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#VrushabSagarJiMaharaj
Shri Vrishabasagarji Maharaj is a state of Maharashtra in the Deccan region of Bharatpur region of East Jambudweep. There used to be a patil named Babgonda in Mangaon on the banks of Panchganga in Karveer district. He had a Sushil wife named Savitri. He had a virtuous son named Pradagonda.
मुनि श्री १०८ वृषभ सागर जी महाराज
दिगम्बर जैना साधु
श्री वृषभसागरजी महाराज पूर्व वृत्तान्त-जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में दक्खन भाग में महाराष्ट्र प्रान्त है। उसमें करवीर जिले में पंचगंगा के किनारे मानगांव में बाबगौंडा नामक पाटिल रहते थे। उनके सावित्री नामक सुशील पत्नी थी। उनके प्रादगौंडा नामक सद् गुणी पुत्र था ।
आदगौंडा की आयु के बारहवें वर्ष में उनके मां-बाप का स्वर्गवास हुआ । इसलिये गृहस्थो का भार उनके ऊपर स्वयं प्रा पड़ा । उसके बाद उनका निवाह एक सुशील कन्या के साथ हवा और वे दिग्रस को सहपरिवार रहने के लिए गये ।
अादगौंडा को पांच पुत्र हुए। किन्तु देवलीला के कारण उनके बीच के पुत्र की गांव के अमानुष कलह में हत्या हुई । इसलिए वे गांव छोडकर सांगली को रहने के लिए गये । उन्होंने व्यापार में बहुत धन संपत्ति तथा मान कमाया । वे एक महाना श्रेष्ठी कहलाने योग्य हुए। किन्तु उनके मन को शान्ति नहीं थी। आदगोंडा सुख में थे किन्तु उनके मन में हमेशा आता था कि मेरा कमाया हुआ परिग्रह मेरे साथ नहीं जायेगा क्योंकि विद्वानों ने कहा है कि ( मराठी भाषामें )
“गाधा गिरधा उषा मऊषा ऐथि चकी रहाणार ।
सर्व संपत्ति सोडून अंति एकटेच जागार ।।" ऊपर के मराठी का मतितार्थ यह है कि, सत्र परिग्रह यहीं रहेगा। साथ कुछ भी नहीं जायेगा । इस तरह उनको वैराग्य हुवा । अन्त में वयोवृद्ध महान तपस्वी, आचार्य १०८ श्री अनंतकीर्ति महाराज के पास ११ मार्च १९५१ में उन्होंने] शुभ मुहूर्त में क्षुल्लक दीक्षा ली। उस समय उनके साथ वज्रकीति, अर्ककीति रविकीति इन तीनों ने दीक्षा ली । दीक्षा समारंभ में आदगौंडा का नामाभिधान वृषभकीति हुवा । इसमें वज्रकीर्ति और रविकीति का निधन हुवा । पूज्य लक्ष्मीसेन भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामी मठ कोल्हापुर रायवाम तसूर इनके पास चार वर्ष तक रायबाग में रहकर धर्म को शिक्षा ली । तदनंतर कडोली, बेलगांव, कोल्हापुर, कारनार शिरसी, लातूर, मुरुड आदि स्थानों में उनके चातुर्मास हुए।
मिती वैशाख सुदी ७ ता० १०-५-६२ गुरुवार दिन में शिरड शहापुरा में धर्म शिक्षा शिबिर चल रहा था, उस समय कारंजा निवासी संचालक वर्गी पंडित उत्कल राय विद्यार्थी तथा बहुत नगरवासी महमानों के समक्ष श्री पूज्य १०८ आदिसागर महाराज ने क्षुल्लक १०५ वृषभकीतिको ऐलक दीक्षा दी । उस समय उनका नामाभिधान श्री १०५ ऋषभसागर रखा गया। उसके बाद कारंजा और बार्शी में चातुर्मास हुए।
बार्शी में उनका चातुर्मास बड़े सानंद से हुगा । आपकी अमृतमयी वाणी ने महान् धर्मप्रभावना की । इस पीढ़ी में ऐसा चातुर्मास पहला ही हुआ। बहुत से जनी होते हुए उनको धर्म के असली तत्वों की जानकारी नहीं थी। आपकी प्रभावना से कभी न आने वाले लोग मंदिर में आने लगे। इसका एक मात्र कारण आपका विशुद्ध चारित्र है । वे लॉग आज स्वयं इकट्ठा होकर सानंद धर्मचर्चा शास्त्र आदि अध्ययन करते हैं । ऐसी महान आत्मा ने आत्म कल्याण किया।
कुन्थल गिरी सिद्धक्षेत्र पर आपने ४१ दिम का समाधिमरण कर स्वर्ग को प्रयाण किया । ११३ वर्ष की उम्र में आपने समाधि धारण की । अक्टूबर सन् १९८३ में आपकी समाधि
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मुनि श्री १०८ वृषभ सागरजी महाराज
आचार्य श्री १०८ आदि सागर (अंकलिकर) १८०९ Acharya Shri 108 Aadi Sagar (Anklikar) 1809
Chaturmas in places like Kadoli, Belgaum, Kolhapur, Karnar Shirsi, Latur, Murud etc.
