हैशटैग
#Vamdev
पं० वामदेव मूल संघके भट्टारक विनयचन्द्र के शिष्य लोवयकीतिक प्रक्षि'. और मान लक्ष्मीचन्द्र शिष्य थे। पं० वामदेवका कुल नैगम था । निगम कूल कायस्थोंका है। इससे स्पष्ट है कि पं० वामदेव कायस्थ थे । वाम देव प्रतिष्टादि कर्मकाण्डोंके ज्ञाता और जिनभक्तिमें तत्पर थे।'
दादा गुरु | त्रैलोक्य कीर्ति |
गुरु | भट्टारक विनयचन्द्र |
इन्होंने नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके त्रिलोकसारको देखकर त्रैलोक्य दीपक ग्रंथको रचना की है। इस प्रथम रखना, प्रेरक पुरवाड बंशाके कामदेव प्रसिद्ध थे। उनकी पत्नी का नाम नामदेवी था, जिसने राम-लक्ष्मणके समान जोमन और लक्ष्मण नामक दो पुत्र उत्पन्न किये थे। इनमें जोमनका पुत्र नेमिन देव नामका था, जो गुणभषण और सम्यक्त्वसे विभूपित था । वह बड़ा उदार, न्यायी ओर दानी था। कामदेवकी प्रार्थनासे ही त्रैलोक्यदीपकको रचना सम्पन्न हुई है।
वामदेवका स्थितिकाल निश्चितरूपसे नहीं बतलाया जा सकता है। अलोक्यदीपक ग्रन्थकी एक प्राचीन प्रति वि सं० १४३६में फिरोजशाह तुगलकाले समय योगिनीपुर (दिल्ली) में लिखी गई मिली है। यह प्रति अतिशय क्षेत्र महावीरजीके शास्त्र-भण्डारमें विद्यमान है, जिससे इस ग्रन्थका रचना काल वि० सं० १४२६के बाद नहीं हो सकता है | बहुत संभव है कि पं० बाम देव वि० सं० १४३ के आस-पास जीवित रहे हों। अतएव वामदेवका समय वि० को १५वीं शती है।
पं० वामदेवको दो रचनाए 'लोनयदीपक' और 'भावसंग्रह' उपलब्ध हैं। 'भावसंग्रह में १७८२ पद्य है। इस ग्रन्थके अन्तमें प्रशस्ति भी दी हुई है । इस प्रशस्तिके आधारगर पं० वामदेवके गुरु मुनि लक्ष्मीचन्द्र थे। 'भावसंग्रह' की रचना देवसेनके प्राकृत भावसंग्रहके आधारपर ही हुई
१. भयान्यजनस्य विश्वहितः श्रीमूलरांत्रः श्रिय
यथाभूनियेन्दुरहतगुणः गच्छीलदुग्धार्णयः ।
सच्छिष्पोजनि भद्रमूति:मलस्त्रलोकचकौलिः शशी ।
यनकान्तमहातग: प्रशमितं स्यावादविद्याकरः ।।७७९||
तच्छिन्यः क्षितिमण्डले विजयले लक्ष्मीन्दुनामा मुनिः ।।७८०||
भी मतपत्रज्ञपूजाकरणपरिणतस्तत्वचिन्तारसालो
लक्ष्मीचन्दांत्रिपद्ममधुकरः श्रोवामदेचः सुधीः ।
उत्पत्तिर्यस्य जाता शशिविशदकुले नैगमधी विशाले
सोऽय जीव्यात्नकामं जगति रमलसद्भावशास्त्रप्रणेता ||५८१
प्रतीत होती है। यह प्राकृत भावसंग्रहका संस्कृत अनुवाद प्रतीत होता है । यद्यपि वामदेवने स्थान-स्थानपर परिवर्तन, परिवर्द्धन और संशोधन भी किये हैं। पर यह स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है। यह देवसेन द्वारा रचित्त भावसंग्रहका रूपान्तर मात्र है । वामदेवने 'उक्तं च' कहकर ग्रन्थान्तरोंके उद्धरण भी प्रस्तुत किये हैं | गीताके उद्धरण कई स्थलोपर प्राप्त होते हैं । वैदिकपुराणासे भी उद्धरण ग्रहण किये गये हैं। नित्यकान्त, क्षणिकान्त, नास्तिकवाद, वैयमिथ्यात्व, अज्ञान, केबलि-भुक्ति, स्त्री-मोक्ष, सग्रंथ-मोक्ष की समीक्षाके पश्चात १४ गुण स्थानोंका स्वरूप और ११ प्रतिमाओंके लक्षण प्रतिपादित किये गये हैं । इज्या, दत्ति, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, संयम, सप आदिका कथन आया है।
भावसंग्रहके अतिरिक्त बामदेवके द्वारा रचित निम्नलिखित ग्रन्थ और भी मिलते हैं
१. प्रतिष्ठासूषितसंग्रह
२. तत्त्वार्थसार
३. लोक्यदीपक
४. श्रुतज्ञानोद्यापन
५. त्रिलोकसारपूजा
६. मन्दिरसंस्कारपूजा
पं० वामदेव मूल संघके भट्टारक विनयचन्द्र के शिष्य लोवयकीतिक प्रक्षि'. और मान लक्ष्मीचन्द्र शिष्य थे। पं० वामदेवका कुल नैगम था । निगम कूल कायस्थोंका है। इससे स्पष्ट है कि पं० वामदेव कायस्थ थे । वाम देव प्रतिष्टादि कर्मकाण्डोंके ज्ञाता और जिनभक्तिमें तत्पर थे।'
