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#PunyaSagarJiMaharajPushpadantaSagarJi
Acharya Shri Punya Sagar Ji Maharaj: Mahavira (childhood name of Muni Shri Punya Sagar Ji) born in the house of Shri Mohan Lal Ji in a village of Dungarpur district, Rajasthan, on the Kukshi of Mother Smt. Veena Devi. Both Mohan Lal ji and Shrimati Veena Devi ji were religious devotees.
February 22 Update
शिखरजी- श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र मध्यलोक मधुवन शिखर जी झारखंड में मनि श्री पुण्यसागर महाराज जी के करकमलों से 21 जनवरी 2022 को क्षुल्लिका उजवलामति माताजी तथा अरूणादेवी गलवाडा आसाम को दीक्षायें दी गई जिनके नाम क्रमश: आर्यिका उज्जवलामति माताजी. क्षल्लिका उत्तममति माताजी नाम रखा गया।
Ref - Sanksar_Sagar -Feb 22
December 21 Update
सम्मेद शिखरजी- मुनि श्री पुण्यसागर महाराज जी के करकमलो से 3 दिसम्बर दोप. 12.30 पर श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र मधुवन मध्यलोक शिखर जी में ब्र. शकुन्तला बाई जी शिलापधार असम श्रीमती बबलीबाई जी मुंबई को दीक्षा दी गयी।
Ref - Sanksar_Sagar -Dec 21
मुनी श्री १०८ पुण्य सागर जी महाराज
मुनी श्री पुण्य सागर जी महाराज :राजस्थान की डूंगरपुर जिले के एक ग्राम में श्री मोहन लाल जी के घर में ,माता श्रीमती वीणा देवी की कुक्षी से जन्मे महावीर (मुनी श्री पुण्य सागर जी का बचपन का नाम ) । मोहन लाल जी और श्रीमती वीणा देवी जी दोनों ही धर्म परायण थे ।एक दिन वीणा देवी ने श्री मोहन लाल जी से कहा की उन्हें कुछ दिनों से बहुत ही सुन्दर सुन्दर स्वप्न आ रहे है और सपने में जिनेन्द्र प्रभु के दर्शन होते है ।तब उन्होंने कहा ऐसा लगता है आपकी कोख से कोई पुण्यात्मा जीव का जन्म होगा ।तब वीणा जी का ख़ुशी का और बाद गयी जब ३ सितम्बर को उन्होंने १ पुत्र को जन्म दिया ।उनका नाम महावीर रखा गया ।और किसे पता था की यह महावीर भी महावीर की तरह ही आगे जाकर जैन धर्म की प्रभावना करेगा ।आपको बचपन से ही माता पिता ने धर्म के संस्कारों दिए ।बचपन में ही महावीर जी ने सत्य ,अहिंसा और क्षमा को धारण कर लिया था ।१ बार उनके ग्राम में आचार्य श्री सन्मति सागर जी का आगमन हुआ।पूरा गाँव ही धर्ममय हो गया ।उस समय आचार्य श्री ने छोटे बच्चो को धर्म का ज्ञान देने के लिए पाठशाला की स्थापना की ।उन बच्चो में महावीर भी था ।आचार्य श्री ने प्राचीन पद्धति के अनुसार जनेहु पहनाकर शिक्षा देना प्रारंभ की।जनेहु पहना देख महावीर के माता पिता ने आचार्य श्री सन्मति सागर जी से निवेदन किया की कृप्या आप इसका जनेहु उतर दीजिये ये ७ बहनों में केवल १ ही भाई है ।तब आचार्य श्री ने कहा की १ वर्ष के पालन के बाद इसका जनेहु उतार देना लेकिन १ बात याद रखना की इसके कदम घर में नही टिकेंगे ।और ये आगे चलकर जैन धर्म की पताका फेरायेगा ।आचार्य श्री के ऐसे वचन सुनकर माता पिता दोनों डर गए ।महावीर का मंदिर आना जाना भी बंद हो गया ।लेकिन जिस प्रकार हवा और मन को वश में करना मुश्किल है वैसे ही महावीर को घर मे रोकना भी मुश्किल था ।१ वर्ष बाद ही पिता के व्यापार के कारण परिवार को सागवाडा जान पड़ा ।जब महावीर १४ वर्ष के हुए तब वहां आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी का आगमन हुआ ।पूरा परिवार प्रवचन सुन ने जाता था केवल महावीर को जाने की आज्ञा नहीं थी ।लेकिन महावीर जयंती के कुच्दीन पूर्व पता नही महावीर के मन में क्या आया वो पहुच गये आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी के प्रवचन सुनने ।सभा में सबसे पीछे बैठकर आचार्य श्री के मार्मिक प्रवचन सुनने लगे ।प्रवचन का प्रभाव पड़ा की वो घर जाना भी भूल गये और व्ही आचार्य श्री के पास रुक गये ।अगले दिन जब माता पिता ने उन्हें सफ़ेद कपडे में देखा तो घर चलने के लिए कहा।तब आपने घर जाने से मना कर दिया ।तब घरवालो ने आचार्य श्री से कहा की वो सिर्फ उसे खाना खिलने ले जाना चाहते है ।तब आचार्य श्री की आज्ञा से वो घर चले गये ।परन्तु माता पिता ने उसे घर में ही बंद कर दिया ।उसके बाद २ दिन तक महावीर ने खाना नही खाया तब घर वाले उन्हें वापस आचार्य श्री के पास ले गये।और वहा वो बढ़ गये जैनिश्वरी दीक्षा के लिए ।तब माता ने बहुत समझाया और कहा कि मुनि धर्म पालना असान काम नहीं है।तब महावीर ने कहा कि असान काम तो सब कर लेते है कठिन काम करना ही दरियादिल कि पहचान है ।तब माता जी ने आशीर्वाद दिया कि जा ही रहे हो तो पीछे मुड़कर मत देखना ,मुनि धर्म का पालन करना और अपने कुल कि मर्यादा बनाये रखना ।इसके बाद आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी ने पहले क्षुल्लक फिर एलक और फिर मुनि पुण्य सागर बना दिया ।कुछ समय आचार्य श्री के साथ रहकर अकेले विहार किया।उनके प्रवचन और गंभीर चिंतन से जन मानस में ऐसे गहरी छाप छोड़ी ।सन १९९३ में क्षुल्लक दीक्षा के बाद प्रथम चातुर्मास भिंड -इटावा में हुआ जहा आहार के बाद मौन रहकर साधना और शास्त्रों का अध्ययन प्रमुख कार्य था ।
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आचार्य श्री १०८ पुण्यसागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज 1954 Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
Dhaval Patil Pune-9623981049
Dhaval Patil Pune-9623981049
PushpadantSagarJiMaharaj1954VimalSagarJi
Acharya Shri Punya Sagar Ji Maharaj: Mahavira (childhood name of Muni Shri Punya Sagar Ji) born in the house of Shri Mohan Lal Ji in a village of Dungarpur district, Rajasthan, on the Kukshi of Mother Smt. Veena Devi. Both Mohan Lal ji and Shrimati Veena Devi ji were religious devotees.
