
There is no excerpt because this is a protected post.
श्री निर्वाण आदि तीर्थंकर भूतकाल के तुम्हें नमन। श्री वृषभादिक वीर जिनेश्वर वर्तमान के तुम्हें नमन॥
अष्ट-करम करि नष्ट अष्ट-गुण पाय के, अष्टम-वसुधा माँहिं विराजे जाय के ऐसे सिद्ध अनंत महंत मनाय के, संवौषट् आह्वान करूँ हरषाय के॥
निज वज्र पौरुष से प्रभो ! अन्तर-कलुष सब हर लिये प्रांजल प्रदेश-प्रदेश में, पीयूष निर्झर झर गये॥