Acharya Shri Vishuddh sagar ji Maharaj (born 18 December 1971) is one of the best-known modern Digambara Jain Acharya (Digambar Jain Monk). He is also Known for his Preacher on Famous and one of the Most ancient and Old treatise of Jainism composed by Jain Acharya Kunkunda Samaysara, A book is Published naming Samay deshna author Acharya Vishuddh Sagar Ji Maharaj.
Acharya Shri Vishuddh sagar Maharaji was born on 18Th December 1971 at Roor village located in Bhind, Madya Pradesh. He was the seventh son of Shri Ramnarayanji and Ratibai Jain. As per Jain culture, He was given a name as Rajendra (A.K.A. Lalla) on 2nd February 1972 on the temple day. He was very kind by nature since childhood and never demanding kid. He used to accept what so ever offered to him. Since childhood, he was attracted towards nature and animals. Because of his, this nature he always prefers to visit temple for peace of mind. Slowly he started developed his interest to read Jain Holy Books.
At the age of sixteen after completion of High School, he embarked on the virtuous path of Jain asceticism and adopted Bhramhacharya Vrat. Rajendra Bhaiya received a grand eclipse initiation on October 11, 1989 from Acharya Virag Sagarji Maharaj. He was named as Yashodhar Sagar ji at Bhind (M.P.). Later on Shree Yashodhar Sagar Ji received ailak Diksha at Panna Nagar on 19 June 1991, after 2 years from Acharya Virag Sagar ji. After 6 month of taking Ailak Dikhsha, On 21st November 1991 he became a Muni Vishuddh Sagar at Shreyansgiri (M.P.). Later on March 31, 2007, he attained the rank of Acharya at Aurangabad (Maharashtra).
As an Acharya, He does not eat salt, curd, rice & oil in addition to what is traditionally prohibited (like onions) by Jainism. He used to come out from Sravakas for a meal between 10:00 a.m.–10:30 a.m. He used to intake food once a day in the palm of his hand, one morsel at a time.
Param Pujya Acharya Ratna Shri 108 Vishuddha Sagar Ji Maharaj handwritten by Kesar,Granth name-Karma Vipak Granth got Golden Book of World of Records.
Acharya Shri 108 Aadisagar Ji Maharaj (Anklikar)
Acharya Shri 108 Mahaveer Kirti Ji Maharaj
Acharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj
Acharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
Acharya Shri 108 Vishuddha Sagar Ji Maharaj
स्वदीक्षित मुनि दीक्षा स्थान सन्
मुनि श्री मनोज्ञ सागर जी, इंदौर 2007
मुनि प्रमेय सागर जी
मुनि प्रशम सागर जी
मुनि प्रत्यक्ष सागर जी (समाधि)
मुनि सुव्रत सागर जी अशोकनगर 2009
मुनि सुप्रभ सागर जी
मुनि सुयश सागर जी
मुनि अनुत्तर सागर जी सागर 2012
मुनि अनुपम सागर जी
मुनि अर्जित सागर जी
मुनि आदित्य सागर जी
मुनि अप्रमित सागर जी
मुनि आसीत्क्य सागर जी
मुनि आराध्य सागर जी
मुनि प्रणेय सागर जी नागपुर 2013
मुनि प्रणीत सागर जी
