हैशटैग
#VijaySingh(Prachin)
कवि विजयसिंहने अजित पुराणको प्रशस्तिमें अपना परिचय दिया है। बताया है कि मेस्पुरमें मेरुकीतिका जन्म करमासह राजाके यहां हुआ था, जो पावतीपुरवालवंशके थे । कविफे पिताका नाम दिल्हण और माताका नाम राजमती था | कविने अपनी गुरुपरम्पराका निर्देश नहीं किया है। सन्धिके पुष्पिका-वाक्यसे यह प्रकट है कि यह अंथ देवपालने लिखवाया था
इय सिरिअजियणाहतित्थयरदेवमहापुराणे धम्मत्थ-काम-मोक्ख-चउपयत्य पहाणे सूकइसिरिविजयसिंहबह विरइए महाभब्व-कामरायसुय-सिरिदेवपाल विवहसिरसेहरोवमिए दायार-गुणाण-कित्तणं पुणो मगह-देसाशिववण्णणं णाम पढमों संधीपरिछेओ समत्तो ॥"
कवि विजयसिंहकी कविता उच्चकोटिकी नहीं है । पद्यपि उनका व्यक्तित्व महत्त्वाकांक्षीका है, तो भी वे जीवन के लिए आस्था, चरित्र और विवेकको आवश्यक मानते हैं।
कवि ने अजितपुराणको समाप्ति वि० सं० १५०५ कात्तिकी पूर्णिमाके दिन की है। इसी संवत्की लिखी हुई एक प्रति भोगांवके शास्त्रभण्डारमें पाई जाती है । इस प्रतिकी लेखन-प्रशस्तिमें बताया है
"संवत् १५०५ बर्षे कातिक सुदि पूर्णमासो दिने श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे भट्टारकत्रीपश्यनंदिदेवस्तत्पट्ट भट्टारकश्रीशुभचन्द्रदेवः तस्य पद भट्टारकीजिनचन्द्रदेवः तस्याम्नाये श्रीखंडेलवालान्वये सकलग्रंथार्थप्रवीण: पंडितकडि: तस्य पुत्रः सकलकलाकुशल: पण्डितछीत (1) तत्पुत्र: निरवद्य श्रावकाचारधरः पंडितजिनदासः, पंडित खेता तत्पुत्रपंचाणुव्रतपालकः पण्डित काम राजस्तद्भार्या कमलश्रो तत्पुत्रास्त्रयः पण्डितजिनदासः, पंडितरतनः देवपाल: एतेषां मध्ये पंडितदेवपालेन इदं अजितनाथदेवचरितं लिखापितं निजज्ञाना वरणीयकर्मक्षया), शुभमस्तु लेखकपाठकोः ।'
- जैन सि० भा० भा० २२, कि० २।
अतएव कविका समय विक्रमकी १६वीं शती है। कविने इस ग्रन्थकी रचना महाभब्य कामराजके पुत्र पंडित देवपालको प्रेरणासे की है। बताया है कि वणि पुर या बामपुर नामके नगरमें खण्डेलवाल वंशमें कडि (कौड़ी) नामके पंडित थे। उनके पुत्रका नाम छीतु था, जो बड़े धर्मनिष्ठ और आचारवान थे । वे श्रावककी ११ प्रतिमाओंका पालन करते थे। वहीपर लोकमित्र पंडित खेता था । इन्हींके प्रसिद्ध पुत्र कामराज हुए। कामराजकी पत्नीका नाम कमलश्री था । इनके तीन पुत्र हाए-जिनदास, रयणु और देवपाल । देवपालने वधमान का एक चैत्यालय बनवाया था, जो उत्तुंग वजाओंसे अलंकृत था | इसी देवपाल की प्रेरणासे अजितपुरण लिखा गया है।
अन्यकी प्रथम साध नयम पाडवक जिनसेन, अकलंक, गुणभद्र, गृद्धपिच्छ, प्रोटिल, लक्ष्मण, श्रीधर और चतुर्मुखके नाम भी आये हैं।
इस ग्रन्थ में कविने द्वितीय तीर्थकर अजिसनाथका जीवनदास गुम्फित किया है। इसमें १० सन्धियाँ हैं। पूर्वभवावलोके पश्चात अजितनाथ तीर्थकरके गर्भ जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण कल्याणकोंका विवेचन किया है। प्रसंगवश लोक, गुणस्थान, श्रावकाचार, श्रमणाचार, द्रव्य और गुणोंका भी निर्देश किया गया है।
