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#SudhaSagarJiMaharaj1956VidyasagarJi
Ishwar Barra, a lush green garden site situated in the picturesque hills of Vindhya-Giri in Bundelkhand, is a large area of 7 to 7 feet high sculptures of Lord Shri Shantinath, Kunthunath and Arhanath on this hill. On the day of Moksha Saptami in 1954, there was a sunrise illuminating the world of the world on Pratyusha, that is, a child was named Jai Kumar. The family and the village cheered, and the greetings of relatives and villagers started coming.
Growing up in the shadow of love under the guise of a child Jai Kumar's parents, Kishore and Kumar were attained and B.Com in public education Having attained the degree, he imbibed the education of the local people, but while searching for the adjacent magnificent creatures, Kundalpur reached the proven area and there was a young person with a keen eye. Saw Sadhu Acharya Vidyasagar and accepted him as the director's mind for his spiritual research.
May 2022 Update
जबलपुर- श्री दिगम्बर जैन मंदिर हनुमानताल जबलपुर में पंचकल्याणक एवं गजरथ महोत्सव निर्यापक मुनि श्री सुधासागर महाराज जी के ससंघ सान्निध्य में 03 मई से 08 मई 2022 तक सम्पन्न होगा।
मुनि श्री १०८ सुधा सागरजी महाराज
बुंदेलखंड में विंध्य-गिरी की सुरम्य पहाड़ियों के बिच स्थित एक हरे भरे उद्यान के सामान स्थल अतिशय क्षेत्र इश्वर बारा है।इस पहाड़ी पर भगवान् श्री शान्तिनाथ ,कुंथुनाथ तथा अरहनाथ की ९-९ फीट ऊँची अतिशय कारी प्रतिमाये विराजमान है।इसी ग्राम में सन १९५६ में मोक्ष सप्तमी के दिन प्रत्यूष काल में सर दुनिया को प्रकाशित करने वाला सूर्योदय हुआ अर्थात एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम जय कुमार रखा गया ।सारा परिवार एवं ग्राम खुशहाली से झूम उठा तथा रिश्तेदार एवं ग्रामवासियों की बधाइयाँ आने लगी ।
बालक जय कुमार माता पिता के दुलार में प्यार की छाया में बढता हुआ किशोर एवं कुमार अवस्था को प्राप्त हुआ एवं लोकिक शिक्षा में बी.कॉम. की डिग्री हासिल कर लोकिक शिक्षा को आत्मसात किया।लेकिन आसन्न भव्य जीवों की खोज करता हुआ सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर पंहुचा और वहा पर एक गौर वर्ण वाले युवा दिग. साधू आचार्य विद्यासागर को देखा एवं इन्हें अपने आध्यात्मिक शोध का निर्देशक मन ही मन मान लिया।
संक्षिप्त परिचय | |
जन्म: | सन १९५६ में मोक्ष सप्तमी |
जन्म नाम: | जय कुमार जैन |
जन्म स्थान:: | इश्वर बारा |
माता का नाम: | श्रीमती शांति देवी जैन |
पिता का नाम: | श्री रूप चंद जैन |
क्षुल्लक दीक्षा : | १० जनवरी १९८० |
क्षुल्लक दीक्षा स्थान | नैनागिरी |
क्षुल्लक दीक्षा नाम | परम सागर |
ऐलक दीक्षा | सन १९८२ |
ऐलक दीक्षा स्थान | सागर |
ऐलक दीक्षा गुरू: | संत शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी |
मुनि दीक्षा | २५ सितम्बर १९८३ ,आश्विन कृष्ण तीज |
मुनि दीक्षा स्थान | ईसरी |
मुनि दीक्षा गुरू: | संत शिरोमणी आचार्य श्री विद्यासागर जी |
विशेष : | निरंतर ९ माह का मौन धारण किया । |
ग्रन्थ लेखन : |
