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#Arunmani
अरुणमणि भट्टारकश्रुतकीत्तिके शिष्य और बुधराघवके शिष्य थे। इन्होंने ग्वालियरमें जैनमन्दिरका निर्माण कराया था। इनके ज्येष्ठ शिष्य बुधरत्नपाल थे, दूसरे धनमाली और तीसरे कानरसिंह । अरुणमणि इन्हीं कानरसिंहके पुत्र थे । इन्होंने अजितपुराण के अन्त में अपनी प्रशस्ति अंकित की है । अरुणमणिका अपरनाम लालमणि भी है। प्रशस्तिमें बताया है कि काष्ठासंघमें स्थित माथुर गच्छ और पुष्करगणमें लोहानायके अन्वयमें होनेवाले भट्टारक धर्मसेन, भावसेन, सहस्रकीत्ति, गुणकीति, यशःकोत्ति, जिनधन्द्र, श्रुतकोत्तिके शिष्य बुधराघव और उनके शिष्य बुधरत्नपाल, वनमाली बोर कानरसिंह हुए हैं। इनमें कानरसिंह के पुत्र अरुणमणि या लालमणि है।
दादा गुरु | भट्टारकश्रुतकीर्ति |
गुरु | बुधराघव |
अजितपुराणमें ग्रन्थका रचनाकाल बंकित है, जिससे अरुणमणिका समय निर्विवाद सिद्ध होता है। प्रशस्तिमें लिखा है
रस-वृष-यति-चन्द्रे ख्यातसंवत्सरे :१७१६) ऽस्मिन्
नियमितसितवारे वैजयंती-दशाम्यां ।
अजितजिनचरित्रं बोधपात्रं बुधाना ।
रचितममलबाग्मि-रक्त रत्नेन तेन ||४||
मुद्गले भूभुजां श्रेष्ठे राज्येवरंगसाहिके।
जहानाबाद-नगरे पाश्र्वनाजिनालये !!४||
अर्थात् अरुणमणिने औरंगजेब के राज्यकालमें वि० स० १७१६ में जहानाबाद नगर वर्तमान नई दिल्लीके पार्श्वनाथ जिनालयमें अजितनाथपुराणकी समाप्ति की है । अतः कविका समय १८वीं शती है।
कविकी एक ही रचना अजितपुरण उपलब्ध है। इनकी नातिनी जैन सिद्धान्त भवन आरामें भी है। द्वितीय तीर्थकर अजितनाथका जीवनवृत्त वणित है।
अरुणमणि भट्टारकश्रुतकीत्तिके शिष्य और बुधराघवके शिष्य थे। इन्होंने ग्वालियरमें जैनमन्दिरका निर्माण कराया था। इनके ज्येष्ठ शिष्य बुधरत्नपाल थे, दूसरे धनमाली और तीसरे कानरसिंह । अरुणमणि इन्हीं कानरसिंहके पुत्र थे । इन्होंने अजितपुराण के अन्त में अपनी प्रशस्ति अंकित की है । अरुणमणिका अपरनाम लालमणि भी है। प्रशस्तिमें बताया है कि काष्ठासंघमें स्थित माथुर गच्छ और पुष्करगणमें लोहानायके अन्वयमें होनेवाले भट्टारक धर्मसेन, भावसेन, सहस्रकीत्ति, गुणकीति, यशःकोत्ति, जिनधन्द्र, श्रुतकोत्तिके शिष्य बुधराघव और उनके शिष्य बुधरत्नपाल, वनमाली बोर कानरसिंह हुए हैं। इनमें कानरसिंह के पुत्र अरुणमणि या लालमणि है।
दादा गुरु | भट्टारकश्रुतकीर्ति |
गुरु | बुधराघव |
अजितपुराणमें ग्रन्थका रचनाकाल बंकित है, जिससे अरुणमणिका समय निर्विवाद सिद्ध होता है। प्रशस्तिमें लिखा है
रस-वृष-यति-चन्द्रे ख्यातसंवत्सरे :१७१६) ऽस्मिन्
नियमितसितवारे वैजयंती-दशाम्यां ।
अजितजिनचरित्रं बोधपात्रं बुधाना ।
रचितममलबाग्मि-रक्त रत्नेन तेन ||४||
मुद्गले भूभुजां श्रेष्ठे राज्येवरंगसाहिके।
जहानाबाद-नगरे पाश्र्वनाजिनालये !!४||
अर्थात् अरुणमणिने औरंगजेब के राज्यकालमें वि० स० १७१६ में जहानाबाद नगर वर्तमान नई दिल्लीके पार्श्वनाथ जिनालयमें अजितनाथपुराणकी समाप्ति की है । अतः कविका समय १८वीं शती है।
कविकी एक ही रचना अजितपुरण उपलब्ध है। इनकी नातिनी जैन सिद्धान्त भवन आरामें भी है। द्वितीय तीर्थकर अजितनाथका जीवनवृत्त वणित है।
#Arunmani
आचार्यतुल्य अरुणमणि 18वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 12 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 12 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
अरुणमणि भट्टारकश्रुतकीत्तिके शिष्य और बुधराघवके शिष्य थे। इन्होंने ग्वालियरमें जैनमन्दिरका निर्माण कराया था। इनके ज्येष्ठ शिष्य बुधरत्नपाल थे, दूसरे धनमाली और तीसरे कानरसिंह । अरुणमणि इन्हीं कानरसिंहके पुत्र थे । इन्होंने अजितपुराण के अन्त में अपनी प्रशस्ति अंकित की है । अरुणमणिका अपरनाम लालमणि भी है। प्रशस्तिमें बताया है कि काष्ठासंघमें स्थित माथुर गच्छ और पुष्करगणमें लोहानायके अन्वयमें होनेवाले भट्टारक धर्मसेन, भावसेन, सहस्रकीत्ति, गुणकीति, यशःकोत्ति, जिनधन्द्र, श्रुतकोत्तिके शिष्य बुधराघव और उनके शिष्य बुधरत्नपाल, वनमाली बोर कानरसिंह हुए हैं। इनमें कानरसिंह के पुत्र अरुणमणि या लालमणि है।
दादा गुरु | भट्टारकश्रुतकीर्ति |
गुरु | बुधराघव |
अजितपुराणमें ग्रन्थका रचनाकाल बंकित है, जिससे अरुणमणिका समय निर्विवाद सिद्ध होता है। प्रशस्तिमें लिखा है
रस-वृष-यति-चन्द्रे ख्यातसंवत्सरे :१७१६) ऽस्मिन्
नियमितसितवारे वैजयंती-दशाम्यां ।
अजितजिनचरित्रं बोधपात्रं बुधाना ।
रचितममलबाग्मि-रक्त रत्नेन तेन ||४||
मुद्गले भूभुजां श्रेष्ठे राज्येवरंगसाहिके।
जहानाबाद-नगरे पाश्र्वनाजिनालये !!४||
अर्थात् अरुणमणिने औरंगजेब के राज्यकालमें वि० स० १७१६ में जहानाबाद नगर वर्तमान नई दिल्लीके पार्श्वनाथ जिनालयमें अजितनाथपुराणकी समाप्ति की है । अतः कविका समय १८वीं शती है।
कविकी एक ही रचना अजितपुरण उपलब्ध है। इनकी नातिनी जैन सिद्धान्त भवन आरामें भी है। द्वितीय तीर्थकर अजितनाथका जीवनवृत्त वणित है।
Acharyatulya Arunmani 18th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 12 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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