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#AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj

Acharya Shri 108 Vidyasagarji Maharaj was born on 10 October 1946. His is one of the best-known contemporary Digambara Jain Acharya. He is recognized both for his scholarship and tapasya (austerity). He is known for his long hours in meditation. His birthplace is in Karnataka and diksha (undertook spiritual discipline)place is in Rajasthan. He generally spends much of his time in the Bundelkhand region where he is associated with having brought about a revival in educational and religious activities. He has many written haiku poems and the epic Hindi poem "Mukamati". His life is the subject of the 2018 documentary film Vidyoday released by Landmark Films.
Sallekhna:
After returning from the "Shuddhi' on the afternoon of 6th February, after sending aside the monks accompanying him, he retired from Sangh related work after discussing with Nirayapka Shraman Munishree Yoga Sagar Ji and on the same day he resigned from the post of Acharya.
He considered the disciple Niryapak Shraman Muni Shri Samaysagar Ji Maharaj eligible for the post of Acharya and then announced that he should be given the post of Acharya, the formal information of which will be given soon.
The most revered Gurudev remained fully awake till the end with the remembrance of the Lord, present near to him were Niryapak Shraman Muni Shri Yogasagar Ji, Niryapak Shraman Muni Shri Samtasagar Ji, Niryapak Shraman Muni Shri Prasadsagar Ji, Munishree Chandraprabhasagar Ji, Munishree Pujyasagar Ji Muni Shri Niramayasagar Ji, Munishree Nissimsagar Ji Ai.Nischayasagar, Ai. Shri Dhairyasagar ji. Due to the presence and address of Vinaybhaiya, I left my mortal body at Chandragiri Tirtha tonight at 2-35 pm.
Acharya Shri Ji's dola was taken out at Chandragiri Teerth Dongargarh at 2.35 pm, and he was merged into Panchatattva at Chandragiri Teerth itself on 18-Feb-2024
युग दृष्टा ब्रहमांड के देवता संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी महामुनिराज आज दिनांक 17 फरवरी शनिवार तदनुसार माघ शुक्ल अष्टमी पर्वराज के अंतर्गत उत्तम सत्य धर्म के दिन रात्रि में2:35 बजे हुए ब्रह्म में लीन।
हम सबके प्राण दाता राष्ट्रहित चिंतक परम पूज्य गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण करली थी। पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास गृहण करते हुए आहार एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था एवं प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बंद कर दिया था और अखंड मौन धारण कर लिया था।
6 फरवरी मंगलवार को दोपहर शौच से लौटने के उपरांत साथ के मुनिराजों को अलग भेजकर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर जी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली और उसी दिन आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने आचार्य पद के योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज को योग्य समझा और तभी उन्हें आचार्य पद दिया जावे ऐसी घोषणा कर दी थी जिसकी विधिवत जानकारी कल दी जाएगी।
परमपूज्य गुरूदेव ने पूरी जागृत अवस्था में अंत समय तक प्रभु स्मरण के साथ उपस्थित निर्यापक श्रमण मुनि श्री योगसागर जी निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर जी निर्यापक श्रमण मुनि श्री प्रसादसागर जी मुनिश्री चन्द्रप्रभसागर जी मुनिश्रीपूज्यसागर जी मुनि श्री निरामयसागर जी मुनिश्री निस्सीमसागर जी ऐ.निश्चयसागर ऐ श्री धैर्यसागर जी एवं बा ब्र. विनयभैया की उपस्थिति और संबोधन के चलते नश्वर देह का चन्द्रगिरि तीर्थ पर आज रात्रि २-३५ पर त्याग कर दिया ।
