हैशटैग
#Keshavraj
व्याकरण ग्रन्थ के निर्माताओंमें केशवराजका भी महत्त्वपूर्ण स्थान है । इनका समय ११५० ई० है। इन्होंने 'शब्द मणिदर्पण' नामक ब्याकरण ग्रन्थ लिखा है । इसमें कन्धरूपसे सुत्र लिखे गये हैं। व्याकरण नियमोंके स्पष्टीकरण के लिए उदाहरण प्राचीन कवियोंके गद्य-पद्य ग्रन्थोंसे लिये गये हैं।
अम्गल (ई. सन् १९८९)का 'चन्द्रप्रभपुराण', आच्चण (ई० सन् १९९५) का बर्द्धमानपुराण, बन्धुवर्मा (ई० सन् १२००) का हरिवंशपुराण, पाश्र्वपण्डित (ई० सत् १२०५)का पाश्र्वनाथपुराण, कमलभव (ई० सन् १२३५)का शान्ति स्वरपुराण, मधुर (ई० सन् १३८५)का धर्मनाथपुराण, शान्तिकोलि (ई० सन् १५१९)का शान्तिनाश्चपुराण, दोड्डेय्य (ई० सन् १५५०)का चन्द्रप्रभपुराण, कुमुवेन्तु (ई. सन् १२७५)का रामायण, भास्कर (ई. सन् १४२४ का जीवन्ध रचरित, कल्याणकीति (ई० सन् १४२५)का ज्ञानचन्द्राभ्युदय, बोम्मरस (ई सन् १४८५) का सनत्कुमारचरित, कोटेश्वर (ई० सन् १५००) का जीवन्धर षटपादि पद्यनाम (ई० सन् १५८०)का रामपुराण, चन्द्रम (ई० सन् १६०५)का गोमटेश्वरचरित और बाहुबली (ई० सन् १५६०)का नागकुमारचरित, भट्टा कलंक (ई० सन् १६०४)का शब्दानुशासन, नुपतुंग (ई० सन् ८१४)का कविराज मार्ग, उदयाविय (ई सन् ११५०)का उदयादित्यालंकार, और साल्व (ई० सन् १५५०)के रसरत्नाकर आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध है।
जैनवैद्यक ग्रन्थोंमें सोमनाथ (ई० सन् १९५० का कल्याणकारका, मंगराज (ई० सन् १५५०)का खगेन्द्रमाणदर्पण, श्रीधरदेव (ई० सन् १५००)का वैद्यामत. साल्व ई० सन् १५५०)का वैद्यसांगत्य, देवेन्द्रमुनि (ई० सन् १२००)का बालग्रह चिकित्सा, कीर्तिवर्मा (ई० सन् ११२५)का गोबद्यग्रन्थ उपलब्ध है। ज्योतिष में श्रीधराचार्य (ई. सन् १०४६)का जातकतिलक, शुभचन्द्र (ई सन् १२०० का नरपिंगल और राजादित्य (ई० सन् १९२०)के व्यवहारगणित, क्षेत्रणित, व्यवहाररत्न लीलावतो, चित्रहं सुध और जैनगणितटीकोदाहरण आदि प्रसिद्ध अन्ध* हैं।
कर्नाटककविचरितके सम्पादक नरसिंहाचार्य ने कन्नड़ जैन वाङमयका मुल्यांकन करते हुए लिखा-"जैन हो कन्नड़ भाषाके कवि हैं। आज तककी उपलब्ध सभी प्राचीन एवं श्रेष्ठ कृतियाँ जैन कवियोंको ही है । अन्य रचनामें जैनोंक प्राबल्यका कालही कन्नड़ साहित्यको उन्नत स्थितिका काल मानना होगा। प्राचीन जैन कवि ही कन्नड़ भाषाके सौन्दर्य एवं कान्तिके विशेषतः कारणभूत हैं। उन्होंने शुद्ध और गम्भौर शैली में अन्य रचकर नन्थरचना कौशलको उन्नत स्तरपर पहुँचाया है । प्रारम्भिक कन्नड़ साहित्य उन्हीं की लेखनी द्वारा लिखा गया है। कन्नड़ साहित्यके अध्ययनके सहायभुत छन्द,अलंकार, व्याकरण और कोश आदि ग्रन्थ विशेषत: जेनोंके द्वारा ही रचे गये है।
उपयुक्त बद्धरणसे यह स्पष्ट है कि जैनसाहित्यकारोंने कन्नड़ साहित्यकी महत्ती सेवा की है। काम्य, अलंकार, व्याकरण, छन्द, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित आदि विभिन्न क्षेत्रों में जैनकवियोंने बमूल्य ग्रन्थरत्न प्रदान कर कन्नड़ वाङ्मय को समृद्ध किया है।
व्याकरण ग्रन्थ के निर्माताओंमें केशवराजका भी महत्त्वपूर्ण स्थान है । इनका समय ११५० ई० है। इन्होंने 'शब्द मणिदर्पण' नामक ब्याकरण ग्रन्थ लिखा है । इसमें कन्धरूपसे सुत्र लिखे गये हैं। व्याकरण नियमोंके स्पष्टीकरण के लिए उदाहरण प्राचीन कवियोंके गद्य-पद्य ग्रन्थोंसे लिये गये हैं।
