हैशटैग
#Maheendu
कवि महीन्दु या महीचन्द्र इल्लराजके पुत्र हैं । इससे अधिक इनके परिचय के सम्बन्धमें कुछ भी प्राप्त नहीं होता है । कविने 'संतिणाहारिउ'की रचनाके अन्तमें अपने पिताका नामांकन किया है
मो सुण बुद्धीसर वरहि दुहुहर, इल्लराजसुअ पाखिआई।
सण्णाणसुअ साहारण दोसीणिवारण वरणरहि पारिजइ ।।
पुष्पिका-बाक्यसे भी इल्लराजका पुत्र प्रकट होता है।
अन्ध-प्रशस्तिमें कविने योगिनीपुर (दिल्ली) का सामान्य परिचय कराते हुए काष्ठासंघके माथुरगच्छ और पुष्करगण के तीन भट्टारकोंका नामोल्लेख किया है-यशःकोति, मलयीत्ति और गुणभद्रसुरि। इसके पश्चात् जयका निर्माण कराने वाले साधारण नामक अग्रवालश्रावकके वंशादिका विस्तृत परिचय दिया है। अन्यके प्रत्येक परिच्छेद के प्रारंभमें एक-एक संस्कृत-पच द्वारा भगवान शान्तिनाथका जयघोष करते हुए साधारण के लिये श्री और कीति आदि. की प्रार्थना को गई है।
भट्टारकोंकी उपर्युक्त परम्परा अंकनसे यह ध्वनित होता है कि कवि महीन्दु के गुरु काष्ठासंघ माथुरगच्छ और पुष्करगणके आचार्य हो रहे हैं तथा कविका सम्बन्ध भो उक्त भट्टारक-परम्पराके साथ है ।
कविने इस ग्रंथका रचनाकाल स्वयं ही बतलाया है । लिखा है---
विक्कमरायह ववगय कालइ । रिसि-वसु-सर-भुवि-अकाला।
कत्तिय-पढम-पक्खि पंचमि-दिणि । हुड परिपुण्ण वि उग्गतइ इणि ।
अर्थात् इस ग्रंथको रचना वि० सं० १५८७ कात्तिक कृष्ण पंचमी मुगल बादशाह बाबरके राज्यकाल में समाप्त हुई।
इतिहास बतलाता है कि बाबरने ई. सन् १५२६की पानीपतको लड़ाई में दिल्लीके बादशाह इबाहिम लोदीको पराजित और दिवंगत कर दिल्लीका राज्य-शासन प्राप्त किया था। इसके पश्चात् उसने आगरापर भी अधिकार कर लिया । सन् १५३० ई० वि० सं० १५८७) में आगरा में ही उसकी मृत्यु हो गई। इससे यह विदित होता है कि बाबरके जीवनकाल में ही 'सन्तिगाहरिउको रचना समाप्त हुई है । अतएव कविका स्थितिकाल १६वीं शती सिद्ध होता है।
कविने इस ग्रन्थमें अपनेसे पूर्ववर्ती अकलंक, पूज्यपाद, नेमिचन्द्र सैद्धान्तिक, चतुर्मुख, स्वयंभू, पुष्पदन्त, यश कीति, रघु , गुणभद्रसूरि और सहणपालका स्मरण किया है। रइधका समय वि०की १५वीं शतीका अन्तिम भाग अथवा १६वीं शतीका प्रारंभिक भाग है। अतएव कविका समय पूर्व आचार्योंके स्मरणसेभी सिद्ध हो जाता है । लिखा है...
