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#KunwarlalPrachin
कुंवरलाल बनारसीदासके अभिन्न मित्र थे। इन्होंने सूक्तिमुक्तावलीका पद्यानुवाद बनारसीदासके साथ मिलकर किया है। इस पचानुवादसे उनको काव्यप्रतिभाका परिचय प्राप्त होता है। सोमप्रभने संस्कृत-भाषामें सूक्ति मुक्तावलीकी रचना की थी। इसोका पद्यबद्ध हिन्दी अनुवाद इन्होंने किया है। यह समस्त काव्य मानवजीवनको परिष्कृत करने वाला है। कविने संस्कृत पन्धका आधार ग्रहणकर भी अपनी मौलिकताको अक्षुण्ण रखा है। वह समस्त दोषोंकी खानि अहंकारको मानता है। मनुष्य 'अहं' प्रवृत्तिके अधीन होकर दूसरोंको अवहेलना करता है । अपनेको बड़ा और दूसरेको तुच्छ या लघु सम झता है । समस्त दोष इस एक ही जनों लिवा करतो है नापि नहता है कि इस अभिमानसे ही विपत्तिकी सरिता कल-कल ध्वनि करती हुई चारों ओर प्रवाहित होती है। इस नदीको पारा इतनी प्रखर है कि जिससे यह एक भी गुणनामको अपने पूरमें बहाये बिना नहीं छोड़ती । 'अहं' भाव विशाल पर्वतके तुल्य है । कुबुद्धि और माया उसकी गुफाएं हैं। हिंसक बुद्धि धूम्ररेखाके समान है और क्रोध दावानलके तुल्य है । कवि कहता है
जात निकस विपत्ति-सरिता सब, जगमें फैल रही चहुँ ओर ।
जाफे ठिग गुण-नाम नाम नहिं , माया कुमति गुफा अति घोर ॥
जह बध-बुद्धि धूमरेखा सम, उदित कोप दावानल जोर ।
सो अभिमान-पहार पठंतर, सजत ताहि सर्वज्ञ किशोर ।।
कुंवरलाल बनारसीदासके अभिन्न मित्र थे। इन्होंने सूक्तिमुक्तावलीका पद्यानुवाद बनारसीदासके साथ मिलकर किया है। इस पचानुवादसे उनको काव्यप्रतिभाका परिचय प्राप्त होता है। सोमप्रभने संस्कृत-भाषामें सूक्ति मुक्तावलीकी रचना की थी। इसोका पद्यबद्ध हिन्दी अनुवाद इन्होंने किया है। यह समस्त काव्य मानवजीवनको परिष्कृत करने वाला है। कविने संस्कृत पन्धका आधार ग्रहणकर भी अपनी मौलिकताको अक्षुण्ण रखा है। वह समस्त दोषोंकी खानि अहंकारको मानता है। मनुष्य 'अहं' प्रवृत्तिके अधीन होकर दूसरोंको अवहेलना करता है । अपनेको बड़ा और दूसरेको तुच्छ या लघु सम झता है । समस्त दोष इस एक ही जनों लिवा करतो है नापि नहता है कि इस अभिमानसे ही विपत्तिकी सरिता कल-कल ध्वनि करती हुई चारों ओर प्रवाहित होती है। इस नदीको पारा इतनी प्रखर है कि जिससे यह एक भी गुणनामको अपने पूरमें बहाये बिना नहीं छोड़ती । 'अहं' भाव विशाल पर्वतके तुल्य है । कुबुद्धि और माया उसकी गुफाएं हैं। हिंसक बुद्धि धूम्ररेखाके समान है और क्रोध दावानलके तुल्य है । कवि कहता है
जात निकस विपत्ति-सरिता सब, जगमें फैल रही चहुँ ओर ।
जाफे ठिग गुण-नाम नाम नहिं , माया कुमति गुफा अति घोर ॥
जह बध-बुद्धि धूमरेखा सम, उदित कोप दावानल जोर ।
सो अभिमान-पहार पठंतर, सजत ताहि सर्वज्ञ किशोर ।।
#KunwarlalPrachin
आचार्यतुल्य कुँवरलाल (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 28 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 28 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कुंवरलाल बनारसीदासके अभिन्न मित्र थे। इन्होंने सूक्तिमुक्तावलीका पद्यानुवाद बनारसीदासके साथ मिलकर किया है। इस पचानुवादसे उनको काव्यप्रतिभाका परिचय प्राप्त होता है। सोमप्रभने संस्कृत-भाषामें सूक्ति मुक्तावलीकी रचना की थी। इसोका पद्यबद्ध हिन्दी अनुवाद इन्होंने किया है। यह समस्त काव्य मानवजीवनको परिष्कृत करने वाला है। कविने संस्कृत पन्धका आधार ग्रहणकर भी अपनी मौलिकताको अक्षुण्ण रखा है। वह समस्त दोषोंकी खानि अहंकारको मानता है। मनुष्य 'अहं' प्रवृत्तिके अधीन होकर दूसरोंको अवहेलना करता है । अपनेको बड़ा और दूसरेको तुच्छ या लघु सम झता है । समस्त दोष इस एक ही जनों लिवा करतो है नापि नहता है कि इस अभिमानसे ही विपत्तिकी सरिता कल-कल ध्वनि करती हुई चारों ओर प्रवाहित होती है। इस नदीको पारा इतनी प्रखर है कि जिससे यह एक भी गुणनामको अपने पूरमें बहाये बिना नहीं छोड़ती । 'अहं' भाव विशाल पर्वतके तुल्य है । कुबुद्धि और माया उसकी गुफाएं हैं। हिंसक बुद्धि धूम्ररेखाके समान है और क्रोध दावानलके तुल्य है । कवि कहता है
जात निकस विपत्ति-सरिता सब, जगमें फैल रही चहुँ ओर ।
जाफे ठिग गुण-नाम नाम नहिं , माया कुमति गुफा अति घोर ॥
जह बध-बुद्धि धूमरेखा सम, उदित कोप दावानल जोर ।
सो अभिमान-पहार पठंतर, सजत ताहि सर्वज्ञ किशोर ।।
Acharyatulya Kunwarlal (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 28 May 2022
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