अम्गल (ई. सन् १९८९)का 'चन्द्रप्रभपुराण', आच्चण (ई० सन् १९९५) का बर्द्धमानपुराण, बन्धुवर्मा (ई० सन् १२००) का हरिवंशपुराण, पाश्र्वपण्डित (ई० सत् १२०५)का पाश्र्वनाथपुराण, कमलभव (ई० सन् १२३५)का शान्ति स्वरपुराण, मधुर (ई० सन् १३८५)का धर्मनाथपुराण, शान्तिकोलि (ई० सन् १५१९)का शान्तिनाश्चपुराण, दोड्डेय्य (ई० सन् १५५०)का चन्द्रप्रभपुराण, कुमुवेन्तु (ई. सन् १२७५)का रामायण, भास्कर (ई. सन् १४२४ का जीवन्ध रचरित, कल्याणकीति (ई० सन् १४२५)का ज्ञानचन्द्राभ्युदय, बोम्मरस (ई सन् १४८५) का सनत्कुमारचरित, कोटेश्वर (ई० सन् १५००) का जीवन्धर षटपादि पद्यनाम (ई० सन् १५८०)का रामपुराण, चन्द्रम (ई० सन् १६०५)का गोमटेश्वरचरित और बाहुबली (ई० सन् १५६०)का नागकुमारचरित, भट्टा कलंक (ई० सन् १६०४)का शब्दानुशासन, नुपतुंग (ई० सन् ८१४)का कविराज मार्ग, उदयाविय (ई सन् ११५०)का उदयादित्यालंकार, और साल्व (ई० सन् १५५०)के रसरत्नाकर आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध है।
जैनवैद्यक ग्रन्थोंमें सोमनाथ (ई० सन् १९५० का कल्याणकारका, मंगराज (ई० सन् १५५०)का खगेन्द्रमाणदर्पण, श्रीधरदेव (ई० सन् १५००)का वैद्यामत. साल्व ई० सन् १५५०)का वैद्यसांगत्य, देवेन्द्रमुनि (ई० सन् १२००)का बालग्रह चिकित्सा, कीर्तिवर्मा (ई० सन् ११२५)का गोबद्यग्रन्थ उपलब्ध है। ज्योतिष में श्रीधराचार्य (ई. सन् १०४६)का जातकतिलक, शुभचन्द्र (ई सन् १२०० का नरपिंगल और राजादित्य (ई० सन् १९२०)के व्यवहारगणित, क्षेत्रणित, व्यवहाररत्न लीलावतो, चित्रहं सुध और जैनगणितटीकोदाहरण आदि प्रसिद्ध अन्ध* हैं।
कर्नाटककविचरितके सम्पादक नरसिंहाचार्य ने कन्नड़ जैन वाङमयका मुल्यांकन करते हुए लिखा-"जैन हो कन्नड़ भाषाके कवि हैं। आज तककी उपलब्ध सभी प्राचीन एवं श्रेष्ठ कृतियाँ जैन कवियोंको ही है । अन्य रचनामें जैनोंक प्राबल्यका कालही कन्नड़ साहित्यको उन्नत स्थितिका काल मानना होगा। प्राचीन जैन कवि ही कन्नड़ भाषाके सौन्दर्य एवं कान्तिके विशेषतः कारणभूत हैं। उन्होंने शुद्ध और गम्भौर शैली में अन्य रचकर नन्थरचना कौशलको उन्नत स्तरपर पहुँचाया है । प्रारम्भिक कन्नड़ साहित्य उन्हीं की लेखनी द्वारा लिखा गया है। कन्नड़ साहित्यके अध्ययनके सहायभुत छन्द,अलंकार, व्याकरण और कोश आदि ग्रन्थ विशेषत: जेनोंके द्वारा ही रचे गये है।
उपयुक्त बद्धरणसे यह स्पष्ट है कि जैनसाहित्यकारोंने कन्नड़ साहित्यकी महत्ती सेवा की है। काम्य, अलंकार, व्याकरण, छन्द, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित आदि विभिन्न क्षेत्रों में जैनकवियोंने बमूल्य ग्रन्थरत्न प्रदान कर कन्नड़ वाङ्मय को समृद्ध किया है।
#Keshavraj
आचार्यतुल्य केशवराज 12वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 3 जून 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 3 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