अकलंकसामि सिरिपायपूय, इंदाइ महाकइ अट्टहूय ।
सिरिणेमिचंद सिद्धतियाई, सिद्धससार मुणि ण विवि ताई।
चउमुहु-सुयंभु-सिरिपुप्फयंतु, सरसइ-णिवासु गुण-गण-महंतु ।
जसकित्तिमुणीसर जस-णिहाणु, पंडिय रइयूकई गुण अमाणु ।
गुणभद्दसूरि गुणभद्द ठाणु, सिरिसहणपाल बहुबुद्धि जाणु ।
कवि द्वारा लिखित 'सतिणाहरिज'की प्रति वि०सं०१५८८ फाल्गुण कृष्णा पंचमीको लिखी हुई उपलब्ध है।
प्रस्तुत ग्रंथकी रचना योगिनीपुर (दिल्ली) निवासी अग्नवालकुलभूषण गगंगोत्रीय साहू भोजराजके पांच पुत्रों से ज्ञानचन्दके पुत्र साधारण श्रावककी प्रेरणासे को गई है। भोजराम पुत्र मान खमचन्द, शालचन्द, श्रीचन्द, गजमरल और रणमल बताये गये हैं। अंधकी प्रशस्तिमें कविने साधारण श्रावक के अंशका परिचय कराया है । बताया है कि उसने हस्तिनागपुरके यात्रार्थ संघ चलाया था और जिनमंदिरका निर्माण कराकर उसकी प्रतिष्ठा भी कराई थी। भोजराजके पुत्र जानचंदकी पत्नीका नाम 'सौराजही', था जो अनेक गुणोंसे विभूषित भी | इसके तीन पुत्र हुए, जिनमें मारंगसाह और साधारण प्रसिद्ध हैं। सारंगसाहूने सम्मेदशिखरकी यात्रा की थी। इसकी पत्नीका नाम तिलोकाही' था | दूसरा पुत्र साधारण बड़ा विद्वान और गुणी था । उसने शत्रु जयको यात्रा को थी। इसकी पत्नीका नाम 'सीवाही' था । इसके चार पुत्र हुए-अभयचन्द, मल्लिदास, जितमल्ल और सोहिल्ल | इनकी पत्नियोंक नाम च दणही, भदासही, समदो और भीषण हो । ये चागे हो पतिव्रता और धमौनष्ठा श्री । इस प्रकार कविने मथ-रचनाके नंकका परिचय प्रस्तुत किया है ।
'संतिणाहचरि' में १६वें तीर्थकर शान्तिनाथ चक्रवर्तीका जीवनवृत्त गुम्फित है । कथा-वस्तु १३ परिच्छेदों में विभक्त है । पद्य-प्रमाण ५०००के लगभग है।
शान्तिनाथ चक्रवर्ती, कामदेव और धर्मचक्रो थे। कविने इनको पूर्वभवाचली. के साथ वर्तमान जीवनका अंकन किया है । चक्रवर्तीम सभी प्रकारक वैभवोंका उपभोग किया और षट्खण्डभूमिको अपने अधीन किया । अन्तमें इन्द्रियविषयों को दुःखद अवगत कर देह-भोगोंसे विरक्त ही दिगम्बर-दीक्षा धारण कर तप चरण किया। समाधिरूपी चक्रसे कर्मशत्रुओंको बिनटकर धर्म चको बने । विविध देशोंमें विहार कर जगतको कल्याणका मार्ग बताया और अधातिया कमीको नष्ट कर मोक्ष प्राप्त किया।
कवि महीन्दु या महीचन्द्र इल्लराजके पुत्र हैं । इससे अधिक इनके परिचय के सम्बन्धमें कुछ भी प्राप्त नहीं होता है । कविने 'संतिणाहारिउ'की रचनाके अन्तमें अपने पिताका नामांकन किया है
मो सुण बुद्धीसर वरहि दुहुहर, इल्लराजसुअ पाखिआई।
सण्णाणसुअ साहारण दोसीणिवारण वरणरहि पारिजइ ।।
पुष्पिका-बाक्यसे भी इल्लराजका पुत्र प्रकट होता है।
अन्ध-प्रशस्तिमें कविने योगिनीपुर (दिल्ली) का सामान्य परिचय कराते हुए काष्ठासंघके माथुरगच्छ और पुष्करगण के तीन भट्टारकोंका नामोल्लेख किया है-यशःकोति, मलयीत्ति और गुणभद्रसुरि। इसके पश्चात् जयका निर्माण कराने वाले साधारण नामक अग्रवालश्रावकके वंशादिका विस्तृत परिचय दिया है। अन्यके प्रत्येक परिच्छेद के प्रारंभमें एक-एक संस्कृत-पच द्वारा भगवान शान्तिनाथका जयघोष करते हुए साधारण के लिये श्री और कीति आदि. की प्रार्थना को गई है।
