हैशटैग
#DeepchandShah
दीपचन्दशाह विके १८वीं शताब्दीके प्रतिभावान विद्वान् और कवि हैं। ये सांगानेरके रहनेवाले थे और बादमें आकर आमेरमें रहने लगे । इन्होंने अपने ग्रन्थोंकी प्रशस्तिमें अपना जीवन परिचय, माता-पिता या गुरुपरम्परा आदिके सम्बन्धमें कुछ नहीं लिखा है । कविकी वेश-भूषा अत्यन्त सादी थी । ये आत्मा नुभूतिके पुजारी थे। तेरह पंथी सम्प्रदायके अनुयायी भी इन्हें बताया गया है । कवि दीपचन्दका गोत्र काशलीवाल था । इनको रचनाओंके अध्ययनसे यह स्पष्ट मालम होता है कि इनके पावन हृदयमें संसारी जीवोंकी विपरीताभिन वेशमय परिणतिको देखकर, इन्हें अत्यन्त दुःख होता था। ये चाहते थे कि संसारके सभी प्राणी स्त्री, पुत्र, मित्र, धन, धान्यादि बाह्य पदार्थों में आत्मबुद्धि न करे, उन्हें भ्रमवश अपने न माने। उन्हें कर्मोदयसे प्राप्त समझे तथा उनमें कर्तृत्व बुद्धिसे सम्पन्न अहंकार, ममकार रूप परिणतिको न होने दे ।
कवि दीपचन्द मेघाची कवि हैं, इन्होंने "निदिलास' नामक ग्रन्थ वि० सं० १७७९में समाप्त किया है। इनका गद्य अपरिमाजित और आरम्भिक अवस्थामें है । इनकी भाषा इदारी और मिश्रित है ।
१. चिबिलास
२. अनुभवप्रकाश
३. गुणस्थानभेद
४. आत्मावलोकन
५. भावदीपिका
६. परमार्थपुराण ये रचनाएं गद्य में किसी गयी है ।
७. अध्यात्म पच्चीसी
८. द्वादशानुप्रेक्षा
९. ज्ञानदर्पण
१०. स्वरूपानन्द
११. उपदेशसिद्धान्त
कविने गद्य रचनाओं में अपने भावोंको पूर्णतया स्पष्ट करनेका प्रयास किया है। पद्य में भी इन्होंने सहजरूपमें अपने भावोंको अभिव्यक्त किया है। यहाँ उदाहरणार्थ ज्ञानार्णव और उपदेशरत्नमालासे दो एक पद्य उद्धृत किये जाते हैं
अलख अरूपी अजभातम अमित तेज, एक अविकार सारपद त्रिभुवनमें । चिरलौ सुभाव जाको समै हू सम्हारो नाहि, परपद आपो मानि भम्यो भववनमें।। करम कलोलनिमें मिल्यो है निशङ्कमहा, पद-पद प्रतिरागी भयो तन-तनमें । ऐसी चिरकालझी बहु विपति विलाय जाय लेकर निहार देखो आप निजधन में ।।-ज्ञानदर्पण, पद्य ४६
मानि पर आपो प्रेम करत शरीरसेती, कामिनी कनकमांहि कर मोह भावना। लोकलाज लागि मूढ आपनौं अकाज करें, जाने नहीं जे जे दुख परगात पावना ।। परिवार प्यार करि बाँध भव-भार महा, बिनु हो विवेक कर कालका गमावना । कहै गुरुजान नाव बैठ भव सिन्धुतरि, शिवथान पाय सदा अचल रहावना ।।
उपदेशरत्नमाला, पञ्च ६ कविकी प्रतिभामा प्रवेश आध्यात्मिक रचनाओं के लिखने में विशेषरूपसे हुआ है।
दीपचन्दशाह विके १८वीं शताब्दीके प्रतिभावान विद्वान् और कवि हैं। ये सांगानेरके रहनेवाले थे और बादमें आकर आमेरमें रहने लगे । इन्होंने अपने ग्रन्थोंकी प्रशस्तिमें अपना जीवन परिचय, माता-पिता या गुरुपरम्परा आदिके सम्बन्धमें कुछ नहीं लिखा है । कविकी वेश-भूषा अत्यन्त सादी थी । ये आत्मा नुभूतिके पुजारी थे। तेरह पंथी सम्प्रदायके अनुयायी भी इन्हें बताया गया है । कवि दीपचन्दका गोत्र काशलीवाल था । इनको रचनाओंके अध्ययनसे यह स्पष्ट मालम होता है कि इनके पावन हृदयमें संसारी जीवोंकी विपरीताभिन वेशमय परिणतिको देखकर, इन्हें अत्यन्त दुःख होता था। ये चाहते थे कि संसारके सभी प्राणी स्त्री, पुत्र, मित्र, धन, धान्यादि बाह्य पदार्थों में आत्मबुद्धि न करे, उन्हें भ्रमवश अपने न माने। उन्हें कर्मोदयसे प्राप्त समझे तथा उनमें कर्तृत्व बुद्धिसे सम्पन्न अहंकार, ममकार रूप परिणतिको न होने दे ।
कवि दीपचन्द मेघाची कवि हैं, इन्होंने "निदिलास' नामक ग्रन्थ वि० सं० १७७९में समाप्त किया है। इनका गद्य अपरिमाजित और आरम्भिक अवस्थामें है । इनकी भाषा इदारी और मिश्रित है ।
१. चिबिलास
२. अनुभवप्रकाश
३. गुणस्थानभेद
४. आत्मावलोकन
५. भावदीपिका
६. परमार्थपुराण ये रचनाएं गद्य में किसी गयी है ।
७. अध्यात्म पच्चीसी
८. द्वादशानुप्रेक्षा
९. ज्ञानदर्पण
१०. स्वरूपानन्द
११. उपदेशसिद्धान्त
