हैशटैग
#DaulatramPrachin
कासलीवाल पं० दौलतरामजी कासलीवालका जन्म वि० सं० १७४५में बसवा ग्राममेंहुआ था। इनके पिताका नाम आनन्दराम था | जाति खण्डेलवाल और गोत्र कासलीवाल था | जयपुरके महाराजसे इनका विशेष परिचय था । ये उदयपुर राज्य जमपुरके वकील वरद गौर हाँ, नषों तक रहे । संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। हिन्दी-गद्य साहित्यके क्षेत्रमें सबसे पहली रचना इन्हीं दौलतरामकी उपलब्ध है।
ये दौलतराम पं० टोडरमल, रायमल आदिके समकालीन थे | संस्कृत, हिन्दी और अपभ्रश इन तीनों ही भाषाओं के विद्वान थे। इसका समय बिक्रम को १८वीं शतीका अंतिम भाग और १९वीं शतोका पूर्वाद्ध है । इन्होंने निम्न लिखित रचनाए लिखो हैं
१. पुण्यानववनिका (वि० सं० १७७७), २. क्रियाकोषभाषा वि. १९१५) ३. आदिपुराणवनिका (सं० १८२४), ४, हरिवंशपुराण (सं. १८२९), ५. परमात्मप्रकाशव नका, ६. श्रीपालचरित (सं. १८५२), ७. अध्यात्मवाराखड़ी वि. सं. १७९८), ८. वसुनन्दीश्रावकाचार टन्या (वि.सं. १८१८), ९, पदमपुराणवनिका (सं० १८२३), १०. विवेकविलास (वि० सं० १८२५), ११. तत्वार्थ सूत्रभाषा, १२. चौबीसदण्डक, १३. सिद्धपुजा, १४. आत्मबत्तीसी, १५. सारसमुच्चय,१६. जीवंधरचरित (वि० सं० १८०५), १७.पुरुषार्थ सिद्धयपाय जो पं० टोडरमल पूर्ण नहीं कर पाये थे।
कविने पदमपुराणवनिकामें अपना परिचय देते हुए लिखा है कि राय मल्ल साधर्मी भाईकी प्रेरणासे इस ग्रन्थको बचनिका लिखी जा रही है। लिखा है
जम्बूद्वीप सदा शुभ पान | भरत क्षेत्र ता माहिं प्रमाण ॥
उसमें आरजखंड पुनीत । बसें ताहि में लोक विनीत ।।३।।
तिनके मध्य टुंढार जु देश । निवस जैनी लोक विशेष ।।
नगर सवाई जयपुर महा । तासकी उपमा जापं न कहा ।।२।।
राज्य करै माधव नृप जहां । कामदार जैनी जन तहां !!
छोर-ठोर जिनमंदिर बने । पूजे तिनकुं भविजन घने
बसें महाजन नाना जाति । सेबै निजमारग बहु न्याति ।।
रायमल्ल साधी एक | जाके घट में स्वपर-विवेक ॥४॥
दयावन्त गुणवन्त सुजान । पर-उपकारी परम निधान ।।
दौलतराम सु ताको मित्र । तासों भाष्यों बचन पवित्र ।।५।।
पद्मपुराण महाशुभ अन्थ । तामें लोकशिखरको पन्थ ॥
भाषारूप होय जो येह । बहुजन बांच करें अति नेह ॥६॥
साके वचन हियेमें पार । भाषा कीनी मति अनुसार ॥
रविषणाचारण-कृत्त सार । जाहि पढे बुधजन गणधार
राणा अिनमिनको आशा लय । जिनधासन माहों चित दय ।।
आनन्दसुतने भाषा करी । नंदो विरदो अति रस भरी ॥८॥
सम्बत् अष्टादश शत जान । ता ऊपर तेईस बखान (१८२३) ।।
शुक्ल पक्ष नवमी शनिवार | माघ मास रोहिणी ऋख सार ॥१०॥
