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#Brahmkrishnadas
ब्रह्म कृष्णदास लोहपत्तन नगरके निवासी थे। इनके पिताका नाम हर्ष और माताका नाम बीरिका देवी था ! इनके ज्येष्ठ भाईका नाम मंगलदासे था । ये दोनों भाई ब्रह्मचारी थे। ब्रह्म कृष्णदासने मुनिसुव्रतपुराणको प्रशस्तिमें रामसेन भट्टारककी परम्परामें हुए अनेक मट्टारकोंका स्मरण किया है । ब्रह्म कृष्णदास काष्ठासंघके भट्टारक भुवनकीत्तिके पट्टधर भट्टारक रत्न कोत्तिके शिष्य थे। भट्टारक रत्नकोत्ति न्याय, नाटक और पुराणादिके विज्ञ थे । ब्रह्म कृष्णदासका व्यक्तित्व आत्म-साधना और ग्रन्थ-रचनाको दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है।
ब्रह्म कृष्णदासने अपनी रचना मुनिसुव्रतपुराणमें उसके रचनाकालका निर्देश किया है। बताया है कि कल्पबल्ली नगरमें वि० सं० १६८१ कार्तिक शुक्ला त्रयोदशोके दिन अपराह्न समगमें ग्रन्थ पूर्ण हुआ ! लिखा है--
'इन्टुष्टषट्चन्द्रमितेऽथ वर्षे (१६८१) श्रीकात्तिकारव्ये धवले च पक्षे ।
जीवे त्रयोदश्यपरान्हया में कृष्णेन सोख्याय विनिर्मितोऽयं
रक्षा लोहपत्तननिवासमहेभ्यो हर्ष एवं वाणिजामिन हर्षः ।
सत्सुतः कविविधिः कमनीयो भाति मंगलसहोदरकृष्ण: ।।१७||
श्रीकल्पवल्लीनगरे गरिष्ठे श्रीब्रह्मचारीश्वर एष कृष्णः ।
कंठावलंब्यूज्जितपूरमल्ल: प्रवर्द्धमानो हितमा स तान ।।
इन प्रशस्ति-पद्योंमें कविने अपनेको ब्रह्मचारी भी कहा है तथा इनके आधार पर कविका समय वि. को १७वीं शती है।।मुनिसुव्रतपुराणमें कविने २०वें तीर्थकर मुनिसुव्रतका जीवन अंकित किया है। इसमें २३ सन्धि या सर्ग हैं । और ३०२५ पद्य है। यह रचना कान्य गुणोंकी दृष्टिसे भी अच्छी है। उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अर्थान्तरन्यास, विभा. बना आदि अलंकारोंका प्रयोग पाया जाता है। इसको प्रति जयपुरमें सुरक्षित है।
ब्रह्म कृष्णदास लोहपत्तन नगरके निवासी थे। इनके पिताका नाम हर्ष और माताका नाम बीरिका देवी था ! इनके ज्येष्ठ भाईका नाम मंगलदासे था । ये दोनों भाई ब्रह्मचारी थे। ब्रह्म कृष्णदासने मुनिसुव्रतपुराणको प्रशस्तिमें रामसेन भट्टारककी परम्परामें हुए अनेक मट्टारकोंका स्मरण किया है । ब्रह्म कृष्णदास काष्ठासंघके भट्टारक भुवनकीत्तिके पट्टधर भट्टारक रत्न कोत्तिके शिष्य थे। भट्टारक रत्नकोत्ति न्याय, नाटक और पुराणादिके विज्ञ थे । ब्रह्म कृष्णदासका व्यक्तित्व आत्म-साधना और ग्रन्थ-रचनाको दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है।
ब्रह्म कृष्णदासने अपनी रचना मुनिसुव्रतपुराणमें उसके रचनाकालका निर्देश किया है। बताया है कि कल्पबल्ली नगरमें वि० सं० १६८१ कार्तिक शुक्ला त्रयोदशोके दिन अपराह्न समगमें ग्रन्थ पूर्ण हुआ ! लिखा है--
'इन्टुष्टषट्चन्द्रमितेऽथ वर्षे (१६८१) श्रीकात्तिकारव्ये धवले च पक्षे ।
जीवे त्रयोदश्यपरान्हया में कृष्णेन सोख्याय विनिर्मितोऽयं
रक्षा लोहपत्तननिवासमहेभ्यो हर्ष एवं वाणिजामिन हर्षः ।