गुरुवारश्री जी का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर २.३५ बजे निकाला ,एवम् उन्हें चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन किया गया।
प्रतिष्ठाचार्य -बा.ब्र.विनय भैया “ साम्राट” चन्द्रगिरि तीर्थ डोंगरगढ़ से
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Acharya Vidyasagarji Maharaji Muni Sangh based on Diksha Tithi
उनका जन्म १० अक्टूबर १९४६ को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।
विद्यासागर जी को ३० जून १९६८ में अजमेर में २२ वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के वंश के थे। आचार्य विद्यासागर को २२ नवम्बर १९७२ में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था। उनके सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है। उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर और मुनि समयसागर कहलाये। बडे भाई आचार्य श्री विद्यासागरजी से ही दीक्षा प्राप्त कर 'मुनि श्री उत्कृष्ट' सागर जी बने|
आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। विभिन्न शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।
आचार्य विद्यासागर के शिष्य मुनि क्षमासागर ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है।मुनि प्रणम्यसागर ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।
भारत-भू पर सुधारस की वर्षा करने वाले अनेक महापुरुष और संत कवि जन्म ले चुके हैं। उनकी साधना और कथनी-करनी की एकता ने सारे विश्व को ज्ञान रूपी आलोक से आलोकित किया है। इन स्थितप्रज्ञ पुरुषों ने अपनी जीवनानुभव की वाणी से त्रस्त और विघटित समाज को एक नवीन संबल प्रदान किया है। जिसने राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक और संस्कृतिक क्षेत्रों में क्रांतिक परिवर्तन किये हैं। भगवान राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, ईसा, हजरत मुहम्मदौर आध्यत्मिक साधना के शिखर पुरुष आचार्य कुन्दकुन्द, पूज्यपाद्, मुनि योगिन्दु, शंकराचार्य, संत कबीर, दादू, नानक, बनारसीदास, द्यानतराय तथा महात्मा गाँधी जैसे महामना साधकों की अपनी आत्म-साधना के बल पर स्वतंत्रता और समता के जीवन-मूल्य प्रस्तुत करके सम्पूर्ण मानवता को एक सूत्र में बाँधा है। उनके त्याग और संयम में, सिद्धांतों और वाणियों से आज भी सुख शांति की सुगन्ध सुवासित हो रही है। जीवन में आस्था और विश्वास, चरित्र और निर्मल ज्ञान तथा अहिंसा एवं निर्बैर की भावना को बल देने वाले इन महापुरुषों, साधकों, संत कवियों के क्रम में संतकवि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज वर्तमान में शिखर पुरुष हैं, जिनकी ओज और माधुर्यपूर्ण वाणी में ऋजुता, व्यक्तित्व में समता, जीने में संयम की त्रिवेणी है। जीवन-मूल्यों को प्रतिस्ठित करने वाले बाल ब्रह्मचारी श्री विद्यासागर जी स्वभाव से सरल और सब जीवों के प्रति मित्रवत व्यवहार के संपोषक हैं, इसी के कारण उनके व्यक्तित्व में विश्व-बन्धुत्व की, मानवता की सौंधी-सुगन्ध विद्यमान है।
आश्विन शरदपूर्णिमा संवत 2003 तदनुसार 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलग्राम जिले के सुप्रसिद्ध सदलगा ग्राम में श्रेष्ठी श्री मलप्पा पारसप्पा जी अष्टगे एवं श्रीमती श्रीमतीजी के घर जन्मे इस बालक का नाम विद्याधर रखा गया। धार्मिक विचारों से ओतप्रोत, संवेदनशील सद्गृहस्थ मल्लपा जी नित्य जिनेन्द्र दर्शन एवं पूजन के पश्चात ही भोजनादि आवश्यक करते थे। साधु-सत्संगति करने से परिवार में संयम, अनुशासन, रीति-नीति की चर्या का ही परिपालन होता था।
