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#PrabalSagarJiMaharaj1971PuspdantSagarJi
Acharya Shri 108 Prabal Sagarji Maharaj was born on 9 April 1971 in Devpura, Udaipur, Rajasthan. His name was Dharmesh Jain before diksha. He received initiation from Acharya Shri 108 Puspdant Sagar Ji Maharaj.
आचार्य श्री 108 प्रबल सागर जी महाराज का जीवन परिचय
बचपन का नाम : धर्मेश, धर्मेन्द्र ('धरम' घर का नाम)
जन्म तिथि : महावीर जयन्ती (09-04-1971)
जन्म स्थान : देवपुरा, उदयपुर (राजस्थान)
पिता का नाम : श्री पुंज लाल जी जैन (कपड़े के व्यापारी)
माता का नाम : श्रीमती शांति देवी जैन
दो भाई : ललित प्रकाश जी एवं शान्ति लाल जी
दो छोटी बहनें : लीला जी एवं मीना जैन
शिक्षा : देवपुरा गाँव में दसवीं तक, उसके बाद उदयपुर शहर के कॉलेज में
प्रारम्भिक संस्कार : माता-पिता द्वारा मन्दिर जाने के बाद ही भोजन का संस्कार देना, ऋषभदेव एवं चौबीसी मन्दिर के घण्टों दर्शन करना।
वैराग्य वर्धक : भीष्म प्रतिज्ञा का छठवीं क्लास में ब्रह्मचर्य का पढ़ा हुआ पाठ |
व्यापार स्थल : मुम्बई में जाकर स्क्रैप मैटल का कार्य करना
वैराग्यवर्धन : पर्युषण पर्व दस उपवास मना कर हस्तिनापुर बिना बताए जाना एवं दस
उपवास के साथ सिद्धचक्र विधान की नन्दीश्वर द्वीप में आराधना करना
प्रथम संकल्प : आचार्य विमल सागर महाराज जी से पांच प्रतिमा शरद पूर्णिमा 1993 (सम्मेद शिखर जी) एवं 1993 में एटा में वर्षायोग
विशेष तीर्थ यात्रा : सम्मेद शिखर तीर्थ की ग्यारहवंदना एवं एक परिक्रमा
प्रथम शिलान्यास : अहिच्छेत्र में तीस चौबिसी मन्दिर का 1993 संघ प्रवेश
सोनागिर में सिंहरथ पंचकल्याणक 1994 में आचार्य पुष्पदन्त जी संघस्थ गुरूद्वारा व्रत
मुरैना में महावीर जयन्ती पर सप्तम प्रतिमा के व्रत लेना |
प्रथम वर्षा योग : ब्रह्मचारी अवस्था में इटावा (उत्तर प्रदेश) 1994 में मुनि दीक्षा |
धर्मेन्द्र से मुनि प्रबल सागर भीष्म प्रतिज्ञा : गृहस्थ अवस्था में 6-7 वीं कक्षा में पढ़ाई चल रही थी। एक दिन हिन्दी की कक्षा में अध्यापक जी भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा पढ़ा रहे थे। उसमें उन्होंने कहा कि "आजकल भीष्म पितामह जैसे प्रतिज्ञा धारण करने वाले मुश्किल है"। उस बात को सुनकर ही विचार आया कि “मैं भी भीष्म पितामह जैसी प्रतिज्ञा लेता हूँ" और उस दिन से उस पर अमल करना शुरु कर दिया। अब जब भी शादी की बात चलती तो ना ही होती और नियम चलता गया एवं वैराग्य की राह बनती गयी।
धार्मिक परिवार का संस्कार : बचपन में देखा कि घर के पास में मन्दिर है और रोज धार्मिक तथा चलती है। तो मन्दिर के प्रति भाव बनने लगे। जब पिताजी माता जी ने कहा कि “मन्दिर जाकर गओ जाके बाद ही चाय-नाश्ता मिलेगा" तो भाव धर्म करने के बनते गये। रोज मन्दिर जाने का बीर श्रीरका बन गया। इसमें मुख्यतः दादाजी मुनि चारित्र सागर जी ने मुनि दीक्षा अंगीकार करके परिवार का वजा की शुरुआत की।
मुनि प्रसिद्ध गाँव (देवपुरा, उदयपुर) : इस समय मुनि चारित्र सागर जी सहित 8 मुनिराज इस छोटे से गाँव से बन चुके है जो आस-पास के क्षेत्र में एक रिकार्ड है। साथ मे जब 24 तीर्थकर भगवान का नया मन्दिर पंचकल्याणक करके तैयार हुआ तो फिर भगवान से रोज बाते करने को एक-दो घण्टे समय लगने लगा। मन्दिर मे धर्म -चर्चा भी अच्छी लगने लगी। इस तरह से बचपन के संस्कार भी वैराग्य में निमित्त बनते गये। पिताजी हमेशा धरम (धर्म) कहकर ही पुकारते थे। अतः धर्म के रास्ते पर ही आगे रहना है। यह भाव मजबूत होता गया, और अंततः 1995 में दिगम्बर मुनि दीक्षा धारण की...
