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#KaviBalchandra
कवि बालचन्द्रका सम्बन्ध उदयचन्द्र और विनयचन्द्र के साथ है। ये माथर संघके आचार्य थे। बालचन्द्रने अपने गुरुका नाम उदयचन्द्र बतलाया है। "णिदुक्खसत्तमीकहा' के आदिमें लिखा है
'संसिजिणिदह-पय-कमलु भव-सय-कलुस-कलंक-निवार ।
उदयचन्दगुरु घरेवि मणे बालइंदुमुणि विवि णिरंतरु ।'
स्पष्ट है कि कविके गुरुका नाम उदयचन्द्र मुनि था। बालचन्द्रके शिष्य विनयचन्द्र मुनि थे। कवि व्रतकथाओंका विज्ञ है और व्रताचरण द्वारा ही व्यक्ति अपना उत्थान कर सकता है। इस पर उन्हें विश्वास है ।
गुरुका | उदयचन्द्र |
शिष्य | विनयचन्द्र |
श्री डॉ हीरालालजी जैनने सुगन्धदशमी कथाकी प्रस्तावनामें उदयचन्द्र का समय ई० सनकी १२वीं शती सिद्ध किया है। उन्होंने बिनयचन्द्र द्वारा रचित 'चूनड़ी के उल्लेखोंके आधारपर अभिलेखीय और ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत कर निष्कर्ष निकाले हैं। डॉ० जैनने लिखा है-"सुगन्धदशमोकथाके कती उदयचन्द्रके शिष्य विनयचन्द्रने जिस त्रिभुवन गरि (तिहनगढ़ ) में अपनी उक्त दो रचनाएं पूरी की थीं, उसका निर्माण इस यदुवंशके राजा त्रिभुवनपाल (तिहनपाल ने अपने नामसे . सन् १०४४के कुछ काल पश्चात् कराया था तथा अजयनरेन्द्र के जिस राजविहारमें रहकर उन्होंने चूनड़ीकी रचना की थी, वह निस्संदेह इन्हीं अजयपालनरेश द्वारा बनवाया गया होगा, जिनका सन् ११५०का उत्कीर्ण लेख महावनसे मिला है। सन् ११२६ में त्रिभुवनगिरि उक्त यदुवंशी राजाओंके हाथसे निकलकर मुसलमानोंके हाथमें चला गया । अतएव त्रिभुवनगिरिके लिखे गये उक्त दोनों ग्रन्थोंका रचनाकाल लगभग सन् १९५०
और ११९६ के बीच अनुमान किया जा सकता है ।अतः स्पष्ट है कि कवि बालचन्द्रका समय ई० सनकी खी शतो है।
कविकी दो कथा-कृतियाँ उपलब्ध है—
१. णिदुक्खसत्तमीकहा और
२. नरक उतारोदुधारसीकथा ।
प्रथम कथानन्यमें 'निदुःखसप्तमीव्रतके करनेकी विधि और सपालन करने वालेकी कथा णित है। यह व्रत भाद्रपद शुक्ला सप्तमीको किया जाता है । इस व्रतमें '*ह असिमाउसा' इस मंत्रका जाप किया जाता है। बसके पूर्व दिन संयम धारण किया जाता है और व्रतके अगले दिन भी संयमका पालन किया जाता है। इस व्रत में प्रौषधोपवासकी विधि सम्पन्न की जाती है। सात वर्षों तक व्रतके पालन करनेके पश्चात् उद्यापन करनेकी विधि बतायी है। लिखा है
"किज सत्तिहि उज्जवणर्ड, विविह-गहवणेहि दुह-दमणउं ।
आणि वि भुणि भासियज, राएँ गुण अणुराउ कहते ।
लयज धम्मु सावय जाह, ति-धरणे हि विहिङ उत्तम सत्ते ।
" कविका दूसरा ग्रन्थ 'नरकसतारोदुधारती कथा' है। इस कथाम नरकगति से उद्धार करनेके लिए वारक्रमानुसार रसका परित्यागकर व्रताचरण करने और इस व्रताचरणके द्वारा प्राप्त किये गये फलका कथन किया है। ग्रन्थके आरम्भमें लिखा है
समवसरण-सीहासण-संहिउ, सो जि देव महु मणह पइट्ठ ।
अवर जी हरिहर बंभु पडिल्लंउ, ते पुण मर्डबा मोह-गहिल्ला ।
छह दसण जा थिर करइ वियरइ बुद्धि-पगासा ।
सा सारद जइ पुज्जिया, लब्भइ बुद्धि सहासा ।
उदयचन्द्र मुणि गहि जुगइणउ सोमई भावें मणि अणुसरित ।
बालइंदु सुणि विवि णिरंतर परगउतारी कहयि कहतर ।
इस प्रकार मुनि बालचन्द्रने अपभ्र शमें कथा-अन्योंकी रचना कर माहि त्यिक समृद्धिमें योगदान किया है।
कवि बालचन्द्रका सम्बन्ध उदयचन्द्र और विनयचन्द्र के साथ है। ये माथर संघके आचार्य थे। बालचन्द्रने अपने गुरुका नाम उदयचन्द्र बतलाया है। "णिदुक्खसत्तमीकहा' के आदिमें लिखा है
