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#MuniShriPranamSagarjiMaharaj1972PushpadantaSagarji
Muni Shri Pranam Sagarji Maharaj was born on 9th October 1972 at Yavat taluka Daund, District - Pune (Maharashtra) and he took Initiation from Acharya Shri Pushpadanta Sagarji Maharaj on 13 October 2000 Sharadpurnima Naveen Shahdara, Delhi. Muni Shri is known as Bhaktambar Wale Baba.
(1) पूज्यश्री का नाम - मुनि श्री प्रणाम सागरजी महाराज
(2) ग्रहस्थावस्था का नाम - संजीवकुमार जैन (प्रखर)
(3) जन्मस्थान - यवत तालुका दौण्ड, ज़िला - पुणे (महाराष्ट्र)
(4) जन्मतिथि व दिनांक - ९ अक्टूबर १९७२
(5) माता का नाम - श्रीमती निर्मला जैन
(6) पिता का नाम - श्रीमान देवेंद्रकुमारजी जैन
(7) लौकिक शिक्षा - एम.कॉम.
(8) मुनि दीक्षा तिथि ,दिनांक व स्थान - १३ अक्टूबर २००० शरदपूर्णिमा नवीन शाहदरा, दिल्ली
(9) मुनि दीक्षा गुरु - आचार्य श्री पुष्पदंत सागरजी महाराज
(10) उपाधि - भक्तामर वाले बाबा
तीर्थकर के लघुनंदन में आता जिनका नाम है, रत्नत्रय पथगामी गुरू चरणो में विनम्र प्रणाम है।
विश्व संरचना के मूल में जीव और अजीव अर्थात चेतन और अचेतन दो महत्वपूर्ण पदार्थ है ।
जीवों में भी दुर्लभता से प्राप्त मनुष्य भव तभी सार्थक है जब वह वातावरण ,परिस्थितियों की प्रतिकूलताओं के बावजूद भी स्वयं की सत्ता बनाये रखने के लिये सतत प्रयत्नशील रहता है तथा अपने अदम्य साहस के साथ आत्मनियंत्रित होकर सफलता के सोपान पर चढते हुए वातावरण को ही अपने अनुकूल बना लेता है । जो कॉटों के मध्य रहकर भी मुस्कराते है ,जिन्होंने अपने सहज,सरल और सौम्य व्यवहार से जन-जन के हृदय में स्थान बना लिया है। जो जिनवाणी के उपासक तथा विशिष्ट रूप से भक्तामर के शोधकर्ता होकर प्राणी मात्र के कल्याण की भावना रखते है, जो वंसुधरा पर रहने वाले समस्त जीवों के प्रति वात्सल्य ,करूणा का भाव रखते हुए अपने जन्म नाम “संजीव कुमार ” को सार्थक कर रहे हैं ऐसे स्वधर्मगत आस्थावान ,अन्वेषण परक जिज्ञासु ,गुण-ग्रहण के भावों से परिपूर्ण जिनधर्म प्रभावक ,संतो में अग्रणी ,युवाओं के आदर्श ,शब्द शिल्पी डॉ.प्रणाम सागर जी मात्र जैन समाज के ही नहीं वरन् भारत की धार्मिक सांस्क्तिक परम्परा के कुशल संवाहक है ।
9 अक्टोबर सन् 1972 को महाराष्ट्र के पुना जिले में दौंण्ड तालुका के अंतर्गत एक छोटे से ग्राम यवत में जन्म लेने वाले संजीव कुमार जैन (प्रखर) आज जैन श्रमणों में आचार्य प्रणाम सागर जी भक्तामर वाले बाबा के नाम से विख्यात है । निर्मल स्वभावी माता निर्मला तथा दैवतुल्य पिता देवेन्द्र संजीव कुमार जी श्री तीन संतान राजीव ,संजीव ,एवम् कल्पना में से एक आज आचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज के प्रमुख शिष्यों की गणना में प्रणाम सागर जी के नाम से जाने जाते है ।