त्याग : मुनि श्री का आजीवन घी, तेल, गुड ,शक्कर ,नमक ,चावल का त्याग हैं और ज्वार और (नाचनी) के अलावा सभी अनाज का त्याग है। और मूंग की दाल के अलावा सभी दाल का त्याग है।
मुनि श्री १०८ प्रबलसागरजी महाराज जी के मुखार बिंद से वर्ष: 1995-2020 :
संयम ही जीवन है, संयम ही सुख का कारण है। संयम ही शान्ति है, संयम के माध्यम से संसार का हर प्राणी सन्त बनकर परमात्मा भी बन सकता है। संयम, व्रत या दीक्षा धारण करने वाला गर्मी के मौसम में ठण्डी छाया मे खड़ा होने के समान है और असंयमी व्यक्ति दुःखो से भरी तेज गर्मी मे खड़ा होकर दुःखी होने के समान है।
हमारे अधिकतर तीर्थकर महापुरूष भगवान और चक्रवती जैसे राजपुरूष भी सब सुविधा से सम्पन्न होने पर भी सब त्याग करके संयम अंगीकार करते है, अतः सम्यगदर्शन, सम्यगज्ञान के बाद सम्यग चारित्र धारण करना जरूरी है। बिना पिच्छी और दिगम्बर मुनि हुये बिना आत्मा की शुद्धता हो नही सकती है, जिसकी आत्मा शुद्ध नही उसकी मुक्ति भी नही है।
हाँलाकि संयम मे अनेको सुख है, लेकिन मन और 5 इन्द्रियों के नियंत्रण के बिना यह असम्भव है। इसमे आत्मा और शरीर का भेद ज्ञान अति आवश्यक है। जीव और पुद्गल कर्मों को जुदा-जुदा करने की कला का ज्ञान भी आवश्यक है। आत्मज्ञान, भय-रागद्वेष से मुक्त है, परमात्मा स्वरूप है, लेकिन उसको पाने का मार्ग तो रत्नत्रय ही है।
पंच परमेष्ठी जितने भी हुए है वे सभी दिगम्बर ही थे, दिगम्बर ही होंगें। कोई भी वस्त्र धारण करना स्वीकार नही है। वस्त्र भी विकल्प का कारण है। पेट भी हमारा नहीं है, तो संसार का कोई भी पदार्थ हमारा नहीं है। इसलिये किसी भी पदार्थ से मोह त्याग करना ही होगा। चाहे वो चेतन हो या अचेतन। मोह के कारण ही इच्छायें पैदा होती है
और इच्छायें पूरी कभी होती नहीं बल्कि पूरी होते-होते बढ़ती ही जाती है। इच्छा का विरोध (त्याग) करते ही परम सुख की प्राप्ति हो सकती है।
अनन्त काल तक संसार की सभी गतियो में अनेको शरीर प्राप्त करने के बाद मनुष्य भव प्राप्त हुआ है। इस जन्म में ही बहमल्य संयम को प्राप्त किया जा सकता है जो बाकी तीन गतियों में संभव नहीं है। इस संयम को धारण करने वाला परम पज्य पद को भी प्राप्त कर लेता है, जैसे एक पत्थर एक शिल्पी द्वारा भगवान की मूर्ति बन जाता है, वैसे ही हर जीव संयम धारण करके भगवान जैसा बन जाता है। अत: आज दूसरे को उपदेश की नहीं आचरण पर चलने की आवश्यकता है, कथनी नहीं करनी महत्वपूर्ण है'।
संयम के मार्ग में अनेकों परिषह उपसर्ग आते हैं, आते रहेंगे, लेकिन जो डर गया वो मर गया। जो जाग गया वो पा गया। अत: मन से कषाय और विषय वासना रूपी अशुद्धि को निकाल कर पुरूषार्थ करते चले तो एक दिन पत्थर मे से पानी निकालने के समान ही इस आत्मा से परमात्मा भी प्रकट हो जायेंगे।
परमात्मा कही और नही है अपने अन्दर ही है। पर (दूसरे) से राग द्वेष और मोह का त्याग करने वाला ही खुद एक दिन परमात्मा बन जाता है। हमारी किस्मत हमारे हाथ में है किसी भगवान के हाथ मे नहीं। खुद ही भगवान है ,और खुद ही शैतान है। स्वर्ग और नरक जैसी जिन्दगी भी खुद के हाथ में है।
