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#AntrangSagarJiMaharaj1968AmitSagarji
Muni Shri 108 Antarang Sagar Ji was born on 12-Dec-1968 as Dharmendra Minda in the Thandla village, Madhya Pradesh He took initition from Muni Shri 108 Amit Sagar Ji Maharaj
गृहस्थ नाम : | श्री धर्मेंद्र मिंडा |
पिता का नाम : | श्री पन्नालाल मिंडा |
माता का नाम : | श्रीमती कांता बाई |
जन्म दिनांक : | 12 दिसम्बर, 1968 |
जन्म स्थान : | थांदला ग्राम, मध्य प्रदेश |
ब्रह्मचर्य प्रतिमा : | आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज |
भाई : | 4 |
बहन : | 3 |
पुत्र : | 2 |
पुत्री : | 1 |
मुनि दीक्षा : | 22 फरवरी, 2020, तारंगा सिद्ध क्षेत्र (मुनिश्री अमितसागर जी महाराज जी से) |
मुनि श्री अंतरंग सागर जी की उत्तम समाधि व गुरु मुनि श्री अमित सागर जी द्वारा उत्कृष्ट सेवा -
देश की सीमा सुरक्षा में खड़ा जवान युद्ध या रक्षा कार्य के समय राष्ट्र के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देते है वैसे ही अपने आत्म कल्याण की साधना में लगा हुआ दिगंबर जैन संत शरीर से तनिक भी मोह नहीं रखते हुए उपसर्ग या समाधि के समय अपने शरीर का वीरता पूर्वक त्याग कर देते है इसलिए इन दोनो को वीर तपस्वी कहा जाता है।
पूज्य बालयोगी मुनि श्री अमित सागर जी गुरुदेव संघ सहित बयाना राजस्थान में विराजमान थे। तभी दिनांक 10 दिसंबर को संघस्थ सुशिष्य मुनि श्री अंतरंग सागर जी आहार चर्या से पूर्व शुद्धि के लिए ऊपरी छत पर जा रहे थे तभी वे चार सीढ़ियों पर से अक्समाक सीधे मस्तक के बल गिर गए।
जिससे उनके मस्तक में अंदरुनी व बाहर से चोट आयी।
उनके आराध्य गुरु मुनि श्री अमित सागर जी व उपस्थित श्रावक त्वरित आवश्यक उपचार में प्रयास रत हुए। किंतु जिस तरह के अंदरूनी घाव लगे उस हेतु लंबी शल्य चिकित्सा की आवश्यकता थी जिसमे भी असाध्यता की संभावना बनी रहती और अनेक बाध्यता जो मुनि रूप में संभव भी नही हो सकती थी।
मुनि श्री अंतरंग सागर जी को एक बार हल्की चेतन अवस्था में जब ज्ञात हुआ तो उन्होंने अपने गुरु से समाधि साधना की भावना वक्त करते हुए कहा की गुरुदेव मेने दीक्षा आत्म कल्याण के लिए ली है इस शरीर के लिए नहीं इसलिए मैं शरीर के लिए दीक्षा नही छोड़ सकता। मेरी प्रबल इच्छा यही की गुरुदेव आपके चरणो में मेरी उत्तम समाधि हो।
गुरुदेव अमित सागर जी ने स्थित को भलीभाती समझकर अन्य वरिष्ठ आचार्य से मारदर्शन लेकर समाधि साधना की स्वीकृति प्रदान की।
मुनि श्री अंतरंग सागर जी जब चल नही पा रहे,बोल नही पा रहे,खड़े नही हो पा रहे व शरीर अनेक प्रकार से असमर्थ है ऐसे विकट समय में गुरुदेव अमित सागर जी ने कुशल निर्यापक बनकर, स्वयं गुरु होते हुए भी शिष्य की सेवा -वैयवृत्ती में पल पल पूर्ण रूप से समर्पित रहते हुए धर्म संबोधन व आत्म स्थिरता का ज्ञानोपदेश देते हुए क्षपक मुनि श्री अंतरंग सागर जी को उनके साधना जीवन के महान लक्ष्य उत्तम समाधि मरण को सार्थक करवाया।
वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनक नंदी जी गुरूराज प्रायः कहा करते है की वर्तमान विश्व में कुशल श्रेष्ठ सेवा भावी संत यदि कोई है तो वो मुनि श्री अमित सागर जी है। और निश्चित रूप से बयाना क्षेत्र में मुनि श्री अंतरंग सागर जी की सल्लेखना साधना में उनके गुरु मुनि श्री अमित सागर जी द्वारा दिन रात जो सेवा -वैयावृत्ति की गई उसे देखकर हर कोई अभिभूत व गौरवान्वित था।
थांदला गौरव मुनि श्री अंतरंग सागर जी ने अपने गुरु चरणो में धर्म श्रवण व ध्यान पूर्वक दिनांक 15 दिसंबर को नश्वर देह को त्याग कर उत्तम समधी मरण को प्राप्त किया।