अपनी माता की नौकरी में व्यस्तता तथा पिताजी की व्यापार में संलग्नता के कारण घर की सभी जिम्मेदारी (जिसमें साफ-सफाई ,रसोई आदि बनाना) संजीव पर आ गई थी । घर के कार्यो के साथ पढना उनके नित्य कर्म में सम्मिलित था । हालाकि पढाई में उनका मन कम ही लगता था ,किसी का अंकुश नहीं होने से उनका आकर्षण फिल्मों की ओर बढने लगा और संजीव कुमार हीरो बनने के स्वप्न देखने लगे।
शिक्षा
आठवीं कक्षा को बमुश्किल पास करने के बाद माता निर्मला जी ने मुरैना विद्यालय संचालक श्रीमान् सुमतिचंद्र जी शास्त्री से चर्चा करके संजीव को अकेले ही होस्टल में छोड दिया । लेकिन शिक्षा के साथ धार्मिक कियायें करना उस समय मजबूरी थी किंतु इसी मजबूरी ने संजीव कुमार को मजबूत बना दिया । पढाई में मन नहीं लगता था तथा धार्मिक कियायें डर के वशीभूत होकर करते-करते बडी मश्किल से 9 वी कक्षा पास की । जब दसवीं कक्षा में थे तब आचार्य कल्याण सागर जी का संघ मुरैना आया और आचार्य श्री ने बालक संजीव को पढाई में मन लगने हेतु आर्शीवाद दिया तथा प्रतिदिन णमौकार मंत्र का जाप करने को कहा। क्षृध्दा बलवती हुई और धीरे-धीरे पढाई में रूचि बढने लगी ।
सत्संगति
इस समय पुण्योग से श्री ...... दिगंबर जैन संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य श्री बालमुकंुद जी शास्त्री की द्दष्टि संजीव पर पडी और उन्होंने संजीव के स्वभाव को जाना ,कमजोरी का पता लगाया तथा जिस कमरे में धरणेन्द्र तथा जयपाल (जो कि मुनि चिन्मय सागर एवम् मुनि पावन सागर बने )के कमरे मे ं संजीव को रहने के लिये कहा । होनहार बालक धरणेन्द्र एवम् जयपाल ने बडी आत्मीयता के साथ विविध प्रलोभन देकर सुबह चार बजे उठने की अभिषेक -पूजन करने आदत विकसित की । एक दिन ब्रह्मचारी जी ने संजीव से कहा कि, यदि तुमने भक्तामर पाढ कर लिया तो में तुम्हें सोनागिरि की यात्रा कराऊंगा परिणामता घूमने जाने की लालसा ने भक्तामर का पाठ याद करवा दिया । सन् 1988 से सन् 1997 तक का समय होस्टल में व्यतीत हुआ।
सत् सानिध्य
1. आर्चाय सुमति सागर जी के संध की सेवा में अग्रसर रहते हुए फोटो खिचवाने के शौक में एक दिन आचार्य सुमति सागर जी महाराज को केशलोंच करते हुए देखा तो स्वयं छत पर जाकर अपने सिर के बाल उखाड लिये। जिसके लिये इनें भयंकर डांट खानी पडी ।
2. सन् 1991 में आचार्य विमलसागर जी के विहार में साथ चलने वाले संजीव ने मुरैना में आचार्य श्री से अपना भविष्य जानना चाहा तथा परीक्षा में पास होने का आशीर्वाद मांगा । आचार्य श्री ने एक हल्दी दी जिसे अपने पास रखकर परीक्षा में सफलता प्राप्त की ।
3. सन् 1991 में ब्रह्मचारी धरणेन्द्र, जयपाल जब दीक्षा के लिये आचार्य विद्यासागर जी के पास जा रहेथे तो संजीव भी उनके साथ जाने को तत्पर हुआ परंतु दोंनो ब्रह्मचारियो ने कहा कि दीक्षा के लिये शिक्षा आवश्यक है बस तभी से पढाई की ओर अधिक ध्यान देने लगे । उन्होंने संकल्प कर लिया था कि “जब तक पूर्ण शिक्षा प्राप्त नहीं कर लूंगाा तब तक किसी भी साधु के पास नहीं जाऊंगा ”।इस बीच संजीव कुमार ने आचार्य विमल सागर जी से दीक्षित मुनि श्री विराग सागर जी ,श्री बाहुबली सागर जी और मुनि श्री अजित सागर जी के विहार में संलग्नता दिखाई । एक वर्ष में तीन परीक्षा देना अनिवार्य थी - धार्मिक परीक्षा ,संस्कृत परीक्षा तथा लौकिक शिक्षा की परीक्षा अपनी लगन और मेहनत से सफलता मिलती गई।
