हैशटैग
#AcharyaNemichandra10thCenturyAD
Nemichandra flourished in the 10th century AD. He was popularly known as "Siddhanta-Chakravarti" (i.e. the Paramount Lord of the Philosophy).
He was the spiritual teacher of Chavundaraya and their relation is expressed in the 1530 AD inscription in the enclosure of Padmavati temple, Nagar Taluka, Shimoga district.
आचार्य नेमिचन्द्र कर्णाटक प्रदेशवासी विद्वान् थे। उनके विषय में अधिक जानकारी नहीं मिलेगी। मात्र प्रशस्ति के रूप में जीवकाण्ड में एक गाथा है और कर्मकाण्ड के अन्त में आठ गाथाएँ उपलब्ध हैं। इनमें स्वयं के विषय में अधिक कुछ नहीं कहा। अपने आश्रयदाता चामुण्डराय का ही प्रशस्तिगान अधिक है। इनमें गोम्मट चामुण्डराय के गुरु का नाम अजितसेन मिलता है पर स्वयं के गुरु का नामोल्लेख नहीं मिलता। त्रिलोकसार की अंतिम गाथा क्रम १०१८ में नेमिचन्द्र मुनि और उनके गुरु अभयनन्दि का उल्लेख अवश्य हुआ है। कर्मकाण्ड के अन्तर्गत अन्य प्रकरणों में अभयनन्दि के अतिरिक्त वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि के भी नामों का उल्लेख हुआ है (गाथा नं. ४३६, ७८५, ८९६) इन गाथाओं में उन्हें ‘सुदसायरपाराग’ कहा गया है। संभव है उनका यह विरुद्ध रहा हो और इसी आधार पर आचार्य नेमिचन्द्र को सिद्धान्त चक्रवर्ती विरुद देकर उनके प्रति सम्मान प्रगट किया गया हो। इन गुरुओं में अभयनन्दि ज्येष्ठ रहे होंगे। नेमिचन्द्राचार्य के शिष्य माधवचन्द्र त्रैविद्य भी इसी कोटि के विद्वान थे जिन्होंने उनके त्रिलोकसार पर संस्कृत टीका की रचना की थी। इन विद्वानों के विषय में इससे अधिक जानकारी नहीं मिलती। वीरनन्दि चन्द्रप्रभचरित के रचयिता होंगे। आ. नेमिचन्द्र देशीयगण के थे। गंगनरेश राचमल्लदेव का प्रधान सचिव और सेनापति चामुण्डराय आचार्य नेमिचन्द्र सि. च. का परम शिष्य था। उसी की प्रार्थना पर उन्होंने षट्खण्डागम का आधार लेकर जीवकाण्ड—कर्मकाण्ड का प्रणयन किया और उसी के नाम पर इसका नाम गोम्मटसार रखा। श्रवणबेलगोल की प्रसिद्ध भगवान बाहुबलि की ५७ फीट ऊँची अद्वितीय प्रतिमा का निर्माण सेनापति चामुण्डराय ने कराया था और उसके उपनाम के आधार पर उसे गोम्मटेश्वर कहा जाने लगा। वह एक वीर योद्धा और कुशल प्रशासक तो था ही, जैन संस्कृति का मान्य विद्वान् भी था। उसने जीवकाण्ड पर कन्नड वृत्ति भी लिखी थी।
आचार्य नेमिचन्द्र जैन सिद्धान्त ग्रंथों के गम्भीर अध्येता और विश्रुत चिन्तक थे। कर्म सिद्धान्त के मर्मज्ञ के रूप में उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की है। उन्होंने धवला का आधार लेकर गोम्मटसार, जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड तथा जयधवला का आधार लेकर लब्धिसार नामक ग्रंथों की रचना की। इनके अतिरिक्त तिलोयपण्णत्ति और तत्त्वार्थवार्तिक के आधार पर त्रिलोकसार ग्रंथ लिखा। क्षपणसार और द्रव्यसंग्रह को भी उनकी रचनाओं में गिना जाता है। षट्खण्डागम की गंभीरता और अगाधता का अवगाहन विद्वत्ता की पहचान बन गई थी। आचार्य नेमिचन्द्र ने उसका गहन पारायणकर सिद्धान्तचक्रवर्ती का विरुद्ध प्राप्त किया। आचार्य वीरसेन के समय तक इस प्रकार के विरुद्ध उपाधि का कोई उल्लेख देखने में नहीं आया। आचार्य नेमिचन्द्र कदाचित् प्रथम विद्वान् थे जिन्हें इस उपाधि से अलंकृत किया गया।
आचार्य नेमिचन्द्र ने भिन्न—भिन्न स्थानों पर अपने गुरुओं के रूप में अभयनन्दि, वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि का स्मरण किया है। कर्मकाण्ड की गाथा क्र. ४३६, ६४८ और ७८५ में उन्होंने तीनों को नमस्कार किया है। पर त्रिलोकसार की गाथा क्र. १०१८ में उन्होंने अपने को अभयनन्दि का वत्स्य शिष्य माना है। इसका तात्पर्य यह हो सकता है कि इन तीनों गुरुओं में उन्हें अभयनन्दि से अधिक स्नेह—वात्सल्य मिला है। ये तीनों गुरु श्रुतसमुद्र के पारगामी रहे हैं। इनमें वीरनन्दि चन्दप्रभचरित के कर्ता हो सकते हैं और इन्द्रनन्दि ज्वालामालिनीकल्प (वि. सं. ९९६) के