आप माता-पिता की द्वितीय संतान हो कर भी अद्वितीय संतान है। बडे भाई श्री महावीर प्रसाद स्वस्थ परम्परा का निर्वहन करते हुए सात्विक पूर्वक सद्गृहस्थ जीवन-यापन कर रहे हैं। माता-पिता, दो छोटे भाई अनंतनाथ तथा शांतिनाथ एवं बहिनें शांता व सुवर्णा भी आपसे प्रेरणा पाकर घर-गृहस्थी के जंजाल से मुक्त हो कर जीवन-कल्याण हेतु जैनेश्वरी दीक्षा ले कर आत्म-साधनारत हुए। धन्य है वह परिवार जिसमें सात सदस्य सांसारिक प्रपंचों को छोड कर मुक्ति-मार्ग पर चल रहे हैं। इतिहास में ऐसी अनोखी घटना का उदाहरण बिरले ही दिखता है।
विद्याधर का बाल्यकाल घर तथा गाँव वालों के मन को जीतने वाली आश्चर्यकारी घटनाओं से युक्त रहा है। खेलकूद के स्थान पर स्वयं या माता-पिता के साथ मन्दिर जाना, धर्म-प्रवचन सुनना, शुद्ध सात्विक आहार करना, मुनि आज्ञा से संस्कृत के कठिन सूत्र एवं पदों को कंठस्थ करना आदि अनेक घटनाऐं मानो भविष्य में आध्यात्म मार्ग पर चलने का संकेत दे रही थी। आप पढाई हो या गृहकार्य, सभी को अनुशासित और क्रमबद्ध तौर पर पूर्ण करते। बचपन से ही मुनि-चर्या को देखने , उसे स्वयं आचरित करने की भावना से ही बावडी में स्नान के साय पानी में तैरने के बहाने आसन और ध्यान लगाना, मन्दिर में विराजित मूर्ति के दर्शन के समय उसमे छिपी विराटता को जानने का प्रयास करना, बिच्छू के काटने पर भी असीम दर्द को हँसते हुए पी जाना, परंतु धार्मिक-चर्या में अंतर ना आने देना, उनके संकल्पवान पथ पर आगे बढने के संकेत थे।
गाँव की पाठशाला में मातृभाषा कन्नड में अध्ययन प्रारम्भ कर समीपस्थ ग्राम बेडकीहाल में हाई स्कूल की नवमी कक्षा तक अध्ययन पूर्ण किया। चाहे गणित के सूत्र हों या भूगोल के नक्शे, पल भर में कडी मेहनत और लगन से उसे पूर्ण करते थे। उन्होनें शिक्षा को संस्कार और चरित्र की आधारशिला माना और गुरुकुल व्यवस्थानुसार शिक्षा को ग्रहण किया, तभी तो आजतक गुरुशिष्य-परम्परा के विकास में वे सतत शिक्षा दे रहे हैं।
वास्तविक शिक्षा तो ब्रह्मचारी अवस्था में तथा पुनः मुनि विद्यासागर के रूप में गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी के सान्निध्य में पूरी हुई। तभी वे प्रकृत, अपभ्रंस, संस्कृत, कन्नड, मराठी, अंग्रेजी, हिन्दी तथा बंग्ला जैसी अनेक भाषाओं के ज्ञाता और व्याकरण, छन्दशास्त्र, न्याय, दर्शन, साहित्य और अध्यात्म के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य बने। आचार्य विद्यासागर मात्र दिवस काल में ही चलने वाले नग्नपाद पदयात्री हैं। राग, द्वेष, मोह आदि से दूर इन्द्रियजित, नदी की तरह प्रवाहमान, पक्षियों की तरह स्वच्छन्द, निर्मल, स्वाधीन, चट्टान की तरह अविचल रहते हैं। कविता की तरह रम्य, उत्प्रेरक, उदात्त, ज्ञेय और सुकोमल व्यक्तित्व के धनी आचार्य विद्यासागर भौतिक कोलाहलों से दूर, जगत मोहिनी से असंपृक्त तपस्वी हैं।
आपके सुदर्शन व्यक्तित्व को संवेदनशीलता, कमलवत उज्जवल एवं विशाल नेत्र, सम्मुन्नत ललाट, सुदीर्घ कर्ण, अजान बाहु, सुडौल नासिका, तप्त स्वर्ण-सा गौरवर्ण, चम्पकीय आभा से युक्त कपोल, माधुर्य और दीप्ति सन्युक्त मुख, लम्बी सुन्दर अंगुलियाँ, पाटलवर्ण की हथेलियाँ, सुगठित चरण आदि और अधिक मंडित कर देते हैं। वे ज्ञानी, मनोज्ञ तथा वाग्मी साधु हैं। और हाँ प्रज्ञा, प्रतिभा और तपस्या की जीवंत-मूर्ति।
बाल्यकाल में खेलकूद में शतरंज खेलना, शिक्षाप्रद फिल्में देखना, मन्दिर के प्रति आस्था रखना, तकली कातना, गिल्ली-डंडा खेलना, महापुरुषों और शहीद पुरुषों के तैलचित्र बनाना आदि रुचियाँ आपमें विद्यमान थी। नौ वर्ष की उम्र में ही चारित्र चक्रवर्ती आचार्य प्रवर श्री शांतिसागर जी महाराज के शेडवाल ग्राम में दर्शन कर वैराग्य-भावना का उदय आपके हृदय में हो गया था। जो आगे चल कर ब्रह्मचर्यव्रत धारण कर प्रस्फुटित हुआ। 20 वर्ष की उम्र, जो की खाने-पीने, भोगोपभोग या संसारिक आनन्द प्राप्त करने की होती है, तब आप साधु-सत्संगति की भावना को हृदय में धारण कर आचार्य श्री देशभूषण महाराज के पास जयपुर(राज.) पहुँचे। वहाँ अब ब्रह्मचारी विद्याधर उपसर्ग और परीषहों को जीतकर ज्ञान, तपस्या और सेवा का पिण्ड/प्रतीक बन कर जन-जन के मन का प्रेरणा स्त्रोत बन गया था।