कासलीवाल पं० दौलतरामजी कासलीवालका जन्म वि० सं० १७४५में बसवा ग्राममेंहुआ था। इनके पिताका नाम आनन्दराम था | जाति खण्डेलवाल और गोत्र कासलीवाल था | जयपुरके महाराजसे इनका विशेष परिचय था । ये उदयपुर राज्य जमपुरके वकील वरद गौर हाँ, नषों तक रहे । संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। हिन्दी-गद्य साहित्यके क्षेत्रमें सबसे पहली रचना इन्हीं दौलतरामकी उपलब्ध है।
ये दौलतराम पं० टोडरमल, रायमल आदिके समकालीन थे | संस्कृत, हिन्दी और अपभ्रश इन तीनों ही भाषाओं के विद्वान थे। इसका समय बिक्रम को १८वीं शतीका अंतिम भाग और १९वीं शतोका पूर्वाद्ध है । इन्होंने निम्न लिखित रचनाए लिखो हैं
१. पुण्यानववनिका (वि० सं० १७७७), २. क्रियाकोषभाषा वि. १९१५) ३. आदिपुराणवनिका (सं० १८२४), ४, हरिवंशपुराण (सं. १८२९), ५. परमात्मप्रकाशव नका, ६. श्रीपालचरित (सं. १८५२), ७. अध्यात्मवाराखड़ी वि. सं. १७९८), ८. वसुनन्दीश्रावकाचार टन्या (वि.सं. १८१८), ९, पदमपुराणवनिका (सं० १८२३), १०. विवेकविलास (वि० सं० १८२५), ११. तत्वार्थ सूत्रभाषा, १२. चौबीसदण्डक, १३. सिद्धपुजा, १४. आत्मबत्तीसी, १५. सारसमुच्चय,१६. जीवंधरचरित (वि० सं० १८०५), १७.पुरुषार्थ सिद्धयपाय जो पं० टोडरमल पूर्ण नहीं कर पाये थे।
कविने पदमपुराणवनिकामें अपना परिचय देते हुए लिखा है कि राय मल्ल साधर्मी भाईकी प्रेरणासे इस ग्रन्थको बचनिका लिखी जा रही है। लिखा है
जम्बूद्वीप सदा शुभ पान | भरत क्षेत्र ता माहिं प्रमाण ॥
उसमें आरजखंड पुनीत । बसें ताहि में लोक विनीत ।।३।।
तिनके मध्य टुंढार जु देश । निवस जैनी लोक विशेष ।।
नगर सवाई जयपुर महा । तासकी उपमा जापं न कहा ।।२।।
राज्य करै माधव नृप जहां । कामदार जैनी जन तहां !!
छोर-ठोर जिनमंदिर बने । पूजे तिनकुं भविजन घने
बसें महाजन नाना जाति । सेबै निजमारग बहु न्याति ।।
रायमल्ल साधी एक | जाके घट में स्वपर-विवेक ॥४॥
दयावन्त गुणवन्त सुजान । पर-उपकारी परम निधान ।।
दौलतराम सु ताको मित्र । तासों भाष्यों बचन पवित्र ।।५।।
पद्मपुराण महाशुभ अन्थ । तामें लोकशिखरको पन्थ ॥
भाषारूप होय जो येह । बहुजन बांच करें अति नेह ॥६॥
साके वचन हियेमें पार । भाषा कीनी मति अनुसार ॥
रविषणाचारण-कृत्त सार । जाहि पढे बुधजन गणधार
राणा अिनमिनको आशा लय । जिनधासन माहों चित दय ।।
आनन्दसुतने भाषा करी । नंदो विरदो अति रस भरी ॥८॥
सम्बत् अष्टादश शत जान । ता ऊपर तेईस बखान (१८२३) ।।
शुक्ल पक्ष नवमी शनिवार | माघ मास रोहिणी ऋख सार ॥१०॥
#DaulatramPrachin