February 22 Update
शिखरजी- श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र मध्यलोक मधुवन शिखर जी झारखंड में मनि श्री पुण्यसागर महाराज जी के करकमलों से 21 जनवरी 2022 को क्षुल्लिका उजवलामति माताजी तथा अरूणादेवी गलवाडा आसाम को दीक्षायें दी गई जिनके नाम क्रमश: आर्यिका उज्जवलामति माताजी. क्षल्लिका उत्तममति माताजी नाम रखा गया।
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December 21 Update
सम्मेद शिखरजी- मुनि श्री पुण्यसागर महाराज जी के करकमलो से 3 दिसम्बर दोप. 12.30 पर श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र मधुवन मध्यलोक शिखर जी में ब्र. शकुन्तला बाई जी शिलापधार असम श्रीमती बबलीबाई जी मुंबई को दीक्षा दी गयी।
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Acharya Shri 108 Punya Sagar Ji Maharaj
Acharya Shri Punya Sagar Ji Maharaj: Mahavira (childhood name of Muni Shri Punya Sagar Ji) born in the house of Shri Mohan Lal Ji in a village of Dungarpur district, Rajasthan, on the Kukshi of Mother Smt. Veena Devi. Both Mohan Lal ji and Shrimati Veena Devi ji were religious devotees. One day Veena Devi told Shri Mohan Lal ji that she has been having very beautiful dreams and dreams of Jinendra Prabhu for a few days. It is said that a saintly creature will be born from your womb. Then Veena ji was happy and after 3 September she gave birth to 1 son. She was named Mahavir. And who knew that this Mahavira was also Mahavira's In the same way, we will further influence Jainism. Since your childhood, the parents gave the sacraments of religion. Mahavir had embraced truth, non-violence and forgiveness in his childhood. Arrived. The entire village became religious. At that time Acharya Sri established a school for imparting knowledge of religion to young children. Mahavir was also among those children. Acharya Sri started teaching by wearing janehu according to the ancient method. Seeing the wearing of Janehu, Mahavir's parents requested Acharya Shri Sanmati Sagar ji that please get off his body. There is only 1 brother. Then Acharya Shri said that after observing it for 1 year, take it off the tree but remember 1 thing that its steps will not stay in the house. And it will later spread the flag of Jainism. Such words of Acharya Shri Hearing this, both parents got scared. Mahavir's visit to the temple also stopped. But as it is difficult to control the wind and the mind, Mahavira was also difficult to stay in the house. He came to know Sagwada. When Mahavir was 14 years old, then Acharya Shri Pushpadanta Sagar came there. The entire family preached by listening only Mahavir was not allowed to go. What did he come to hear the discourses of Acharya Shri Pushpadanta Sagar ji. Sitting at the back of the meeting, he started listening to the poignant discourses of Acharya Shri. The effect of the scripture was that he forgot to go home and he stayed with Acharya Shri. Next day when When the parents saw them in white clothes, they asked them to go home. Then you refused to go home. Then the family members told Acharya Shri Just want to take him to the food. Then he went home with the permission of Acharya Shree. But the parents locked him in the house. After that Mahavir did not eat food for 2 days, then the family members returned to Acharya Shree. He took it near and he grew there for Jainiswari initiation. Then Mata explained a lot and said that keeping the Muni Dharma is not easy work, then Mahavir said that easy work is doing all the hard work is the identity of the generous Then Mata ji blessed that if you are going then do not look back, follow the Muni Dharma and maintain your total dignity. After this Acharya Shree Pushpdant Sagar Ji first made Aulaklak then Elk and then Muni Punya Sagar. For some time Muniji stayed alone with Shri. His discourse and serious thought left such a deep impression in the public psyche. The first Chaturmas Bhind-Eitawah took place after eruptive initiation in 1943, where the practice of meditation and scriptures followed by silence The study was the major task.
Acharya Shri 108 Punya Sagarji Maharaj
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज 1954 Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज 1954 Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
Acharya Shri 108 Pushpadant Sagar Ji Maharaj 1954
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