आप संसार की असारता, जीवन के रहस्य और साधना के महत्व को पह्चान गये थे। तभी तो हृष्ट-पुष्ट, गोरे चिट्टे, लजीले, युवा विद्याधर की निष्ठा, दृढता और अडिगता के सामने मोह, माया, श्रृंगार आदि घुटने टेक चुके थे। वैराग्य भावना ददृढवती हो चली। अथ पदयात्री और करपात्री बनने की भावना से आप गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पास मदनगंज-किशनगढ(अजमेर) राजस्थान पहुँचे। गुरुवर के निकट सम्पर्क में रहकर लगभग 1 वर्ष तक कठोर साधना से परिपक्व हो कर मुनिवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के द्वारा राजस्थान की ऐतिहासक नगरी अजमेर में आषाढ शुक्ल पंचमी, वि.सं. 2025, रविवार, 30 जून 1968 ईस्वी को लगभग 22 वर्ष की उम्र में सन्यम का परिपालन हेतु आपने मत्र पिच्छि-कमन्डलु धारण कर संसार की समस्त बाह्य वस्तुओं का परित्याग कर दिया। परिग्रह से अपरिग्रह, असार से सार की ओर बढने वाली यह यात्रा मानो आपने अंगारों पर चलकर/बढकर पूर्ण की। विषयोन्मुख वृत्ति, उद्दंडता एवं उच्छृंखलता उत्पन्न करने वाली इस युवावस्था में वैराग्य एवं तपस्या का ऐसा अनुपम उदाहरण मिलना कठिन ही है।
ब्रह्मचारी विद्याधर नामधारी, पूज्य मुनि श्री विद्यासागर महाराज। अब धरती ही बिछौना, आकाश ही उडौना और दिशाएँ ही वस्त्र बन गये थे। दीक्षा के उपरांत गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज की सेवा – सुश्रुषा करते हुए आपकी साधना उत्तरोत्त्र विकसित होती गयी। तब से आज तक अपने प्रति वज्र से कठोर, परंतु दूसरों के प्रति नवनीत से भी मृदु बनकर शीत-ताप एवं वर्षा के गहन झंझावातों में भी आप साधना हेतु अरुक-अथक रूप में प्रवर्तमान हैं। श्रम और अनुशासन, विनय और संयम, तप और त्याग की अग्नि मे तपी आपकी साधना गुरु-आज्ञा पालन, सबके प्रति समता की दृष्टि एवं समस्त जीव कल्याण की भावना सतत प्रवाहित होती रहती है।
गुरुवर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी की वृद्धावस्था एवं साइटिकासे रुग्ण शरीर की सेवा में कडकडाती शीत हो या तमतमाती धूप, य हो झुलसाती गृष्म की तपन, मुनि विद्यासागर के हाथ गुरुसेवा मे अहर्निश तत्पर रहते। आपकी गुरु सेवा अद्वितीय रही, जो देश, समाज और मानव को दिशा बोध देने वाली थी। तही तो डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य ने लिखा था कि 10 लाख की सम्पत्ति पाने वाला पुत्र भी जितनी माँ-बाप की सेवा नहीं कर सकता, उतनी तत्परता एवं तन्मयता पूर्वक आपने अपने गुरुवर की सेवा की थी।
किंतु सल्लेखना के पहले गुरुवर्य ज्ञानसागर जी महाराज ने आचार्य-पद का त्याग आवश्यक जान कर आपने आचार्य पद मुनि विद्यासागर को देने की इच्छा जाहिर की, परंतु आप इस गुरुतर भार को धारण करने किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए, तब आचार्य ज्ञानसागर जी ने सम्बोधित कर कहा के साधक को अंत समय में सभी पद का परित्याग आवश्यक माना गया है। इस समय शरीर की ऐसी अवस्था नहीं है कि मैं अन्यत्र जा कर सल्लेखना धारण कर सकूँ। तुम्हें आज गुरु दक्षिणा अर्पण करनी होगी और उसी के प्रतिफल स्वरूप यह पद ग्रहण करना होगा। गुरु-दक्षिणा की बात सुन कर मुनि विद्यासागर निरुत्तर हो गये। तब धन्य हुई नसीराबाद (अजमेर) राजस्थान की वह घडी जब मगसिर कृष्ण द्वितीया, संवत 2029, बुधवार, 22 नवम्बर,1972 ईस्वी को आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने अपने कर कमलों आचार्य पद पर मुनि श्री विद्यासागर महाराज को संस्कारित कर विराजमान