भट्टारकोंकी उपर्युक्त परम्परा अंकनसे यह ध्वनित होता है कि कवि महीन्दु के गुरु काष्ठासंघ माथुरगच्छ और पुष्करगणके आचार्य हो रहे हैं तथा कविका सम्बन्ध भो उक्त भट्टारक-परम्पराके साथ है ।
कविने इस ग्रंथका रचनाकाल स्वयं ही बतलाया है । लिखा है---
विक्कमरायह ववगय कालइ । रिसि-वसु-सर-भुवि-अकाला।
कत्तिय-पढम-पक्खि पंचमि-दिणि । हुड परिपुण्ण वि उग्गतइ इणि ।
अर्थात् इस ग्रंथको रचना वि० सं० १५८७ कात्तिक कृष्ण पंचमी मुगल बादशाह बाबरके राज्यकाल में समाप्त हुई।
इतिहास बतलाता है कि बाबरने ई. सन् १५२६की पानीपतको लड़ाई में दिल्लीके बादशाह इबाहिम लोदीको पराजित और दिवंगत कर दिल्लीका राज्य-शासन प्राप्त किया था। इसके पश्चात् उसने आगरापर भी अधिकार कर लिया । सन् १५३० ई० वि० सं० १५८७) में आगरा में ही उसकी मृत्यु हो गई। इससे यह विदित होता है कि बाबरके जीवनकाल में ही 'सन्तिगाहरिउको रचना समाप्त हुई है । अतएव कविका स्थितिकाल १६वीं शती सिद्ध होता है।
कविने इस ग्रन्थमें अपनेसे पूर्ववर्ती अकलंक, पूज्यपाद, नेमिचन्द्र सैद्धान्तिक, चतुर्मुख, स्वयंभू, पुष्पदन्त, यश कीति, रघु , गुणभद्रसूरि और सहणपालका स्मरण किया है। रइधका समय वि०की १५वीं शतीका अन्तिम भाग अथवा १६वीं शतीका प्रारंभिक भाग है। अतएव कविका समय पूर्व आचार्योंके स्मरणसेभी सिद्ध हो जाता है । लिखा है...
अकलंकसामि सिरिपायपूय, इंदाइ महाकइ अट्टहूय ।
सिरिणेमिचंद सिद्धतियाई, सिद्धससार मुणि ण विवि ताई।
चउमुहु-सुयंभु-सिरिपुप्फयंतु, सरसइ-णिवासु गुण-गण-महंतु ।
जसकित्तिमुणीसर जस-णिहाणु, पंडिय रइयूकई गुण अमाणु ।
गुणभद्दसूरि गुणभद्द ठाणु, सिरिसहणपाल बहुबुद्धि जाणु ।
कवि द्वारा लिखित 'सतिणाहरिज'की प्रति वि०सं०१५८८ फाल्गुण कृष्णा पंचमीको लिखी हुई उपलब्ध है।
प्रस्तुत ग्रंथकी रचना योगिनीपुर (दिल्ली) निवासी अग्नवालकुलभूषण गगंगोत्रीय साहू भोजराजके पांच पुत्रों से ज्ञानचन्दके पुत्र साधारण श्रावककी प्रेरणासे को गई है। भोजराम पुत्र मान खमचन्द, शालचन्द, श्रीचन्द, गजमरल और रणमल बताये गये हैं। अंधकी प्रशस्तिमें कविने साधारण श्रावक के अंशका परिचय कराया है । बताया है कि उसने हस्तिनागपुरके यात्रार्थ संघ चलाया था और जिनमंदिरका निर्माण कराकर उसकी प्रतिष्ठा भी कराई थी। भोजराजके पुत्र जानचंदकी पत्नीका नाम 'सौराजही', था जो अनेक गुणोंसे विभूषित भी | इसके तीन पुत्र हुए, जिनमें मारंगसाह और साधारण प्रसिद्ध हैं। सारंगसाहूने सम्मेदशिखरकी यात्रा की थी। इसकी पत्नीका नाम तिलोकाही' था | दूसरा पुत्र साधारण बड़ा विद्वान और गुणी था । उसने शत्रु जयको यात्रा को थी। इसकी पत्नीका नाम 'सीवाही' था । इसके चार पुत्र हुए-अभयचन्द, मल्लिदास, जितमल्ल और सोहिल्ल | इनकी पत्नियोंक नाम च दणही, भदासही, समदो और भीषण हो । ये चागे हो पतिव्रता और धमौनष्ठा श्री । इस प्रकार कविने मथ-रचनाके नंकका परिचय प्रस्तुत किया है ।
'संतिणाहचरि' में १६वें तीर्थकर शान्तिनाथ चक्रवर्तीका जीवनवृत्त गुम्फित है । कथा-वस्तु १३ परिच्छेदों में विभक्त है । पद्य-प्रमाण ५०००के लगभग है।
