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#KshamaSagarJiMaharaj1957VidyasagarJi
Kshama Sagar Ji Maharaj , the disciple of Acharya Shri Vidhyasagar Ji Maharaj, is among one of the most respected Jain Munis. Muni Kshama Sagar ji, an M.Tech. from the Sagar University, renounced all the worldly pleasures and material belongings to become an ascetic at the tender age of 23 to tread on the path of peace and salvation as propagated by his Guru Acharya Shri Vidhyasagar ji Maharaj.
Munishri's Amrit Vaani simplifies the complex Jain philosophy and provides answers and solutions to all the worldly problems in a very practical way. It is so easy to relate to his pravachans. At every point it feels, "Yes this is exactly what I do in my life and how I feel and what I go through" and then it becomes so easy to realize the right path and the right conduct that alleviates all wrongdoings hence all worries and pains.
मुनि श्री १०८ क्षमा सागर जी महाराज
मुनि क्षमा सागरजी महाराज दिग. वीतराग मुनि है ।युवा अवस्था में सागर विश्वविद्यालय से भू गर्भ विज्ञान में एम. टेक. की उपाधि ग्रहण की।मात्र २३ वर्ष की आयु में आपने आचार्य विद्या सागर जी के दर्शन के बाद घर का त्याग कर दिया ।आप १ सम्रद्ध परिवार के लाडले थे ।जीवन में न कोई निराशा थी और न कोई हताशा ,न कोई असफलता और न कोई विरक्ति प्रेरक घटना ।स्वेक्षा और स्व प्रेरणा से आप आत्म कल्याण के लिए प्रेरित हुए।मुनि क्षमा सागर जी जहा एक संवेदन शील कवि है ,वाही दूसरी और विचारक भी ।
संक्षिप्त परिचय | |
जन्म: | २० सितम्बर १९५७ |
जन्म नाम: | वीरेंद्र कुमार सिंघई |
जन्म स्थान: | सागर |
माता का नाम: | श्रीमती आशादेवी |
पिता का नाम: | श्री जीवन कुमार सिंघई |
क्षुल्लक दीक्षा : | १० जनवरी १९८० |
क्षुल्लक दीक्षा स्थान: | नैना गिरी |
ऐलक दीक्षा : | ७ नवम्बर १९८० |
ऐलक दीक्षा स्थान: | मुक्तागिरी |
मुनि दीक्षा: | २० अगस्त १९८२ |
मुनि दीक्षा स्थान : | नैना गिरी |
दीक्षा गुरू: | संत शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी |
विशेष : | मुनिवर श्री प्रमाणसागर जी की प्रेरणा और परिकल्पना से तीर्थराज सम्मेद शिखर में गुणायतन के नाम से बनने जा रहा यह धर्मायतन जैन धर्म के परम्परागत मंदिरों/धर्मायतनों से एकदम अलग एक अद्भुत ज्ञानमंदिर होगा। |
ग्रन्थ लेखन : | जैन धर्म और दर्शन ,जैन तत्त्वविद्या ,तीर्थंकर ,धर्म जीवन का आधार,दिव्य जीवन का द्वार,ज्योतिर्मय जीवन आदि |
मुनिश्री का ज्ञान सदेव भक्तों को अपने संदेह ,जिज्ञासा एवं शंकाओं के समाधान हेतु आकर्षित करती है।प्रश्नोत्तर के संवाद पूर्ण प्रहार में जहा एक ओर किशोर होते है तो वही दूसरी ओर प्रकांड विद्वान् भी।चूँकि मुनि श्री प्रश्न कर्ता को महत्त्व देते है ओर प्रश्न को सम्मान अत: प्रश्न कर्ता नि:संकोच अपनी जिज्ञासाओं के समाधान हेतु उन्हें घेरे रहते है।मुनि श्री न प्रश्न को कभी टालते है,न मजाक में लेते है ,न उलझाते है ,न ही प्रश्न को निरर्थक बताते है।वे प्रश्नकर्ता को उसके स्तर का उत्तर देकर संतुष्ट करते है।
जीवन, जगत,आत्मा, परमात्मा और इनसे सम्बंधित सेकड़ो रहस्यों को लेकर उठ रही जिज्ञासा के उत्तर मुनि श्री के मुख से सुनना,अपने आप में एक अनुभव है।जी किताबों में नहीं मिलता,ही शास्त्रों में उलझा रह जाता है,जो परम्पराओं से अस्पष्ट चला आ रहा है,जो पूछे जाने पर योग्य प्रतीत नहीं होता ,वह सब मुनि श्री के सानिध्य में प्रासंगिक चर्चा का विषय बन जाता है।मुनि श्री की मनीषा में धर्म की विज्ञानिकता एवं विज्ञान की धार्मिकता एक दुसरे के प्रतिरोधी न बन कर एक दुसरेके पूरक बन जाते है।धर्म और विज्ञान के प्रति मुनिश्री की यह द्रष्टि जैन और अजैन,समस्त बंधुओं को सामान रूप से अपनी तार्किकता के कारण आधुनिक और अनुकूल प्रतीत होती है।
