हैशटैग
#Padmsundar
निo संभको १७वीं शसी में पद्मसुन्दर नामके अच्छे संस्कृत-कवि हुए हैं। पं० पघसुन्दर आनन्दमेरु प्रशिष्य और पं० पद्ममेरुके शिष्य थे । कविने स्वयं अपने को और अपने भरूको पंडित लिम्बा है। इससे यह अनुमान होता है कि पं० पपसुन्दर गद्दीघर भट्टारकके पाण्डेय या पंडित शिष्य रहे होंगे। भट्टारकोंकी गरिमों पर कुलपडित षिष्य रहते थे, जो अपने गुरु भट्टारककी मृत्यु के पश्चात् भट्टारकपद सो प्राप्त नहीं करते थे। पर वे स्वयं अपनी परिसपरम्परा चलाने रूपये । और उतनात् उनके लियप्रतिशिस्य पंडित कहलाते थे ।
. 'भाषासरित' की रचना की है। और इस ग्रंषके मास मैं जो प्रशस्ति अंकित की गई है उसमें काष्ठासंघ, माथुरान्वय और पुष्करगम के भट्रारकों की परम्परा भी मंकित है। कविके आश्रयदाता और प्रेम रबनेकी प्रेरणा करनेवाले साहू राल इन्हीं भट्टारकोंको आम्नायके थे।
ग्रंग रोकी प्रेरणा महें 'परस्थावर' में उस समयके प्रसिद्ध पनी साहू राब मल्लको प्रार्थनाले प्राप्त हुई थी। वह 'चरस्थावर' मुजफ्फरनगर जिलेका बतं. भान 'चरथावल' नान पड़ता है।
दादा गुरु | आनन्दमेरु |
गुरु | पद्ममेरु |
पं० पद्मसुन्दरने अपने ग्रन्थों में रखनाकालका अंकन किया है । अतः इनके स्थितिकालके सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त करना कठिन नहीं है। प्रशस्तिके अनुसार भविष्यदत्तचरितका रचनाकाल कार्तिक शुक्ला पंचमी वि सं० १९९४ और रायमल्लाभ्युदयका रचनाकाल ज्येष्ठ शुक्ला पंचमो वि० सं०१६१५ है। अतएव पं० पद्मसुन्दरका समय वि० सं० की १७वीं शती निश्चित है।
पं० पामसुन्दरको दो ही रचनाएं उपलब्ध हैं-भविष्यदत्तरित और राय मल्लाभ्युदयमहाकाव्य । भविष्यदत्तचरितमें पुण्यपुरुष भविष्यदलकी कथा अंकित है। श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीकी सूमनाके अनुसार फाल्गुन शुक्ला सप्तमी वि० सं० १६१५ की लिखित भविष्यदत्तचरितकी अपूर्ण प्रति बंबईके ऐलक पन्नालाल सरस्वतीभवनमें विद्यमान है । भविष्यक्तको कथा पांच सगों या परिच्छेदोंमें विभक्त है।
रायमल्लाभ्युदयमहाकाव्यमें २५ सगे हैं। इसमें २४ तीर्थंकरोंके जीवनवृत्त गुम्फित किये गये हैं। ग्रंथका प्रारंभिक अंश और अन्त्यप्रशस्ति इतिहासकी दृष्टिसे लपयोगी है । ग्रंथके अन्त में पुष्पिकावाश्य निम्नप्रकार लिखा गया है
"इति श्रीपरमापुरुषचविंशतितीर्थकरगुणानुवादचरिते पं. श्रीपद्म मेविनेये पं पद्मसुन्दरविरचिते बर्द्धमानजिनचरितमंगलकीसनं नाम पंच विश: सर्ग: ।"
निo संभको १७वीं शसी में पद्मसुन्दर नामके अच्छे संस्कृत-कवि हुए हैं। पं० पघसुन्दर आनन्दमेरु प्रशिष्य और पं० पद्ममेरुके शिष्य थे । कविने स्वयं अपने को और अपने भरूको पंडित लिम्बा है। इससे यह अनुमान होता है कि पं० पपसुन्दर गद्दीघर भट्टारकके पाण्डेय या पंडित शिष्य रहे होंगे। भट्टारकोंकी गरिमों पर कुलपडित षिष्य रहते थे, जो अपने गुरु भट्टारककी मृत्यु के पश्चात् भट्टारकपद सो प्राप्त नहीं करते थे। पर वे स्वयं अपनी परिसपरम्परा चलाने रूपये । और उतनात् उनके लियप्रतिशिस्य पंडित कहलाते थे ।
. 'भाषासरित' की रचना की है। और इस ग्रंषके मास मैं जो प्रशस्ति अंकित की गई है उसमें काष्ठासंघ, माथुरान्वय और पुष्करगम के भट्रारकों की परम्परा भी मंकित है। कविके आश्रयदाता और प्रेम रबनेकी प्रेरणा करनेवाले साहू राल इन्हीं भट्टारकोंको आम्नायके थे।
ग्रंग रोकी प्रेरणा महें 'परस्थावर' में उस समयके प्रसिद्ध पनी साहू राब मल्लको प्रार्थनाले प्राप्त हुई थी। वह 'चरस्थावर' मुजफ्फरनगर जिलेका बतं. भान 'चरथावल' नान पड़ता है।
दादा गुरु | आनन्दमेरु |
गुरु | पद्ममेरु |
पं० पद्मसुन्दरने अपने ग्रन्थों में रखनाकालका अंकन किया है । अतः इनके स्थितिकालके सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त करना कठिन नहीं है। प्रशस्तिके अनुसार भविष्यदत्तचरितका रचनाकाल कार्तिक शुक्ला पंचमी वि सं० १९९४ और रायमल्लाभ्युदयका रचनाकाल ज्येष्ठ शुक्ला पंचमो वि० सं०१६१५ है। अतएव पं० पद्मसुन्दरका समय वि० सं० की १७वीं शती निश्चित है।
