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#SanmatiSagarJi1938(Ankalikar)Vimalsagarji
Gurudev Acharya Shri 108 Sanmtisagar maharaj was born in 1938 and is one of the greatest Acharya's of Digambar Jain Parampara and Ankalikar. Due ot this vows and fasts he is known as "TapasviSamrat"
1.Aacharya Shri 108 Aadisagar Ji Maharaj 1809
2.Aacharya Shri 108 Mahaveer Kirti Ji Maharaj 1910
3.Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj 1915
4.Aacharya Shri 108 Sanmati Sagar Ji Maharaj 1938
5.Aacharya Shri 108 Sunil Sagar Ji Ji Maharaj 1977
Acharya,Muni Dikshit by Acharya Shri Sanmati Sagar Ji Maharaj
Acharya
1.Acharya Shri 108 Sunil Sagar Ji
2.Acharya Shri 108 HemSagar Ji Maharaj
3.Acharya Shri 108 Suvidhi Sagar Ji
4.Acharya Shri 108 Siddhant Sagar Ji Maharaj
5.Acharya Shri 108 Yogendra Sagar Ji Maharaj
6.Acharya Shri 108 Jai Sagar Ji Maharaj
7.Acharya Shri 108 Sundar Sagar Ji Maharaj
8.Acharya Shri 108 Sudarshan Sagar Ji Maharaj
9.Acharya Shri 108 Saubhagya Sagar Ji Maharaj
10.Acharya Shri 108 Shital Sagar ji Maharaj
11.Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj
Upadhyay
1.Upadhyay Shri 108 Abhinandan Sagar J Maharaj
Muni
1.Muni Shri Sanskar Sagarji Maharaj
2.Muni Shri 108 Subal Sagar Ji Maharaj
3.Muni Shri 108 Veer Sagar Ji Maharaj
4.Muni Shri 108 Suveer Sagar Ji Maharaj
5.Muni Shri 108 Shrestha Sagar Ji Maharaj
२० वीं सदी के मुनि कुंजर आ. आदिसागर जी अंकलीकर के तृतीय पट्टाचार्य श्री सन्मति सागर जी का जन्म माघ शुक्ल ७ संवत १९९५ में एटा जिले के फफौतु ग्राम में हुआ था।आपकी माताजी का नाम जयमाला देवी और पिता का नाम प्यारेलाल जी,आपके ३ भाई और ५ बहने है।आप जन्म से ही शुभ लक्षणों से युक्त होने से ज्योतिषियों ने आपकी जन्म कुंडली देख कर भविष्यवाणी करी थी की ये बालक महँ तपस्वी और पुण्यशाली लोक में विख्यात साधू होगा ।उसी अनुसार आपका नाम ओमप्रकाश रखा गया।आपने २१ वर्ष की उम्र में बी.ए. पास कर ली ओर छहढाला,दिव्य संग्रह,श्रवाकाचार्य आदि जैन शास्त्रों का अध्ययन कर लिया।आपने जैन दर्शन मुसलमान से पड़ा।
संक्षिप्त परिचय | |
जन्म: | माघ शुक्ल ७ सन १९३८ |
जन्म स्थान : | फफोतु (उत्तरप्रदेश) |
जन्म का नाम | ओमप्रकाश जैन |
माता का नाम : | जयमाला देवी |
पिता का नाम : | प्यारेलालजी जैन |
शिक्षा : | बी ए |
दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज |
मुनि दीक्षा स्थल : | सम्मेद शिखरजी सिद्धक्षेत्र |
आचार्य पद तिथि: | ०३. ०१. १९७२ |
आचार्य पद प्रदाता : | आचार्य श्री महावीरकीर्ति महाराज |
स्थल : | मेहसाना (गुजरात) |
समाधि स्थल : | उदगांव |
समाधि तिथि : | २४ दिसम्बर २०१० को ७३ वर्ष की उम्र में |
विशेषता : |
