
श्री अरहंत सिद्ध, आचार्योपाध्याय, मुनि साधु महान। जिनवाणी, जिनमंदिर, जिनप्रतिमा, जिनधर्मदेव नव जान॥
अरहन्त सिद्ध आचार्य नमन, हे उपाध्याय हे साधु नमन जय पंच परम परमेष्ठी जय, भवसागर तारणहार नमन॥
देव-शास्त्र-गुरु नमन करि, बीस तीर्थंकर ध्याय I सिद्ध शुद्ध राजत सदा, नमूँ चित्त हुलसाय॥
वीतराग अरिहंत देव के पावन चरणों में वन्दन। द्वादशांग श्रुत श्री जिनवाणी जग कल्याणी का अर्चन॥
केवल-रवि किरणों से जिसका, सम्पूर्ण प्रकाशित है अंतर । उस श्री जिनवाणी में होता, तत्त्वों का सुंदरतम दर्शन ॥ सद्दर्शन-बोध-चरण पथ पर, अविरल जो बढते हैं मुनि-गण। उन देव परम आगम गुरु को, शत-शत वंदन शत-शत वंदन ॥
Karma Kaise Kare- कर्म कैसे करे,मुनिश्री क्षमासागरजी - Download Pravachans