रचयिता के रूप में माने जा सकते हैं। अभयनन्दि इन सभी में वयोवृद्ध रहे होंगे। पं. वैलाशचन्द्र जी ने विस्तर सत्व त्रिभंगी नामक कर्मग्रन्थ के रचयिता के रूप में कनकनन्दि का उल्लेख किया है। इसकी दो प्रतियाँ जैन सिद्धान्त भवन आरा में सुरक्षित हैं। एक में ४८ गाथाएँ हैं और दूसरी ५१। इन गाथाओं को नेमिचन्द्राचार्य ने अपने कर्मकाण्ड में गाथा क्र. ३५८ से ३९७ तक अन्तर्भूत कर लिया है। संभव है कनकनन्दि ने इन गाथाओं की रचना कर्मकाण्ड के लिए की हो। नेमिचन्द्र ने वहाँ उन्हें कनकनन्दि गुरु कहा है। कनकनन्दि के गुरु इन्द्रनन्दि थे और इन्द्रनन्दि के गुरु अभयनन्दि थे। अत: नेमिचन्द्र के ज्येष्ठ सहपाठी के रूप में उनका स्मरण यहाँ किया गया है।
हम जानते हैं , श्रुतावतार में इन्द्रनन्दि ने यह सूचना दी है कि वप्पभट्टि ने षट्खण्डागम से महाबन्ध को पृथक् कर दिया था और व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक छठे खण्ड को संक्षिप्त कर उसमें मिला दिया था। वीरसेन ने व्याख्याप्रज्ञप्ति के आधार पर सत्कर्म नामक छठे खण्ड की रचना की और उसे पाँच खण्डों के साथ रखकर पुन: छह खण्ड कर दिये। ये अभयनन्दि वप्पदेव के बाद हुए होंगे और वप्पदेव वीरसेन गुरु एलाचार्य से पूर्व हुए। अभयनन्दि ने पूज्यपाद देवनन्दि के जैनेन्द्र व्याकरण पर महावृत्ति लिखी थी और उनको प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र (९८०—१०३५ ई.) ने अपने ‘शब्दाम्भोज भास्कर’ नामक न्यास ग्रंथ में नमस्कार किया है अत: नेमिचन्द्र के गुरु अभयनन्दि यही हो सकते हैं।
आचार्य नेमिचन्द्र की निर्विवाद रचनाएँ हैं—गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार और त्रिलोकसार,द्रव्यसंग्रह.
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
#AcharyaNemichandra10thCenturyAD
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
आचार्य नेमिचन्द्र- १० वी सदी
Sanjul Jain 0n 31-Dec-2020 created wiki page for Acharya Shri
Nemichandra flourished in the 10th century AD. He was popularly known as "Siddhanta-Chakravarti" (i.e. the Paramount Lord of the Philosophy).
He was the spiritual teacher of Chavundaraya and their relation is expressed in the 1530 AD inscription in the enclosure of Padmavati temple, Nagar Taluka, Shimoga district.
Nemichandra Siddhanta Chakravarty ( 10th century) was the author of Dravyasamgraha, Gommatsāra (Jivakanda and Karmakanda), Trilokasara, Labdhisara and Kshapanasara. He was among the most distinguished of the Jain Acharyas.
At the request of Chavundaraya, Nemichandra wrote Gommatsāra in 10th century AD,taking the essence of all available works of the great Acharyas. Gommatasara provides a detailed summary of Digambara doctorine. He also supervised the abhisheka (consecration) of the Gommateshwara statue (on 13 March 980 AD). Earlier Dravyasangraha was also thought to be written by him, however new research reveals that this compendium was written by Acharya Nemichandra Siddhantidev who was contemporary to King Bhoja of the Parmara dynasty. He also wrote Trilokasara based on the Tiloya Panatti, Labdhisara, Kshapanasara, Pratishthapatha and Pratishthatilaka.
आचार्य नेमिचन्द्र की निर्विवाद रचनाएँ हैं—गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार और त्रिलोकसार,द्रव्यसंग्रह.
https://en.wikipedia.org/wiki/Nemichandra
https://hi.encyclopediaofjainism.com/index.php/
Acharya Nemichandra 10th Century AD
Dravyasangrah,Gommatsaar
Sanjul Jain 0n 31-Dec-2020 created wiki page for Acharya Shri
#AcharyaNemichandra10thCenturyAD
15000
#AcharyaNemichandra10thCenturyAD
AcharyaNemichandra10thCenturyAD
You cannot copy content of this page