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#vimalkirti
विमलकीर्ति अपभ्रशमें कथा-साहित्यकी रचना करनेवाले कवि विमलकीति प्रसिद्ध हैं कवि माथुरगच्छ बागसंधके मुनि रामकीतिका शिष्य था । सुगन्धदशमीकथा की प्रशस्निमें विमलकीतिको रामकीर्तिका शिष्य बताया गया है । लिखा है--
आचार्य | रामकीर्ति |
रामकित्ति गुरु विणउ करेविणु, विमलकित्ति महिलि पडेविण ।
पच्छा पुण तबयरण करेविणु, सइ अणुकमेण सो मोक्स्व लहेसइ ।'
जगत्सुन्दरीप्रयोगमालाकी प्रशस्तिमें भी विमलकीतिका उल्लेख आया है इस उल्लेखसे वह वायउसंघके आचार्य सिद्ध होते हैं।
आसि पुरा बित्थियों वायउसंधे ससंघ-संकासो।
मुणि शम इति धीरो गिरिब्ब गइसुब्ध गंभीरो ॥१८॥
संजाउ तस्स सीसो बिनुहो सिरि "विमल इति' बिक्खाओ।
बिमलयइकित्ति खडिया धवलिया धरणियल-गयणयलो ॥१९॥
जैन-साहित्य में रामकीति नामक दो विद्वान् हुए हैं। एक जयकोतिके शिष्य हैं, जिनकी लिखी प्रशस्ति चित्तौड़में वि० सं० १२०७ को प्राप्त हुई है। यही रामकीति संभव हैं विमलकीतिके गुरु हों। जगत्सुन्दरीप्रयोगमालाके रचयित्ता यशकीति विमलकीत्तिके शिष्य थे। उस ग्रन्थके प्रारंभमें धनेश्वर सूरिका उल्लेख किया है। ये धनेश्वरसूरि अभयदेवसूरिके शिष्य थे और इनका समय वि० सं०११७१ है । इससे भी प्रस्तुत रामकीर्ति १३ वीं शतीके अन्तिम चरण और १३वींके प्रारंभिक विद्वान ज्ञात होते हैं। पं० परमानन्दजी शास्त्रीने भी विमलकीतिका समय १३वीं शती माना है।
विमलकीतिको एक ही रचना 'सोखवइविहाणकहा' उपलब्ध है ! इसमें अत-विधि और उसके फलका निरूपण किया है। कविने इस कथाके अन्त में आशीर्वाद देते हुए लिखा है कि जो नमक्ति इस कथाको पढ़े-पढ़ायेगा, सुने-सुना सेगा, वह संसारके समस्त दुःखोंसे मुक्त होकर मुक्तिरमाको प्राप्त करेगा । बताया है
जो पढइ सुणइ मणि भावइ,
जिणु आरहह सुह संपइ सो णरु लहइ ।
णाण वि पजह भव-दुह-
खिजइ सिद्धि-विलासणि सो रमइ ।।
विमलकीर्ति अपभ्रशमें कथा-साहित्यकी रचना करनेवाले कवि विमलकीति प्रसिद्ध हैं कवि माथुरगच्छ बागसंधके मुनि रामकीतिका शिष्य था । सुगन्धदशमीकथा की प्रशस्निमें विमलकीतिको रामकीर्तिका शिष्य बताया गया है । लिखा है--
आचार्य | रामकीर्ति |
रामकित्ति गुरु विणउ करेविणु, विमलकित्ति महिलि पडेविण ।
पच्छा पुण तबयरण करेविणु, सइ अणुकमेण सो मोक्स्व लहेसइ ।'
जगत्सुन्दरीप्रयोगमालाकी प्रशस्तिमें भी विमलकीतिका उल्लेख आया है इस उल्लेखसे वह वायउसंघके आचार्य सिद्ध होते हैं।
आसि पुरा बित्थियों वायउसंधे ससंघ-संकासो।
मुणि शम इति धीरो गिरिब्ब गइसुब्ध गंभीरो ॥१८॥
संजाउ तस्स सीसो बिनुहो सिरि "विमल इति' बिक्खाओ।
बिमलयइकित्ति खडिया धवलिया धरणियल-गयणयलो ॥१९॥
जैन-साहित्य में रामकीति नामक दो विद्वान् हुए हैं। एक जयकोतिके शिष्य हैं, जिनकी लिखी प्रशस्ति चित्तौड़में वि० सं० १२०७ को प्राप्त हुई है। यही रामकीति संभव हैं विमलकीतिके गुरु हों। जगत्सुन्दरीप्रयोगमालाके रचयित्ता यशकीति विमलकीत्तिके शिष्य थे। उस ग्रन्थके प्रारंभमें धनेश्वर सूरिका उल्लेख किया है। ये धनेश्वरसूरि अभयदेवसूरिके शिष्य थे और इनका समय वि० सं०११७१ है । इससे भी प्रस्तुत रामकीर्ति १३ वीं शतीके अन्तिम चरण और १३वींके प्रारंभिक विद्वान ज्ञात होते हैं। पं० परमानन्दजी शास्त्रीने भी विमलकीतिका समय १३वीं शती माना है।
