हैशटैग
#BudhjanPrachin
इनका पूरा नाम वृद्धिचन्द था। ये जयपुरके निवासी और खण्डेलवाल जैन थे। इनका समय अनुमानतः १९वीं शताब्दीका मध्य भाग है।
बधजन नीतिसाहित्य निर्माताके रूपमें प्रतिशप्राप्त हैं। इनकी रचनाओं में कई रचनाए नीतिसे सम्बन्धित हैं | ग्रन्थों की रचना सं०१८७१ से १८९२ तक पायी जाती है। अभी तक इनको निम्नलिखित रचनाएं उपलब्ध है
१. तत्वार्थबोध (विसं १८७५)
२. योगसार भाषा
३. पञ्चास्तिकाय (वि० सं० १८९१)
४. बुधजनसतसई (वि० सं०१८४९)
५. बुधजनविलास (वि० सं० १८९२)
६. पद संग्रह
बुधजनसतसईमें देवानुरागशतक, सुभाषित नीति, उपदेशान्धकार ओर विराग भावना ये चार विभाग है और ६९५ दोहे हैं। बुधजनने दया, मित्र, विद्या, संतोष, घेर्य, कर्मफल, मद, समता, लोभ, धन, धनव्यय, बचन, धूत, मांस, मद्य, परनारीममन, वेश्यागमन, शोक आदि विषयोंपर नीतिपरक उक्तियाँ लिखो हैं। इन उक्तियोंपर वसुनन्दि, हारीत, शुक्र, गुरु, पुत्रक आदि प्राचीन नीतिकारोंका पूर्णप्रभाव है। कविताकी दण्सेि -बुधजनसतसईके दोहे उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितने नीतिकी ष्टिसे । कविने एक-एक दोहेमें जोबनको गतिशील बनानेवाले अमूल्य सन्देश भरे हैं । कवि कहता है
एक चरन हूँ नित पढे, तो काटे अज्ञान |
पनिहारीकी लेज सो, सहज कर पाषान ।।
महाराज महावृक्षकी, सुखदा शीतल छाय ।
सेवत फल भासे न तो, छाया तो रह जाय ॥
पर उपदेश करन निपुन, ते तो लखे अनेक |
करे समिक बोले समिक, ते हजारमें एक
विपत्ताको धन राखिये, धन दीजे रखि दार |
आतम हितको छाडिए, धन, दारा, परिवार ।।
कतिपय दोहे तो तुलसी, कबीर और रहोमके दोहोंसे अनुप्राणित दिखलायी पड़ते हैं । विरागभावना खण्डमें कविने संसारको असारताका बहुत ही सुन्दर और सजीव चित्रण किया है। इस खण्डके सभी दोहे रोचक और मनोहर हैं। दृष्टान्तों द्वारा संसारकी वास्तविकताका चित्रण करने में कविको अपूर्व सफलता मिली है । वस्तुका चित्र नेत्रोंके सामने मूर्तिमान होकर उपस्थित होता है
को है सुत को है तिया, काको धन परिवार ।
आके मिले सरायमें, बिछुरेंगे निरधार ॥
आया सो नाहीं रह्या, दशरथ लछमन राम ।
तू कैसे रह जायगा, झूठ पापका धाम ॥
बुधजनका पदसंग्रह भी विभिन्न राग-रागनियोंसे युक्त है। इस संग्रहमें २४३ गर । न तितो सीनता, लयात्मक संवेदनशीलता और समाहित भावनाका पूरा अस्तित्व विद्यमान है। आत्मशोधनके प्रति जो जाग रूकता इनमें है, वह बहुत कम कवियों में उपलब्ध है। इनकी विचारोंकी कल्पना और आत्मानुभूतिको प्रेरणा पाठकोंक समक्ष ऐसा सुन्दर चित्र उपस्थित करती है, जिससे पाठक आत्मानुभूतिमें लीन हुए बिना नहीं रह सकता
में देखा आतम रामा ।। टेक० ॥
रूप, फरस, रस, गंध ते न्यारा, दरस-ज्ञान-गुन धामा ।
नित्य निरंजन जाकै नाहीं, क्रोध, लोभ-मद कामा ।। मैं देखा० ।।
भजन बिन यों ही जनम गमायो।
पानी पै ल्या पाल न बांधी, फिर पीछे पछतायो । भजन ।।
रामा-मोह भये दिन खोवत, माशापाश बंधायो ।
जप-तप संजम दान न दीनों, मानुष जनम हरायो ।। भजन ।।
स्पष्ट है कि बुधजनकी भाषापर राजस्थानीका प्रभाव है । पदोंमें राजस्थानी प्रवाह और प्रभाव दोनों ही विद्यमान है ।
इनका पूरा नाम वृद्धिचन्द था। ये जयपुरके निवासी और खण्डेलवाल जैन थे। इनका समय अनुमानतः १९वीं शताब्दीका मध्य भाग है।
