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#SuryaSagarJiMaharaj1883ShantiSagar(Uttar)
Acharya Shri 108 Surya Sagarji Maharaj was born in 1883. He received his Muni Diksha from Acharya Shanti Sagarji Maharaj of Chani.
संक्षिप्त परिचय | |
जन्म: | कार्तिक शुक्ल नवमी विक्रम संवत १९४०,१८ नवम्बर १८८३ |
जन्म स्थान : | प्रेमसर ,जिला - ग्वालियर (म.प्र.) |
जन्म का नाम | हजारीमल पोरवाल |
माता का नाम : | श्रीमती गेंदाबाई |
पिता का नाम : | श्री हीरालाल जैन |
ऐलक दीक्षा : | आसोज शुक्ल ६ विक्रम संवत १९८१ (सन १९२४ ) |
दीक्षा का स्थान : | इंदौर (म.प्र.) |
मुनि दीक्षा : | मार्गशीर्ष वादी ११ विक्रम संवत १९८१ (२/११/१९२४ ) |
मुनि दीक्षा का स्थान : | हाट पिपल्या जिला -देवास (म.प्र.) |
मुनि दीक्षा गुरु : | आचार्य शांति सागर छाणी |
आचार्य पद : | कार्तिक शुक्ल नवमी विक्रम संवत १९८५ (सन १९२८ ) |
आचार्य पद का स्थान : | कोडरमा , झारखण्ड |
समाधि मरण : | श्रावण कृष्ण ८ विक्रम संवत २००९ (१४ जुलाई १९५२ ) |
समाधी स्थल : | डालमिया नगर , झारखण्ड |
साहित्य क्षेत्र में : | ३३ ग्रंथो की रचना करी |
आचार्य श्री १०८ सूर्य सागर जी महाराज ,आचार्य शांति सागर जी महाराज (छाणी) परंपरा के दुसरे महान आचार्य हुए ।ये बहुत बड़े विद्वान थे ।इन्होने ३३ ग्रंथो की रचना करी ।आचार्य सूर्य सागर जी का जन्म कार्तिक शुक्ल नवमी वि.सं. १९४० सन १८८३ में प्रेमसर,जिला ग्वालियर में हुआ था ।वि. सं. १९८१ में एलक दीक्षा इंदौर में औरिसके ५१ दिन बाद्मिनी दीक्षा हाट पिप्लाया देवास में हुई । दिग. जैन परंपरा में जैन साहित्य को सुद्रढ़ एवं स्थायी बना सकने वालो में से एक आचार्य सूर्य सागरजी भी है ।इन्होने ३३ ग्रंथो का संकलन किया जिसे समाज ने प्रकाशित कराया। " संयम प्रकाश " उनका अदिव्तीय ग्रन्थ है, जिसके दो भागों में (१० किरणों) श्रमण और श्रावक के कर्तव्यों का विस्तार से विवेचन है। संयम प्रकाश सचमुच में संयम का प्रकाश करने वाला है चाहे श्रावक का संयम हो या श्रमण का । वि. सं. २००९ (१४ जुलाई १९५२)में डालमिया नगर में आपका समाधि मरण हो गया।
Below information from book-Prasham murti Acharya Shanti Sagar Ji Chhani Smriti Granth
आचार्य श्री सूर्यसागर जी महाराज
आचार्य श्री का जन्म पेमसर ग्राम (शिवपुरी) में कार्तिक शुक्ल 9 विक्रम संवत् 1940 की शुभ मिति में श्री हीरालाल जैन पोरवाल के घर में हुआ था। आपकी माता का नाम आप अल्पवय से ही वैराग्य रूप थे और आप ऐलक पन्नालाल जी के साथ ही रहने लगे तथा आपने गृह का भार त्याग दिया।उनके साथ में रहकर विद्याध्ययन भी किया।
संवत् 1960 में प्रथम चातुर्मास फीरोजपुर छावनी (पंजाब) दूसरा चातुर्मास संवत् 1981 में देववन्द। तीसरा चातुर्मास रामपुर चौथा चातुर्मास वर्धा में किया पश्चात् गुरु की आज्ञा से अलग है। होकर बारा (सिवनी) में किया। वहाँ से ग्रामों में भ्रमण करते हुए गिरनारजी, मऊ (गुजरात) ईडर राज्य में अगहन सुदी 7 संवत् 1984 के दिन श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी छाणी महाराज के पाद मूल में आपने सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। वहाँ से तीर्थराज शिखरजी की यात्रा के लिये विहार किया, वहाँ पर दक्षिण संघ भी उपस्थित था, उनके भी दर्शन किये। संवत् 1985 का चातुर्मास आपने श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी दक्षिण वालों के संघ कटनी (मुडवारा) में किया। संवत् 1986 का चातुर्मास कानपुर, पावापुर, लश्कर आदि स्थानों में भ्रमण करते हुए पूर्ण किया।
संवत् 1987 का चातुर्मास श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी छाणी के पाद मूल में इन्दौर में किया तथा भाद्रपद शुक्ला 7 शनिवार को पांच हजार जनता के समक्ष क्षुल्लक दीक्षा के व्रत ग्रहण किये। वहाँ से विहार कर सिद्धवर कूट आये। वहां श्री 108 आचार्य शान्तिसागर जी छाणी के चरण कमल में दिगम्बरी दीक्षा की याचना की। मिति मंगसिर वदी 14 संवत् 1987 बुधवार (वीर संवत् 2457) के दिन दिगम्बरी दीक्षा धारण की। उस समय केशलोंच करते समय आप जरा भी विचलित न हुए। दीक्षा संस्कार की सब विधि मंत्र सहित श्री 108 आचार्य वर्य शान्तिसागर जी छाणी के कर-कमलों द्वारा हुई। आपका समाधिमरण मांगीतुंगी में आचार्य महावीरकीर्तिजी के सानिध्य में हुआ।
#SuryaSagarJiMaharaj1883ShantiSagar(Uttar)
आचार्य श्री १०८ सूर्य सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Shantisagar Chani (Uttar) 1888
आचार्य श्री १०८ शांतिसागर छनी (उत्तर) १८८८ Acharya Shri 108 Shantisagar Chani (Uttar) 1888
English updated by Aditi Jain 2 December 2020
Sanjul Jain updated wiki page for Maharaj ji on 07-June-2021
Manasi Shaha translated the content from Hindi to English on21-April-2022
ShantisagarChani(Uttar)1888
Acharya Shri 108 Surya Sagarji Maharaj was born in 1883. He received his Muni Diksha from Acharya Shanti Sagarji Maharaj of Chani.