उत्कृष्ट सेवाभावी बालयोगी मुनि श्री अमित सागर जी व समाधिस्थ मुनि श्री अंतरंग सागर जी के चरणो में कोटिशः नमन
शब्द सुमन -शाह मधोक जैन चितरी
नमनकर्ता -श्री राष्ट्रीय जैन मित्र मंच भारत
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मुनि श्री १०८ अंतरंग सागरजी महाराज
मुनि श्री १०८ अमितसागरजी महाराज १९६३ Muni Shri 108 Amitsagarji Maharaj 1963
संतोष खुळे ने 5 सितंबर 2021 को महाराज जी के लिए विकी पेज बनाया
Santosh Khule Created Wiki Page For Maharaj Ji on 5 Sep.2021
AmitSagarJiMaharaj1963DharmasagarJi
Muni Shri 108 Antarang Sagar Ji was born on 12-Dec-1968 as Dharmendra Minda in the Thandla village, Madhya Pradesh He took initition from Muni Shri 108 Amit Sagar Ji Maharaj
Uttam Samadhi of Muni Shri Antrang Sagar ji by Muni Shri Amit Sagar ji
Soldiers standing in the border security of the country sacrifice their lives for the nation at the time of war or defense work, similarly, a Digambar Jain saint, engaged in the practice of his spirituality , does not have any attachment to the body at the time of hardships or samadhi. They voluntarily renounce the body, that's they are called brave ascetics.
Pujya Balayogi Muni Shri Amit Sagar Ji along with Gurudev Sangh was in Bayana in Rajasthan. On 10th December Sanghastha Susishya Muni Shri Antrang Sagar ji was going to the upper terrace for nature's call, before diet, when accidentally he fell straight on the head from the four stairs.
Due to which his head got hurt from inside . Muni Shri Amit Sagar ji and the present devotees tried for quick necessary treatment. But the kind of internal wound that required a long surgery, which there was a possibility of in curability and many compulsions, which could not even be possible in the form of sage.
Muni Shree Antrang Sagar ji came to know about his state, he said to his Guru while doing Samadhi Sadhana that Gurudev I have taken Diksha for self-welfare and not for this body, so I am not going to leave Diksha for the body. Can accept samadhi , My strong desire is that Gurudev, my perfect samadhi should be at your feet.
Gurudev Amit Sagar ji, considering the situation gave permission for Samadhi Sadhana after taking advise from other senior Acharyas. When Muni Shri Antarang Sagar Ji could not walk, could not speak, could not stand and his body was unable to perform many routine activities in many ways, Gurudev Amit Sagar Ji, in such a difficult time, served the disciple by being a skilled teacher, even though he himself was a teacher - While being completely dedicated every moment in Vayavrutti, while giving the sermon of religion and self-steadiness, Kshapak Muni Shri Antrang Sagar ji made the great goal of his sadhana life, the perfect samadhi death meaningful.
- As written by Madhok Shah - Translated by digjainwiki team
Muni Shri 108 Antarang Sagarji Maharaj
मुनि श्री १०८ अमितसागरजी महाराज १९६३ Muni Shri 108 Amitsagarji Maharaj 1963
मुनि श्री १०८ अमितसागरजी महाराज १९६३ Muni Shri 108 Amitsagarji Maharaj 1963
Santosh Khule Created Wiki Page For Maharaj Ji on 5 Sep.2021
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