किया। इतना ही नहीं मान मर्दन के उन क्षणों को देख कर सहस्त्रों नेत्रों से आँसूओं की धार बह चली जब आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने मुनि श्री विद्यासागर महाराज को आचार्य पद पर विराजमान किया एवं स्वयं आचार्य पद से नीचे उतर कर सामान्य मुनि के समान नीचे बैठ कर नूतन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के चरणों में नमन कर बोले – “ हे आचार्य वर! नमोस्तु, यह शरीर रत्नत्रय साधना में शिथिल होता जा रहा है, इन्द्रियाँ अपना सम्यक काम नहीं कर पा रही हैं। अतः आपके श्री चरणों में विधिवत सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण धारण करना चाहता हूँ, कृपया मुझे अनुगृहित करें।“ आचार्य श्री विद्यासागर ने अपने गुरु की अपूर्व सेवा की। पूर्ण निमर्मत्व भावपूर्वक आचार्य ज्ञानसागर जी मरुभूमि में वि. सं. 2030 वर्ष की ज्येष्ठ मास की अमावस्या को प्रचंड ग्रीष्म की तपन के बीच 4 दिनों के निर्जल उपवास पूर्वक नसीराबाद (राज.) में ही शुक्रवार, 1 जून 1973 ईस्वी को 10 बजकर 10 मिनट पर इस नश्वर देह को त्याग कर समाधिमरण को प्राप्त हुए।
आचार्य विद्यासागरजी द्वारा रचित रचना-संसार में सर्वाधिक चर्चित ओर महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में
“मूक माटी” महाकाव्य ने हिन्दी-साहित्य और हिन्दी सत-सहित्य जगत में आचार्य श्री को काव्य की आत्मा तक पहुँचाया है।
आचार्य श्री को प्राप्त कुछ पुरस्कार और डिग्रीज:
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सल्लेखना:
युग दृष्टा ब्रहमांड के देवता संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी महामुनिराज आज दिनांक 17 फरवरी शनिवार तदनुसार माघ शुक्ल अष्टमी पर्वराज के अंतर्गत उत्तम सत्य धर्म के दिन रात्रि में2:35 बजे हुए ब्रह्म में लीन। हम सबके प्राण दाता राष्ट्रहित चिंतक परम पूज्य गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण करली थी। पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास गृहण करते हुए आहार एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था एवं प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बंद कर दिया था और अखंड मौन धारण कर लिया था। 6 फरवरी मंगलवार को दोपहर शौच से लौटने के उपरांत साथ के मुनिराजों को अलग भेजकर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर जी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली और उसी दिन आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने आचार्य पद के योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज को योग्य समझा और तभी उन्हें आचार्य पद दिया जावे ऐसी घोषणा कर दी थी जिसकी विधिवत जानकारी कल दी जाएगी। परमपूज्य गुरूदेव ने पूरी जागृत अवस्था में अंत समय तक प्रभु स्मरण के साथ उपस्थित निर्यापक श्रमण मुनि श्री योगसागर जी निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर जी निर्यापक श्रमण मुनि श्री प्रसादसागर जी मुनिश्री चन्द्रप्रभसागर जी मुनिश्रीपूज्यसागर जी मुनि श्री निरामयसागर जी मुनिश्री निस्सीमसागर जी ऐ.निश्चयसागर ऐ श्री धैर्यसागर जी एवं बा ब्र. विनयभैया की उपस्थिति और संबोधन के चलते नश्वर देह का चन्द्रगिरि तीर्थ पर आज रात्रि २-३५ पर त्याग कर दिया । गुरुवारश्री जी का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर २.३५ बजे निकाला ,एवम् उन्हें चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन किया गया। प्रतिष्ठाचार्य -बा.ब्र.विनय भैया “ साम्राट” चन्द्रगिरि तीर्थ डोंगरगढ़ से
Updated on 16-12-2023
1.दिनाँक ९ दिसम्बर से १४ दिसम्बर २०२३ श्री. मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक जिनबिम्ब प्रतिष्ठा महामहोत्सव, तिल्दा नेवरा 🪷 तिल्दा नेवरा, जिला रायपुर (छत्तीसगढ़) .