सत्सुतः कविविधिः कमनीयो भाति मंगलसहोदरकृष्ण: ।।१७||
श्रीकल्पवल्लीनगरे गरिष्ठे श्रीब्रह्मचारीश्वर एष कृष्णः ।
कंठावलंब्यूज्जितपूरमल्ल: प्रवर्द्धमानो हितमा स तान ।।
इन प्रशस्ति-पद्योंमें कविने अपनेको ब्रह्मचारी भी कहा है तथा इनके आधार पर कविका समय वि. को १७वीं शती है।।मुनिसुव्रतपुराणमें कविने २०वें तीर्थकर मुनिसुव्रतका जीवन अंकित किया है। इसमें २३ सन्धि या सर्ग हैं । और ३०२५ पद्य है। यह रचना कान्य गुणोंकी दृष्टिसे भी अच्छी है। उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अर्थान्तरन्यास, विभा. बना आदि अलंकारोंका प्रयोग पाया जाता है। इसको प्रति जयपुरमें सुरक्षित है।
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आचार्यतुल्य ब्रह्म कृष्णदास 17वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 11 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 11 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
ब्रह्म कृष्णदास लोहपत्तन नगरके निवासी थे। इनके पिताका नाम हर्ष और माताका नाम बीरिका देवी था ! इनके ज्येष्ठ भाईका नाम मंगलदासे था । ये दोनों भाई ब्रह्मचारी थे। ब्रह्म कृष्णदासने मुनिसुव्रतपुराणको प्रशस्तिमें रामसेन भट्टारककी परम्परामें हुए अनेक मट्टारकोंका स्मरण किया है । ब्रह्म कृष्णदास काष्ठासंघके भट्टारक भुवनकीत्तिके पट्टधर भट्टारक रत्न कोत्तिके शिष्य थे। भट्टारक रत्नकोत्ति न्याय, नाटक और पुराणादिके विज्ञ थे । ब्रह्म कृष्णदासका व्यक्तित्व आत्म-साधना और ग्रन्थ-रचनाको दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है।
ब्रह्म कृष्णदासने अपनी रचना मुनिसुव्रतपुराणमें उसके रचनाकालका निर्देश किया है। बताया है कि कल्पबल्ली नगरमें वि० सं० १६८१ कार्तिक शुक्ला त्रयोदशोके दिन अपराह्न समगमें ग्रन्थ पूर्ण हुआ ! लिखा है--
'इन्टुष्टषट्चन्द्रमितेऽथ वर्षे (१६८१) श्रीकात्तिकारव्ये धवले च पक्षे ।
जीवे त्रयोदश्यपरान्हया में कृष्णेन सोख्याय विनिर्मितोऽयं
रक्षा लोहपत्तननिवासमहेभ्यो हर्ष एवं वाणिजामिन हर्षः ।
सत्सुतः कविविधिः कमनीयो भाति मंगलसहोदरकृष्ण: ।।१७||
श्रीकल्पवल्लीनगरे गरिष्ठे श्रीब्रह्मचारीश्वर एष कृष्णः ।
कंठावलंब्यूज्जितपूरमल्ल: प्रवर्द्धमानो हितमा स तान ।।
इन प्रशस्ति-पद्योंमें कविने अपनेको ब्रह्मचारी भी कहा है तथा इनके आधार पर कविका समय वि. को १७वीं शती है।।मुनिसुव्रतपुराणमें कविने २०वें तीर्थकर मुनिसुव्रतका जीवन अंकित किया है। इसमें २३ सन्धि या सर्ग हैं । और ३०२५ पद्य है। यह रचना कान्य गुणोंकी दृष्टिसे भी अच्छी है। उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अर्थान्तरन्यास, विभा. बना आदि अलंकारोंका प्रयोग पाया जाता है। इसको प्रति जयपुरमें सुरक्षित है।
Acharyatulya Brahm Krishnadas 17th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 11 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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