शिक्षण कार्य
कभी शिक्षा से जी चुराने वाले संजीव पर सन् 1992 में पं.सुमति चंद्र शास्त्री ने ंिशक्षा देने का भार डाला और शिक्षार्थी से शिक्षक बने संजीव भविष्य में सम्यग्ज्ञान की संजीवनी पाने की चाह में सम्यग्ज्ञान शिशु मंदिर में पढाने लिगे। निःशुल्क ट्यूशन देना तथा सायंकाल में मंदिर में पढाना संजीव ने अभावों में भी सद्भाव बना कर रखा । मितव्ययिता से चलना तथा संयम रखना उनके गुण थे दान की भावना का प्रारंभीकरण तभी से हो गया था जब उनकी तनख्वाह 300 रु प्रतिमाह थी । प्रतिक्षण नया सोचने की चाह में आपने टायपिंग का शिक्षण भी प्राप्त किया तथा मेडीकल स्टोर्स पर काम करके अनुभव पाया और अपनी मां की इच्छा का सम्मान करते हुए आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दो वर्षीय की परीक्षा पास करके बी.ई.एम.एस की डॉक्टरी शिक्षा भी प्राप्त की थी। अभिनव के क्षेत्र में कदम एवम् जीवन में परिवर्तन - बचपन से हीरो बनने की अभिलाषा को हवा मिली 1992 में अखबार में आये विज्ञापन से । मन में तरंगे उठने लगी और हीरो बनने के लिये फार्म भर दिया सौभाग्य से टीपू सुल्तान सिरियल में सैनिक का छोटा सा रोल करने का अवसर मिला । फिल्म जगत का खान पान रीयल तथा बनावटी जिंदगी देखकर मन बैचेन हो गया और रील लाईफ तथा लाइ्रफ का अंतर जानते ही कदमों पर रोक लग गई । सत्य ही तो है जिसे सत्य से साक्षात्कार करना है, जिसे जीवन में भवसागर में भटकते प्राणियों दूर के लिये नाविक का रोल निभाना है , जिसे शरणागत के दुःख दर्द करने वाला मसीहा बनना है ऐसी वात्सल्य मूर्ति ,संजीव को जब जीव अर्थात आत्मा और शरीर के भेद विज्ञान के बारे में ज्ञान हुआ तो जीवन सम्यक् पुष्प की सुरभि से महकने लगा और कदम धर्म मार्ग पर अग्रसर होने लगे।
स्मरणीय -तीर्थ यात्रा -
जब धर्म के मर्म को जानने की लगन लगी तो तीर्थकरों के प्रति आस्था तथा तीर्थ क्षेत्रों की वंदना की भावना बलवती होने लगी। 1993 में श्रवणबेलगोला में भगवान बाहुबली महामस्तका भिषेक में जाने का मन बनाया। चंूकि उस समय बी.कॉम द्वितीय वर्ष की परीक्षा भी नजदीक थी किंतु आपने तीर्थ यात्रा को महत्व दिया और प्रबल पुरुषार्थ से विपरीत परिस्थिति को अनुकूल बनाकर लगातार 40 दिनों तक विभिन्न तीर्थ क्षेत्रो की यात्रा कर पुण्यार्जन किया ,जिसमें श्रवणबेलगोला में भगवान बाहुबली के दर्शन हुए एवम् संपूर्ण कर्नाटक के तीर्थ क्षेत्रों के साथ कन्याकुमारी तक का भ्रमण किया । शनैः शनैः जीवन में धर्म का स्थान बढने लगा तथा पूजन ,अभिषेक और स्वाध्याय की आदत विकसित हुई ।
आचार्य पुष्पदंत सागर का आशीर्वाद -
तीर्थ यात्रा का पुण्य तथा आर्चाय पुष्पदंत से आशीर्वाद स्वरुप पेन का प्रयोग बी.काम 2 की परीक्षा में बडी श्रध्दा से किया परिणामतः इंकम टैक्स में सर्वाधिक अंक प्राप्त करके उत्तम परिणाम प्राप्त किया ।