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@vidyasagar_guru
आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज (आचार्यश्री)
| Name | Phone/Mobile 1 | Which Sangh/Maharaji/Aryika Ji you are associated with |
|---|---|---|
| Sangh Common Number | +919844033717 | #VardhamanSagarJiMaharaj1950DharmSagarJi |
| Hemal Jain | +918690943133 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Abhi Bantu | +919575455473 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Purnima Didi | +918552998307 | #SunilSagarJi1977SanmatiSagarJi |
| Varna Manish Bhai | +919352199164 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Ankit Test | +919730016352 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj |
| Santosh Khule | +919850774639 | #PavitrasagarJiMaharaj1949SanmatiSagarJi1927 |
| Madhok Shaha | +919928058345 | #KanaknandiJiMaharajKunthusagarji |
| Siddharth jain Baddu | +917987281995 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #VishalSagarJiMaharaj1977VidyaSagarJi |
| Akshay Adadande | +919765069127 | #AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj, #NiyamSagarJiMaharaj1957VidyaSagarJi |
| Mayur Jain | +918484845108 | #SundarSagarJiMaharaj1976SanmatiSagarJi, #VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi, #PrabhavsagarjiPavitrasagarJiMaharaj1949, #MayanksagarjiRayansagarJiMaharaj1955 |
शुभम जैन
+91-9644534896
+91-7772015219
+91-9644534896
आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज १८९१ Acharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj 1891
Serial No-Year -Place Name
53 2020 Foundation Trust, Pratibhasthali Revathi Range Indore
52 2019 Shri Digambar Jain Rewat Siddodaya Siddha Kshetra Trust: Nemawar, District Dewas (M.P.)
51 2018 Khajuraho (MP)
50 2017 High Level Ramtek, Nagpur (Maharashtra)
49 2016 Bhopal (MP)
48 2015 Bina Barha, Deori-Sagar (MP)
47 2014 Shri Digambar Jain Sheetal Vihar Trust, Vidisha
46 2013 Superlative Ramtek, Nagpur (Maharashtra)
45 2012 Dongargarh, District Rajnandgaon, Chhattisgarh
44 2011 Dongargarh, District Rajnandgaon, Chhattisgarh
43 2010 Bina Barha, Deori-Sagar (MP)
42 2009 Sarvodaya Tirtha, Amarkantak, Anuppur (M.P.)
41 2008 Super Zone Ramtek, Nagpur (Maharashtra)
40 2007 Bina Barha, Deori-Sagar (MP)
39 2006 Sarvodaya Tirtha, Amarkantak, Shahdol (MP)
38 2005 Bina Barha, Deori-Sagar (MP)
37 2004 Dayodaya Tirtha Animal Promotion and Environment Center, Tilwaraghat, Jabalpur (MP)
36 2003 Sarvodaya Tirtha, Amarkantak, Shahdol (MP)
35 2002 Siddhodaya Siddhakshetra, Nemawar, Dewas (M.P.)
34 2001 Dayodaya Tirtha Animal Promotion and Environment Center, Tilwaraghat, Jabalpur (MP)
33 2000 Sarvodaya Tirtha, Amarkantak, Shahdol (MP)
32 1999 Gomtgiri (Indore)
31 1998 Bhagyoday Tirtha, Sagar
30 1997 Siddhodaya Siddhakshetra, Nemawar, Dewas (M.P.)
29 1996 Superintendent Vighnahar Parshwanathji, Mahua, Gujarat
28 1995 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (MP)
27 1994 High Level Ramtek, Nagpur, Maharashtra
26 1993 High Level Ramtek, Nagpur, Maharashtra
25 1992 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (MP)
24 1991 Siddhakshetra Muktagiri, Betul (M.P.)
23 1990 Siddhakshetra Muktagiri, Betul (MP)
22 1989 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (M.P.)
21 1988 Madhiya of superficial Pisanhari, Jabalpur (M.P.)
20 1987 Thubonji, Guna (MP)
19 1986 High Region Paporji, Tikamgarh (MP)
18 1985 Siddhakshetra Aharji, Tikamgarh (MP)
17 1984 Madhiya of extreme area Pisanhari, Jabalpur (MP)
16 1983 Isari, Giridih (Bihar)
15 1982 Siddhakshetra Nainagiri, Chhatarpur (M.P.)
14 1981 Siddhakshetra Nainagiri, Chhatarpur (M.P.)
13 1980 Siddhakshetra Muktagiri, Betul (M.P.)
12 1979 Siddhakshetra Thubonji, Guna (MP)
11 1978 Siddhakshetra Nainagiri, Chhatarpur (M.P.)
10 1977 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (M.P.)
9 1976 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (M.P.)
8 1975 Firozabad (U.P.)
