इन्होंने 'अनुपेहारास' नामक उपदेशपद अन्ध लिखा है। इसमें अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अनेकत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, बोधदुर्लभ और धर्म इन बारह भावनाओंका स्वरूपाइन किया है। कविके सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं होती। अनुमानतः कविका समय वि. की १५वीं शताब्दी प्रतीत होता है।
परिचय
जन्हिगले
इन्होंने 'अनुपेहारास' नामक उपदेशपद अन्ध लिखा है। इसमें अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अनेकत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, बोधदुर्लभ और धर्म इन बारह भावनाओंका स्वरूपाइन किया है। कविके सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं होती। अनुमानतः कविका समय वि. की १५वीं शताब्दी प्रतीत होता है।
इन्होंने 'अनुपेहारास' नामक उपदेशपद अन्ध लिखा है। इसमें अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अनेकत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, बोधदुर्लभ और धर्म इन बारह भावनाओंका स्वरूपाइन किया है। कविके सम्बन्ध में कुछ भी जानकारी प्राप्त नहीं होती। अनुमानतः कविका समय वि. की १५वीं शताब्दी प्रतीत होता है।