णमोकार मंत्र अनुष्ठान एवम् सम्मेदशिखर जी की यात्रा --
ग्वालियर में आचार्य कल्याण सागर जी द्वारा णमोकार मंत्र का अनुष्ठान चल रहा था जिसमें सम्मिलित होने वालों के लिये तीर्थराज सम्मेदशिखरजी की निःशुल्क यात्रा का आकर्षण था। इसी यात्रा के लोभ में संजीव कुमार भी अनुष्ठान में बैठे और प्रथम बार पं.सुमतिचंद्रशास्त्री जी के साथ सम्मेदशिखर जी की यात्रा करने का सौभाग्य पाया। दूसरी बार परिवार जन तथा रिश्तेदारों के अनुरोध पर उनके साथ शिखरजी की यात्रा हेतु का योग बना किंतु अनुभव अच्छे नहीं रहने से मन व्याथित हो गया। कारण यह था कि परिवार जन संजीव कुमार को यात्रा का कहकर तो ले गये थे किंतु नौकरो के समान कार्य करवाने ले गये थे ,जिसे संजीव कुमार ने महसूस किया तथा संकल्प किया कि भविष्य में कभी किसी के साथ यात्रा नहीं करेगें ।
शांति विधान अर्चना एवम् महार्चना में सहभागिता
सन् 1994 में भिण्ड शहर में बलाचार्य योगीन्द्र सागर जी के सानिध्य में 1008 कुण्डीय महार्चना में भाग लिया तथा तपस्वी समा्रट आचार्य सन्मति सागर जी द्वारा भिण्ड में शांति विधान अनुष्ठान संपन्न कराने में विशिष्ट भूमिका का निर्वाह किया । जब आचार्य श्री से नमोऽस्तु निवेदन किया तो आचार्य श्री के मुखारविंद से निम्न वचन निकले “तू साधु बनेगा” भविष्यवक्ता आचार्य श्री के वचन 13 अक्टोबर 2000 में सत्य सिध्द हुए जब आचार्य पुष्पदंत सागर जी से दीक्षा प्राप्त करके वे मुनि प्रणाम सागर बन कर संयम तपस्या के असिधारा पथ पर दिगंबर वेश धारण कर बढ. चले ।
विद्वत् प्रशिक्षण एवम् विद्वता की परीक्षा -
सिंहरथ प्रवर्तक आचार्य सन्मतिसागर जी द्वारा विद्वानों हेतु स्याद्वाद शिक्षण शिविर का शुभारंभ सोनागिरि में हुआ जिसमें प्रातः काल से पूजन विधि ,स्वाध्याय ,ध्यान तथा दोपहर में प्रवचन देने की कला तथा दोहा, चौपाई आदि लिखने की कला सिखाई जाती थी संजीवकुमार इस शिविर के शिविरार्थी बने तथा प्रारंभ में माईक पर बोलने से घबराने वाले संजीव को जब आचार्य श्री का वात्सल्य भरा आशीर्वाद मिला तो आज वे प्रवचन कला में निष्णात हो गये हैं। आगरा के छीपीटोला में आचार्य श्री का चातुर्मास चल रहा था ,दसलक्षण पर्व के लिये एक श्रावक ने किसी विद्वान को भेजने हेतु प्रार्थना की । उस समय आचार्य श्री ने बडे विश्वास के साथ संजीव कुमार को यह उत्तरदायित्व सौपा। स्वाध्याय स्थली धूलियागंज आगरा में संजीव कुमार के पाण्डित्य एवम् ज्ञान की परीक्षा हुई जिसमें उन्हें निराशा हाथ लगी और धूप दशमी के दिन बिना किसी को बताये वे वहो से चले गये तथा संकल्प लिया कि- “जब तक तत्वर्थसूत्र नहीं सीख लूंगा ,तब तक मैं कहीं भी तत्वार्थसूत्र का वाचन नहीं करुंगा । ” इस तरह आगरा की प्रसिध्द इमारत ताजमहल को देखकर वापिस अपने ग्ह नगर आ गयें।
अंतरंग में अल्पज्ञान -बहिंरग में संकल्प महान
