हैशटैग
#Tirutakktevar
इन्होंने 'जीवकचिन्तामणि' नामक महाकाव्यको रचना ई० सन्की ७वीं शतीमें की है। यह कवि जैनधर्मावलम्बी था। कहा जाता है कि यह चोल राजाकी बंश परम्परामें हुवा है । कुछ विद्वान् इस काव्यको तमिल काच्योंका पिता मानते हैं। डॉ जो यू० पोपके शब्दों में
This is on the whole the greatest existing Tamil literary mommcat. The great romantic cpic which is at once the iliad and the Odyssey of the Tamil language, is one of the great cpius of the world."
अर्थात् यह काव्य वर्तमान तमिल साहित्यका एक महान स्मारक है । यह अद्भत महाकाव्य तमिलभाषाका एलियर और ओडेसी कहा जा सकता है। यह संसारके महान् काव्यों में से एक है । इसकी रचनाके सम्बन्धमें एक आख्यान प्रचलित है । एक दिन किसीने तिस्तक्कतेवरको लक्ष्यकर कहा-"महाराज ! श्रमणोंको इस संसारके देखनेसे घृणा हो गयो । वे केवल वैराग्यपूर्ण संन्यासी जीवनकी ही प्रशंसा गाते हैं । सांसारिक सुखोंको रुचिकर लूंगसे वर्णन करनेका सामथ्यं श्रमणोंमें दिखलायी नहीं देता।" तिस्तक्कतेवरने उत्तर दिया "तुम्हारा कथन सारहीन है। सांसारिक आनन्दको वर्णन करनेके सामध्यंका अभाव श्रमणोंमें नहीं है। किन्तु कुछ दिन रहनेवाले अनेक रोगोंसे प्रस्त तथा अल्पज्ञानसे युक्त इस जीवनको व्यर्थ किये बिना लोग मुनिमार्ग द्वारा हित सम्पन करें, इसी उद्देश्यसे श्रमणोंने मुनिधर्मकी प्रशंसा की है। सांसारिक आनन्दोंका वर्णन भी काव्यमें सहज सम्भाव्य है। में इसके लिए प्रयास करूंगा।"
तदनन्तर तिकतेवर अपने आचार्यके पास पहुँचकर जीवन भोगोंका वर्णन करनेवाले काव्यका सजन करने के लिये प्रार्थना करने लगा ! गुरुने 'नरी विस्त्सम' एक प्राचीन कथा देकर काव्यरचना करनेका बादेश दिया । सिस्तक्कतेवरने इस नीरस कथाको मनोरंजक काध्यका रूप देकर प्रस्तुत किया, जिससे आचार्य बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने आशीर्वाद देकर 'जीवक चिन्तामणि' काव्य लिखनेका आदेश दिया ।
इस काव्यका नायक जांधकन है । इसके पिताका नाम सत्यसन्ध है । सत्य सन्धने अपना राज्य कट्टियमारन नामक मंत्रीको सौंप कुछ दिनों के लिए विश्राम ले लिया । अवसर प्रासकर कट्टीयगारनने सेनाको अपने अधीन कर राज्य हड़प लिया । सत्यसन्धकी पत्नी विजयाने एक मयूर उपनखटोलेपर चढ़कर अपनी रक्षाकी और श्मशान भूमिमें पुत्रको जन्म दिया । कन्दुकलन नामक व्यक्तिने उस पुत्रको ले जाकर उसका नाम जोवकन् रक्खा और उसका पालन-पोषण करने लगा । जीवकन्ने विद्याध्ययन और युद्धकलामें शोघ्न हो निष्णात होकर राजा होनेके योग्य अर्हताओंको प्राप्त किया । जीवकन्ने अपनी योग्यता प्रदर्शित कर पृथक-पृथक समयमें कन्याओंसे विवाह किया । उसने वंचक कट्टियमारन को जीतकर अपने पिताके खोये हुए राज्यको पुनः हस्तगत किया। उसने बहुत दिनों तक सांसारिक सुख भोगते हुए राज्य शासन चलाया और अन्तमें संन्यास ग्रहण कर मोक्ष प्राप्त किया।
इस काव्य में विचारोंकी महत्ता; साहित्यिक मुहावरोंके सुन्दर प्रयोग और प्रकृतिके सजीव चित्रण विद्यमान हैं। उत्सरवर्ती कवियोंने इस ग्रन्थका पूरा अनुसरण किया है। इस काव्यम १३ अध्धाय और ३१४५ पद्य हैं। निस्सन्देह वर्णन शैलाके गाम्भीर्य और सशक्त अभिव्यञ्जनाके कारण यह काव्य महा काव्यको श्रेणो में परिगणित है।
इन्होंने 'जीवकचिन्तामणि' नामक महाकाव्यको रचना ई० सन्की ७वीं शतीमें की है। यह कवि जैनधर्मावलम्बी था। कहा जाता है कि यह चोल राजाकी बंश परम्परामें हुवा है । कुछ विद्वान् इस काव्यको तमिल काच्योंका पिता मानते हैं। डॉ जो यू० पोपके शब्दों में
This is on the whole the greatest existing Tamil literary mommcat. The great romantic cpic which is at once the iliad and the Odyssey of the Tamil language, is one of the great cpius of the world."