बधजन नीतिसाहित्य निर्माताके रूपमें प्रतिशप्राप्त हैं। इनकी रचनाओं में कई रचनाए नीतिसे सम्बन्धित हैं | ग्रन्थों की रचना सं०१८७१ से १८९२ तक पायी जाती है। अभी तक इनको निम्नलिखित रचनाएं उपलब्ध है
१. तत्वार्थबोध (विसं १८७५)
२. योगसार भाषा
३. पञ्चास्तिकाय (वि० सं० १८९१)
४. बुधजनसतसई (वि० सं०१८४९)
५. बुधजनविलास (वि० सं० १८९२)
६. पद संग्रह
बुधजनसतसईमें देवानुरागशतक, सुभाषित नीति, उपदेशान्धकार ओर विराग भावना ये चार विभाग है और ६९५ दोहे हैं। बुधजनने दया, मित्र, विद्या, संतोष, घेर्य, कर्मफल, मद, समता, लोभ, धन, धनव्यय, बचन, धूत, मांस, मद्य, परनारीममन, वेश्यागमन, शोक आदि विषयोंपर नीतिपरक उक्तियाँ लिखो हैं। इन उक्तियोंपर वसुनन्दि, हारीत, शुक्र, गुरु, पुत्रक आदि प्राचीन नीतिकारोंका पूर्णप्रभाव है। कविताकी दण्सेि -बुधजनसतसईके दोहे उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितने नीतिकी ष्टिसे । कविने एक-एक दोहेमें जोबनको गतिशील बनानेवाले अमूल्य सन्देश भरे हैं । कवि कहता है
एक चरन हूँ नित पढे, तो काटे अज्ञान |
पनिहारीकी लेज सो, सहज कर पाषान ।।
महाराज महावृक्षकी, सुखदा शीतल छाय ।
सेवत फल भासे न तो, छाया तो रह जाय ॥
पर उपदेश करन निपुन, ते तो लखे अनेक |
करे समिक बोले समिक, ते हजारमें एक
विपत्ताको धन राखिये, धन दीजे रखि दार |
आतम हितको छाडिए, धन, दारा, परिवार ।।
कतिपय दोहे तो तुलसी, कबीर और रहोमके दोहोंसे अनुप्राणित दिखलायी पड़ते हैं । विरागभावना खण्डमें कविने संसारको असारताका बहुत ही सुन्दर और सजीव चित्रण किया है। इस खण्डके सभी दोहे रोचक और मनोहर हैं। दृष्टान्तों द्वारा संसारकी वास्तविकताका चित्रण करने में कविको अपूर्व सफलता मिली है । वस्तुका चित्र नेत्रोंके सामने मूर्तिमान होकर उपस्थित होता है
को है सुत को है तिया, काको धन परिवार ।
आके मिले सरायमें, बिछुरेंगे निरधार ॥
आया सो नाहीं रह्या, दशरथ लछमन राम ।
तू कैसे रह जायगा, झूठ पापका धाम ॥
बुधजनका पदसंग्रह भी विभिन्न राग-रागनियोंसे युक्त है। इस संग्रहमें २४३ गर । न तितो सीनता, लयात्मक संवेदनशीलता और समाहित भावनाका पूरा अस्तित्व विद्यमान है। आत्मशोधनके प्रति जो जाग रूकता इनमें है, वह बहुत कम कवियों में उपलब्ध है। इनकी विचारोंकी कल्पना और आत्मानुभूतिको प्रेरणा पाठकोंक समक्ष ऐसा सुन्दर चित्र उपस्थित करती है, जिससे पाठक आत्मानुभूतिमें लीन हुए बिना नहीं रह सकता
में देखा आतम रामा ।। टेक० ॥
रूप, फरस, रस, गंध ते न्यारा, दरस-ज्ञान-गुन धामा ।
नित्य निरंजन जाकै नाहीं, क्रोध, लोभ-मद कामा ।। मैं देखा० ।।
भजन बिन यों ही जनम गमायो।
पानी पै ल्या पाल न बांधी, फिर पीछे पछतायो । भजन ।।
रामा-मोह भये दिन खोवत, माशापाश बंधायो ।
जप-तप संजम दान न दीनों, मानुष जनम हरायो ।। भजन ।।
स्पष्ट है कि बुधजनकी भाषापर राजस्थानीका प्रभाव है । पदोंमें राजस्थानी प्रवाह और प्रभाव दोनों ही विद्यमान है ।
#BudhjanPrachin
आचार्यतुल्य बुद्धजन 19वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 1 जून 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 1 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