मुनि प्रणव सागर जी
मुनि प्रणत सागर जी
मुनि प्रणुत सागर जी
मुनि सर्वार्थ सागर जी भीलवाड़ा 2015
मुनि साम्य सागर जी
मुनि समर्थ सागर जी
मुनि सहज सागर जी
मुनि समत्व सागर जी
मुनि सम्पूर्ण सागर जी
मुनि सदय सागर जी
आचार्य श्री का जीवन परिचय निम्न पुस्तको में है।अनेक विद्ववानो द्वारा लिखित _
आदर्श श्रमण ,आध्यात्म का सरोवर,
प्रत्यग् आत्मदर्शी, आध्यात्मयोगी
स्वसंवेदी श्रमण, विशुद्व दर्शन
बिहार__ जयपुर, पद्मप्रभु, महावीर जी, आगरा, भिंड, ग्वालियर, डबरा, सोनागिर झाँसी, चिरगांव, टोडिफतेहपुर, टीकमगढ़,
ललितपुर,आहार जी,पपौरा जी, कारिटो रन, द्रोणगिरि,नैनागिरि, कुण्डलपुर, जबलपुर,कटनी,देबगढ़, प्यावल जी, उज्जैन, रतलाम, इंदौर, उन,वड़बानी,
ओरंगाबाद, नागपुर,भोपाल,विदिशा,बीना,
बंदा जी, छिदवाडा.दुर्ग भिलाई, गोमटेश
बाहुबली के आसपास, अशोकनगर, शिवपुरी,गुना,बजरंगगढ़,पन्ना,भीलवाड़ा,अमरावती,सोलापूर,डोंगरगढ़,नेमावर,
गुरसराय,रानीपुर,मऊरानीपुर,शिवपुरी,
शोलापुर,अमरावती आदि इन रास्तो में
बहुत सारे शहर,गांव आदि स्थानों का
कई बार बिहार हुआ।
जिन राज्यो में कई बार पद बिहार हुआ--मध्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश,राजस्थान,महाराष्ट,
कर्नाटक,छत्तीसगढ़
साहित्यिक कृतियां__
देशना बिंदु,आइना,
देशना संचय,तत्वबोध,विशुद्वि मुक्ति पथ,
विशुद्वा काव्यान्जलि,विशुद्व वचनामृत
साहित्य सम्बन्धी अन्य कृतियां__
समाधितंत्र इष्टोपदेश समीक्षा
पुरुषार्थ देशना अनुशीलन
अध्यात्म देशना अनुशीलन
तत्त्वदेशना समीक्षा
स्वरूप सम्बोधन परिशीलन विमर्श
सर्वोदयी देशना समीक्षा
समय देशना विमर्श
स्वरूप देशना विमर्श
Acharya Shri 108
Rajendra Kumar Jain
Smt. Rattibai Jain
MUNI SHRI VISHYAJEET SAGAR JI
Bhind {M.P.}
18 DECEMBER 1971
18 DECEMBER 1971
Metric
Vishudha Sagar Maharaji
11 Oct 1989
11 Oct 1989
Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
19 june 1991
Panna
Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
21 NOVEMBER 1991
Shreyansh Giri
Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
31 March07 (Mahavir jayanti)
Aurangabad
Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
1989 भिंड,
1990टीकमगढ़,
1991 श्रेयांसगिरी
1992द्रोणगिरि
1993 श्रेयांसगिरि
1994 बीना
1995पन्ना
1996 छतरपुर
1997 दुर्ग
1998 भिलाई
1999 झाँसी
2000 सागर
2001सिलवानी
2002 भोपाल
2003ललितपुर
2004 विदिशा
2005 अमरावती
2006 सोलापूर
2007 इंदौर
2008 जबलपुर
2009 अशोकनगर
2010 उज्जैन
2011आगरा
2012सागर
2013 नागपुर
2014 भोपाल
2015भीलवाड़ा
2016 भिलाई
2019 इंदौर
2020 वैशाली,बिहार
For the year 2020, Shri Vishuddh Sagar ji Maharaj completed his Chaturmas at Baskund Village, Bihar.
Acharya Shri Vishuddh sagar ji Maharaj (born 18 December 1971) is one of the best-known modern Digambara Jain Acharya (Digambar Jain Monk). He is also Known for his Preacher on Famous and one of the Most ancient and Old treatise of Jainism composed by Jain Acharya Kunkunda Samaysara, A book is Published naming Samay deshna author Acharya Vishuddh Sagar Ji Maharaj.