'संसिजिणिदह-पय-कमलु भव-सय-कलुस-कलंक-निवार ।
उदयचन्दगुरु घरेवि मणे बालइंदुमुणि विवि णिरंतरु ।'
स्पष्ट है कि कविके गुरुका नाम उदयचन्द्र मुनि था। बालचन्द्रके शिष्य विनयचन्द्र मुनि थे। कवि व्रतकथाओंका विज्ञ है और व्रताचरण द्वारा ही व्यक्ति अपना उत्थान कर सकता है। इस पर उन्हें विश्वास है ।
गुरुका | उदयचन्द्र |
शिष्य | विनयचन्द्र |
श्री डॉ हीरालालजी जैनने सुगन्धदशमी कथाकी प्रस्तावनामें उदयचन्द्र का समय ई० सनकी १२वीं शती सिद्ध किया है। उन्होंने बिनयचन्द्र द्वारा रचित 'चूनड़ी के उल्लेखोंके आधारपर अभिलेखीय और ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत कर निष्कर्ष निकाले हैं। डॉ० जैनने लिखा है-"सुगन्धदशमोकथाके कती उदयचन्द्रके शिष्य विनयचन्द्रने जिस त्रिभुवन गरि (तिहनगढ़ ) में अपनी उक्त दो रचनाएं पूरी की थीं, उसका निर्माण इस यदुवंशके राजा त्रिभुवनपाल (तिहनपाल ने अपने नामसे . सन् १०४४के कुछ काल पश्चात् कराया था तथा अजयनरेन्द्र के जिस राजविहारमें रहकर उन्होंने चूनड़ीकी रचना की थी, वह निस्संदेह इन्हीं अजयपालनरेश द्वारा बनवाया गया होगा, जिनका सन् ११५०का उत्कीर्ण लेख महावनसे मिला है। सन् ११२६ में त्रिभुवनगिरि उक्त यदुवंशी राजाओंके हाथसे निकलकर मुसलमानोंके हाथमें चला गया । अतएव त्रिभुवनगिरिके लिखे गये उक्त दोनों ग्रन्थोंका रचनाकाल लगभग सन् १९५०
और ११९६ के बीच अनुमान किया जा सकता है ।अतः स्पष्ट है कि कवि बालचन्द्रका समय ई० सनकी खी शतो है।
कविकी दो कथा-कृतियाँ उपलब्ध है—
१. णिदुक्खसत्तमीकहा और
२. नरक उतारोदुधारसीकथा ।
प्रथम कथानन्यमें 'निदुःखसप्तमीव्रतके करनेकी विधि और सपालन करने वालेकी कथा णित है। यह व्रत भाद्रपद शुक्ला सप्तमीको किया जाता है । इस व्रतमें '*ह असिमाउसा' इस मंत्रका जाप किया जाता है। बसके पूर्व दिन संयम धारण किया जाता है और व्रतके अगले दिन भी संयमका पालन किया जाता है। इस व्रत में प्रौषधोपवासकी विधि सम्पन्न की जाती है। सात वर्षों तक व्रतके पालन करनेके पश्चात् उद्यापन करनेकी विधि बतायी है। लिखा है
"किज सत्तिहि उज्जवणर्ड, विविह-गहवणेहि दुह-दमणउं ।
आणि वि भुणि भासियज, राएँ गुण अणुराउ कहते ।
लयज धम्मु सावय जाह, ति-धरणे हि विहिङ उत्तम सत्ते ।
" कविका दूसरा ग्रन्थ 'नरकसतारोदुधारती कथा' है। इस कथाम नरकगति से उद्धार करनेके लिए वारक्रमानुसार रसका परित्यागकर व्रताचरण करने और इस व्रताचरणके द्वारा प्राप्त किये गये फलका कथन किया है। ग्रन्थके आरम्भमें लिखा है
समवसरण-सीहासण-संहिउ, सो जि देव महु मणह पइट्ठ ।
अवर जी हरिहर बंभु पडिल्लंउ, ते पुण मर्डबा मोह-गहिल्ला ।
छह दसण जा थिर करइ वियरइ बुद्धि-पगासा ।
सा सारद जइ पुज्जिया, लब्भइ बुद्धि सहासा ।
उदयचन्द्र मुणि गहि जुगइणउ सोमई भावें मणि अणुसरित ।
बालइंदु सुणि विवि णिरंतर परगउतारी कहयि कहतर ।
इस प्रकार मुनि बालचन्द्रने अपभ्र शमें कथा-अन्योंकी रचना कर माहि त्यिक समृद्धिमें योगदान किया है।
#KaviBalchandra
आचार्यतुल्य कवि बालचन्द्र 12वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 27 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 27 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कवि बालचन्द्रका सम्बन्ध उदयचन्द्र और विनयचन्द्र के साथ है। ये माथर संघके आचार्य थे। बालचन्द्रने अपने गुरुका नाम उदयचन्द्र बतलाया है। "णिदुक्खसत्तमीकहा' के आदिमें लिखा है