Brief Introduction | |
Birth | Kartik Shukla Navami Vikram Samvat 1940, 18 November 1883 |
Place of Birth | Premsar, District - Gwalior (M.P.) |
Birth Name | Hazarimal Porwal |
Mother's Name | Smt. Gendabai |
Father's Name | Mr. Hiralal Jain |
Ailak Diksha | Asoj Shukla 6 Vikram Samvat 1981 (1924) |
Ailak Diksha Place | Indore (M.P.) |
Muni Diksha | Margashirsha Wadi 11 Vikram Samvat 1981 (2/11/1924) |
Muni Diksha Place | Hatpiplia District - Dewas (M.P.) |
Muni Diksha Guru | Acharya Shanti Sagar Chhani |
Acharya Position | Kartik Shukla Navami Vikram Samvat 1985 (1928) |
Place of the post of Acharya | Koderma, Jharkhand |
Samadhi | Shravan Krishna 8 Vikram Samvat 2009 (14 July 1952) |
Samadhi Place | Dalmia Nagar, Jharkhand |
Field of literature | Composed 33 books |
Acharya Shri 108 Surya Sagar Ji Maharaj became the second great Acharya of Acharya Shanti Sagar Ji Maharaj (Chhani) tradition. He was a great scholar. He composed 33 books. Acharya Surya Sagar was born on Kartik Shukla Navami Vikram Samvat 1940 in the year 1883 at Premsar, District Gwalior. He took Elak diksha on Vikram Samvat 1981 in Indore and after 51 days took Badmini Diksha at Hatpipya. Acharya Surya Sagarji is one of the people who can make Jain literature strong and permanent in Digambar Jain tradition. He compiled 33 books which were published by the society. "Sayyam Prakash" is one of his unique books, which is written in two parts (10 rays). The book discusses Shramana and Shravak's duties in detail. The book “Sayyam Prakash” is really the light of restraint, whether it is the restraint of the devotee or that of the Shramana. In Vikram Samvat 2009 (July 14, 1952) he died in his samadhi in Dalmia Nagar.
Below information from book- Prasham murti Acharya Shanti Sagar Ji Chhani Smriti Granth
He was a recluse from a very young age. He started living with Elak Pannalal ji and you gave up the burden of home. In his company he started deep studying the Jainism.
His first chatrumas was held on Vikram Samvat 1960, in Ferozepur Cantonment (Punjab). And the second chatrumas on Vikram Samvat 1981 in Devvand. The third Chaturmas performed in Rampur, the fourth Chaturmas in Wardha. He did his Hokar at Sivni. From there, while traveling in the villages of Girnarji, Mau (Gujarat) in Eider state, on the day of Aghan Sudi 7th Samvat 1984, he took the vow of the Saptam Pratima at the foot of Shri 108 Acharya Shantisagar ji Chhani Maharaj. From there he went for pilgrimage to Shikharji, he met the Dakshin Sangh was also present at Shikharji at the time. You did the Chaturmas of Samvat 1985 in Katni (Mudwara), the sangh of Shri 108 Acharya Shantisagar ji. His chaturmas of Samvat 1986 was completed while traveling in places like Kanpur, Pavapur, Lashkar etc.
Chaturmas of Samvat 1987 was performed at the foot of Shri 108 Acharya Shantisagar ji Chhani in Indore and in Bhadrapada Shukla took the fast of Ksullak Diksha in front of five thousand people on Saturday. There he requested Shri 108 Acharya Shantisagar for Digambar Diksha. At that time you did not get distracted while doing the Keshlonch. All the methods of diksha ceremony along with the mantra were done by the blessings of Shri 108 Acharya Varya Shantisagar ji Chhani. Your Samadhimaran took place in Mangitungi under the guidance of Acharya Mahavirkirtiji.
Acharya Shri 108 Surya Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ शांतिसागर छनी (उत्तर) १८८८ Acharya Shri 108 Shantisagar Chani (Uttar) 1888
आचार्य श्री १०८ शांतिसागर छनी (उत्तर) १८८८ Acharya Shri 108 Shantisagar Chani (Uttar) 1888
Acharya Shri 108 Shantisagar Chani (Uttar) 1888
English updated by Aditi Jain 2 December 2020
Sanjul Jain updated wiki page for Maharaj ji on 07-June-2021
Manasi Shaha translated the content from Hindi to English on21-April-2022
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ShantisagarChani(Uttar)1888
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