शान्तिनाथ चक्रवर्ती, कामदेव और धर्मचक्रो थे। कविने इनको पूर्वभवाचली. के साथ वर्तमान जीवनका अंकन किया है । चक्रवर्तीम सभी प्रकारक वैभवोंका उपभोग किया और षट्खण्डभूमिको अपने अधीन किया । अन्तमें इन्द्रियविषयों को दुःखद अवगत कर देह-भोगोंसे विरक्त ही दिगम्बर-दीक्षा धारण कर तप चरण किया। समाधिरूपी चक्रसे कर्मशत्रुओंको बिनटकर धर्म चको बने । विविध देशोंमें विहार कर जगतको कल्याणका मार्ग बताया और अधातिया कमीको नष्ट कर मोक्ष प्राप्त किया।
#Maheendu
आचार्यतुल्य कवि महेन्दु 16वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 20 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 20 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कवि महीन्दु या महीचन्द्र इल्लराजके पुत्र हैं । इससे अधिक इनके परिचय के सम्बन्धमें कुछ भी प्राप्त नहीं होता है । कविने 'संतिणाहारिउ'की रचनाके अन्तमें अपने पिताका नामांकन किया है
मो सुण बुद्धीसर वरहि दुहुहर, इल्लराजसुअ पाखिआई।
सण्णाणसुअ साहारण दोसीणिवारण वरणरहि पारिजइ ।।
पुष्पिका-बाक्यसे भी इल्लराजका पुत्र प्रकट होता है।
अन्ध-प्रशस्तिमें कविने योगिनीपुर (दिल्ली) का सामान्य परिचय कराते हुए काष्ठासंघके माथुरगच्छ और पुष्करगण के तीन भट्टारकोंका नामोल्लेख किया है-यशःकोति, मलयीत्ति और गुणभद्रसुरि। इसके पश्चात् जयका निर्माण कराने वाले साधारण नामक अग्रवालश्रावकके वंशादिका विस्तृत परिचय दिया है। अन्यके प्रत्येक परिच्छेद के प्रारंभमें एक-एक संस्कृत-पच द्वारा भगवान शान्तिनाथका जयघोष करते हुए साधारण के लिये श्री और कीति आदि. की प्रार्थना को गई है।
भट्टारकोंकी उपर्युक्त परम्परा अंकनसे यह ध्वनित होता है कि कवि महीन्दु के गुरु काष्ठासंघ माथुरगच्छ और पुष्करगणके आचार्य हो रहे हैं तथा कविका सम्बन्ध भो उक्त भट्टारक-परम्पराके साथ है ।
कविने इस ग्रंथका रचनाकाल स्वयं ही बतलाया है । लिखा है---
विक्कमरायह ववगय कालइ । रिसि-वसु-सर-भुवि-अकाला।
कत्तिय-पढम-पक्खि पंचमि-दिणि । हुड परिपुण्ण वि उग्गतइ इणि ।
अर्थात् इस ग्रंथको रचना वि० सं० १५८७ कात्तिक कृष्ण पंचमी मुगल बादशाह बाबरके राज्यकाल में समाप्त हुई।
इतिहास बतलाता है कि बाबरने ई. सन् १५२६की पानीपतको लड़ाई में दिल्लीके बादशाह इबाहिम लोदीको पराजित और दिवंगत कर दिल्लीका राज्य-शासन प्राप्त किया था। इसके पश्चात् उसने आगरापर भी अधिकार कर लिया । सन् १५३० ई० वि० सं० १५८७) में आगरा में ही उसकी मृत्यु हो गई। इससे यह विदित होता है कि बाबरके जीवनकाल में ही 'सन्तिगाहरिउको रचना समाप्त हुई है । अतएव कविका स्थितिकाल १६वीं शती सिद्ध होता है।
कविने इस ग्रन्थमें अपनेसे पूर्ववर्ती अकलंक, पूज्यपाद, नेमिचन्द्र सैद्धान्तिक, चतुर्मुख, स्वयंभू, पुष्पदन्त, यश कीति, रघु , गुणभद्रसूरि और सहणपालका स्मरण किया है। रइधका समय वि०की १५वीं शतीका अन्तिम भाग अथवा १६वीं शतीका प्रारंभिक भाग है। अतएव कविका समय पूर्व आचार्योंके स्मरणसेभी सिद्ध हो जाता है । लिखा है...
