Sansmaran 51. मिली नि:स्वार्थ धर्मपरायणता की झलक दूसरे के मनोभावों को सहजता से समझने वाले विशाल हृदय क्षुल्लक पूर्ण सागर जी सन् 1982 में विहार करते हुऐ पहुँचे परभणी (महाराष्ट्र)। समय था आहार चर्या का, लोगों के मन में श्री श्रद्धा-भक्ति परंतु पड़गाहन आदि क्रियाओं से अनभिज्ञ थे। क्षुल्लक जी ने मन्दिर से मुद्रा धारण […]
SANSMARAN 41. सावन बरसा वात्सल्य का सन् 1980 दुर्ग चातुर्मास की बात है प.पू. आ. श्री के अष्टाहिका पर्व आठ उपवास चल रहे थे, तब मैना बाई वैयावृत्ति हेतु घी- कपूर मथकर लाती थी | एकबार पू. क्षु. जी का आहार के प्रारंभ में ही अंतराय हो गया, वे जैसे ही पू.आ. श्री के पास […]
SANSMARAN 31.परीक्षा की घड़ियां क्षुल्लक पूर्ण सागर जी जब 1980 में दीक्षोपरांत अपने गुरुवर की छत्रछाया में साधना अध्ययनरत थे, उनकी आगमिक चर्या, अध्ययनशीलता, गंभीरता, विरक्ति आदि गुणों से जैन श्रावक ही नहीं अपितु अजैन श्रावक भी प्रभावित होते थे। एक बार उनके पास एक अजैन विद्वान आने लगे,पर वे क्षुल्लक जी को कभी नमस्कार […]
SANSMARAN 21. अविराग कदम 1978 में अरविंद एक अनुशासनवान, अध्ययनशील,गुणप्रवीण, विनयी तथा सभी छात्रों में एक होनहार, कुशल प्रिय छात्र थे। वे प्रायकर सभी मित्रों के साथ बैठकर नई-नई योजनाये बनाते रहते थे कभी अध्ययन संबंधी तो कभी नैतिकता, सदाचार संबंधी। एक दिन उन्होंने अपनी मित्रमंडली जो स्वाभिमानी एवं परिश्रमी थी उसे बुलाया तथा कहा- […]
SANSMARAN 11. असहायों के सहारे पूत के पाँव (लक्षण) पलने में नजर आने लगते है ये कहावत पूर्ण रूपेण अरविन्द पर चरितार्थ होती है । वे बचपन से ही उदासीन थे । गृहकार्यो में , दुकानदारी में मन ही नहीं लगता था । पथरिया सन 1973 में जब वे दुकान पर उदासीन भाव से बैठते थे । उनकी […]
SANSMARAN 1. महापुरुष का अवतरण जन्म से लेकर जीवनपर्यन्त तक जिनकी सारी प्रतिक्रियायें सामान्य लोगो से हटकर , निराली तथा आश्चर्य को उत्पन करने वाली होती है उन्हें ही महापुरुष कहा जाता है । ऐसे ही एक दिव्य महान आत्मा का जन्म जब भारत भूमि के दमोह जिले के पथरिया ग्राम में सेठ श्री कपूरचंद जी एवं उनकी धर्मपत्नी श्यामादेवी के यहाँ 2 मई ,1963 (गुरुवार ) में […]