आचार्य 108 महावीर कीर्ति जी महाराज से 18 साल की आयु में ब्रहमचर्य व्रत लेते ही नमक का त्याग कर दिया ।आचार्य विमल सागर जी से दीक्षा लेकर आपका नाम क्षुल्लक नेमी सागर रखा गया और २४ वर्ष की आयु में कार्तिक शुक्ल १२ संवत २०१८ सन १९६२ को मुनि दीक्षा ग्रहण कर सन्मति सागर जी हो गये।1962 में मुनि दीक्षा लेते ही आपने शकर का भी त्याग कर दिया सन 1963 में आप ने चटाई का भी त्याग कर दिया और 1975 में आपने अन्न का भी त्याग कर दिया. सन 1998 में उन्होंने दूध का भी त्याग कर दिया |आचार्य श्री के साथ विहार करते हुए सिद्ध क्षेत्र बड़वानी पहुचे वह आचार्य महावीर कीर्ति जी ससंघ भी वहा पहुचा।वही पर आ. महावीर कीर्ति जी का आगमन हुआ और दोनों संघो का गुरु शिष्य का मिलन हुआ और व्हिपर चातुर्मास हुआ।आर्यिका विजय मति और आप आ. विमल सागर जी के पास जाकर निवेदन किया की वो अपने दादागुरु के साथ रहना कहते है।दोनों की हार्दिक भावना देखकर आपने अपने गुरु से कहा की ये दोनों आपके पास रेह्लर अध्ययन करना चाहते है आप इन्हें अपने साथ रखे और पढाए।
आचार्य श्री ने अल्पकाल में ही समयसार,प्रवचनसार ,राजवार्तिक आदि अनेक ग्रंथो का अध्ययन कर चारों अनुयोगो के विशेषज्ञ हो गए।आ. महावीर कीर्ति जी ने मुनि सन्मति सागर जी से कहा की तुम मेरे पास आ रहे हो तो सोच लो में जंगली साधू हूँ ,रुखा स्वभाव का किसी की परवाह नही करता मेरे पास कठोर जीवन है,आरम्भ परिग्रह से बहुत दूर हूँ ,ऐसे गुरु के पास रहकर मुनि सन्मति सागर जी ने अपने जीवन में अपने दादागुरु दैनिक परिचर्या में रहकर उनके गुणों को ग्रहण कर अपनी साधना में दिनोदिन उन्नति करने लगे आपके मन में पूरी श्रद्धा थी की जो भक्ति जीव को दुर्गति से बचाती है पुण्य को परिपक्व करती है उसी प्रकार साक्षात मोक्ष प्रदान करने की सामर्थ मात्र विहार कर धर्म की प्रभावना करे । आपका घी ,तेल ,नमक का आजीवन त्याग और १९७६ से अन्न का आजीवन त्याग कर दिया ।
आचार्य श्री की विशेषताएँ :-
आ. श्री त्रियोग रसेन्द्रिय विजय में सम्राट सम तपो में प्रणेता है ;दो, चार , छ: ,आठ ,दस उपवास करना तो आपके लिए सहज ही नजर आता है। कड़ी तपस्या कठोर उपवास में भी आपके दैनिक परिचर्या में किंचित भी शिथिलता नहीं होती। आपके शरीर से अपूर्व आभा अतिशय तेज अपूर्व कान्ति दीप्ति प्रदीप्त होती है।रात्रि में तेल ,घी की मालिश नही करवाते तब भी तेज मानो टपकता ही नजर आता है यह सब तप का ही प्रभाव है।
आपके आचरण में समता का दर्शन होता है। आ. श्री प्रत्येक के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करते है वे निर्धन अथवा धनी में ऊँच तथा नीच में भेद नहीं करते है।प्रत्येक जीव के प्रति साम्य भाव रखते है ।आ. श्री में कूट कूट कर विद्वता भरी हुई है आप सिद्धांत न्याय व्याकरण काव्य छन्द अलंकार ,ज्योतिष ,आयुर्वेद मंत्रो अनेक शास्त्रों का ज्ञान होने पर भी अहंकार से दूरहोकर साधना में रत है ।
आपके जीवन में सादगी है मौन प्रिय होकर हित मिट प्रिय वचन कहते है,आपके उपदेश में सिद्धांत सम्बन्धी उपदेश होगा जो प्रत्येक जीव के उत्थान के के लिए होगा ।संघ में कठोर अनुशासन है । आपके दर्शन से आँखों में ख़ुशी मिल जाती है और आपकी वाणी अमृत का कार्य करती है।