Rajendra Kumar Jain
Smt. Rattibai Jain
MUNI SHRI VISHYAJEET SAGAR JI
Bhind {M.P.}
18 DECEMBER 1971
18 DECEMBER 1971
Metric
Vishudha Sagar Maharaji
11 Oct 1989
11 Oct 1989
Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
19 june 1991
Panna
Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
21 NOVEMBER 1991
Shreyansh Giri
Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
31 March07 (Mahavir jayanti)
Aurangabad
Aacharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के बचपन से प्रारंभिक क्रियायें उनके भविष्य में वैराग्य की और बढ़ते क़दमों का संकेत दे रही थी।उनका विवरण निम्न प्रकार से है।
बचपन से ही जिनालय जाना:- महाराज श्री अल्पायु से अपने पिता जी श्री रामनारायण जी एवं माता जी श्रीमती रत्ती देवी एवं अपने अग्रजों के साथ प्रतिदिन श्री जिन मंदिर जी दर्शनों के लिये जाने लगे थे।
रात्रि भोजन एवं अभक्ष्य वस्तुओं का त्याग:-लला राजेंद्र (आचार्य श्री का बचपन का नाम)ने ७ वर्ष की अल्पायु में श्री जिनालय में रात्रि भोजन का त्याग एवं अभक्ष्य वस्तुओं के त्याग का नियम ले लिया था और उसका पालन भली प्रकार से किया ।
सप्त व्यसनों का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन:- लला राजेंद्र जब ८ वर्ष के थे तभी से उन्होंने सप्त व्यसन का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन करना प्रारंभ कर दिया था।
बिना देव दर्शन भोजन न करने का नियम:- लला राजेंद्र ने १३ वर्ष की अल्पायु में तीर्थराज श्री दिग. जैन सिद्ध क्षेत्र शिखर जी में बिना देव दर्शन के भोजन न करने का नियम ले लिया था ।
स्वत: ब्रहमचर्य व्रत अंगीकार :- अल्पायु में लला राजेंद्र ने अपने ग्राम रुर के जिनालय में भगवान् के समीप स्वयं ही ब्रहमचर्य व्रत ले लिया था ।
अनेक तीर्थ क्षेत्रों की वंदना करने का सौभाग्य :- राजेंद्र लला ने अपने पिता जी माता जी एवं अनेक परिवार जनों के साथ बचपन से ही शिखर जी,सोनागिरी जी,एवं अनेक तीर्थ क्षेत्रों के दर्शन करने एवं वह विराजमान पूज्य महाराजों के दर्शन करना भी उनके वैराग्य का एक बिंदु है।
परमपूज्य गुरुवर १०८ मुनि श्री विराग सागर जी महाराज के प्रथम दर्शन अपनी बहन के यहाँ नगर भिंड में सन १९८८ में प्रथम बार किये ।उनके प्रवचन और दर्शन से राजेंद्र लला के मन में वैराग्य कके बीज अंकुरित होने लगे।
जैन धर्म की पुस्तकों का अध्ययन ,मनन ,चिंतन :- राजेंद्र भैया बचपन से ही ग्रथों का अध्ययन करके उन पर मनन एवं चिंतन करने लगे थे ,जो उनके वैराग्य की और बढ़ने का एक माध्यम बना।
भिंड में आदरणीय संयमी महानुभावों से भेंट :- जैन मंदिर भिंड में आदरणीय पं. मेरु चन्द्र जी(परमपूज्य मुनिश्री विश्व कीर्ति सागर जी महाराज) वर्तमान में समाधिस्थ एवं बाल ब्र. श्री रतन स्वरूप श्री जैन (वर्तमान में आचार्य श्री विनम्र सागर जी महाराज) से मुलाकात भी भैया राजेंद्र के पथ पर बढ़ने में सहायक हुई।