वाहन चलाने के शौक में पहले साईकिल और फिर स्कूटर की टक्कर ने सबक सिखाया तो उन्होंने जैन धर्म के उस वाक्य का स्मरण किया जो बताता है कि “अ ंग -उपांग विकृत श्रावक कभी दीक्षा नहीं ले सकता ” और इस नियम ने इन्हें पद विहारी निग्रंथ गुरु बना दिया।।
मेडीकल का अनुभव -सुधारना है अपना भव
मां ने बताया कि औषधि ज्ञान के बिना मेडीसिन का उपयोग विष के समान है अतः मां के आदेशानुसार मेडीकल लाईन के अनुभव हेतु बी.ई.एम.एस परीक्षा पास की तथा एक मेडीकल स्टोर पर सर्विस की। जिज्ञासु प्रवृति के नाम तथा किस रोग में किस दवा का उपयोग होगा इसका ज्ञान हो गया। एक बार की बात है एक किसान अपने बालक को गोद में लेकर दुकान पर आया उस बालक को कुत्ते ने काटलिया था, इंजेक्शन की कीमत उस समय किसान चुकानें में असमर्थ था । मेडीकल के मालिक ने उसकी अशिक्षा और अनिवार्यता का लाभ उठाते हुए दूसरी कंपनी की नकली दवा वाला इंजेक्शन किसान के पुत्र को लगा दिया । किसी जीव के प्राणों के साथ होने वाली खिलवाडको देखकर संजीव कुमार के मन में विरक्ति के भावों के अंकुर फूटने लगे और मेडीकल स्टोर छोडकर अपने मन को पांच पाप और चार कषायों से मुक्त रखने के तो भावों को शुध्द रखना होगा भाव वृध्दिगत होने लगे वो समझ गये थे कि यदि भव सुधारना है और ज्योति मेडीकल स्टोर्स की इस घटना ने संजीव के जीवन में ज्ञान ज्योति प्रकाशित कर दी।
जीवनी-संजीवनी -आचार्य श्री 108 डॉ.प्रणाम सागर जी महाराज अर्थात् बाला संजीव-
जिसकी बचपन की अठखेलिया घर के उत्तरदायिंत्व में ना जाने कहां खो गई। माता-पिता के भरपूर प्यार से वंचित रहकर पढाई की अपेक्षा संजीव ’हीरो ’ बनने के ख्वाब संजोरहा था तभी मति को सुमति बनाने वाले सुमतिचंद्र जी शास्त्री मुरैना का वरद हस्त मस्तक पर पाया। मन मारकर छात्रावास में रहते हुए संजीव ने धर्म के ढाई अक्षरों के महत्व को जाना तभी जीवन में कल्याण का मंत्र देने वाले णमोकार वाले बाबा कल्याण सागर जी आचार्य ने महामंत्र णमोकार की महत्ता से परिचित कराया। जब चिन्मय में रमने वाले धरणेन्द्र तथा पावन विचारधारा वाले जयपाल के साथ एक ही कमरे में रहने को मिला तो जीवन में थोडा परिवर्तन आया वहीं संजीव कुमार जो कभी फिल्मी हीरो बनने का ख्वाब देखा करते थे आज जैन समाज के ऐसे संत के रुप में जन-जन के चहेते बन रहे हैं जो अपने पावन प्रवचन से अपनी प्रज्ञा शक्ति द्वारा संसार के समस्त जीवों के लिये सुमति ,सन्मति और कल्याण हेतु तत्पर रहते हैं । आठवीं में सोनाली सक्सेना की कॉपी करके पास होने वाले संजीव कुमार आज प्रणाम सागर बनकर आठकर्माे की सेना को पछाडने हेतु निरंतर ज्ञान,ध्यान, तप में लीन रहते है ।
संघर्ष का हर्ष
दीक्षा दिनांक 13.10.2000, अर्थात् तेरह प्रकार का चारित्र पालन करते हुए, दस धर्मो की फुलवारी में पद विहार करने वाले आचार्य प्रणाम सागर जी ने दीक्षोपरांत 2000 कि.मी दिल्ली से कोलकाता ,विहार के पश्चात् जब पुष्पगिरि में चातुर्मास किया तभी से संघर्ष का प्रारंभ हुआ । संघस्य साधुओ द्वारा परेशान किये जाने पर भी वे अपने पथ पर आगे बढते गये । समता भाव से सिध्दवरकूट मे ं सिध्दों को नमन किया तथा इनके सीधे पन का फायदा समाज के ट्रस्टियों ने उठाया और इन पर धन संग्रह का दोषारोपण किया बचपन से स्नेहाभिलाषी की जब स्नेहल से मुलाकात हुई तो जीवन में दो सूत्र अपनाये- 1 प्रतिक्षण साधनारत रहो