कवि विजयसिंहने अजित पुराणको प्रशस्तिमें अपना परिचय दिया है। बताया है कि मेस्पुरमें मेरुकीतिका जन्म करमासह राजाके यहां हुआ था, जो पावतीपुरवालवंशके थे । कविफे पिताका नाम दिल्हण और माताका नाम राजमती था | कविने अपनी गुरुपरम्पराका निर्देश नहीं किया है। सन्धिके पुष्पिका-वाक्यसे यह प्रकट है कि यह अंथ देवपालने लिखवाया था
इय सिरिअजियणाहतित्थयरदेवमहापुराणे धम्मत्थ-काम-मोक्ख-चउपयत्य पहाणे सूकइसिरिविजयसिंहबह विरइए महाभब्व-कामरायसुय-सिरिदेवपाल विवहसिरसेहरोवमिए दायार-गुणाण-कित्तणं पुणो मगह-देसाशिववण्णणं णाम पढमों संधीपरिछेओ समत्तो ॥"
कवि विजयसिंहकी कविता उच्चकोटिकी नहीं है । पद्यपि उनका व्यक्तित्व महत्त्वाकांक्षीका है, तो भी वे जीवन के लिए आस्था, चरित्र और विवेकको आवश्यक मानते हैं।
कवि ने अजितपुराणको समाप्ति वि० सं० १५०५ कात्तिकी पूर्णिमाके दिन की है। इसी संवत्की लिखी हुई एक प्रति भोगांवके शास्त्रभण्डारमें पाई जाती है । इस प्रतिकी लेखन-प्रशस्तिमें बताया है
"संवत् १५०५ बर्षे कातिक सुदि पूर्णमासो दिने श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे भट्टारकत्रीपश्यनंदिदेवस्तत्पट्ट भट्टारकश्रीशुभचन्द्रदेवः तस्य पद भट्टारकीजिनचन्द्रदेवः तस्याम्नाये श्रीखंडेलवालान्वये सकलग्रंथार्थप्रवीण: पंडितकडि: तस्य पुत्रः सकलकलाकुशल: पण्डितछीत (1) तत्पुत्र: निरवद्य श्रावकाचारधरः पंडितजिनदासः, पंडित खेता तत्पुत्रपंचाणुव्रतपालकः पण्डित काम राजस्तद्भार्या कमलश्रो तत्पुत्रास्त्रयः पण्डितजिनदासः, पंडितरतनः देवपाल: एतेषां मध्ये पंडितदेवपालेन इदं अजितनाथदेवचरितं लिखापितं निजज्ञाना वरणीयकर्मक्षया), शुभमस्तु लेखकपाठकोः ।'
- जैन सि० भा० भा० २२, कि० २।
अतएव कविका समय विक्रमकी १६वीं शती है। कविने इस ग्रन्थकी रचना महाभब्य कामराजके पुत्र पंडित देवपालको प्रेरणासे की है। बताया है कि वणि पुर या बामपुर नामके नगरमें खण्डेलवाल वंशमें कडि (कौड़ी) नामके पंडित थे। उनके पुत्रका नाम छीतु था, जो बड़े धर्मनिष्ठ और आचारवान थे । वे श्रावककी ११ प्रतिमाओंका पालन करते थे। वहीपर लोकमित्र पंडित खेता था । इन्हींके प्रसिद्ध पुत्र कामराज हुए। कामराजकी पत्नीका नाम कमलश्री था । इनके तीन पुत्र हाए-जिनदास, रयणु और देवपाल । देवपालने वधमान का एक चैत्यालय बनवाया था, जो उत्तुंग वजाओंसे अलंकृत था | इसी देवपाल की प्रेरणासे अजितपुरण लिखा गया है।
अन्यकी प्रथम साध नयम पाडवक जिनसेन, अकलंक, गुणभद्र, गृद्धपिच्छ, प्रोटिल, लक्ष्मण, श्रीधर और चतुर्मुखके नाम भी आये हैं।
इस ग्रन्थ में कविने द्वितीय तीर्थकर अजिसनाथका जीवनदास गुम्फित किया है। इसमें १० सन्धियाँ हैं। पूर्वभवावलोके पश्चात अजितनाथ तीर्थकरके गर्भ जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण कल्याणकोंका विवेचन किया है। प्रसंगवश लोक, गुणस्थान, श्रावकाचार, श्रमणाचार, द्रव्य और गुणोंका भी निर्देश किया गया है।
#VijaySingh(Prachin)
आचार्यतुल्य विजय सिंह (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 20 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 20 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