पं० पामसुन्दरको दो ही रचनाएं उपलब्ध हैं-भविष्यदत्तरित और राय मल्लाभ्युदयमहाकाव्य । भविष्यदत्तचरितमें पुण्यपुरुष भविष्यदलकी कथा अंकित है। श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीकी सूमनाके अनुसार फाल्गुन शुक्ला सप्तमी वि० सं० १६१५ की लिखित भविष्यदत्तचरितकी अपूर्ण प्रति बंबईके ऐलक पन्नालाल सरस्वतीभवनमें विद्यमान है । भविष्यक्तको कथा पांच सगों या परिच्छेदोंमें विभक्त है।
रायमल्लाभ्युदयमहाकाव्यमें २५ सगे हैं। इसमें २४ तीर्थंकरोंके जीवनवृत्त गुम्फित किये गये हैं। ग्रंथका प्रारंभिक अंश और अन्त्यप्रशस्ति इतिहासकी दृष्टिसे लपयोगी है । ग्रंथके अन्त में पुष्पिकावाश्य निम्नप्रकार लिखा गया है
"इति श्रीपरमापुरुषचविंशतितीर्थकरगुणानुवादचरिते पं. श्रीपद्म मेविनेये पं पद्मसुन्दरविरचिते बर्द्धमानजिनचरितमंगलकीसनं नाम पंच विश: सर्ग: ।"
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आचार्यतुल्य पद्मसुन्दर 17वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 10 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 10 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
निo संभको १७वीं शसी में पद्मसुन्दर नामके अच्छे संस्कृत-कवि हुए हैं। पं० पघसुन्दर आनन्दमेरु प्रशिष्य और पं० पद्ममेरुके शिष्य थे । कविने स्वयं अपने को और अपने भरूको पंडित लिम्बा है। इससे यह अनुमान होता है कि पं० पपसुन्दर गद्दीघर भट्टारकके पाण्डेय या पंडित शिष्य रहे होंगे। भट्टारकोंकी गरिमों पर कुलपडित षिष्य रहते थे, जो अपने गुरु भट्टारककी मृत्यु के पश्चात् भट्टारकपद सो प्राप्त नहीं करते थे। पर वे स्वयं अपनी परिसपरम्परा चलाने रूपये । और उतनात् उनके लियप्रतिशिस्य पंडित कहलाते थे ।
. 'भाषासरित' की रचना की है। और इस ग्रंषके मास मैं जो प्रशस्ति अंकित की गई है उसमें काष्ठासंघ, माथुरान्वय और पुष्करगम के भट्रारकों की परम्परा भी मंकित है। कविके आश्रयदाता और प्रेम रबनेकी प्रेरणा करनेवाले साहू राल इन्हीं भट्टारकोंको आम्नायके थे।
ग्रंग रोकी प्रेरणा महें 'परस्थावर' में उस समयके प्रसिद्ध पनी साहू राब मल्लको प्रार्थनाले प्राप्त हुई थी। वह 'चरस्थावर' मुजफ्फरनगर जिलेका बतं. भान 'चरथावल' नान पड़ता है।
दादा गुरु | आनन्दमेरु |
गुरु | पद्ममेरु |
पं० पद्मसुन्दरने अपने ग्रन्थों में रखनाकालका अंकन किया है । अतः इनके स्थितिकालके सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त करना कठिन नहीं है। प्रशस्तिके अनुसार भविष्यदत्तचरितका रचनाकाल कार्तिक शुक्ला पंचमी वि सं० १९९४ और रायमल्लाभ्युदयका रचनाकाल ज्येष्ठ शुक्ला पंचमो वि० सं०१६१५ है। अतएव पं० पद्मसुन्दरका समय वि० सं० की १७वीं शती निश्चित है।
पं० पामसुन्दरको दो ही रचनाएं उपलब्ध हैं-भविष्यदत्तरित और राय मल्लाभ्युदयमहाकाव्य । भविष्यदत्तचरितमें पुण्यपुरुष भविष्यदलकी कथा अंकित है। श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीकी सूमनाके अनुसार फाल्गुन शुक्ला सप्तमी वि० सं० १६१५ की लिखित भविष्यदत्तचरितकी अपूर्ण प्रति बंबईके ऐलक पन्नालाल सरस्वतीभवनमें विद्यमान है । भविष्यक्तको कथा पांच सगों या परिच्छेदोंमें विभक्त है।
रायमल्लाभ्युदयमहाकाव्यमें २५ सगे हैं। इसमें २४ तीर्थंकरोंके जीवनवृत्त गुम्फित किये गये हैं। ग्रंथका प्रारंभिक अंश और अन्त्यप्रशस्ति इतिहासकी दृष्टिसे लपयोगी है । ग्रंथके अन्त में पुष्पिकावाश्य निम्नप्रकार लिखा गया है
"इति श्रीपरमापुरुषचविंशतितीर्थकरगुणानुवादचरिते पं. श्रीपद्म मेविनेये पं पद्मसुन्दरविरचिते बर्द्धमानजिनचरितमंगलकीसनं नाम पंच विश: सर्ग: ।"
Acharyatulya Padmsundar 17th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 10 April 2022
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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