2 स्त्रियों से बचकर रहें
मौन साधना
बालाचार्य योगीन्द्र सागर जी से आशीष पाने वाले दिगंबर योगी आप्रणाम सागर जी की मौन साधना कागदीपुरा से प्रांरभ हुई और अंतर में बस गई भक्तामर की महिमा । साधना का प्रभाव - 1. कागदीपुरा में भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा पर जल का दूध में परिवर्तन होना ।
2.मंदारगिरी क्षेत्र पर मौन साधना में पिच्छी मंदिर की परिकल्पना । जिसकी प्रतिष्ठा सन् 2014 में तुमकुर मंदारगिरी पर संपन्न हुई ।
उपसर्ग -
1. चेन्नई ई. सी.आर पर 1 माह की मौन साधना बिच पर चल रही थी तभी रात को एक तमिलियन शराबी आया और बहुत परेशान किया तब एक तमिल वकील मदन ने सुरक्षाकी ।
2. चार्तुमास के बाद विहार रास्ते में राजीव गांधी की मृत्यु के स्थान पर गाडी के कांच फोड दिये तथा भयंकर परेशान किया तब एक श्वेतांबर ने इन्हें अपने घर में शरण दी ।
3.गोआ में होली त्यौहार पर एक हुडदंगी लडके ने काफी परेशान किया यहां तक कि एफ.आई आर भी कर दी गई थी ।
4. 2015 में गोवा मोलेम चातुर्मास में इन्हें भयंकर जंगल में हिंसक जानवरों के बीच (दूध सागर) में भेज दिया गया जिसका मां ने बहुत विरोध किया। तब भगवान के नाम का सुमिरन करते हुए अपनी चर्या का विधिवत पालन किया।
5. 2016 में विनोद कुमार द्वारा रचे गये षडयंत्र के शिकार हुए। इस तरह आचार्य प्रवर । निम्न पंक्तियों को सार्थक किया- ”करते तप शैल नदी तट पर ,तरु तल वर्षा की झडियों में समता रस पान किया करते ,सुख दुःख दोंनो की घडियों में “ ।
भव्य प्रतिष्ठायें एवम् विशेष कार्यक्रम -
1. जन्मभूमि यवत (पूना) में रत्नमयी अष्टापद जिनालय की संरचना एवम् प्रतिष्ठा ।
2. 2016 में सिहंरथ महोत्सव में सानिध्य ।
3. 2016 में मांगीतुंगी में भगवान ऋषभ देव की सर्वधिक उत्तुंग प्रतिमा के पंचकल्याणक में सानिध्य ।
4. 2014 में तुमकुर मंदारगिरि में पिच्छी मंदिर की प्रतिष्ठा ।
5. 2017 के शुभारंभ पर 25000 दीपकों से महाआरती का आयोजन किया जो गोल्डन बुक आफॅ वर्ल्ड रिकार्ड में नामांकित हुआ ।
6. फरवरी 2017 में नेमीनगर जैन कालोनी में ऐतिहासिक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा संपन्न ।
7. 2021 में 48,000 गज के वस्त्र पर भक्तामर लेखन अनुष्ठान । डॉक्टरेक्ट उपाधि -सन् 2004 में ” भगवान महावीर का आर्थिक चिंतन और उसकी प्रासंगिकता “विषय पर विक्रम विश्व-विद्यालय द्वारा पी.एच.डी डिग्री प्राप्त की। ज्ञातव्य है कि किसी दिगंबर जैन मुनि द्वारा दीक्षोपरांत प्रथम बार पी.एच.डी की गई। 57 प्रकार के आस्त्रवों से बचने के लिये महाव्रत को धारण करने वाले आचार्य प्रणाम सागर जी की दीक्षा भी 57 पिच्छीधारियों के मध्य संपन्न हुई है। स्वभाव से सरल ,विनम्र,वात्सल्य मूर्ति ,प्रणामसागर ंजी महाराज के बारे में यही कहा जा सकता है-