परम पूज्य गुरुवर श्री का वर्ष १९८८ का भिंड में वर्षा योग :- पूज्य मुनि श्री १०८ विराग सागर जी महाराज का १९८८ में पवन वर्षा योग भिंड नगर में हुआ ।भैया राजेंद्र उस अवधि में अपनी बहन के यहाँ भिंड में रहकर पूज्य गुरुवर के संघ में आते रहते थे।इस से लम्बे समय तक गुरुवर का सानिध्य मिला उनके प्रवचन का भी प्रभाव पड़ा ।जिस से उनका मन विराग सागरजी में चरणों में रम गया और वे संघ में ही रहने लगे और वह से विहार करने पर संघ के साथ विहार भी किया।
ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करना:- श्री राजेंद्र भैया पूज्य गुरुवर मुनि श्री १०८ विराग सागर जी के साथ विहार करते हुए अतिशय क्षेत्र बारासों पधारे ।यद्यपि राजेंद्र ने रुर नगर में जिनालय के सामने दीपावली के दिन ब्रह्मचर्य व्रत के लिया था फिर भी यहाँ गुरुवर के समीप दिनांक १६ नवम्वर को १७ वर्षकी उम्र में ब्रहमचर्य व्रत पुन: अंगीकार किया।
ब्रह्मचर्य अवस्था में नग्न होकर अभिषेक करना:- १९८८ में एकांत मे ब्रह्मचर्य अवस्था में नग्न होकर भगवान् का अभिषेक किया था जो उनके भविष्य का संकेत दे रहा था।
क्षुल्लक दीक्षा:- राजेंद्र भैया ने आचार्य विराग सागरजी के कर कमलो से दिनांक ११ अक्टूबर १९८९ को भव्य क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की।उनका नाम रखा गया क्षुल्लक श्री यशोधर सागर जी इस समय इनकी आयु १८ वर्ष की थी।
ऐलक दीक्षा:- परम पूज्य क्षुल्लक श्री यशोधर सागर जी ने आचार्य विराग सागरजी के कर कमलो से २ वर्ष बाद दिनांक १९ जून १९९१ को भव्य ऐलक दीक्षा पन्ना नगर मे ग्रहण की।
मुनि दीक्षा:- ऐलक दीक्षा के ६ माह बाद ही परम पूज्य ऐलक श्री यशोधर सागर जी ने २० वर्ष की आयुमे अपने गुरुवर से श्रेयांस गिरी में दिनांक २१-११-१९९१ को भव्य मुनि दीक्षा ग्रहण की,नाम रखा गया मुनि श्री १०८ विशुद्ध सागर जी महाराज ।
आचार्य पदारोहण:-परम पूज्य मुनि श्री १०८ विशुद्ध सागर जी महाराज को परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी के कर कमलो से ३१ मार्च २००७ को मुनि दीक्षा के १५ वर्ष ६ माह बाद ३५ वर्ष की आयु में दिनांक ३१ मार्च २००७ को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया।
संक्षिप्त परिचय |
|
जन्म: | १८ दिसम्बर १९७१ |
जन्म नाम : | राजेन्द्र कुमार जैन |
जन्म स्थान : | भिडं (म.प्र.) |
माता जी नाम : | श्रीमती रत्तीबाई जैन |
पिताजी नाम : | राम नारायण जी जैन (मुनि श्री विश्वजीत सागर जी) |
शिक्षा : | मैट्रिक |
क्षुल्लक दीक्षा : | ११ अक्टुबर १९८९ |
क्षुल्लक दीक्षा स्थान : | भिन्ड |
क्षुल्लक दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
ऐलक दीक्षा : | १९ जून १९९१ |
ऐलक दीक्षा स्थान : | पन्ना |
