Charukirti Bhattarak Swamiji is the present pontiff of the world renowned Shravanabelagola Math. Born on 3rd May 1949 at Varang in Karnataka as Ratnavarma, H.H. Swamiji has not only studied Jain Philosophy in Prakrit, Sanskrit and Kannada but is also an M.A. in History (Mysore University) and an M.A.in Philosophy (Bangalore University).
His Holiness Jagadguru Karmayogi Charukeerthy Bhattarak Swamiji is the present pontiff of the world renowned Shravanabelagola Math. Born on 3rd May 1949 at Varang in Karnatak as Ratnavarma, H.H. Swamiji has not only studied Jain Philosophy in Prakrit, Sanskrit and Kannada but is also an M.A. in History (Mysore University) and an M.A.in Philosophy (Bangalore University).
H.H.Swamiji became a Monk on 12th December, 1969 and ascended the Dharmacharya Peetha at Shravanabelagola Math on 19th April, 1970. He moved on to become the Chairman of S.D.J.M.I. Managing Committee (The Managing Committee of Shravanabelagola Shrine). The title ‘Charukeerthy Swamiji’ was conferred upon Acharya Muni Shubhachandra during the reign of the Hoysala Dynasty, by the king, for his able guidance during a turbulent period. Since then the succeeding Acharyas have continued to take over the title.
As the Pontiff of the Shravanabelagola Math, H.H. Swamiji not only toils hard to treasure the valuable heritage of the Math, but is in constant attempt to improve and enhance its worth. It is at Shravanabelagola, that Shrutakevali Bhadrababhu Muni and his disciple Emperor Chandragupta Maurya attained samadhi in the year 300 B.C.. The Dharmacharya Peetha was established then and Shravanabelagola has since been recognised as an important centre of learning Jain philosophy, religion and practice.
It is a well known fact that H.H. Swamiji is a dedicated task master. In appreciation of his dedication to selfless service, he was honoured with the title 'Karmayogi' by the late Prime Minister Smt.Indira Gandhi. His active role in organising the highly successful holy journey of the 'Dharmachakra' across the length and breadth of Southern India in commemoration of the '2500th anniversary of Bhagwan Mahaveer's Nirvana', the very well organised '1000th year consecration and Head Anointing (Mahamastakabhisheka)' ceremonies of Bhagwan Bahubali and the Free Eye Camp organised at Shravanabelagola in which a 1000 people benefitted speak volume about Swamiji's acumen.
H.H. Swamiji is an enlightening torch in the field of education. He has established Pre-Primary, Primary and High Schools, a College of Pharmacy, P.U.C. College (Science), an Engineering College, a Polytechnic and a National Institute for Prakrit Studies and Research Centre. Gommateshwar Vidyapeetha is instrumental in producing scholars in religious studies. In order to make the treasure of knowledge in Prakrit available to the common man, Swamiji has established the 'Prakrit Jnanabharathi Education Trust' at Bangalore. Under the auspices of this trust, National Prakrit Conferences are held once in every two years. 'Prakrit Jnanabharathi Awards' are also presented every year, to ten scholars selected for their notable contribution in the field of Prakrit.
H.H. Swamiji is also deeply involved in various developmental Projects. Under his able guidance numerous Dharmashalas and Guest Houses providing all amenities to the large number of tourists and pilgrims have been constructed. An Ayurvedic Hospital, an Eye Hospital and a Clinical Lab are in service. A mobile hospital which was launched to benefit the rural areas is serving the purpose. In addition, the ten villages in the vicinity of Shravanabelagola which was taken up for development is now provided with school buildings, drinking water, new tanks, community centres, roads and street lights.
Being an academic, H.H.Swamiji is also an articulate orator. He has a strong command over Hindi, English and Kannada languages and his discourses are simple and lucid. Therefore its but inevitable that he is often invited by several social organisations like Vishwa Dharma Shanti Sammelan Samiti (World Religion & Peace Conference Committee), to deliver his spell bounding lectures. He has toured Singapore, U.S.A., Kenya, U.K. and Europe towards the same. He performed the consecration of the Jain Temple of Leicester, England in 1988.
Through his notable accomplishments H.H.Swamiji has simplified religion for the layman and opened several avenues where the preachings of the Tirthankars can be practiced.
Shri Charukirti ji had samadhi on 23 March 2023 at Shri Shravan Belgola, Karnataka.
http://www.herenow4u.net/index.php?id=62442&person=370&group=33
Charukirti Bhattarak Swamiji is the present pontiff of the world renowned Shravanabelagola Math. Born on 3rd May 1949 at Varang in Karnataka as Ratnavarma, H.H. Swamiji has not only studied Jain Philosophy in Prakrit, Sanskrit and Kannada but is also an M.A. in History (Mysore University) and an M.A.in Philosophy (Bangalore University).