सन् 2004 में ” भगवान महावीर का आर्थिक चिंतन और उसकी प्रासंगिकता “विषय पर विक्रम विश्व-विद्यालय द्वारा पी.एच.डी डिग्री प्राप्त की। ज्ञातव्य है कि किसी दिगंबर जैन मुनि द्वारा दीक्षोपरांत प्रथम बार पी.एच.डी की गई। 57 प्रकार के आस्त्रवों से बचने के लिये महाव्रत को धारण करने वाले आचार्य प्रणाम सागर जी की दीक्षा भी 57 पिच्छीधारियों के मध्य संपन्न हुई है। स्वभाव से सरल ,विनम्र,वात्सल्य मूर्ति ,प्रणामसागर ंजी महाराज के बारे में यही कहा जा सकता है- शरणागत की पीडा हरते म्ंात्रोपचार बताते हैं । ग्रह की दशा समझते हैं और ग्रह से मुक्ति दिलाते हैं । पुष्पदंत सागर गुरूवर के शिष्यों में है जिनका नाम करुणामूर्ति प्रणाम सागर जी के चरणों में शत बार प्रणाम।
भक्तामर कलश तीर्थ, प्राणप्रतिष्ठा (दिसंबर २०२४)
आचार्य श्री १०८ डॉ प्रणाम सागरजी महाराज एवं उनके शिष्य आर्यिका श्री १०५ चंद्रजिनश्री माताजी के पावन सान्निध्य में और प्रेरणा से मूलनायक भगवान श्री १००८ पद्म प्रभु एवं नवग्रह भगवंत की प्राणप्रतिष्ठा एवं पंचकल्याणक महोत्सव ६ दिसंबर से ११ दिसंबर २०२४ तक भक्तामर कलश तीर्थ भांडगांव, यवत, पुणे, महाराष्ट्र पुणे-सोलापुर हाईवे पर आयोजन किया गया है।
#MuniShriPranamSagarjiMaharaj1972PushpadantaSagarji
मुनी श्री १०८ प्रणाम सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागरजी महाराज १९५४ Acharya Shri 108 Pushpadant Sagarji Maharaj 1954
Dhaval Patil Pune-9623981049
Dhaval Patil Pune-9623981049
PushpadantSagarJiMaharaj1954VimalSagarJi
Muni Shri Pranam Sagarji Maharaj was born on 9th October 1972 at Yavat taluka Daund, District - Pune (Maharashtra) and he took Initiation from Acharya Shri Pushpadanta Sagarji Maharaj on 13 October 2000 Sharadpurnima Naveen Shahdara, Delhi. Muni Shri is known as Bhaktambar Wale Baba.
Bhaktamar Kalash Teerth, Pranpratistha (December 2024)
Acharya Shri 108 Dr. Pranam Sagarji Maharaj and his disciple Aryika Shri 105 Chandrajinshree Mataji In the holy presence and inspiration of, the consecration Panchkalyanak and Pran Pratishtha Mahotsav of Mulnayak Lord Shri 1008 Padma Prabhu and Navagrah Bhagwant at Bhaktamar Kalash Tirtha has been organized at Bhandgaon, Yavat, Pune, Maharashtra on Pune-Solapur Highway from 6th December to 11th December 2024.
Muni Shri 108 Pranam Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागरजी महाराज १९५४ Acharya Shri 108 Pushpadant Sagarji Maharaj 1954
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागरजी महाराज १९५४ Acharya Shri 108 Pushpadant Sagarji Maharaj 1954
Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
Acharya Shri Pushpadanta Sagarji Maharaj
Dhaval Patil Pune-9623981049
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