25 वर्ष पूर्व पंचकल्याण प्रतिष्ठा महोत्सव में संयम (दीक्षा) को प्राप्त किया था और भगवान आदिनाथ के तप कल्याणक के दिन ही श्रावस्ती तीर्थ मे वह अवसर आया था। संभवनाथ भगवान ने असंभव को संभव कर दिया। मेरा महावीर जयन्ती के दिन जन्म लेना सार्थक हो गया। भगवान महावीर जयन्ती को 2618 वर्ष पूरे हये तो मेरे भी 48 वर्ष पूर्ण हुये है, यहां अन्तिम अंक समान है। ऐसे ही भगवान महावीर जी के निर्वाण का 2524 वर्ष परा हुआ है, और मेरे भी 24 चातुमार्स पूरे हुये है। अब 25वां चातुमार्स है ओर भगवान महावीर का 2525 वां निर्वाण सम्वत् चल रहा है। ऐसा संयोग निश्चित ही किस्मत से मिला है।
गिरनार तीर्थ क्षेत्र की यात्रा का सौभाग्य 2012-13 में मिला था, 31 दिसम्बर, 2012 को जैसे ही पांचवी टोंक पर पहुँचे तो वहाँ पर एक पण्डा (तीर्थ पुरोहित )एवं पुलिस वाला खड़ा था। जब उनसे पूछा कि 'केम छो' (कैसे हो) तो उसने कहाँ माजा मा' (अच्छा हूँ) - लेकिन आगे जैसे ही पूछा कि 'सुनाम छे' (आपका नाम क्या है?), वैसे ही उसने उत्तर दिया आपका क्या मतलब है। वैसे ही हम बाहर निकल आये, आगे पूछना ठीक नहीं लगा।
अगले दिन हजारों लोग 1 जनवरी 2013 होने के कारण पहाड़ पर यात्रा करने जा रहे थे। यात्रा करने वालों से पता चला कि पण्डा बहुत नाराज़ है, सबको मारता भी है, गाली भी देता है। लेकिन वह साधुओं से तो व्यवहार अच्छा ही करेगा। क्योंकि खुद भी साधु है, हमे ऐसा लगा कि यात्रियों ने बदतमीजी की होगी तो ऐसा कर रहा होगों, हमे दुसरी यात्रा करनी थी आहार के बाद यात्रा के लिये चले तो रामजी भाई, भागचन्द जी एवं दुसरे रामजी भाई तीनों साथ थे।
रास्ते में कई पण्डे (तीर्थ पुरोहित ) थे, एक अपरिचित पण्डा (तीर्थ पुरोहित ) बैठा भी था जो कहने लगा कि कल क्या पूछ रहे थे हमने कहा कि कुछ नही, क्योकि हमने किसी भी पण्डे से कुछ पूछा ही नहीं था। खैर पांचवी टोंक पर पहुंच चरण के दर्शन शान्ति से करके बाहर निकले तो वह स्थिति संदेह जनक लगी,
और भी पण्डे(तीर्थ पुरोहित ) थे जो इधर-उधर दौड़ कर जा रहे थे। हम जैसे ही कमल कुण्ड पांचवी टोंक के पास ही नीचे आय तो, एक बाबा मुक्तानन्द ने चाकु से मारना शुरू कर दिया साथ मे चलने वाले भी देख रहे थे पर तीनो डर गये आर बाबा ने कहा कि भाग जाओ तो वे आगे जाकर बैठ गये और उसमें से एक रामजी भाई नीचे पुलिस बुलाने गया। दसरा रामजी और भागचन्द पुजारी वहां बैठे रहे। उसने मारते हुये कहा कि ये जैनी लोग हमे यहां से भगाना चाहत है। कभी पलिस, कभी नरेन्द्र मोदी तो कभी राजनाथ सिंह तो कभी साधुओं के द्वारा दबाव डालते है । काट द्वारा इसको तोड़ना चाहते है। ये सब कुछ साधुओं के द्वारा ही होता है, साधु ही श्रावक को भड़काते हैं अतः साधु को मारूंगा तो श्रावक डर जायेंगे ओर यहां जैन नही आयेंगे। अन्त मे उसने हकीकत जानी की ये साधु तो पहली बार आर और गलती से मैने वार किया तो