जिस प्रकार विश्व प्रसिद्ध श्री श्रवण बेलगोला किसी परिचय का मोहताज नही है
उसी प्रकार जैन मठ श्रवण बेलगोला के भट्टारक श्री चारुकीर्ति जी स्वामी भी जग प्रसिद्ध है
3 मई 1949 को सिद्ध क्षेत्र श्री वारंगा जी मे श्रीमती कांते श्रीचंद्र राज जी के यहाँ होनहार बालक का जन्म हुआ
नाम श्री रत्न वर्मा रखा गया
जब आप 16 वर्ष की उम्र में हुमचा मठ में अध्ययनरत थे तब जैन मठ श्री श्रवण बेलगोला में भट्टारक श्री भट्टा कलंक जी स्वामी की रत्न पारखी निगाहों ने निर्दोष कुल स्वभाव शिक्षा आचरण आयु स्वाध्याय शारीरिक लक्षण हस्त रेखा बुद्धि परीक्षण कर जैन मठ श्री श्रवण बेलगोला के भावी भट्टारक के रूप में चयन कर 12 दिसम्बर 1969 को जैन मठ का उत्तराधिकारी भट्टारक धोषित किया
आपके लिखित मनोनयन का कर्नाटक शासन ने अनुमोदन किया
4 माह बाद 19 अप्रैल 1970 श्री महावीर जयंती पर जैन मठ श्रवण बेलगोला का भट्टारक नियुक्त कर श्री चारुकीर्ति जी स्वामी नामकरण पश्चात प्रथम पट्टाभिषेक हुआ जिसमें अनेक भट्टारक स्वामी तथा कर्नाटक शासन ने रजत मुद्रा चांदी की सील भेंट की
श्री चारुकीर्ति जी स्वामी ने जैन धर्म के प्रचार के लिए वर्ष 1976 में सिंगापुर तथा वर्ष 1979 में अमेरिका की विदेश यात्रा की
वर्ष 1967 के बाद 12 वर्षीय महामस्तकाभिषेक 1979 में होना था
श्री बाहुबली भगवान की प्रतिमा 981 में निर्मित होने से सन 1981 में 1000 वर्ष पूर्ण होने से
12 वर्षीय कार्यक्रम वर्ष 1981 में बृहद स्तर पर मनाने का निर्णय लिया
वर्ष 1981 में श्री बाहुबली भगवान का 12 वर्षीय महामस्तकाभिषेक आचार्य श्री देशभूषण जी आचार्य श्री विमल सागर जी ऐलाचार्य श्री विद्या नंदी जी सहित 149 साधुओ का पावन सानिध्य मिला
कार्यक्रम में उपस्थित तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भट्टारक स्वामी जी को कर्मयोगी की उपाधि से अलंकृत किया
प्रथमा चार्य चारित्र चक्रवती 108 आचार्य श्री शांति सागर जी की अक्षुण्ण पट्ट परम्परा के पंचम पट्टा धीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी को वर्ष 1993 के 12 वर्षीय महामस्तकाभिषेक कार्यक्रम में प्रमुख सानिध्य एवम निर्देशन के लिए गुजरात मे श्रीफल भेंट कर आमंत्रित किया
श्री बाहुबली भगवान का 12 वर्षीय महामस्तकाभिषेक 1993
वर्ष 2006 तथा वर्ष 2018 का महामस्तकाभिषेक पंचम पट्टा धीश वात्सल्य वारिधि 108 आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी सहित 35 आचार्यो सहित 400 साधुओ के सानिध्य में सम्पन्न हुआ
जिसमे भारत सरकार के राष्ट्रपति जी प्रधानमंत्री जी मुख्यमंत्री जी कर्नाटक सरकार राज्यपाल गृहमंत्री भारत सरकार सहित अनेक राजनेता उपस्थित हुए हैश्री भट्टारक स्वामी जी का प्रति 10 वर्षो में महावीर जयंती पर पट्टाभिषेक कार्यक्रम होता है
इस वर्ष महावीर जयंती पर भट्टारक पद के 50 वर्ष पूर्ण होने पर श्री श्रवण वेलगोला में उपस्थित साधुओ के सानिध्य में सादगी पूर्ण रूप में मनाया गया
श्री चारुकीर्ति जी भट्टारक स्वामी के पावन निर्देशन में श्री बाहुबली भगवान का 12 वर्षीय मस्तकाभिषेक वर्ष 1981 1993 2006 तथा वर्ष 2018 में भव्य रूप में सुनियोजित आगम परम्परा अनुसार संपन्न हुआईश्वर एवम श्री बाहुबली भगवान से यही कामना है कि आप स्वस्थ रहे दीर्धायु हो अगला वर्ष 2030 का महामस्तकाभिषेक आपके निर्देशन में 5 वी बार सम्पन्न हो
यही वीर प्रभु से कामना करते है।
जैन दर्शन के युगपुरुष,दक्षिण भारत में अहिंसामयी विश्व धर्म के आधारस्तंभ, जिन पर गोमटेश बाहुबली भगवान का वरदहस्त रहा, जिन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन न सिर्फ श्रवणबेलगोल बल्कि दक्षिण भारत के अनेकानेक प्राचीन तीर्थो, मां जिनवाणी के सरक्षण व प्रभावना में समर्पित कर दिया, संत जगत जिनकी विलक्षण क्षमता को विश्व आश्चर्य कहकर संबोधित करती है, जिन्होंने गोमटेश बाहुबली स्वामी के महामस्तकाभिषेक को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई, एक मात्र मंच जहा प्रत्येक 12 वर्षो में 300 से अधिक संत बिना किसी भेदभाव के वर्षायोग प्रवास करते है, ऐसे कालजयी महापुरुष महान संत पूज्य जगतगुरू भट्टारक श्री चारुकीर्ति जी स्वामी की समाधि २३ मार्च २०२३ को होने पर उनके पावन चरणो में अन्नत बार इच्छामी वंदन।
आपका साधक जीवन सम्पूर्ण जैन दर्शन के लिए एक स्वर्णिम काल रहा है, आपकी समाधि की क्षति का आकलन कर पाए ऐसा कोई पैमाना बन पाए ये संभव ही नहीं है। न शब्दो के सागर से आपके विराट व्यक्तिव को लिखा जा सकता है न ही आसुओं के दरिया से इस क्षति को कम किया जा सकता है ऐसे दिव्य पुरुष न भूतो न भविष्यति भगवान गोमटेश बाहुबली स्वामी के अमर सपूत पूज्य भट्ठारक श्री चारुकीर्ती जी स्वामी के चरणो में नमन वंदन।
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