7 1974 Seth Bhagchand Soniji's Nasiya, Ajmer (Rajasthan)
6 1973 Beawar, Ajmer (Rajasthan)
5 1972 Naserabad, Ajmer (Rajasthan)
4 1971 Kishangarh, Madanganj, Ajmer (Rajasthan)
3 1970 Kishangarh, Renwal, Jaipur (Rajasthan)
2 1969 Kesarganj, Ajmer (Rajasthan)
1 1968 Seth Bhagchand Soniji's Nasiya, Ajmer (Rajasthan)
संकलन-
सुशीला पाटनी
आर. के. हाऊस
मदनगंज- किशनगढ
सुशीला पाटनी आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ
AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj
Acharya Shri 108 Vidyasagarji Maharaj was born on 10 October 1946. His is one of the best-known contemporary Digambara Jain Acharya. He is recognized both for his scholarship and tapasya (austerity). He is known for his long hours in meditation. His birthplace is in Karnataka and diksha (undertook spiritual discipline)place is in Rajasthan. He generally spends much of his time in the Bundelkhand region where he is associated with having brought about a revival in educational and religious activities. He has many written haiku poems and the epic Hindi poem "Mukamati". His life is the subject of the 2018 documentary film Vidyoday released by Landmark Films.
Sallekhna:
After returning from the "Shuddhi' on the afternoon of 6th February, after sending aside the monks accompanying him, he retired from Sangh related work after discussing with Nirayapka Shraman Munishree Yoga Sagar Ji and on the same day he resigned from the post of Acharya.
He considered the disciple Niryapak Shraman Muni Shri Samaysagar Ji Maharaj eligible for the post of Acharya and then announced that he should be given the post of Acharya, the formal information of which will be given soon.
The most revered Gurudev remained fully awake till the end with the remembrance of the Lord, present near to him were Niryapak Shraman Muni Shri Yogasagar Ji, Niryapak Shraman Muni Shri Samtasagar Ji, Niryapak Shraman Muni Shri Prasadsagar Ji, Munishree Chandraprabhasagar Ji, Munishree Pujyasagar Ji Muni Shri Niramayasagar Ji, Munishree Nissimsagar Ji Ai.Nischayasagar, Ai. Shri Dhairyasagar ji. Due to the presence and address of Vinaybhaiya, I left my mortal body at Chandragiri Tirtha tonight at 2-35 pm.
Acharya Shri Ji's dola was taken out at Chandragiri Teerth Dongargarh at 2.35 pm, and he was merged into Panchatattva at Chandragiri Teerth itself on 18-Feb-2024
युग दृष्टा ब्रहमांड के देवता संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी महामुनिराज आज दिनांक 17 फरवरी शनिवार तदनुसार माघ शुक्ल अष्टमी पर्वराज के अंतर्गत उत्तम सत्य धर्म के दिन रात्रि में2:35 बजे हुए ब्रह्म में लीन।
हम सबके प्राण दाता राष्ट्रहित चिंतक परम पूज्य गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण करली थी। पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास गृहण करते हुए आहार एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था एवं प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बंद कर दिया था और अखंड मौन धारण कर लिया था।
6 फरवरी मंगलवार को दोपहर शौच से लौटने के उपरांत साथ के मुनिराजों को अलग भेजकर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर जी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली और उसी दिन आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने आचार्य पद के योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज को योग्य समझा और तभी उन्हें आचार्य पद दिया जावे ऐसी घोषणा कर दी थी जिसकी विधिवत जानकारी कल दी जाएगी।
परमपूज्य गुरूदेव ने पूरी जागृत अवस्था में अंत समय तक प्रभु स्मरण के साथ उपस्थित निर्यापक श्रमण मुनि श्री योगसागर जी निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर जी निर्यापक श्रमण मुनि श्री प्रसादसागर जी मुनिश्री चन्द्रप्रभसागर जी मुनिश्रीपूज्यसागर जी मुनि श्री निरामयसागर जी मुनिश्री निस्सीमसागर जी ऐ.निश्चयसागर ऐ श्री धैर्यसागर जी एवं बा ब्र. विनयभैया की उपस्थिति और संबोधन के चलते नश्वर देह का चन्द्रगिरि तीर्थ पर आज रात्रि २-३५ पर त्याग कर दिया ।
गुरुवारश्री जी का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर २.३५ बजे निकाला ,एवम् उन्हें चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन किया गया।
प्रतिष्ठाचार्य -बा.ब्र.विनय भैया “ साम्राट” चन्द्रगिरि तीर्थ डोंगरगढ़ से
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Acharya Vidyasagarji Maharaji Muni Sangh based on Diksha Tithi
आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज १८९१ Acharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj 1891
शुभम जैन
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आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज १८९१ Acharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj 1891
Serial No-Year -Place Name
53 2020 Foundation Trust, Pratibhasthali Revathi Range Indore
52 2019 Shri Digambar Jain Rewat Siddodaya Siddha Kshetra Trust: Nemawar, District Dewas (M.P.)