व्याकरण ग्रन्थ के निर्माताओंमें केशवराजका भी महत्त्वपूर्ण स्थान है । इनका समय ११५० ई० है। इन्होंने 'शब्द मणिदर्पण' नामक ब्याकरण ग्रन्थ लिखा है । इसमें कन्धरूपसे सुत्र लिखे गये हैं। व्याकरण नियमोंके स्पष्टीकरण के लिए उदाहरण प्राचीन कवियोंके गद्य-पद्य ग्रन्थोंसे लिये गये हैं।
अम्गल (ई. सन् १९८९)का 'चन्द्रप्रभपुराण', आच्चण (ई० सन् १९९५) का बर्द्धमानपुराण, बन्धुवर्मा (ई० सन् १२००) का हरिवंशपुराण, पाश्र्वपण्डित (ई० सत् १२०५)का पाश्र्वनाथपुराण, कमलभव (ई० सन् १२३५)का शान्ति स्वरपुराण, मधुर (ई० सन् १३८५)का धर्मनाथपुराण, शान्तिकोलि (ई० सन् १५१९)का शान्तिनाश्चपुराण, दोड्डेय्य (ई० सन् १५५०)का चन्द्रप्रभपुराण, कुमुवेन्तु (ई. सन् १२७५)का रामायण, भास्कर (ई. सन् १४२४ का जीवन्ध रचरित, कल्याणकीति (ई० सन् १४२५)का ज्ञानचन्द्राभ्युदय, बोम्मरस (ई सन् १४८५) का सनत्कुमारचरित, कोटेश्वर (ई० सन् १५००) का जीवन्धर षटपादि पद्यनाम (ई० सन् १५८०)का रामपुराण, चन्द्रम (ई० सन् १६०५)का गोमटेश्वरचरित और बाहुबली (ई० सन् १५६०)का नागकुमारचरित, भट्टा कलंक (ई० सन् १६०४)का शब्दानुशासन, नुपतुंग (ई० सन् ८१४)का कविराज मार्ग, उदयाविय (ई सन् ११५०)का उदयादित्यालंकार, और साल्व (ई० सन् १५५०)के रसरत्नाकर आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध है।
जैनवैद्यक ग्रन्थोंमें सोमनाथ (ई० सन् १९५० का कल्याणकारका, मंगराज (ई० सन् १५५०)का खगेन्द्रमाणदर्पण, श्रीधरदेव (ई० सन् १५००)का वैद्यामत. साल्व ई० सन् १५५०)का वैद्यसांगत्य, देवेन्द्रमुनि (ई० सन् १२००)का बालग्रह चिकित्सा, कीर्तिवर्मा (ई० सन् ११२५)का गोबद्यग्रन्थ उपलब्ध है। ज्योतिष में श्रीधराचार्य (ई. सन् १०४६)का जातकतिलक, शुभचन्द्र (ई सन् १२०० का नरपिंगल और राजादित्य (ई० सन् १९२०)के व्यवहारगणित, क्षेत्रणित, व्यवहाररत्न लीलावतो, चित्रहं सुध और जैनगणितटीकोदाहरण आदि प्रसिद्ध अन्ध* हैं।
कर्नाटककविचरितके सम्पादक नरसिंहाचार्य ने कन्नड़ जैन वाङमयका मुल्यांकन करते हुए लिखा-"जैन हो कन्नड़ भाषाके कवि हैं। आज तककी उपलब्ध सभी प्राचीन एवं श्रेष्ठ कृतियाँ जैन कवियोंको ही है । अन्य रचनामें जैनोंक प्राबल्यका कालही कन्नड़ साहित्यको उन्नत स्थितिका काल मानना होगा। प्राचीन जैन कवि ही कन्नड़ भाषाके सौन्दर्य एवं कान्तिके विशेषतः कारणभूत हैं। उन्होंने शुद्ध और गम्भौर शैली में अन्य रचकर नन्थरचना कौशलको उन्नत स्तरपर पहुँचाया है । प्रारम्भिक कन्नड़ साहित्य उन्हीं की लेखनी द्वारा लिखा गया है। कन्नड़ साहित्यके अध्ययनके सहायभुत छन्द,अलंकार, व्याकरण और कोश आदि ग्रन्थ विशेषत: जेनोंके द्वारा ही रचे गये है।
उपयुक्त बद्धरणसे यह स्पष्ट है कि जैनसाहित्यकारोंने कन्नड़ साहित्यकी महत्ती सेवा की है। काम्य, अलंकार, व्याकरण, छन्द, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित आदि विभिन्न क्षेत्रों में जैनकवियोंने बमूल्य ग्रन्थरत्न प्रदान कर कन्नड़ वाङ्मय को समृद्ध किया है।
Acharyatulya Keshavraj 12th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 3 June 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
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15000
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