कवि विजयसिंहने अजित पुराणको प्रशस्तिमें अपना परिचय दिया है। बताया है कि मेस्पुरमें मेरुकीतिका जन्म करमासह राजाके यहां हुआ था, जो पावतीपुरवालवंशके थे । कविफे पिताका नाम दिल्हण और माताका नाम राजमती था | कविने अपनी गुरुपरम्पराका निर्देश नहीं किया है। सन्धिके पुष्पिका-वाक्यसे यह प्रकट है कि यह अंथ देवपालने लिखवाया था
इय सिरिअजियणाहतित्थयरदेवमहापुराणे धम्मत्थ-काम-मोक्ख-चउपयत्य पहाणे सूकइसिरिविजयसिंहबह विरइए महाभब्व-कामरायसुय-सिरिदेवपाल विवहसिरसेहरोवमिए दायार-गुणाण-कित्तणं पुणो मगह-देसाशिववण्णणं णाम पढमों संधीपरिछेओ समत्तो ॥"
कवि विजयसिंहकी कविता उच्चकोटिकी नहीं है । पद्यपि उनका व्यक्तित्व महत्त्वाकांक्षीका है, तो भी वे जीवन के लिए आस्था, चरित्र और विवेकको आवश्यक मानते हैं।
कवि ने अजितपुराणको समाप्ति वि० सं० १५०५ कात्तिकी पूर्णिमाके दिन की है। इसी संवत्की लिखी हुई एक प्रति भोगांवके शास्त्रभण्डारमें पाई जाती है । इस प्रतिकी लेखन-प्रशस्तिमें बताया है
"संवत् १५०५ बर्षे कातिक सुदि पूर्णमासो दिने श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे भट्टारकत्रीपश्यनंदिदेवस्तत्पट्ट भट्टारकश्रीशुभचन्द्रदेवः तस्य पद भट्टारकीजिनचन्द्रदेवः तस्याम्नाये श्रीखंडेलवालान्वये सकलग्रंथार्थप्रवीण: पंडितकडि: तस्य पुत्रः सकलकलाकुशल: पण्डितछीत (1) तत्पुत्र: निरवद्य श्रावकाचारधरः पंडितजिनदासः, पंडित खेता तत्पुत्रपंचाणुव्रतपालकः पण्डित काम राजस्तद्भार्या कमलश्रो तत्पुत्रास्त्रयः पण्डितजिनदासः, पंडितरतनः देवपाल: एतेषां मध्ये पंडितदेवपालेन इदं अजितनाथदेवचरितं लिखापितं निजज्ञाना वरणीयकर्मक्षया), शुभमस्तु लेखकपाठकोः ।'
- जैन सि० भा० भा० २२, कि० २।
अतएव कविका समय विक्रमकी १६वीं शती है। कविने इस ग्रन्थकी रचना महाभब्य कामराजके पुत्र पंडित देवपालको प्रेरणासे की है। बताया है कि वणि पुर या बामपुर नामके नगरमें खण्डेलवाल वंशमें कडि (कौड़ी) नामके पंडित थे। उनके पुत्रका नाम छीतु था, जो बड़े धर्मनिष्ठ और आचारवान थे । वे श्रावककी ११ प्रतिमाओंका पालन करते थे। वहीपर लोकमित्र पंडित खेता था । इन्हींके प्रसिद्ध पुत्र कामराज हुए। कामराजकी पत्नीका नाम कमलश्री था । इनके तीन पुत्र हाए-जिनदास, रयणु और देवपाल । देवपालने वधमान का एक चैत्यालय बनवाया था, जो उत्तुंग वजाओंसे अलंकृत था | इसी देवपाल की प्रेरणासे अजितपुरण लिखा गया है।
अन्यकी प्रथम साध नयम पाडवक जिनसेन, अकलंक, गुणभद्र, गृद्धपिच्छ, प्रोटिल, लक्ष्मण, श्रीधर और चतुर्मुखके नाम भी आये हैं।
इस ग्रन्थ में कविने द्वितीय तीर्थकर अजिसनाथका जीवनदास गुम्फित किया है। इसमें १० सन्धियाँ हैं। पूर्वभवावलोके पश्चात अजितनाथ तीर्थकरके गर्भ जन्म, तप, ज्ञान और निर्वाण कल्याणकोंका विवेचन किया है। प्रसंगवश लोक, गुणस्थान, श्रावकाचार, श्रमणाचार, द्रव्य और गुणोंका भी निर्देश किया गया है।
Acharyatulya Vijay Singh (Prachin)
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 20 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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#VijaySingh(Prachin)
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