विमलकीतिको एक ही रचना 'सोखवइविहाणकहा' उपलब्ध है ! इसमें अत-विधि और उसके फलका निरूपण किया है। कविने इस कथाके अन्त में आशीर्वाद देते हुए लिखा है कि जो नमक्ति इस कथाको पढ़े-पढ़ायेगा, सुने-सुना सेगा, वह संसारके समस्त दुःखोंसे मुक्त होकर मुक्तिरमाको प्राप्त करेगा । बताया है
जो पढइ सुणइ मणि भावइ,
जिणु आरहह सुह संपइ सो णरु लहइ ।
णाण वि पजह भव-दुह-
खिजइ सिद्धि-विलासणि सो रमइ ।।
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आचार्यतुल्य विमलकीर्ति 13वीं शताब्दी (प्राचीन)
संजुल जैन ने महाराज जी का विकी पेज बनाया है तारीख 18 मई 2022
Sanjul Jain Created Wiki Page Maharaj ji On Date 18 May 2022
Digjainwiki is Thankful to
Balikai Shashtri ( Bahubali - Kholapur)
Neminath Ji Shastri ( Bahubali - Kholapur)
for referring the books to the project.
Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
Acharya Shanti Sagar Channi GranthMala
विमलकीर्ति अपभ्रशमें कथा-साहित्यकी रचना करनेवाले कवि विमलकीति प्रसिद्ध हैं कवि माथुरगच्छ बागसंधके मुनि रामकीतिका शिष्य था । सुगन्धदशमीकथा की प्रशस्निमें विमलकीतिको रामकीर्तिका शिष्य बताया गया है । लिखा है--
आचार्य | रामकीर्ति |
रामकित्ति गुरु विणउ करेविणु, विमलकित्ति महिलि पडेविण ।
पच्छा पुण तबयरण करेविणु, सइ अणुकमेण सो मोक्स्व लहेसइ ।'
जगत्सुन्दरीप्रयोगमालाकी प्रशस्तिमें भी विमलकीतिका उल्लेख आया है इस उल्लेखसे वह वायउसंघके आचार्य सिद्ध होते हैं।
आसि पुरा बित्थियों वायउसंधे ससंघ-संकासो।
मुणि शम इति धीरो गिरिब्ब गइसुब्ध गंभीरो ॥१८॥
संजाउ तस्स सीसो बिनुहो सिरि "विमल इति' बिक्खाओ।
बिमलयइकित्ति खडिया धवलिया धरणियल-गयणयलो ॥१९॥
जैन-साहित्य में रामकीति नामक दो विद्वान् हुए हैं। एक जयकोतिके शिष्य हैं, जिनकी लिखी प्रशस्ति चित्तौड़में वि० सं० १२०७ को प्राप्त हुई है। यही रामकीति संभव हैं विमलकीतिके गुरु हों। जगत्सुन्दरीप्रयोगमालाके रचयित्ता यशकीति विमलकीत्तिके शिष्य थे। उस ग्रन्थके प्रारंभमें धनेश्वर सूरिका उल्लेख किया है। ये धनेश्वरसूरि अभयदेवसूरिके शिष्य थे और इनका समय वि० सं०११७१ है । इससे भी प्रस्तुत रामकीर्ति १३ वीं शतीके अन्तिम चरण और १३वींके प्रारंभिक विद्वान ज्ञात होते हैं। पं० परमानन्दजी शास्त्रीने भी विमलकीतिका समय १३वीं शती माना है।
विमलकीतिको एक ही रचना 'सोखवइविहाणकहा' उपलब्ध है ! इसमें अत-विधि और उसके फलका निरूपण किया है। कविने इस कथाके अन्त में आशीर्वाद देते हुए लिखा है कि जो नमक्ति इस कथाको पढ़े-पढ़ायेगा, सुने-सुना सेगा, वह संसारके समस्त दुःखोंसे मुक्त होकर मुक्तिरमाको प्राप्त करेगा । बताया है
जो पढइ सुणइ मणि भावइ,
जिणु आरहह सुह संपइ सो णरु लहइ ।
णाण वि पजह भव-दुह-
खिजइ सिद्धि-विलासणि सो रमइ ।।
Acharyatulya Vimalkirti 13th Century (Prachin)
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Author :- Pandit Nemichandra Shashtri - Jyotishacharya
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