उसने कहा कि ये चाकू तुम लो ओर मेरे ऊपर वार कर दो, तो हमने जा दिया कि हम तो अंहिसा के धारी है और हमेशा क्षमा ही करते है। तो उसने कहा कि नीचे जाकर पलट जाओग हमने कहा नहीं और फिर उसने खुद ही डोली बनायी और करीब 5000 सीढियों उतर कर पहली टोंक पर हम गया। उसके बाद जब हम ठीक हुये तो हमने बयान में पुलिस को यही कहा कि हमने तो मक्तानन्द को क्षमा कर है, हमारे लिये तो शत्रु और मित्र दोनो बराबर है।
जैन धर्म कांटो से भरा है लेकिन इसमे फूलों की सुगन्ध भी है, कोयले मे हीरा है। आगे बढ़ते जाना है | उस दिन उपसर्ग के समय आत्मा और शरीर को पृथक-पृथक देखा था, भेद विज्ञान जाना था कि शरीर का दर्द है और मैं अलग हुं। ये दर्द मुझे नही हो रहा है। जैसे पार्श्वनाथ ने कमठ का उपसर्ग सहन किया था और केवलज्ञान प्राप्त किया था तो 1 जनवरी 2013 को भगवान नेमिनाथ के चरणों में भगवान पार्श्वनाथ की कृपा से नया जीवन मिला और उसके बाद तो लगातार तीर्थो पर ही चातुमार्स होने लगे। भगवान पार्श्वनाथ के मुख्य तीन तीर्थ महुवा |
2015, मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र 2016 में और कचनेर तीर्थ मे 2017 में मौन अखण्ड चार महीने का चातुर्मास किया और बड़ा ही आनन्द आया।
अब तो चांदी ही चांदी है, जब 25 वां चातुमार्स साक्षात पार्श्वनाथ भगवान के चरणों मे सम्मेद शिखर जी मे करने का अवसर मिल रहा है। 25 वर्ष पूर्व तीर्थ राज की एक साथ 11 वन्दना व एक परिक्रमा की थी इस बार 97 वन्दना करने का सोभाग्य है, इस तरह से 108 वन्दना पूरी कर 25 वर्षों की यात्रा पूरी हो रही है। सभी श्रद्धालु भक्तों ने तन-मन-धन से आहार-विहार में चातुमार्स, पंचकल्याण एवं तीर्थ जीर्णोद्धार मे सहयोग दिया है। सभी भक्तों को कोटि कोटि आशीर्वाद है, वें भी रत्नत्रय को धारण करके परमात्म पद को प्राप्त करें।
मुनि श्री की पावन प्रेरणा व मुनि श्री द्वारा 25 वर्षों के संस्मरणीय 25 विशेष कार्य :
1) वर्ष 1995 में श्रावस्ती पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में दीक्षा ग्रहण कर असंभव कार्य को संभव किया।
2) दिल्ली के लाल किला पर आयोजित विशाल कार्यक्रम के अवसर पर वर्ष 2007 में राष्ट्रीय प्रबल पुरूषार्थी महासंघ की स्थापना
3) वर्ष 2008 में शिमला प्रवास के समय जैन भवन में जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ
4) तीन राज्यों के मुख्य मंत्रियों द्वारा (2002 में उ0 प्र0 में कुमारी मायावती द्वारा, 2008 में पंचकुला चंडीगढ़ में श्री
भुपेन्द्र सिंह हुड्डा द्वारा, 2009 में दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश में श्रीमती शीला दीक्षित द्वारा) जैन समुदाय को
अल्पसंख्यक दर्जा की घोषणा।
5) समय-समय पर व्यसन मुक्ति संकल्प अभियान
6) अहिक्षेत्र पर तीस चौबीसी पंचकल्याणक
7) देरोल (उदयपुर) पंचकल्याणक
8) जैन आगम का पालन करते हुए रात्रि विवाह निषेध कार्यक्रम प्रोत्साहन एवं पालन करने वाले परिवारों का
वर-वधु सहित सम्मान