आचार्यतुल्य पंडित दौलतराम 18वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 29 मई 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 29 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कासलीवाल पं० दौलतरामजी कासलीवालका जन्म वि० सं० १७४५में बसवा ग्राममेंहुआ था। इनके पिताका नाम आनन्दराम था | जाति खण्डेलवाल और गोत्र कासलीवाल था | जयपुरके महाराजसे इनका विशेष परिचय था । ये उदयपुर राज्य जमपुरके वकील वरद गौर हाँ, नषों तक रहे । संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। हिन्दी-गद्य साहित्यके क्षेत्रमें सबसे पहली रचना इन्हीं दौलतरामकी उपलब्ध है।
ये दौलतराम पं० टोडरमल, रायमल आदिके समकालीन थे | संस्कृत, हिन्दी और अपभ्रश इन तीनों ही भाषाओं के विद्वान थे। इसका समय बिक्रम को १८वीं शतीका अंतिम भाग और १९वीं शतोका पूर्वाद्ध है । इन्होंने निम्न लिखित रचनाए लिखो हैं
१. पुण्यानववनिका (वि० सं० १७७७), २. क्रियाकोषभाषा वि. १९१५) ३. आदिपुराणवनिका (सं० १८२४), ४, हरिवंशपुराण (सं. १८२९), ५. परमात्मप्रकाशव नका, ६. श्रीपालचरित (सं. १८५२), ७. अध्यात्मवाराखड़ी वि. सं. १७९८), ८. वसुनन्दीश्रावकाचार टन्या (वि.सं. १८१८), ९, पदमपुराणवनिका (सं० १८२३), १०. विवेकविलास (वि० सं० १८२५), ११. तत्वार्थ सूत्रभाषा, १२. चौबीसदण्डक, १३. सिद्धपुजा, १४. आत्मबत्तीसी, १५. सारसमुच्चय,१६. जीवंधरचरित (वि० सं० १८०५), १७.पुरुषार्थ सिद्धयपाय जो पं० टोडरमल पूर्ण नहीं कर पाये थे।
कविने पदमपुराणवनिकामें अपना परिचय देते हुए लिखा है कि राय मल्ल साधर्मी भाईकी प्रेरणासे इस ग्रन्थको बचनिका लिखी जा रही है। लिखा है
जम्बूद्वीप सदा शुभ पान | भरत क्षेत्र ता माहिं प्रमाण ॥
उसमें आरजखंड पुनीत । बसें ताहि में लोक विनीत ।।३।।
तिनके मध्य टुंढार जु देश । निवस जैनी लोक विशेष ।।
नगर सवाई जयपुर महा । तासकी उपमा जापं न कहा ।।२।।
राज्य करै माधव नृप जहां । कामदार जैनी जन तहां !!
छोर-ठोर जिनमंदिर बने । पूजे तिनकुं भविजन घने
बसें महाजन नाना जाति । सेबै निजमारग बहु न्याति ।।
रायमल्ल साधी एक | जाके घट में स्वपर-विवेक ॥४॥
दयावन्त गुणवन्त सुजान । पर-उपकारी परम निधान ।।
दौलतराम सु ताको मित्र । तासों भाष्यों बचन पवित्र ।।५।।
पद्मपुराण महाशुभ अन्थ । तामें लोकशिखरको पन्थ ॥
भाषारूप होय जो येह । बहुजन बांच करें अति नेह ॥६॥
साके वचन हियेमें पार । भाषा कीनी मति अनुसार ॥
रविषणाचारण-कृत्त सार । जाहि पढे बुधजन गणधार
राणा अिनमिनको आशा लय । जिनधासन माहों चित दय ।।
आनन्दसुतने भाषा करी । नंदो विरदो अति रस भरी ॥८॥
सम्बत् अष्टादश शत जान । ता ऊपर तेईस बखान (१८२३) ।।
शुक्ल पक्ष नवमी शनिवार | माघ मास रोहिणी ऋख सार ॥१०॥
Acharyatulya Pandit Daulatram 18th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 29 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#DaulatramPrachin
15000
#DaulatramPrachin
DaulatramPrachin
You cannot copy content of this page