कविने गद्य रचनाओं में अपने भावोंको पूर्णतया स्पष्ट करनेका प्रयास किया है। पद्य में भी इन्होंने सहजरूपमें अपने भावोंको अभिव्यक्त किया है। यहाँ उदाहरणार्थ ज्ञानार्णव और उपदेशरत्नमालासे दो एक पद्य उद्धृत किये जाते हैं
अलख अरूपी अजभातम अमित तेज, एक अविकार सारपद त्रिभुवनमें । चिरलौ सुभाव जाको समै हू सम्हारो नाहि, परपद आपो मानि भम्यो भववनमें।। करम कलोलनिमें मिल्यो है निशङ्कमहा, पद-पद प्रतिरागी भयो तन-तनमें । ऐसी चिरकालझी बहु विपति विलाय जाय लेकर निहार देखो आप निजधन में ।।-ज्ञानदर्पण, पद्य ४६
मानि पर आपो प्रेम करत शरीरसेती, कामिनी कनकमांहि कर मोह भावना। लोकलाज लागि मूढ आपनौं अकाज करें, जाने नहीं जे जे दुख परगात पावना ।। परिवार प्यार करि बाँध भव-भार महा, बिनु हो विवेक कर कालका गमावना । कहै गुरुजान नाव बैठ भव सिन्धुतरि, शिवथान पाय सदा अचल रहावना ।।
उपदेशरत्नमाला, पञ्च ६ कविकी प्रतिभामा प्रवेश आध्यात्मिक रचनाओं के लिखने में विशेषरूपसे हुआ है।
#DeepchandShah
आचार्यतुल्य दीपचंद शाह 18वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 1 जून 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 1 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
दीपचन्दशाह विके १८वीं शताब्दीके प्रतिभावान विद्वान् और कवि हैं। ये सांगानेरके रहनेवाले थे और बादमें आकर आमेरमें रहने लगे । इन्होंने अपने ग्रन्थोंकी प्रशस्तिमें अपना जीवन परिचय, माता-पिता या गुरुपरम्परा आदिके सम्बन्धमें कुछ नहीं लिखा है । कविकी वेश-भूषा अत्यन्त सादी थी । ये आत्मा नुभूतिके पुजारी थे। तेरह पंथी सम्प्रदायके अनुयायी भी इन्हें बताया गया है । कवि दीपचन्दका गोत्र काशलीवाल था । इनको रचनाओंके अध्ययनसे यह स्पष्ट मालम होता है कि इनके पावन हृदयमें संसारी जीवोंकी विपरीताभिन वेशमय परिणतिको देखकर, इन्हें अत्यन्त दुःख होता था। ये चाहते थे कि संसारके सभी प्राणी स्त्री, पुत्र, मित्र, धन, धान्यादि बाह्य पदार्थों में आत्मबुद्धि न करे, उन्हें भ्रमवश अपने न माने। उन्हें कर्मोदयसे प्राप्त समझे तथा उनमें कर्तृत्व बुद्धिसे सम्पन्न अहंकार, ममकार रूप परिणतिको न होने दे ।
कवि दीपचन्द मेघाची कवि हैं, इन्होंने "निदिलास' नामक ग्रन्थ वि० सं० १७७९में समाप्त किया है। इनका गद्य अपरिमाजित और आरम्भिक अवस्थामें है । इनकी भाषा इदारी और मिश्रित है ।
१. चिबिलास
२. अनुभवप्रकाश
३. गुणस्थानभेद
४. आत्मावलोकन
५. भावदीपिका
६. परमार्थपुराण ये रचनाएं गद्य में किसी गयी है ।
७. अध्यात्म पच्चीसी
८. द्वादशानुप्रेक्षा
९. ज्ञानदर्पण
१०. स्वरूपानन्द
११. उपदेशसिद्धान्त
कविने गद्य रचनाओं में अपने भावोंको पूर्णतया स्पष्ट करनेका प्रयास किया है। पद्य में भी इन्होंने सहजरूपमें अपने भावोंको अभिव्यक्त किया है। यहाँ उदाहरणार्थ ज्ञानार्णव और उपदेशरत्नमालासे दो एक पद्य उद्धृत किये जाते हैं
अलख अरूपी अजभातम अमित तेज, एक अविकार सारपद त्रिभुवनमें । चिरलौ सुभाव जाको समै हू सम्हारो नाहि, परपद आपो मानि भम्यो भववनमें।। करम कलोलनिमें मिल्यो है निशङ्कमहा, पद-पद प्रतिरागी भयो तन-तनमें । ऐसी चिरकालझी बहु विपति विलाय जाय लेकर निहार देखो आप निजधन में ।।-ज्ञानदर्पण, पद्य ४६
मानि पर आपो प्रेम करत शरीरसेती, कामिनी कनकमांहि कर मोह भावना। लोकलाज लागि मूढ आपनौं अकाज करें, जाने नहीं जे जे दुख परगात पावना ।। परिवार प्यार करि बाँध भव-भार महा, बिनु हो विवेक कर कालका गमावना । कहै गुरुजान नाव बैठ भव सिन्धुतरि, शिवथान पाय सदा अचल रहावना ।।
उपदेशरत्नमाला, पञ्च ६ कविकी प्रतिभामा प्रवेश आध्यात्मिक रचनाओं के लिखने में विशेषरूपसे हुआ है।
Acharyatulya Deepchand Shah 18th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 1 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#DeepchandShah
15000
#DeepchandShah
DeepchandShah
You cannot copy content of this page