Close button is at the end.
Author:
Language : Hindi
निर्वाण-काण्ड (भाषा)
भैया भगवतीदास
दोहा
वीतराग वन्दौं सदा, भाव सहित सिर-नाय।कहूँ काण्ड निर्वाण की, भाषा सुगम बनाया।।
चौपाई
अष्टापद आदीश्वर स्वामी, वासुपूज्य चम्पापुरि नामि।नेमिनाथ स्वामी गिरनार, वन्दौं भाव-भगति उर धार ॥1॥
चरम तीर्थंकर चरम-शरीर, पावापुरी स्वामि महावीर।शिखर समेद जिनेसुर बीस, भावसहित वन्दौं निश-दीस ॥2॥
वरदत्तराय रू इन्द मुनिन्द, सायरदत्त आदि गुणवृन्द।नगर तारवर मुनि उठकोडि, वन्दौ भावसहित कर जोडि ॥3॥
श्रीगिरनार शिखर विख्यात, कोडि बहत्तर अरू सौ सात।सम्बु प्रद्युम्न कुमर द्वै भाय, अनिरुद्ध आदि नमूँ तसु पाय ॥4॥
रामचन्द्र के सुत द्वै वीर, लाडनरिन्द आदि गुणधीर।पाँच कोडि मुनि मुक्ति मँझार, पावागढ़ वन्दौं निरधार ॥5॥
पाण्डव तीन द्रविड-राजान, आठ कोडि मुनि मुकति पयान।श्रीशत्रुंजयगिरि के सीस, भावसहित वन्दौं निश-दीस ॥6॥
जे बलभद्र मुकति में गये, आठ कोडि मुनि औरहु भये।श्रीगजपन्थ शिखर सुविशाल, तिनके चरण नमूँ तिहुँ काल ॥7॥
राम हणू सुग्रीव सुडील, गव गवाख्य नील महानील।कोडि निन्याणव मुक्ति पयान, तुंगीगिरि वन्दौं धरि ध्यान ॥8॥
नंग -अनंग कुमार सुजान, पाँच कोडि अरु अर्ध प्रमान।मुक्ति गये सोनागिरि-शीस, ते वन्दौं त्रिभुवनपति ईस ॥9॥
रावण के सुत आदिकुमार, नेमावर’ रेवा-तट सार।कोटि पंच अरु लाख पचास, ते वन्दौं धरि परम हुलास ॥10॥
रेवानदी सिद्ध वरकूट, पश्चिम दिशा देह जहँ छूट।द्वै चक्री दश कामकुमार, ऊठकोडि वन्दौं भव-पार ॥11॥
बडवानी बडनयर सुचंग, दक्षिण दिशि गिरि चूल उतंग।इन्द्रजीत अरु कुम्भ जु कर्ण, ते वन्दौं भव-सागर-तर्ण॥12॥
सुवरणभद्र आदि मुनि चार, पावागिरि-वर-शिखर मँझार।चेलना-नदी-तीर के पास, मुक्ति गये वन्दौं नित तास ॥13॥
फलहोडी बडगाम अनूप, पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप।गुरुदत्तादि मुनीसुर जहाँ, मुक्ति गये वन्दौं नित तहाँ ॥14॥
बाल महाबाल मुनि दोय, नागकुमार मिले त्रय होय।।श्री अष्टापद मुक्ति मँझार, ते वन्दौं नित सुरत सँभार ॥15॥
अचलापुर की दिश ईसान, तहाँ मुक्तागिरि’ नाम प्रधान।साढ़े तीन कोडि मुनिराय, तिनके चरण नमूँ चित लाए ॥16॥
वंशस्थल वन के ढिग होय, पश्चिम दिशा कुन्थुगिरि सोय।कुलभूषण देशभूषण नाम, तिनके चरणनि करूँ प्रणाम॥17॥
जसरथ राजा के सुत कहे, देश कलिंग पाँच सौ लहे।कोटिशिला मुनि कोटि प्रमान, वन्दन करूँ जोरि जुग पान ॥18॥
समवसरण श्रीपार्श्व-जिनंद, रेसिन्दीगिरि नयनानन्द।वरदत्तादि पंच ऋषिराज, ते बन्दौं नित धरम-जिहाज ॥19॥
मथुरापुर पवित्र उद्यान, जम्बूस्वामी जी निर्वाण।चरम केवली पंचमकाल, तें बन्दौ नित दीनदयाल ॥20॥
(बड़े बाबा कुण्डलपुर हार, श्रीधर केवली मुक्ति पधार।पूजन-वंदन कर मन धार, जनम जरा भव सागर पार ।।)
तीन लोक के तीरथ जहाँ, नित प्रति वन्दन कीजै तहाँ।मन-वच-कायसहित सिर नाय, वन्दन करहिं भविक गुण गाय॥21॥
संवत सतरह सौ इकताल, आश्विन सुदि दशमी सुविशाल।‘भैया’ वन्दन करहिं त्रिकाल, जय निर्वाणकाण्ड गुणमाल ॥22॥
Updated By : Sou Tejashri Wadkar And Shri Shashank Shaha
You cannot copy content of this page