इनका पूरा नाम वृद्धिचन्द था। ये जयपुरके निवासी और खण्डेलवाल जैन थे। इनका समय अनुमानतः १९वीं शताब्दीका मध्य भाग है।
बधजन नीतिसाहित्य निर्माताके रूपमें प्रतिशप्राप्त हैं। इनकी रचनाओं में कई रचनाए नीतिसे सम्बन्धित हैं | ग्रन्थों की रचना सं०१८७१ से १८९२ तक पायी जाती है। अभी तक इनको निम्नलिखित रचनाएं उपलब्ध है
१. तत्वार्थबोध (विसं १८७५)
२. योगसार भाषा
३. पञ्चास्तिकाय (वि० सं० १८९१)
४. बुधजनसतसई (वि० सं०१८४९)
५. बुधजनविलास (वि० सं० १८९२)
६. पद संग्रह
बुधजनसतसईमें देवानुरागशतक, सुभाषित नीति, उपदेशान्धकार ओर विराग भावना ये चार विभाग है और ६९५ दोहे हैं। बुधजनने दया, मित्र, विद्या, संतोष, घेर्य, कर्मफल, मद, समता, लोभ, धन, धनव्यय, बचन, धूत, मांस, मद्य, परनारीममन, वेश्यागमन, शोक आदि विषयोंपर नीतिपरक उक्तियाँ लिखो हैं। इन उक्तियोंपर वसुनन्दि, हारीत, शुक्र, गुरु, पुत्रक आदि प्राचीन नीतिकारोंका पूर्णप्रभाव है। कविताकी दण्सेि -बुधजनसतसईके दोहे उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितने नीतिकी ष्टिसे । कविने एक-एक दोहेमें जोबनको गतिशील बनानेवाले अमूल्य सन्देश भरे हैं । कवि कहता है
एक चरन हूँ नित पढे, तो काटे अज्ञान |
पनिहारीकी लेज सो, सहज कर पाषान ।।
महाराज महावृक्षकी, सुखदा शीतल छाय ।
सेवत फल भासे न तो, छाया तो रह जाय ॥
पर उपदेश करन निपुन, ते तो लखे अनेक |
करे समिक बोले समिक, ते हजारमें एक
विपत्ताको धन राखिये, धन दीजे रखि दार |
आतम हितको छाडिए, धन, दारा, परिवार ।।
कतिपय दोहे तो तुलसी, कबीर और रहोमके दोहोंसे अनुप्राणित दिखलायी पड़ते हैं । विरागभावना खण्डमें कविने संसारको असारताका बहुत ही सुन्दर और सजीव चित्रण किया है। इस खण्डके सभी दोहे रोचक और मनोहर हैं। दृष्टान्तों द्वारा संसारकी वास्तविकताका चित्रण करने में कविको अपूर्व सफलता मिली है । वस्तुका चित्र नेत्रोंके सामने मूर्तिमान होकर उपस्थित होता है
को है सुत को है तिया, काको धन परिवार ।
आके मिले सरायमें, बिछुरेंगे निरधार ॥
आया सो नाहीं रह्या, दशरथ लछमन राम ।
तू कैसे रह जायगा, झूठ पापका धाम ॥
बुधजनका पदसंग्रह भी विभिन्न राग-रागनियोंसे युक्त है। इस संग्रहमें २४३ गर । न तितो सीनता, लयात्मक संवेदनशीलता और समाहित भावनाका पूरा अस्तित्व विद्यमान है। आत्मशोधनके प्रति जो जाग रूकता इनमें है, वह बहुत कम कवियों में उपलब्ध है। इनकी विचारोंकी कल्पना और आत्मानुभूतिको प्रेरणा पाठकोंक समक्ष ऐसा सुन्दर चित्र उपस्थित करती है, जिससे पाठक आत्मानुभूतिमें लीन हुए बिना नहीं रह सकता
में देखा आतम रामा ।। टेक० ॥
रूप, फरस, रस, गंध ते न्यारा, दरस-ज्ञान-गुन धामा ।
नित्य निरंजन जाकै नाहीं, क्रोध, लोभ-मद कामा ।। मैं देखा० ।।
भजन बिन यों ही जनम गमायो।
पानी पै ल्या पाल न बांधी, फिर पीछे पछतायो । भजन ।।
रामा-मोह भये दिन खोवत, माशापाश बंधायो ।
जप-तप संजम दान न दीनों, मानुष जनम हरायो ।। भजन ।।
स्पष्ट है कि बुधजनकी भाषापर राजस्थानीका प्रभाव है । पदोंमें राजस्थानी प्रवाह और प्रभाव दोनों ही विद्यमान है ।
Acharyatulya Budhjan 19th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 1 June 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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