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#VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi
Acharya Shri 108 Vibhav Sagar Ji Maharaj was born on 23 October in 1976 . He took initiation from Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj on 14 Dec , 1998 at Varosa,Bhind.
He is great influencer and a good source of inspiration and motivation for more people to join God .
Mother Mrs. Gulab Bai and father Lakhmi Chand were blessed when Ashok Kumar was born in Kishanpur, Sagar district on 23-10-1949, when no one knew at that moment that this child would go ahead in life and become such a great saint.
November 21 Update
बांसवाडा- आचार्य श्री विभवसागर महाराज जी के करकमलों से ब. अंगरी देवी शाहगढ़ को 14
नवम्बर 2021 को कामरशियम कॉलोनी बासवाडा में दीक्षा दी गई ।
Ref - Sanksar_Sagar -Dec 21
Janwari 22 Update
बांसवाड़ा- आचार्य श्री विभवसागर महाराज जी के करकमलों से 14 दिसम्बर 2021 को ब्र. मैना दीदी इंदौर, ब्र. अंगूरी दीदी शाहगढ़ को दीक्षायें दी गई जिनके नाम क्रमशः आर्यिका श्री स्वाध्यायश्री माताजी, क्षुल्लिका श्री सामायिकश्री माताजी रखा गया।
Ref - Sanksar_Sagar -Jan 22
आचार्य श्री १०८ विभव सागर जी महाराज
सामाजिक क्रांति के सूत्र धार आचार्य श्री १०८ विभव सागर जी महाराज युगांतरकारी साधू है।आप आध्यात्मिक ,सामाजिक एवं बहु आयामी प्रतिभा के धनीहै।आप के दुर्लभ चारित्रिक ऐश्वर्य ,सर्वतोमुखी प्रतिभा एवं धर्म मय जीवन ने ही आपको आगम का प्रकांड पंडित व् महँ संत बनाया है।आचार्य श्री विभव सागर जी महाराज एक ऐसे आचार्य है जिनका सम्पूर्ण जीवन ज्ञान,तपस्या साहित्य के क्षेत्र काव्यात्मकता से प्रारंभ हुई और सम्पूर्ण काव्यात्मकता तपस्या का प्रतिरूप बन गयी।आपकी प्रवचन शैली प्रभावोत्पादक एवं ह्रदय ग्राही है आपने निरंतर स्वाध्याय करते हुए अपने ज्ञान को परिमार्जित व् विकसित किया है।माता श्रीमति गुलाब बाई और पिता लखमी चंद उस समय धन्य हो गये जब २३-१०-१९७६ को सागर जिले के किशनपुर में अशोक कुमार का जन्म हुआ तब यह कोई नहीं जानता था कि यह बालक आगे चल कर जिनवाणी का प्रतिनिधित्व करेगा
संक्षिप्त परिचय
जन्म: २३ अक्टूबर १९७६ – दिवाली
जन्म नाम : अशोक कुमार जैन “शास्त्री ”
जन्म स्थान : किसनपुरा (सागर ) ,म.प्र.