श्री फल चढ़ा कर जयकुमार जी बोले कि महाराज अभी तक आपके पास सफ़ेद बाल वाले आते थे लेकिन इस बार तो काले बाल वाले आये है ,तब आचार्यश्री ने मुस्कुराते हुए बोले कि "भैया सफ़ेद बाल वाले आते है और चले जाते है लेकिन काले बाल वाले मेरे पास आते तो है और फिर वापस नहीं जाते " और फिर सिद्ध क्षेत्र नैनागिरी में दीपावली के दिन आप दुबारा पहुचे तो शोध कार्य लिखित रूप से शुरू कर दिया अर्थात ५ वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया ।गुरु ने अपना वरद हस्त एवं मयूर पिच्छिका सर पर रख दी और कहा कि यही मयूर पिच्छीका अब आपको हाथ में लेना है।वह दिन था ८ जनवरी १९८० ।एक दिनके अंतराल के बाद १० जनवरी १९८० को आचार्य श्री ने ब्र. जयकुमार जी को क्षुल्लक दीक्षा दे दी तथा नाम रखा परम सागर इसके बाद २ साल बाद सागर की दूसरी वाचना में वर्णी भवन के शांति कक्ष में आपकी ऐलक दीक्षा हुई।गणेश प्रसाद जी वर्णी की साधना एवं समाधि स्थली ईसरी में संघ सहित चातुर्मास की स्थापना हुई और इसी चातुर्मास में २५ सितम्बर १९८३ ,आश्विन कृष्ण तीज को मुक्ति का बीज रत्नत्रय को अंकुरित करने के लिए जैनेश्वरी दीक्षा आचार्य श्री द्वारा दी गयी और नाम रखा गया मुनि श्री १०८ सुधा सागरजी महाराज ।आपकी ओजस्वी वाणी सरल सुबोध .स्वच्छ ,निर्मल,निश्चल ,मर्म स्पर्शी ,ह्रदय को छुने वाली है और श्रोता एवं पाठक के ह्रदय पर एक चिर स्थायी प्रभाव डालती है।
आपकी दिग मुद्रा ,समन्वित प्रतिभा से अलंकृत सौरभ संपन्न ,शांति ,तपस्या ,ध्यान निर्मलता तथा वीतरागता आदि गुणों से ओत-प्रोत होने के कारण ही दर्शनार्थीयों के अंत: करण को आकर्षित एवं आनंदित करती है ।इनकी साधना अद्भुत है।शुरू से ही आप अपने शरीर से निस्प्रही और निग्रिह थे।एक कोने में बैठे बैठे ही हमेशा ध्यान ,अध्ययन में लीं रहते थे ।सबसे बहुत ही कम बोलते थे ।वह भी अपने संघ के साधुओं से ही।ब्रह्मचारिणी व श्रावकों से भी नहीं।
जैसा जो योग्य प्रासुक आहार श्रावक दी वो ले लेना ऐसा कई माह तक करते रहे ।शरीर को आहार न मिलने से कमजोरी आ गई तब भी अन्य आवश्यकों में कमी नहीं आई।इनके जीवन की त्याग की विशेषता थी कि इन्होने समस्त फलों का त्याग कर दिया था मुनि दीक्षा वाले दिन ही।आज भी प्रतिदिन नीरस जैसा आहार ग्रहण करते है। दस वर्ष से ज्यादा समय से चटाई का त्याग कर दिया ।आपने बहुत से साधनाए आचार्य श्री के बिना पूछे ही कर डाली क्योंकि उन्हें डर था कि आचार्य श्री कभी मना कर देंगे क्योंकि आचार्य श्री अपने शिष्यों से कहते थे कि अभी तो इतनी छोटी उम्र में साधना नहीं करनी चाहिए ।धीरे धीरे आगे बदना चाहिए ।इनके उपवास के बारे में क्याकाहे ज्येष्ठ की तपती कडकडाती दुपहरी में जब आग की लपते चारो ओर से निकलती है तब ऐसे हर एक ग्रीष्म ऋतू में भी अष्टमी चतुर्दसी को एवं ओर भी कितने उपवास करते है।
आज वर्तमान में भी आप २-२ घंटे की सामायिक उत्कृष्ट रूप से कर रहे है।इसी प्रकार कई ओर साधनाए इनके जीवन का अंग बन गयी है।एक बार आपने एक-दो दिन का नहीं बल्कि निरंतर ९ माह का मौन धारण किया । धन्य है ऐसे मौनी बाबा ओर धन्य है वे गुरु जिनको ऐसे साधक शिष्य मिले।
#SudhaSagarJiMaharaj1956VidyasagarJi
निर्यापक मुनि श्री १०८ सुधा सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 VidyaSagarji Maharaj 1946 (AcharyaShri)
आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज (आचार्यश्री) १९४६ Acharya Shri 108 VidyaSagarji Maharaj (AcharyaShri) 1946
https://www.facebook.com/madhu.sethi.39
Sanjul Jain updated on 25-07-2021
AcharyaShriVidyasagarjiMaharaj
Ishwar Barra, a lush green garden site situated in the picturesque hills of Vindhya-Giri in Bundelkhand, is a large area of 7 to 7 feet high sculptures of Lord Shri Shantinath, Kunthunath and Arhanath on this hill. On the day of Moksha Saptami in 1954, there was a sunrise illuminating the world of the world on Pratyusha, that is, a child was named Jai Kumar. The family and the village cheered, and the greetings of relatives and villagers started coming.