'संसिजिणिदह-पय-कमलु भव-सय-कलुस-कलंक-निवार ।
उदयचन्दगुरु घरेवि मणे बालइंदुमुणि विवि णिरंतरु ।'
स्पष्ट है कि कविके गुरुका नाम उदयचन्द्र मुनि था। बालचन्द्रके शिष्य विनयचन्द्र मुनि थे। कवि व्रतकथाओंका विज्ञ है और व्रताचरण द्वारा ही व्यक्ति अपना उत्थान कर सकता है। इस पर उन्हें विश्वास है ।
गुरुका | उदयचन्द्र |
शिष्य | विनयचन्द्र |
श्री डॉ हीरालालजी जैनने सुगन्धदशमी कथाकी प्रस्तावनामें उदयचन्द्र का समय ई० सनकी १२वीं शती सिद्ध किया है। उन्होंने बिनयचन्द्र द्वारा रचित 'चूनड़ी के उल्लेखोंके आधारपर अभिलेखीय और ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत कर निष्कर्ष निकाले हैं। डॉ० जैनने लिखा है-"सुगन्धदशमोकथाके कती उदयचन्द्रके शिष्य विनयचन्द्रने जिस त्रिभुवन गरि (तिहनगढ़ ) में अपनी उक्त दो रचनाएं पूरी की थीं, उसका निर्माण इस यदुवंशके राजा त्रिभुवनपाल (तिहनपाल ने अपने नामसे . सन् १०४४के कुछ काल पश्चात् कराया था तथा अजयनरेन्द्र के जिस राजविहारमें रहकर उन्होंने चूनड़ीकी रचना की थी, वह निस्संदेह इन्हीं अजयपालनरेश द्वारा बनवाया गया होगा, जिनका सन् ११५०का उत्कीर्ण लेख महावनसे मिला है। सन् ११२६ में त्रिभुवनगिरि उक्त यदुवंशी राजाओंके हाथसे निकलकर मुसलमानोंके हाथमें चला गया । अतएव त्रिभुवनगिरिके लिखे गये उक्त दोनों ग्रन्थोंका रचनाकाल लगभग सन् १९५०
और ११९६ के बीच अनुमान किया जा सकता है ।अतः स्पष्ट है कि कवि बालचन्द्रका समय ई० सनकी खी शतो है।
कविकी दो कथा-कृतियाँ उपलब्ध है—
१. णिदुक्खसत्तमीकहा और
२. नरक उतारोदुधारसीकथा ।
प्रथम कथानन्यमें 'निदुःखसप्तमीव्रतके करनेकी विधि और सपालन करने वालेकी कथा णित है। यह व्रत भाद्रपद शुक्ला सप्तमीको किया जाता है । इस व्रतमें '*ह असिमाउसा' इस मंत्रका जाप किया जाता है। बसके पूर्व दिन संयम धारण किया जाता है और व्रतके अगले दिन भी संयमका पालन किया जाता है। इस व्रत में प्रौषधोपवासकी विधि सम्पन्न की जाती है। सात वर्षों तक व्रतके पालन करनेके पश्चात् उद्यापन करनेकी विधि बतायी है। लिखा है
"किज सत्तिहि उज्जवणर्ड, विविह-गहवणेहि दुह-दमणउं ।
आणि वि भुणि भासियज, राएँ गुण अणुराउ कहते ।
लयज धम्मु सावय जाह, ति-धरणे हि विहिङ उत्तम सत्ते ।
" कविका दूसरा ग्रन्थ 'नरकसतारोदुधारती कथा' है। इस कथाम नरकगति से उद्धार करनेके लिए वारक्रमानुसार रसका परित्यागकर व्रताचरण करने और इस व्रताचरणके द्वारा प्राप्त किये गये फलका कथन किया है। ग्रन्थके आरम्भमें लिखा है
समवसरण-सीहासण-संहिउ, सो जि देव महु मणह पइट्ठ ।
अवर जी हरिहर बंभु पडिल्लंउ, ते पुण मर्डबा मोह-गहिल्ला ।
छह दसण जा थिर करइ वियरइ बुद्धि-पगासा ।
सा सारद जइ पुज्जिया, लब्भइ बुद्धि सहासा ।
उदयचन्द्र मुणि गहि जुगइणउ सोमई भावें मणि अणुसरित ।
बालइंदु सुणि विवि णिरंतर परगउतारी कहयि कहतर ।
इस प्रकार मुनि बालचन्द्रने अपभ्र शमें कथा-अन्योंकी रचना कर माहि त्यिक समृद्धिमें योगदान किया है।
Acharyatulya Kavi Balchandra 12th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 27 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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