That was followed by Chaturmas in Karanja and Barshi.
Dhaval Patil - 9623981049
Dhaval Patil - 9623981049
AadiSagar(Anklikar)1809
Shri Vrishabasagarji Maharaj is a state of Maharashtra in the Deccan region of Bharatpur region of East Jambudweep. There used to be a patil named Babgonda in Mangaon on the banks of Panchganga in Karveer district. He had a Sushil wife named Savitri. He had a virtuous son named Pradagonda.
Digambar Jaina Sadhu
Shri Vrishabasagarji Maharaj is a state of Maharashtra in the Deccan region of Bharatpur region of East Jambudweep. There used to be a patil named Babgonda in Mangaon on the banks of Panchganga in Karveer district. He had a Sushil wife named Savitri. He had a virtuous son named Pradagonda.
His parents died in the twelfth year of the age of Adagonda. Therefore, the burden of family members fell upon them. After that, he was married with a gentle girl, Hava and they went to Digras to live together.
Adagonda had five sons. But due to Devlila, their son was killed in the inhuman squabbles in the village. So they left the village and went to live in Sangli. He earned a lot of wealth, wealth and honor in business. He became worthy of being called a great noble. But his mind was not at peace. Adagonda was in happiness, but he always used to think that my earned accession would not go with me because scholars have said that (in Marathi language)
“Gadha Girdha Usha Mausha Aethi Chaki Rahanar.
Sarva property sodun anti ektech jagar. "The view of the above Marathi is that, the session will remain here. Nothing will go with it. In this way they are disinterested. At last, the great ascetic, Acharya 108 Shri Anantkirti Maharaj has 11 March. In 1951.] He took a small initiation in auspicious time. At that time he was initiated by Vajrakiti, Arkkiti Ravikiti. The initiation initiation took place of Adagonda, Vashubhakti Vrishabhakiti. In this, Vajrakirti and Ravikiti passed away. Pujya Lakshmisena Bhattarak Pattarachaya Mahapurvi Tasur stayed in Raibag for four years and taught religion. Later, he had Chaturmas in places like Kadoli, Belgaum, Kolhapur, Karnar Shirsi, Latur, Murud etc.
Miti Vaishakh Sudi 10-05-62 Thursday, Dharma Shiksha Shibir was going on in Shird Shahapura, at that time, Varana Pandit Utkal Rai Vidyarthi, a resident of Karanja and in front of very city dwellers, Shri Pujya 108 Adisagar Maharaj did not make any mistake 105 Taurus. Granted. At that time, he was named as nominee Sri 105 Rishabhasagar. That was followed by Chaturmas in Karanja and Barshi.
His chaturmas in Barshi would be great. Your amritamayi voice has great impact. Such Chaturmas were the first in this generation. Being many people, they did not know the real elements of religion. People who never came to your influence started coming to the temple. The only reason for this is your pure character. Those logs gather themselves today and study Sanand Dharmachara Shastra etc. Such a great soul did self-welfare.
On the Kunthal Giri Siddhakshetra, you killed 71 Dim and died in heaven. You attained samadhi at the age of 113. Your samadhi in October 1983
Muni Shri 108 Vrushab Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ आदि सागर (अंकलिकर) १८०९ Acharya Shri 108 Aadi Sagar (Anklikar) 1809
आचार्य श्री १०८ आदि सागर (अंकलिकर) १८०९ Acharya Shri 108 Aadi Sagar (Anklikar) 1809
Chaturmas in places like Kadoli, Belgaum, Kolhapur, Karnar Shirsi, Latur, Murud etc.
That was followed by Chaturmas in Karanja and Barshi.
Aacharya Shri 108 Aadi Sagar (Anklikar)
Dhaval Patil - 9623981049
#VrushabSagarJiMaharaj
AadiSagar(Anklikar)1809
#VrushabSagarJiMaharaj
VrushabSagarJiMaharaj
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