
सुध्यान में लवलीन हो जब, घातिया चारों हने । सर्वज्ञ बोध विरागता को, पा लिया तब आपने ।
वीतराग वंदौं सदा, भावसहित सिरनाय कहुं कांड निर्वाण की भाषा सुगम बनाय ॥
सत्त्वेषु मैत्रीं गुणिषु प्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वं माध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव ॥१॥
बहु पुण्य-पुंज प्रसंग से शुभ देह मानव का मिला तो भी अरे! भव चक्र का, फेरा न एक कभी टला ॥१॥
श्रीपति जिनवर करुणायतनं, दुखहरन तुम्हारा बाना है मत मेरी बार अबार करो, मोहि देहु विमल कल्याना है ॥टेक॥
वंदो पांचो परम - गुरु, चौबिसों जिनराज करूँ शुद्ध आलोचना, शुद्धि करन के काज ॥१॥