अर्थात् यह काव्य वर्तमान तमिल साहित्यका एक महान स्मारक है । यह अद्भत महाकाव्य तमिलभाषाका एलियर और ओडेसी कहा जा सकता है। यह संसारके महान् काव्यों में से एक है । इसकी रचनाके सम्बन्धमें एक आख्यान प्रचलित है । एक दिन किसीने तिस्तक्कतेवरको लक्ष्यकर कहा-"महाराज ! श्रमणोंको इस संसारके देखनेसे घृणा हो गयो । वे केवल वैराग्यपूर्ण संन्यासी जीवनकी ही प्रशंसा गाते हैं । सांसारिक सुखोंको रुचिकर लूंगसे वर्णन करनेका सामथ्यं श्रमणोंमें दिखलायी नहीं देता।" तिस्तक्कतेवरने उत्तर दिया "तुम्हारा कथन सारहीन है। सांसारिक आनन्दको वर्णन करनेके सामध्यंका अभाव श्रमणोंमें नहीं है। किन्तु कुछ दिन रहनेवाले अनेक रोगोंसे प्रस्त तथा अल्पज्ञानसे युक्त इस जीवनको व्यर्थ किये बिना लोग मुनिमार्ग द्वारा हित सम्पन करें, इसी उद्देश्यसे श्रमणोंने मुनिधर्मकी प्रशंसा की है। सांसारिक आनन्दोंका वर्णन भी काव्यमें सहज सम्भाव्य है। में इसके लिए प्रयास करूंगा।"
तदनन्तर तिकतेवर अपने आचार्यके पास पहुँचकर जीवन भोगोंका वर्णन करनेवाले काव्यका सजन करने के लिये प्रार्थना करने लगा ! गुरुने 'नरी विस्त्सम' एक प्राचीन कथा देकर काव्यरचना करनेका बादेश दिया । सिस्तक्कतेवरने इस नीरस कथाको मनोरंजक काध्यका रूप देकर प्रस्तुत किया, जिससे आचार्य बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने आशीर्वाद देकर 'जीवक चिन्तामणि' काव्य लिखनेका आदेश दिया ।
इस काव्यका नायक जांधकन है । इसके पिताका नाम सत्यसन्ध है । सत्य सन्धने अपना राज्य कट्टियमारन नामक मंत्रीको सौंप कुछ दिनों के लिए विश्राम ले लिया । अवसर प्रासकर कट्टीयगारनने सेनाको अपने अधीन कर राज्य हड़प लिया । सत्यसन्धकी पत्नी विजयाने एक मयूर उपनखटोलेपर चढ़कर अपनी रक्षाकी और श्मशान भूमिमें पुत्रको जन्म दिया । कन्दुकलन नामक व्यक्तिने उस पुत्रको ले जाकर उसका नाम जोवकन् रक्खा और उसका पालन-पोषण करने लगा । जीवकन्ने विद्याध्ययन और युद्धकलामें शोघ्न हो निष्णात होकर राजा होनेके योग्य अर्हताओंको प्राप्त किया । जीवकन्ने अपनी योग्यता प्रदर्शित कर पृथक-पृथक समयमें कन्याओंसे विवाह किया । उसने वंचक कट्टियमारन को जीतकर अपने पिताके खोये हुए राज्यको पुनः हस्तगत किया। उसने बहुत दिनों तक सांसारिक सुख भोगते हुए राज्य शासन चलाया और अन्तमें संन्यास ग्रहण कर मोक्ष प्राप्त किया।
इस काव्य में विचारोंकी महत्ता; साहित्यिक मुहावरोंके सुन्दर प्रयोग और प्रकृतिके सजीव चित्रण विद्यमान हैं। उत्सरवर्ती कवियोंने इस ग्रन्थका पूरा अनुसरण किया है। इस काव्यम १३ अध्धाय और ३१४५ पद्य हैं। निस्सन्देह वर्णन शैलाके गाम्भीर्य और सशक्त अभिव्यञ्जनाके कारण यह काव्य महा काव्यको श्रेणो में परिगणित है।
#Tirutakktevar
आचार्यतुल्य तिरुत्तक्कतेवर 7वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 3 जून 2022
दिगजैनविकी आभारी है
बालिकाई शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
नेमिनाथ जी शास्त्री (बाहुबली-कोल्हापुर )
परियोजना के लिए पुस्तकों को संदर्भित करने के लिए।
लेखक:- पंडित श्री नेमीचंद्र शास्त्री-ज्योतिषाचार्य
आचार्य शांति सागर छानी ग्रंथ माला
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 3 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
इन्होंने 'जीवकचिन्तामणि' नामक महाकाव्यको रचना ई० सन्की ७वीं शतीमें की है। यह कवि जैनधर्मावलम्बी था। कहा जाता है कि यह चोल राजाकी बंश परम्परामें हुवा है । कुछ विद्वान् इस काव्यको तमिल काच्योंका पिता मानते हैं। डॉ जो यू० पोपके शब्दों में
This is on the whole the greatest existing Tamil literary mommcat. The great romantic cpic which is at once the iliad and the Odyssey of the Tamil language, is one of the great cpius of the world."