51 2018 Khajuraho (MP)
50 2017 High Level Ramtek, Nagpur (Maharashtra)
49 2016 Bhopal (MP)
48 2015 Bina Barha, Deori-Sagar (MP)
47 2014 Shri Digambar Jain Sheetal Vihar Trust, Vidisha
46 2013 Superlative Ramtek, Nagpur (Maharashtra)
45 2012 Dongargarh, District Rajnandgaon, Chhattisgarh
44 2011 Dongargarh, District Rajnandgaon, Chhattisgarh
43 2010 Bina Barha, Deori-Sagar (MP)
42 2009 Sarvodaya Tirtha, Amarkantak, Anuppur (M.P.)
41 2008 Super Zone Ramtek, Nagpur (Maharashtra)
40 2007 Bina Barha, Deori-Sagar (MP)
39 2006 Sarvodaya Tirtha, Amarkantak, Shahdol (MP)
38 2005 Bina Barha, Deori-Sagar (MP)
37 2004 Dayodaya Tirtha Animal Promotion and Environment Center, Tilwaraghat, Jabalpur (MP)
36 2003 Sarvodaya Tirtha, Amarkantak, Shahdol (MP)
35 2002 Siddhodaya Siddhakshetra, Nemawar, Dewas (M.P.)
34 2001 Dayodaya Tirtha Animal Promotion and Environment Center, Tilwaraghat, Jabalpur (MP)
33 2000 Sarvodaya Tirtha, Amarkantak, Shahdol (MP)
32 1999 Gomtgiri (Indore)
31 1998 Bhagyoday Tirtha, Sagar
30 1997 Siddhodaya Siddhakshetra, Nemawar, Dewas (M.P.)
29 1996 Superintendent Vighnahar Parshwanathji, Mahua, Gujarat
28 1995 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (MP)
27 1994 High Level Ramtek, Nagpur, Maharashtra
26 1993 High Level Ramtek, Nagpur, Maharashtra
25 1992 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (MP)
24 1991 Siddhakshetra Muktagiri, Betul (M.P.)
23 1990 Siddhakshetra Muktagiri, Betul (MP)
22 1989 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (M.P.)
21 1988 Madhiya of superficial Pisanhari, Jabalpur (M.P.)
20 1987 Thubonji, Guna (MP)
19 1986 High Region Paporji, Tikamgarh (MP)
18 1985 Siddhakshetra Aharji, Tikamgarh (MP)
17 1984 Madhiya of extreme area Pisanhari, Jabalpur (MP)
16 1983 Isari, Giridih (Bihar)
15 1982 Siddhakshetra Nainagiri, Chhatarpur (M.P.)
14 1981 Siddhakshetra Nainagiri, Chhatarpur (M.P.)
13 1980 Siddhakshetra Muktagiri, Betul (M.P.)
12 1979 Siddhakshetra Thubonji, Guna (MP)
11 1978 Siddhakshetra Nainagiri, Chhatarpur (M.P.)
10 1977 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (M.P.)
9 1976 Siddhakshetra Kundalpur, Damoh (M.P.)
8 1975 Firozabad (U.P.)
7 1974 Seth Bhagchand Soniji's Nasiya, Ajmer (Rajasthan)
6 1973 Beawar, Ajmer (Rajasthan)
5 1972 Naserabad, Ajmer (Rajasthan)
4 1971 Kishangarh, Madanganj, Ajmer (Rajasthan)
3 1970 Kishangarh, Renwal, Jaipur (Rajasthan)
2 1969 Kesarganj, Ajmer (Rajasthan)
1 1968 Seth Bhagchand Soniji's Nasiya, Ajmer (Rajasthan)
Acharya Shri 108 Gyan Sagarji Maharaj
Updated on 16-12-2023
1.दिनाँक ९ दिसम्बर से १४ दिसम्बर २०२३ श्री. मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक जिनबिम्ब प्रतिष्ठा महामहोत्सव, तिल्दा नेवरा 🪷 तिल्दा नेवरा, जिला रायपुर (छत्तीसगढ़) .
सुशीला पाटनी आर. के. हाऊस, मदनगंज- किशनगढ
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1000
Acharya Shri 108 VidyaSagarji Maharaj
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Acharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj 1891
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