Growing up in the shadow of love under the guise of a child Jai Kumar's parents, Kishore and Kumar were attained and B.Com in public education Having attained the degree, he imbibed the education of the local people, but while searching for the adjacent magnificent creatures, Kundalpur reached the proven area and there was a young person with a keen eye. Saw Sadhu Acharya Vidyasagar and accepted him as the director's mind for his spiritual research.
May 2022 Update
जबलपुर- श्री दिगम्बर जैन मंदिर हनुमानताल जबलपुर में पंचकल्याणक एवं गजरथ महोत्सव निर्यापक मुनि श्री सुधासागर महाराज जी के ससंघ सान्निध्य में 03 मई से 08 मई 2022 तक सम्पन्न होगा।
After offering fruit, Jayakumar ji said that Maharaj used to come to you with white hair yet but this time he has come with black hair, then Acharyashree said with a smile that "Brother come with white hair and go away but with black hair If you come to me and do not go back again "And then when you reached the Siddha Kshetra Nainagiri again on the day of Diwali, you started writing the research work, that is, took a 5-year Brahmacharya fast. But kept it and said that this Peacock Pichika is now in your hands. That day was January 8, 1980. After a gap of one day, on January 10, 1980, Acharya Sri gave the B.R.Gave a blissful initiation to Jayakumar ji and named it Param Sagar. After this, after 2 years, you got your initiation in the peace room of Varni Bhavan in the second reading of Sagar. Ganesh Prasad ji was established in the spiritual and samadhi site of Varni, along with the union Chaturmas. And in the same Chaturmas on 25th September 1943, Ashwin Krishna Teej was given and named by Jaineshwari Diksha Acharya Shri to sprout the seed of liberation, Ratnatraya, Muni Sri Sudha Sagarji Maharaj. , Touching, touching the heart and has a lasting effect on the heart of the listener and reader.It is heart touching and has a lasting effect on the heart of the listener and reader.It is heart touching and has a lasting effect on the heart of the listener and reader.
Your deep posture, embellished with coordinated talent, affluence of Saurabh, peace, austerity, meditation, cleanliness and serenity, etc., attract and delight the souls of the devotees. Their spiritual practice is amazing. He was sleepless and attentive to his body. He was always sitting in a corner, meditating and studying. He spoke very rarely. He was also from the sages of his sangha, not even the Brahmacharini and the Shravaks.
They kept doing this for a number of months, as they were given the worthy prescriptions. It was on the day of sage initiation. Today too, they eat a diet like monotonous. Abandoned the mat for more than ten years. You did many meditations without asking Acharya Shree because he was afraid that Acharya Shree would ever refuse because Acharya Shree used to tell his disciples that at such a young age. You should not do meditation. You should change slowly. What about the fasting of the eldest, when the flame of fire rises from all four sides, then how many fasts do Ashtami Chaturdasi take in each such summer night. .
Today, even today, you are doing excellently for 2–2 hours. Likewise, many other practices have become a part of their life. Once you have maintained a silence for 6 months, not for a day or two. Blessed are such Mauni Baba and blessed are those gurus who get such seeker disciples.
Guru
Niryapak Muni Shri 108 Sudha Sagar Ji Maharaj
आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज (आचार्यश्री) १९४६ Acharya Shri 108 VidyaSagarji Maharaj (AcharyaShri) 1946
आचार्य श्री १०८ विद्यासागरजी महाराज (आचार्यश्री) १९४६ Acharya Shri 108 VidyaSagarji Maharaj (AcharyaShri) 1946
Acharya Shri 108 VidyaSagarji Maharaj 1946 (AcharyaShri)
Niryapak
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Sanjul Jain updated on 25-07-2021
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