9) पर्यावरण संरक्षण के अंर्तगत वृक्षारोपण कार्यक्रम की निरंतर प्रेरणा
10) वर्ष 2010 में जन्मस्थान देवपुरा गाँव (उदयपुर) में महावीर जयन्ती पर विशाल कार्यक्रम एवं मंदिर
जीर्णोद्धार तथा पंचकल्याणक
11) गिरनार उपसर्ग (1 जनवरी 2013) उपरान्त तीसरा पुर्नजन्म
12) तारंगा जी सिद्ध क्षेत्र पर वर्ष 2013 में जीर्णोद्धार एवं पंचकल्याणक
13 राष्ट्रीय स्तर पर जैन समदाय को अल्पसंख्यक दर्जा की घोषणा हेतु प्रयास के अंतर्गत जन्तर-मन्तर व
लाल किला पर राष्टीय प्रबल पुरूषार्थी महासंघ द्वारा प्रदर्शन एवं मुनि श्री प्रबल सागर जी द्वारा अन त्याग एवं अंतत: जैन समुदाय की विभिन्न संस्थाओं के सहयोग एवं प्रयास से भारत सरकार द्वारा वर्ष
2014 में जैन समुदाय को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा प्राप्त
14) वर्ष 2014 में पालीताणा पर्वत (शत्रुज्य तीर्थ) प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर जीर्णोद्धार प्रारंभ एवं संपूर्ण होने पर 2019 में शत्रुंज्य तीर्थ पर मनि श्री के पावन सान्निध्य में विशाल कार्यक्रम
15) महुवा तीर्थ (गुजरात) पर वर्ष 2015 में प्रथम मौन चार्तुमास
16) मांगीतुंगी जी सिद्ध क्षेत्र पर वर्ष 2016 में द्वितीय मौन चार्तुमास
17) मांगीतुंगी सिद्ध क्षेत्र के पर्वत मार्ग पर सीढ़ियों का जीर्णोद्धार
18) कचनेर (महाराष्ट्र) तीर्थ पर वर्ष 2017 में तृतीय मौन चार्तुमास
19) आमोद (भरुच) अतिशय क्षेत्र पर जीर्णोद्धार एवं पंचकल्याणक
20) बाहुबली महामस्त्किाभिषेक के अवसर पर कम्बदहल्ली (कर्नाटक) में वर्ष 2018 का चार्तुमास
21) कम्बदहल्ली (कर्नाटक) से श्री सम्मेद शिखर जी (झारखंड) की ओर वर्ष 2019 के चातुर्मास हेतु छ: माह में निरंतर लगभग 4200 कि.मी. पदविहार
22) रजत जयन्ती दीक्षा दिवस, वर्षायोग 2019 कलश स्थापना समारोह, गुरुपूर्णिमा महोत्सव के उपलक्ष्य में शिखर जी
क्षेत्र पर मध्यालोक संस्थान में त्री-दिवसीय विशाल कार्यक्रम का आयोजन
23) मुनि श्री प्रबल सागर जी की उपस्थिति में आचार्य श्री सूर्यसागर जी महाराजष्ट्र) एवं
आचार्य श्री निजानंद सागर जी महाराज को हासन (कर्नाटक) में मांगलिक समाधि
24) सम्मेद शिखर जी वर्षायोग के अवसर पर 19 जुलाई 2019 से अनुकूलता अनुरसार अधिकतम पर्वत वंदना (सम्भावित 97 पर्वत वन्दना) तथा अणिंदा पार्श्वनाथ जिनालय प्रांगण मधुबन शिखर जी में 97 सम्मेद शिखर विधान का आयोजन
25) कम्बदहल्ली से शिखर जी की ओर पद विहार के अंतर्गत प्रसिद्ध जैन तीर्थों की वन्दना जैसे बीजापुर
पार्श्वनाथ, गजपंथा जी, शत्रुज्य (पालीताना), पावागढ़, ऊन पांवागिरी, चंद्रपुरी, सारनाथ, भदैनी, वाराणसी, राजगृही, कुण्डलपुर, पावापुरी, गुणावां जी, चम्पापुरी, मंदारगिरी, गिरीडीह इत्यादि।
मुनि चारित्र सागर जी (दादाजी )
Muni Charitra Sagar ji (Grandfather)
https://www.facebook.com/PrabalSagarJi/
#PrabalSagarJiMaharaj1971PuspdantSagarJi
आचार्य श्री १०८ प्रबल सागरजी महाराज
Acharya Shri 108 Pushpadant Sagarji Maharaj 1954
