
शांतिनाथ मुख शशि उनहारी, शीलगुणव्रत संयमधारी लखन एक सौ आठ विराजे, निरखत नयन कमल दल लाजै ॥
क्षण-भर निज-रस को पी चेतन, मिथ्या-मल को धो देता है । काषायिक-भाव विनष्ट किये, निज आनन्द-अमृत पीता है ॥
पूजूँ मैं श्री पंच परमगुरु, उनमें प्रथम श्री अरहन्त । अविनाशी अविकारी सुखमय, दूजे पूजूँ सिद्ध महंत ॥
महावीर निर्वाण दिवस पर, महावीर पूजन कर लूँ वर्धमान अतिवीर वीर, सन्मति प्रभु को वन्दन कर लूँ ॥
प्रथम देव अरहंत, सुश्रुत सिद्धांत जू गुरु निर्ग्रन्थ महन्त, मुकतिपुर पन्थ जू ॥
देव-शास्त्र-गुरुवर अहो! मम स्वरूप दर्शाय। किया परम उपकार मैं, नमन करूँ हर्षाय॥