माता जी नाम : श्रीमती गुलाब बाई जैन
पिताजी नाम : श्री लक्ष्मी चंद जैन
वैराग्य : ९ अक्टूबर १९९४
क्षुल्लक दीक्षा : २८ जनवरी १९९५
क्षुल्लक दीक्षा स्थान : मंगल गिरी सागर
क्षुल्लक दीक्षा गुरु : आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज
ऐलक दीक्षा : २३ फरवरी १९९६
ऐलक दीक्षा स्थान : देवेन्द्र नगर , सागर
ऐलक दीक्षा गुरु : आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज
मुनि दीक्षा : १४ दिसंबर १९९८
मुनि दीक्षा स्थान : बरासों (भिंड)
मुनि दीक्षा गुरु : आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज
आचार्य पद : ३१ मार्च २००७ महावीर जयन्ती
आचार्य पद स्थान : ओरंगाबाद महाराष्ट्र
आचार्य पद प्रदाता : आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज
बाल्यकाल से ही तेजस्विता ,अनुशासन प्रियता ,सोम्यता ,धार्मिक द्रढता एवं धर्म प्रभावना से प्रभावित होकर इनके माता पिता द्वारा इन्हें लोकिक शिक्षा के साथ धर्मिक शिक्षा भी प्रदान की।मात्र ११ वर्ष की आयु में धार्मिक और लोकिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए सागर में गणेश वर्णी जी महाविद्यालय आ गए।इसी बीच आपका संपर्क आचार्य श्री विराग सागर जी से हुआ और सन १९९४ में आपके अन्दर वैराग्य के बीज अंकुरित होने लगे।१९९५ में सागर (म.प्र.) में ही मंगल गिरी परापकी भव्य क्षुल्लक दीक्षा हुइ उस समय आप मात्र २२ वर्ष के थे।
परम पूज्य विभव सागर जी महाराज वर्तमान युग के एक युवा द्रष्टा ,क्रांतिकारी विचारक ,जीवनसर्जक और आचार निष्ठ दिगंबर जैन आचार्य है।उनके प्रवचन व् काव्य जीवन की आंतरिक गहराइया,अनुभूतियों एवं साधना की ऊँचाइयों तथा आगम अद्भुत होते है।ये हमेशा जीवन की समस्याओं की गहनतम जड़ो का संस्पर्श करते है ।
गुरुदेव क्रांति के द्रष्टा है और परिष्कृत चिंतन के विचारों के प्रणेता है आपका जीवन क्रांति का श्लोक है।अप्रतिम प्रतिभा के धनी ,मुनि पथ के पथिक ,संत,सुकवि आचार्य श्री विभव सागर जी की लेखनी से अनवरत अनुपम साहित्य सृजित ही नहीं अपितु निस्रत हो रहा है।
गुरुदेव जी द्वारा कई कृतिया प्रकाशित हो चुकी है जिसमे माहराज जी द्वारा रचित अमृत गीता जो की आचार्य श्री ने ऐलक अवस्था में रची गयी थी एक अन्नोल करती है।इसमें आचार्य श्री ने आचार्य के ३६ मूल गुणों का वर्णन किया है।जिसमे हर एक पेज पर एक गुण का चित्र सहित वर्णन है।इसे आपने अपने गुरु विराग सागर जी को समर्पित किया है। कल्याण मंदिर गीता का हिंदी अनुवाद ऐसे समय किया है जब सुधि जन संस्कृत भाषा को जटिल मान कर भक्ति आराधना से वंचित हो रहे थे।गुरुदेव द्वारा किया गया यह कार्य भक्त को भगवान् से मिलाने का सूत्रपात करता है।यह काव्य दिग. और श्वेताम्बर दोनों लोगो द्वारा मान्य है।इसके आलावा आचार्य श्री द्वारा अन्य शास्त्रों का भी लेखन हुआ है।
२३ फरवरी १९९६ को आपकी ऐलक दीक्षा देवेन्द्र नगर में हुई।और बारासों भिंड में मुनि दीक्षा १४ दिसंबर १९९८ को व् महावीर जयंती के दिन ३१ मार्च २००७ को औरंगाबाद में आचार्य पद ग्रहण किया।ये तीनो दीक्षा भी आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी के द्वारा दी गयी।
ऐसे परम तपस्वी ,वात्सल्यमयी ,विश्व वन्दनीय ,सत्यमार्ग प्रकाशक ,जिन आगम पथ प्रदर्शक ,माहवीर के अनुयायी ,कुन्दकुन्द परंपरा के नायक आचार्य श्री १०८ विभव सागर जी को मेरा त्रय बार नमोस्तु ,नमोस्तु ,नमोस्तु ।
#VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi
आचार्य श्री १०८ विभव सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Virag Sagarji Maharaj 1963
आचार्य श्री १०८ विराग सागरजी महाराज १९६३ Acharya Shri 108 Virag Sagarji Maharaj 1963
Dhaval Patil Pune-9623981049
English updated by Aditi Jain 2 Decemeber ,2020
VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi
Acharya Shri 108 Vibhav Sagar Ji Maharaj was born on 23 October in 1976 . He took initiation from Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj on 14 Dec , 1998 at Varosa,Bhind.
