
शांतिनाथ। मुख शशि-उनहारी, शील-गुण-व्रत, संयमधारी। लखन एकसौ-आठ विराजें, निरखत नयन-कमल-दल लाजें ॥१॥
ओम जय सन्मति-देवा, प्रभु जय सन्मति-देवा। वीर महा-अतिवीर, प्रभु जी वर्द्धमान-देवा।। टेक
ज्ञानतोऽज्ञानतो वापि शास्त्रोक्तं न कृतं मया। तत्सर्वं पूर्णमेवास्तु त्वत्प्रसादाज्जिनेश्वर।१।
श्रीवृषभो नः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीअजितः श्रीसंभवः स्वस्ति, स्वस्ति श्रीअभिनंदनः
श्रीमज्जिनेन्द्रमभिवंद्य जगत्त्रयेशम् । स्याद्वाद-नायक-मनंत-चतुष्टयार्हम् || श्रीमूलसंघ-सुदृशां सुकृतैकहेतुर । जैनेन्द्र-यज्ञ-विधिरेष मयाऽभ्यधायि |1|
श्री जी! मैं थाने पूजन आयो, मेरी अरज सुनो दीनानाथ! श्री जी, मैं थाने पूजन आयो।॥१॥