ऐलक दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
मुनि दीक्षा : | २१ नवंबर १९९१ |
मुनि दीक्षा स्थान : | श्रेयासं गिरि |
मुनि दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
आचार्य पद : | ३१ मार्च २००७ महावीर जयन्ती |
आचार्य पद स्थान : | ओरंगाबाद महाराष्ट्र |
आचार्य पद प्रदाता : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
Acharya Shri 108 Aadisagar Ji Maharaj (Anklikar)
Acharya Shri 108 Mahaveer Kirti Ji Maharaj
Acharya Shri 108 Vimal Sagar Ji Maharaj
Acharya Shri 108 Virag Sagar Ji Maharaj
Acharya Shri 108 Vishuddha Sagar Ji Maharaj
स्वदीक्षित मुनि दीक्षा स्थान सन्
मुनि श्री मनोज्ञ सागर जी, इंदौर 2007
मुनि प्रमेय सागर जी
मुनि प्रशम सागर जी
मुनि प्रत्यक्ष सागर जी (समाधि)
मुनि सुव्रत सागर जी अशोकनगर 2009
मुनि सुप्रभ सागर जी
मुनि सुयश सागर जी
मुनि अनुत्तर सागर जी सागर 2012
मुनि अनुपम सागर जी
मुनि अर्जित सागर जी
मुनि आदित्य सागर जी
मुनि अप्रमित सागर जी
मुनि आसीत्क्य सागर जी
मुनि आराध्य सागर जी
मुनि प्रणेय सागर जी नागपुर 2013
मुनि प्रणीत सागर जी
मुनि प्रणव सागर जी
मुनि प्रणत सागर जी
मुनि प्रणुत सागर जी
मुनि सर्वार्थ सागर जी भीलवाड़ा 2015
मुनि साम्य सागर जी
मुनि समर्थ सागर जी
मुनि सहज सागर जी
मुनि समत्व सागर जी
मुनि सम्पूर्ण सागर जी
मुनि सदय सागर जी
आचार्य श्री का जीवन परिचय निम्न पुस्तको में है।अनेक विद्ववानो द्वारा लिखित _
आदर्श श्रमण ,आध्यात्म का सरोवर,
प्रत्यग् आत्मदर्शी, आध्यात्मयोगी
स्वसंवेदी श्रमण, विशुद्व दर्शन
बिहार__ जयपुर, पद्मप्रभु, महावीर जी, आगरा, भिंड, ग्वालियर, डबरा, सोनागिर झाँसी, चिरगांव, टोडिफतेहपुर, टीकमगढ़,
ललितपुर,आहार जी,पपौरा जी, कारिटो रन, द्रोणगिरि,नैनागिरि, कुण्डलपुर, जबलपुर,कटनी,देबगढ़, प्यावल जी, उज्जैन, रतलाम, इंदौर, उन,वड़बानी,
ओरंगाबाद, नागपुर,भोपाल,विदिशा,बीना,
बंदा जी, छिदवाडा.दुर्ग भिलाई, गोमटेश
बाहुबली के आसपास, अशोकनगर, शिवपुरी,गुना,बजरंगगढ़,पन्ना,भीलवाड़ा,अमरावती,सोलापूर,डोंगरगढ़,नेमावर,
गुरसराय,रानीपुर,मऊरानीपुर,शिवपुरी,
शोलापुर,अमरावती आदि इन रास्तो में
बहुत सारे शहर,गांव आदि स्थानों का
कई बार बिहार हुआ।
जिन राज्यो में कई बार पद बिहार हुआ--मध्यप्रदेश,उत्तरप्रदेश,राजस्थान,महाराष्ट,
कर्नाटक,छत्तीसगढ़
1989 भिंड,
1990टीकमगढ़,
1991 श्रेयांसगिरी
1992द्रोणगिरि
1993 श्रेयांसगिरि
1994 बीना
1995पन्ना
1996 छतरपुर
1997 दुर्ग
1998 भिलाई
1999 झाँसी
2000 सागर
2001सिलवानी
2002 भोपाल
2003ललितपुर
2004 विदिशा
2005 अमरावती
2006 सोलापूर
2007 इंदौर
2008 जबलपुर
2009 अशोकनगर
2010 उज्जैन
2011आगरा
2012सागर
2013 नागपुर
2014 भोपाल
2015भीलवाड़ा
2016 भिलाई
2019 इंदौर
2020 वैशाली,बिहार
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