आपके ज्ञान लोक से भक्तों का अज्ञान का अन्धकार सरलता से लुप्त हो जाता है।मुनि श्री की मन को छु जाने वाली भाषा एवं शेली प्रश्नकर्ता को उत्तर के मर्म तक सहज ही पंहुचा देती है।
गुरु
https://www.jinaagamsaar.com/muni/kshamasagar.php
In Gallery : मुनि श्री क्षमा सागर जी,मुनि श्री समता सागर जी,और मुनि श्री प्रमाण सागर जी
updated by Nutan Choughule on 8-June-21
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मुनि श्री १०८ क्षमा सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज (आचार्यश्री) १९४६ Acharya Shri 108 VidyaSagarji Maharaj (AcharyaShri) 1946
https://www.facebook.com/mausami.shah.79/
Last updated on: 5-Oct-2020
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Last updated on: 5-Oct-2020
Edited By: Yastika Jain
Date: 14 Dec 2020
AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj
Kshama Sagar Ji Maharaj , the disciple of Acharya Shri Vidhyasagar Ji Maharaj, is among one of the most respected Jain Munis. Muni Kshama Sagar ji, an M.Tech. from the Sagar University, renounced all the worldly pleasures and material belongings to become an ascetic at the tender age of 23 to tread on the path of peace and salvation as propagated by his Guru Acharya Shri Vidhyasagar ji Maharaj.
Munishri's Amrit Vaani simplifies the complex Jain philosophy and provides answers and solutions to all the worldly problems in a very practical way. It is so easy to relate to his pravachans. At every point it feels, "Yes this is exactly what I do in my life and how I feel and what I go through" and then it becomes so easy to realize the right path and the right conduct that alleviates all wrongdoings hence all worries and pains.
Kshama Sagar ji was born in the city of Sagar, Madhya Pradesh on 20 September 1957. His father Jeevan Lal Singhai was a nephew of famous Sagar philanthropist Singhai Kundanlal, who was a longtime supporter of Ganesh Varni.
He was initiated as a Digambara monk on 20 August 1982 by Acharya Vidyasagar. He did his M. Tech from Sagar University and renounced the worldly life soon afterwards.
He opted Santhara on 13 March 2015 at 6.00 AM in Moraji Jain temple during his Chaturmas period. More than 50,000 people attended his funeral proceedings afterwards.
Kshama Sagar ji wrote "In Quest of the Self: The Life Story of Acharya Shri Vidyasagar" (आत्मान्वेषी), a biography of his teacher Acharya Vidyasagar ji and was published by Bhartiya Jnanpith.
His poems have been collected and published in Hindi and English. His poetry works include the following published books.
1. "Pagdandi Suraj Tak" (1992)
2. "Muni Kshama Sagar ki Kavitayen" (1996).
3. Mukti (2000)
4. "Apna Ghar" (2005)
5. "Aur Aur Apna" (2016)
6. "Karam Kaise Karein" is a collection of his discourses.
7. He also wrote "Jain Darshan Paribhashika Kosh".
There is a famous quote dedicated to Acharya Vidyasagar by him.
दीप उनका, रौशनी उनकी, मै जल रहा हूँ |
रास्ते उनके, सहारा भी उनका, मै चल रहा हूँ |
प्राण उनके हर साँस उनकी, मै जी रहा हूँ |
Muni Shri 108 Kshama Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज (आचार्यश्री) १९४६ Acharya Shri 108 VidyaSagarji Maharaj (AcharyaShri) 1946
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Edited By: Yastika Jain
Date: 14 Dec 2020
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