आचार्य श्री ने अपने जीवन काल में कठोर साधना कर चरित्र शुद्धि व्रत,दशलक्षण व्रत,मुक्तावली व्रत ,सर्वसोभाद्र मरण मत्यव्रत ,सोलह कारण व्रत किये । दिनों में केवल 17 दिन आहार लिया. दमोह चातुर्मास में उन्होंने एक आहार एक उपवास फिर दो उपवास एक आहार तीन उपवास एक आहार .........इस तरह बढते हुए, 15 उपवास एक आहार, 14 उपवास एक आहार, 13 उपवास एक आहार ,...........से करतेकरते एक उपवास एक आहार, तक पहुच कर सिंहनिष्क्रिदित महा कठिन व्रत किया. उन्होंने अपने 49 साल के तपस्वी जीवन में लगभग 9986 उपवास किये. लगभग 27.5 सालो से भी अधिक उपवास किये.
आपके बारे में आचार्य 108 पुष्पदंत सागर महाराज ने यहाँ तक कहा है की महावीर भागवान के बाद आपने ने इतनी तपस्या की है. 2003 में उदयपुर में मट्ठा और पानी का अलावा सबका त्याग कर दिया. उन्होंने रांची में 6 माह तक और इटावा में 2 माह तक पानी का भी त्याग किया ।आ. श्री को एवं संघस्थ साधुओं को माया नगरी भी आकर्षित नही कर पाई।भोतिक नगरी में दिग. दीक्षा ,आर्यिका ,एलक ,क्षुल्लक ,क्षुल्लिका दीक्षा देकर सल्लेखना पूर्वक समाधी भी करायी ।. गुरुदेव 24 घंटो में केवल 3 चार घंटे ही विश्राम करता थे. वे पूरी रात तपस्या में लगे रहते थे.उन्होंने समाधी से 3 दिन पहले उपवास साधते हुए लोगो का कहने का बावजूद आपना आहार नहीं लिया. अपनी समाधी से पहले दिन यानि 23-12-10 को आपने अपने शिष्यों को पढ़ाया और शाम को अपना आखरी प्रवचन भी समाधी पर ही दिया. और सुबह 5.50 बजे आपने अपने आप पद्मासन लगाया भगवन का मुख अपनी तरफ करवाया और अपने प्राण 73 वर्ष की आयु में 24-12-10 को आँखों से छोड़ दिए और अपना आचार्य पद मुनि श्री सुनीलसागर जी के दिया...जो आज वर्तमान में उनकी ही प्रतिकृति दिख पड़ते है . |ऐसे आगम में कठोर तपस्या को सुना करते थे पर हमारा सोभाग्य है की आज इस कलिकाल में भी हमें तपस्वी सम्राट के दर्शन का सोभाग्य मिला ।
#SanmatiSagarJi1938(Ankalikar)Vimalsagarji
आचार्य श्री १०८ सन्मति सागर जी (अंकलीकर)
Aacharya Shri 108 VimalSagar Ji 1915 (Ankalikar)
आचार्य श्री १०८ विमलसागर जी 1915 (अंकलिकार) Aacharya Shri 108 VimalSagar Ji 1915 (Ankalikar)
SanmatiSagarJi1938(Ankalikar)Vimalsagarji
Gurudev Acharya Shri 108 Sanmtisagar maharaj was born in 1938 and is one of the greatest Acharya's of Digambar Jain Parampara and Ankalikar. Due ot this vows and fasts he is known as "TapasviSamrat"
1.Aacharya Shri 108 Aadisagar Ji Maharaj 1809
2.Aacharya Shri 108 Mahaveer Kirti Ji Maharaj 1910
3.Aacharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj 1915
4.Aacharya Shri 108 Sanmati Sagar Ji Maharaj 1938
5.Aacharya Shri 108 Sunil Sagar Ji Ji Maharaj 1977
Acharya,Muni Dikshit by Acharya Shri Sanmati Sagar Ji Maharaj
Acharya
1.Acharya Shri 108 Sunil Sagar Ji
2.Acharya Shri 108 HemSagar Ji Maharaj
3.Acharya Shri 108 Suvidhi Sagar Ji