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागरजी महाराज १९५४ Acharya Shri 108 Pushpadant Sagarji Maharaj 1954
वर्ष | स्थान |
---|---|
1995 | कानपुर ( उ.प्र.) |
1996 | मुरादाबाद ( उ.प्र.) |
1997 | मुजफ्फर नगर ( उ.प्र.) |
1998 | शिवपुरी (म.प्र.) |
1999 | रोहतक (हरियाणा) |
2000 | गाजियाबाद (उ.प्र.) |
2001 | अम्बाला (हरियाणा) |
2002 | लखनऊ (उ.प्र.) |
2003 | कैलाशनगर (दिल्ली) |
2004 | यमुना विहार (दिल्ली) |
2005 | बाहुबली एन्क्लेव (दिल्ली) |
2006 | रेवाड़ी (हरियाणा) |
2007 | सूरजमल विहार (दिल्ली) |
2008 | चण्डीगढ़ (हरियाणा) |
2009 | प्रीतमपुरा (दिल्ली) |
2010 | उदयपुर (राज.) |
2011 | चावण्ड (राज.) |
2012 | प्रबल शान्ति धाम जावर तीर्थ (उदयपुर) |
2013 | विद्यासागर तपोवन तारांगा जी सिद्धक्षेत्र (गुजरात) |
2014 | सोला रोड़ (अहमदाबाद) |
2015 | महुवा जी तीर्थ (सूरत) |
2016 | मांगीतुंगी तीर्थ (महाराष्ट्र) |
2017 | कंचनेर तीर्थ (महाराष्ट्र) |
2018 | कम्बइहल्ली (कर्नाटक) |
2019 | श्री सम्मेद शिखर जी |
PushpadantSagarJiMaharaj1954VimalSagarJi
Acharya Shri 108 Prabal Sagarji Maharaj was born on 9 April 1971 in Devpura, Udaipur, Rajasthan. His name was Dharmesh Jain before diksha. He received initiation from Acharya Shri 108 Puspdant Sagar Ji Maharaj.
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मुनि चारित्र सागर जी (दादाजी )
Muni Charitra Sagar ji (Grandfather)
Acharya Shri 108 Prabal Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागरजी महाराज १९५४ Acharya Shri 108 Pushpadant Sagarji Maharaj 1954
आचार्य श्री १०८ पुष्पदंत सागरजी महाराज १९५४ Acharya Shri 108 Pushpadant Sagarji Maharaj 1954
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वर्ष | स्थान |
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1995 | कानपुर ( उ.प्र.) |
1996 | मुरादाबाद ( उ.प्र.) |
1997 | मुजफ्फर नगर ( उ.प्र.) |
1998 | शिवपुरी (म.प्र.) |
1999 | रोहतक (हरियाणा) |
2000 | गाजियाबाद (उ.प्र.) |
2001 | अम्बाला (हरियाणा) |
2002 | लखनऊ (उ.प्र.) |
2003 | कैलाशनगर (दिल्ली) |
2004 | यमुना विहार (दिल्ली) |
2005 | बाहुबली एन्क्लेव (दिल्ली) |
2006 | रेवाड़ी (हरियाणा) |
2007 | सूरजमल विहार (दिल्ली) |
2008 | चण्डीगढ़ (हरियाणा) |
2009 | प्रीतमपुरा (दिल्ली) |
2010 | उदयपुर (राज.) |
2011 | चावण्ड (राज.) |
2012 | प्रबल शान्ति धाम जावर तीर्थ (उदयपुर) |
2013 | विद्यासागर तपोवन तारांगा जी सिद्धक्षेत्र (गुजरात) |
2014 | सोला रोड़ (अहमदाबाद) |
2015 | महुवा जी तीर्थ (सूरत) |
2016 | मांगीतुंगी तीर्थ (महाराष्ट्र) |
2017 | कंचनेर तीर्थ (महाराष्ट्र) |
2018 | कम्बइहल्ली (कर्नाटक) |
2019 | श्री सम्मेद शिखर जी |
Girnar Upsagar Vijayi
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