He is great influencer and a good source of inspiration and motivation for more people to join God .
Mother Mrs. Gulab Bai and father Lakhmi Chand were blessed when Ashok Kumar was born in Kishanpur, Sagar district on 23-10-1949, when no one knew at that moment that this child would go ahead in life and become such a great saint.
November 21 Update
बांसवाडा- आचार्य श्री विभवसागर महाराज जी के करकमलों से ब. अंगरी देवी शाहगढ़ को 14
नवम्बर 2021 को कामरशियम कॉलोनी बासवाडा में दीक्षा दी गई ।
Ref - Sanksar_Sagar -Dec 21
Janwari 22 Update
बांसवाड़ा- आचार्य श्री विभवसागर महाराज जी के करकमलों से 14 दिसम्बर 2021 को ब्र. मैना दीदी इंदौर, ब्र. अंगूरी दीदी शाहगढ़ को दीक्षायें दी गई जिनके नाम क्रमशः आर्यिका श्री स्वाध्यायश्री माताजी, क्षुल्लिका श्री सामायिकश्री माताजी रखा गया।
Ref - Sanksar_Sagar -Jan 22
Shri 108 Vibhav Sagar Ji Maharaj is an epoch-making monk. He possesses the spiritual, social and multi-dimensional talents. His rare character of Aishwarya, different talents and religious lifestyle has made him a great saint. Acharya Shri Vibhav Sagar Ji Maharaj is one such teacher whose entire life in the field of knowledge began with poetry , tapasya literature and whole poeticism has become a model of austerity. His discourse style is influential and heart-rending.
Family : His Mother Mrs. Gulab Bai and father Lakhmi Chand were blessed when Ashok Kumar was born in Kishanpur, Sagar district on 23-10-1949, when no one knew at that moment that this child would go ahead in life and become such a great saint.
He was highly influenced by Tejaswita, discipline, love, somnolence, religious perseverance and religious influence since childhood, at the same time his parents were also providing him with religious education along with local education.
He received religious and public education at the age of only 11 years. Varni came to the college. In the meantime, he also got in touch with Acharya Shri Virag Sagar ji in the year 1959, the seeds of quietness started sprouting in him . In 1959, the grand euphoria of Mars fell in Sagar (MP) , at that time he was only 22 years old.
Vibhav Sagar Ji Maharaj is a young observer, revolutionary thinker, lifetime philosopher, and influencer of the present era, touching the deepest roots of the others life .Gurudev is the seer of revolution and the proponent of ideas of refined thinking. His life is the shloka of revolution. The great genius having varied talents is the pathist of saintly path, the saint, the author of Suvaki. Acharya Shri Vibhav Sagar ji, not only created unmatched literature, but released it too.
Many works of Gurudevji have been published one of which is Amrit Geeta composed by Acharya Sri in the Alak stage, is an anol. In this, Acharya Shri has described the 34 basic qualities of Acharya. And the description about each virtue is includes a picture along with it . He has dedicated it to his Guru Virag Sagar.
The Kalyan Mandir has been translated into Hindi when the Sudhi people considered Sanskrit language as a complicated and difficult language to read and undestand .
This work done by Gurudev influence and motivate the devotee to join God. Shwetambar is valid by both people. Apart from this, Acharya Sri has written many other scriptures also
On 23 February 1949, His initiation was held in Devendra Nagar and Muni Diksha in Barason Bhind on 16 December , 1949 and on Mahavir Jayanti 31 March 2007 as Acharya in Aurangabad.
He is such a great source of inspiration and motivation for everyone .
Acharya Shri 108 Vibhav Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ विराग सागरजी महाराज १९६३ Acharya Shri 108 Virag Sagarji Maharaj 1963
आचार्य श्री १०८ विराग सागरजी महाराज १९६३ Acharya Shri 108 Virag Sagarji Maharaj 1963
Acharya Shri 108 Virag Sagarji Maharaj 1963
Aacharya Shri 108 Virag Sagarji Maharaj
English updated by Aditi Jain 2 Decemeber ,2020
#VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi
VibhavSagarJiMaharaj1976ViragSagarJi
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