दादा गुरु | त्रैलोक्य कीर्ति |
गुरु | भट्टारक विनयचन्द्र |
इन्होंने नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके त्रिलोकसारको देखकर त्रैलोक्य दीपक ग्रंथको रचना की है। इस प्रथम रखना, प्रेरक पुरवाड बंशाके कामदेव प्रसिद्ध थे। उनकी पत्नी का नाम नामदेवी था, जिसने राम-लक्ष्मणके समान जोमन और लक्ष्मण नामक दो पुत्र उत्पन्न किये थे। इनमें जोमनका पुत्र नेमिन देव नामका था, जो गुणभषण और सम्यक्त्वसे विभूपित था । वह बड़ा उदार, न्यायी ओर दानी था। कामदेवकी प्रार्थनासे ही त्रैलोक्यदीपकको रचना सम्पन्न हुई है।
वामदेवका स्थितिकाल निश्चितरूपसे नहीं बतलाया जा सकता है। अलोक्यदीपक ग्रन्थकी एक प्राचीन प्रति वि सं० १४३६में फिरोजशाह तुगलकाले समय योगिनीपुर (दिल्ली) में लिखी गई मिली है। यह प्रति अतिशय क्षेत्र महावीरजीके शास्त्र-भण्डारमें विद्यमान है, जिससे इस ग्रन्थका रचना काल वि० सं० १४२६के बाद नहीं हो सकता है | बहुत संभव है कि पं० बाम देव वि० सं० १४३ के आस-पास जीवित रहे हों। अतएव वामदेवका समय वि० को १५वीं शती है।
पं० वामदेवको दो रचनाए 'लोनयदीपक' और 'भावसंग्रह' उपलब्ध हैं। 'भावसंग्रह में १७८२ पद्य है। इस ग्रन्थके अन्तमें प्रशस्ति भी दी हुई है । इस प्रशस्तिके आधारगर पं० वामदेवके गुरु मुनि लक्ष्मीचन्द्र थे। 'भावसंग्रह' की रचना देवसेनके प्राकृत भावसंग्रहके आधारपर ही हुई
१. भयान्यजनस्य विश्वहितः श्रीमूलरांत्रः श्रिय
यथाभूनियेन्दुरहतगुणः गच्छीलदुग्धार्णयः ।
सच्छिष्पोजनि भद्रमूति:मलस्त्रलोकचकौलिः शशी ।
यनकान्तमहातग: प्रशमितं स्यावादविद्याकरः ।।७७९||
तच्छिन्यः क्षितिमण्डले विजयले लक्ष्मीन्दुनामा मुनिः ।।७८०||
भी मतपत्रज्ञपूजाकरणपरिणतस्तत्वचिन्तारसालो
लक्ष्मीचन्दांत्रिपद्ममधुकरः श्रोवामदेचः सुधीः ।
उत्पत्तिर्यस्य जाता शशिविशदकुले नैगमधी विशाले
सोऽय जीव्यात्नकामं जगति रमलसद्भावशास्त्रप्रणेता ||५८१
प्रतीत होती है। यह प्राकृत भावसंग्रहका संस्कृत अनुवाद प्रतीत होता है । यद्यपि वामदेवने स्थान-स्थानपर परिवर्तन, परिवर्द्धन और संशोधन भी किये हैं। पर यह स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है। यह देवसेन द्वारा रचित्त भावसंग्रहका रूपान्तर मात्र है । वामदेवने 'उक्तं च' कहकर ग्रन्थान्तरोंके उद्धरण भी प्रस्तुत किये हैं | गीताके उद्धरण कई स्थलोपर प्राप्त होते हैं । वैदिकपुराणासे भी उद्धरण ग्रहण किये गये हैं। नित्यकान्त, क्षणिकान्त, नास्तिकवाद, वैयमिथ्यात्व, अज्ञान, केबलि-भुक्ति, स्त्री-मोक्ष, सग्रंथ-मोक्ष की समीक्षाके पश्चात १४ गुण स्थानोंका स्वरूप और ११ प्रतिमाओंके लक्षण प्रतिपादित किये गये हैं । इज्या, दत्ति, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, संयम, सप आदिका कथन आया है।
भावसंग्रहके अतिरिक्त बामदेवके द्वारा रचित निम्नलिखित ग्रन्थ और भी मिलते हैं
१. प्रतिष्ठासूषितसंग्रह
२. तत्त्वार्थसार
३. लोक्यदीपक
४. श्रुतज्ञानोद्यापन
५. त्रिलोकसारपूजा
६. मन्दिरसंस्कारपूजा
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आचार्यतुल्य पंडित श्री १०८ वामदेव 15वीं शताब्दी
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 06 अप्रैल 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 06 April 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