4.Acharya Shri 108 Siddhant Sagar Ji Maharaj
5.Acharya Shri 108 Yogendra Sagar Ji Maharaj
6.Acharya Shri 108 Jai Sagar Ji Maharaj
7.Acharya Shri 108 Sundar Sagar Ji Maharaj
8.Acharya Shri 108 Sudarshan Sagar Ji Maharaj
9.Acharya Shri 108 Saubhagya Sagar Ji Maharaj
10.Acharya Shri 108 Shital Sagar ji Maharaj
11.Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj
Upadhyay
1.Upadhyay Shri 108 Abhinandan Sagar J Maharaj
Muni
1.Muni Shri Sanskar Sagarji Maharaj
2.Muni Shri 108 Subal Sagar Ji Maharaj
3.Muni Shri 108 Veer Sagar Ji Maharaj
4.Muni Shri 108 Suveer Sagar Ji Maharaj
5.Muni Shri 108 Shrestha Sagar Ji Maharaj
Gurudev Acharya Shree 108 Sanmtisagar maharaj eat once in 48 hours , he took in Ahar only butter milk and water. You took Brahmacharya vow & vow of not to ean salt from 108 Acharya Mahavir Kirti Ji Maharaj at the age of 18. In 1961 (Meerut) you took vow for not eating yogurt, oil and ghee from Vimalsagar Acharya Maharaj .
In 1962 immediately after muni diksha you took vow for not eating sugar. In 1963 you took vow for not using even mat & in 1975 you took vow for not eating grain.In 1998 he renounced milk.In 2003, took vow nothing to eat except butter milk & water ,in Ranchi for sixmonth & in Etawah for two month took the vow not to drink water. You took Ahar for 17 days only out of 120 days.In Damoh Chaturmas a diet, you did Sinhnishkridit vrat in which fasting start oneahar one fast one ahar two fast continues increase to one ahar 15 fast & then decrese start one ahar 14 fast , one ahar 13 fast continues to one ahar one fast. You did 9986 fast (27.5 years)during 49 years of becoming saint
108 Pushpadanta Sagar Acharya Maharaj told about you that after lord Mahavir you did such great tapasaya .In 1973 ,You did 108 continues Vandana of Shikharji.
He do not use mat even in any season including winter. Gurudev rested only four hours only in a day of 24 hours. He lived in penance all night. He fast for 3 days prior to the Samadhi . On 23-12-10 the earlier day of the samadhi in the evening .you taught his disciples gave your last sermon on Samadhi And at 5.50am in the morning at the age of 73 on 24 Dec 2010, your soul left thebody in Padmasana after moving the face of Jinbimba(Statue of Lord Mahavir) on your side.
आचार्य श्री १०८ विमलसागर जी 1915 (अंकलिकार) Aacharya Shri 108 VimalSagar Ji 1915 (Ankalikar)
आचार्य श्री १०८ विमलसागर जी 1915 (अंकलिकार) Aacharya Shri 108 VimalSagar Ji 1915 (Ankalikar)
Aacharya Shri 108 VimalSagar Ji 1915 (Ankalikar)
Ankalikar - TapasviSamrat
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