अर्थात् यह काव्य वर्तमान तमिल साहित्यका एक महान स्मारक है । यह अद्भत महाकाव्य तमिलभाषाका एलियर और ओडेसी कहा जा सकता है। यह संसारके महान् काव्यों में से एक है । इसकी रचनाके सम्बन्धमें एक आख्यान प्रचलित है । एक दिन किसीने तिस्तक्कतेवरको लक्ष्यकर कहा-"महाराज ! श्रमणोंको इस संसारके देखनेसे घृणा हो गयो । वे केवल वैराग्यपूर्ण संन्यासी जीवनकी ही प्रशंसा गाते हैं । सांसारिक सुखोंको रुचिकर लूंगसे वर्णन करनेका सामथ्यं श्रमणोंमें दिखलायी नहीं देता।" तिस्तक्कतेवरने उत्तर दिया "तुम्हारा कथन सारहीन है। सांसारिक आनन्दको वर्णन करनेके सामध्यंका अभाव श्रमणोंमें नहीं है। किन्तु कुछ दिन रहनेवाले अनेक रोगोंसे प्रस्त तथा अल्पज्ञानसे युक्त इस जीवनको व्यर्थ किये बिना लोग मुनिमार्ग द्वारा हित सम्पन करें, इसी उद्देश्यसे श्रमणोंने मुनिधर्मकी प्रशंसा की है। सांसारिक आनन्दोंका वर्णन भी काव्यमें सहज सम्भाव्य है। में इसके लिए प्रयास करूंगा।"
तदनन्तर तिकतेवर अपने आचार्यके पास पहुँचकर जीवन भोगोंका वर्णन करनेवाले काव्यका सजन करने के लिये प्रार्थना करने लगा ! गुरुने 'नरी विस्त्सम' एक प्राचीन कथा देकर काव्यरचना करनेका बादेश दिया । सिस्तक्कतेवरने इस नीरस कथाको मनोरंजक काध्यका रूप देकर प्रस्तुत किया, जिससे आचार्य बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने आशीर्वाद देकर 'जीवक चिन्तामणि' काव्य लिखनेका आदेश दिया ।
इस काव्यका नायक जांधकन है । इसके पिताका नाम सत्यसन्ध है । सत्य सन्धने अपना राज्य कट्टियमारन नामक मंत्रीको सौंप कुछ दिनों के लिए विश्राम ले लिया । अवसर प्रासकर कट्टीयगारनने सेनाको अपने अधीन कर राज्य हड़प लिया । सत्यसन्धकी पत्नी विजयाने एक मयूर उपनखटोलेपर चढ़कर अपनी रक्षाकी और श्मशान भूमिमें पुत्रको जन्म दिया । कन्दुकलन नामक व्यक्तिने उस पुत्रको ले जाकर उसका नाम जोवकन् रक्खा और उसका पालन-पोषण करने लगा । जीवकन्ने विद्याध्ययन और युद्धकलामें शोघ्न हो निष्णात होकर राजा होनेके योग्य अर्हताओंको प्राप्त किया । जीवकन्ने अपनी योग्यता प्रदर्शित कर पृथक-पृथक समयमें कन्याओंसे विवाह किया । उसने वंचक कट्टियमारन को जीतकर अपने पिताके खोये हुए राज्यको पुनः हस्तगत किया। उसने बहुत दिनों तक सांसारिक सुख भोगते हुए राज्य शासन चलाया और अन्तमें संन्यास ग्रहण कर मोक्ष प्राप्त किया।
इस काव्य में विचारोंकी महत्ता; साहित्यिक मुहावरोंके सुन्दर प्रयोग और प्रकृतिके सजीव चित्रण विद्यमान हैं। उत्सरवर्ती कवियोंने इस ग्रन्थका पूरा अनुसरण किया है। इस काव्यम १३ अध्धाय और ३१४५ पद्य हैं। निस्सन्देह वर्णन शैलाके गाम्भीर्य और सशक्त अभिव्यञ्जनाके कारण यह काव्य महा काव्यको श्रेणो में परिगणित है।
Acharyatulya Tirutakktevar 7th Century (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 3 June 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
#Tirutakktevar
15000
#Tirutakktevar
Tirutakktevar
You cannot copy content of this page