पं० वामदेव मूल संघके भट्टारक विनयचन्द्र के शिष्य लोवयकीतिक प्रक्षि'. और मान लक्ष्मीचन्द्र शिष्य थे। पं० वामदेवका कुल नैगम था । निगम कूल कायस्थोंका है। इससे स्पष्ट है कि पं० वामदेव कायस्थ थे । वाम देव प्रतिष्टादि कर्मकाण्डोंके ज्ञाता और जिनभक्तिमें तत्पर थे।'
दादा गुरु | त्रैलोक्य कीर्ति |
गुरु | भट्टारक विनयचन्द्र |
इन्होंने नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके त्रिलोकसारको देखकर त्रैलोक्य दीपक ग्रंथको रचना की है। इस प्रथम रखना, प्रेरक पुरवाड बंशाके कामदेव प्रसिद्ध थे। उनकी पत्नी का नाम नामदेवी था, जिसने राम-लक्ष्मणके समान जोमन और लक्ष्मण नामक दो पुत्र उत्पन्न किये थे। इनमें जोमनका पुत्र नेमिन देव नामका था, जो गुणभषण और सम्यक्त्वसे विभूपित था । वह बड़ा उदार, न्यायी ओर दानी था। कामदेवकी प्रार्थनासे ही त्रैलोक्यदीपकको रचना सम्पन्न हुई है।
वामदेवका स्थितिकाल निश्चितरूपसे नहीं बतलाया जा सकता है। अलोक्यदीपक ग्रन्थकी एक प्राचीन प्रति वि सं० १४३६में फिरोजशाह तुगलकाले समय योगिनीपुर (दिल्ली) में लिखी गई मिली है। यह प्रति अतिशय क्षेत्र महावीरजीके शास्त्र-भण्डारमें विद्यमान है, जिससे इस ग्रन्थका रचना काल वि० सं० १४२६के बाद नहीं हो सकता है | बहुत संभव है कि पं० बाम देव वि० सं० १४३ के आस-पास जीवित रहे हों। अतएव वामदेवका समय वि० को १५वीं शती है।
पं० वामदेवको दो रचनाए 'लोनयदीपक' और 'भावसंग्रह' उपलब्ध हैं। 'भावसंग्रह में १७८२ पद्य है। इस ग्रन्थके अन्तमें प्रशस्ति भी दी हुई है । इस प्रशस्तिके आधारगर पं० वामदेवके गुरु मुनि लक्ष्मीचन्द्र थे। 'भावसंग्रह' की रचना देवसेनके प्राकृत भावसंग्रहके आधारपर ही हुई
१. भयान्यजनस्य विश्वहितः श्रीमूलरांत्रः श्रिय
यथाभूनियेन्दुरहतगुणः गच्छीलदुग्धार्णयः ।
सच्छिष्पोजनि भद्रमूति:मलस्त्रलोकचकौलिः शशी ।
यनकान्तमहातग: प्रशमितं स्यावादविद्याकरः ।।७७९||
तच्छिन्यः क्षितिमण्डले विजयले लक्ष्मीन्दुनामा मुनिः ।।७८०||
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लक्ष्मीचन्दांत्रिपद्ममधुकरः श्रोवामदेचः सुधीः ।
उत्पत्तिर्यस्य जाता शशिविशदकुले नैगमधी विशाले
सोऽय जीव्यात्नकामं जगति रमलसद्भावशास्त्रप्रणेता ||५८१
प्रतीत होती है। यह प्राकृत भावसंग्रहका संस्कृत अनुवाद प्रतीत होता है । यद्यपि वामदेवने स्थान-स्थानपर परिवर्तन, परिवर्द्धन और संशोधन भी किये हैं। पर यह स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है। यह देवसेन द्वारा रचित्त भावसंग्रहका रूपान्तर मात्र है । वामदेवने 'उक्तं च' कहकर ग्रन्थान्तरोंके उद्धरण भी प्रस्तुत किये हैं | गीताके उद्धरण कई स्थलोपर प्राप्त होते हैं । वैदिकपुराणासे भी उद्धरण ग्रहण किये गये हैं। नित्यकान्त, क्षणिकान्त, नास्तिकवाद, वैयमिथ्यात्व, अज्ञान, केबलि-भुक्ति, स्त्री-मोक्ष, सग्रंथ-मोक्ष की समीक्षाके पश्चात १४ गुण स्थानोंका स्वरूप और ११ प्रतिमाओंके लक्षण प्रतिपादित किये गये हैं । इज्या, दत्ति, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, संयम, सप आदिका कथन आया है।
भावसंग्रहके अतिरिक्त बामदेवके द्वारा रचित निम्नलिखित ग्रन्थ और भी मिलते हैं
१. प्रतिष्ठासूषितसंग्रह
२. तत्त्वार्थसार
३. लोक्यदीपक
४. श्रुतज्ञानोद्यापन
५. त्रिलोकसारपूजा
६. मन्दिरसंस्कारपूजा
Acharyatulya Pandit Vamdev 15th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 06 April 2022
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Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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