो) जगतें लेहु निकार,
सीमन्धर जिन आदि दे बीस विदेह मँझार।
श्री जिनराज हो भव तारण तरण जहाज ।।

ॐ ह्रीं श्रीसीमन्धरादिविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो अनर्घपदप्राप्तये अर्घ निर्वामीति स्वाहा।

समुच्चय चौबीस भगवान् का अर्घ

जल फल आठों शुचिसार ताको अर्घ करों,
तुमको अरपों भवतार, भवतरि मोक्ष वरों।
चौबीसों श्रीजिनचंद, आनन्दकंद सही,
पद जजत हरत भव फंद, पावत मोक्ष मही।

ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तचतुर्विशतितीर्थंकरेभ्यो अनर्घपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।

नोट : यदि समय हो तो नीचे अर्घों के स्थान पर आगे पूरी पूजायें दी है, उसे करना चाहिए।

श्री महावीर भगवान् का अर्घ

जलफल वसु सजि हिम धार, तन मन मोद धरों।
गुणगाऊँ भवधितार, पूजत पाप हरों।।
श्री वीर महा अतिवीर सन्मति नायक हो।
जय वर्द्धमान गुणधीर सन्मतिदायक हो।।

ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्त्ये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।

सरस्वती का अर्घ

जलचन्दनअक्षतफूल चरू, अरू दीपधूप अति फल लावै।
पूजा को ठानत जो तुम जानत, सो नर ‘ध्यानत’ सुख पावै ।।
तीर्थंकर की ध्वनि गणधर ने सुनी अंग रचे चुनि ज्ञानमई।
सो जिनवर वाणी, शिव सुखदानी, त्रिभुवन मानी पूज्य भई।।

ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भवसरस्वतीदेव्यै अनर्घपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।

गौतम स्वामी का अर्घ

गौतमादिक सर्वे एक दश गणधरा,
वर जिनके मुनि सहस्त्र चौदहवरा।
नीर गंधाक्षतं पुष्प चरू दीपकं,
धूप फल अर्घ ले हम जजें महर्षिकं ।।

ॐ ह्रीं महावीरजिनस्य गौतमाध्येकादशगणधरचर्तुदशसहस्त्रमुनिवरेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।

Updated By : Sou Tejashri Wadkar And Shri Shashank Shaha

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