अकलंकसामि सिरिपायपूय, इंदाइ महाकइ अट्टहूय ।
सिरिणेमिचंद सिद्धतियाई, सिद्धससार मुणि ण विवि ताई।
चउमुहु-सुयंभु-सिरिपुप्फयंतु, सरसइ-णिवासु गुण-गण-महंतु ।
जसकित्तिमुणीसर जस-णिहाणु, पंडिय रइयूकई गुण अमाणु ।
गुणभद्दसूरि गुणभद्द ठाणु, सिरिसहणपाल बहुबुद्धि जाणु ।
कवि द्वारा लिखित 'सतिणाहरिज'की प्रति वि०सं०१५८८ फाल्गुण कृष्णा पंचमीको लिखी हुई उपलब्ध है।
प्रस्तुत ग्रंथकी रचना योगिनीपुर (दिल्ली) निवासी अग्नवालकुलभूषण गगंगोत्रीय साहू भोजराजके पांच पुत्रों से ज्ञानचन्दके पुत्र साधारण श्रावककी प्रेरणासे को गई है। भोजराम पुत्र मान खमचन्द, शालचन्द, श्रीचन्द, गजमरल और रणमल बताये गये हैं। अंधकी प्रशस्तिमें कविने साधारण श्रावक के अंशका परिचय कराया है । बताया है कि उसने हस्तिनागपुरके यात्रार्थ संघ चलाया था और जिनमंदिरका निर्माण कराकर उसकी प्रतिष्ठा भी कराई थी। भोजराजके पुत्र जानचंदकी पत्नीका नाम 'सौराजही', था जो अनेक गुणोंसे विभूषित भी | इसके तीन पुत्र हुए, जिनमें मारंगसाह और साधारण प्रसिद्ध हैं। सारंगसाहूने सम्मेदशिखरकी यात्रा की थी। इसकी पत्नीका नाम तिलोकाही' था | दूसरा पुत्र साधारण बड़ा विद्वान और गुणी था । उसने शत्रु जयको यात्रा को थी। इसकी पत्नीका नाम 'सीवाही' था । इसके चार पुत्र हुए-अभयचन्द, मल्लिदास, जितमल्ल और सोहिल्ल | इनकी पत्नियोंक नाम च दणही, भदासही, समदो और भीषण हो । ये चागे हो पतिव्रता और धमौनष्ठा श्री । इस प्रकार कविने मथ-रचनाके नंकका परिचय प्रस्तुत किया है ।
'संतिणाहचरि' में १६वें तीर्थकर शान्तिनाथ चक्रवर्तीका जीवनवृत्त गुम्फित है । कथा-वस्तु १३ परिच्छेदों में विभक्त है । पद्य-प्रमाण ५०००के लगभग है।
शान्तिनाथ चक्रवर्ती, कामदेव और धर्मचक्रो थे। कविने इनको पूर्वभवाचली. के साथ वर्तमान जीवनका अंकन किया है । चक्रवर्तीम सभी प्रकारक वैभवोंका उपभोग किया और षट्खण्डभूमिको अपने अधीन किया । अन्तमें इन्द्रियविषयों को दुःखद अवगत कर देह-भोगोंसे विरक्त ही दिगम्बर-दीक्षा धारण कर तप चरण किया। समाधिरूपी चक्रसे कर्मशत्रुओंको बिनटकर धर्म चको बने । विविध देशोंमें विहार कर जगतको कल्याणका मार्ग बताया और अधातिया कमीको नष्ट कर मोक्ष प्राप्त किया।
Acharyatulya Kavi Maheendu 16th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 20 May 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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