
द्रव्य रूप करि सर्व थिर, परजय थिर है कौन द्रव्यदृष्टि आपा लखो, पर्जय नय करि गौन ॥१॥
अहो जगत गुरु देव, सुनिये अरज हमारी तुम प्रभु दीन दयाल, मैं दुखिया संसारी ॥१॥
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करू प्रणाम उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ॥१॥
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करू प्रणाम उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ॥१॥
बिन जाने वा जानके, रही टूट जो कोय । तुम प्रसाद तैं परमगुरु, सो सब पूरन होय ॥
शास्त्रोक्त विधि पूजा महोत्सव, सुरपति चक्री करें हम सारिखे लघु पुरुष कैसे, यथाविधि पूजा करें ॥