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#VardhamansagarjiDharmsagarji
Shrimati. Manorama ji Shriyut Kamal Chand ji at Pancholia. Saptami Arjava gave birth to their 13th child on 18 September 1950 on the third holy day of Paryushan festival.
In 1967, Yashwant took a lifelong Shudra water sacrifice and 5 years Brahmacharya Vrat from Aryika Shri Gyanmati Mataji in Shri Muktagir Siddha area . In 1968 Yashwant took a lifelong Brahmacharya Vrat from Acharya Shri Vimal Sagar Ji Maharaj in Rajasthan.
The third Pattadhish Nutan Acharya Shri Dharma Sagar Ji Maharaj gave 6 initiations, 3 Muni Aryika and 2 Eshulakas with you on Shri Mahavir ji in Fagun Shukla 8( Samvat 2025 ) 24 February 1969.
कोथली महाराष्ट्र - आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज के ससंघ सान्निध्य में सुशीला बाई को आर्यिका दीक्षा दिनांक 29 जुलाई 2021 दी गई। जिनका नाम आर्यिका श्री दुर्लभमति माताजी रखा गया। आर्यिका दीक्षा के संस्कार आर्यिका श्री सरस्वती मति माताजीने किये।
Ref - Sanksar_Sagar -July 21
आचार्य श्री वर्धमानसागर जी द्वारा 13 अगस्त गया। 2021 को इद्रमल जी धरियावत अप्पासाहब डिबरूगढ़ (आसाम)- गाणना। अलास काल्हापुर क्षुल्लक निर्मोह सागर जी आर्यिका श्री विंध्यश्री माताजी क को मुनि दीक्षा दी गई। जिनका नाम क्रमशः करकमलों से सरोज कुमार पहाड़िया गुवाहाटी मुनिश्री पद्मकीर्ति सागरजी महाराज, मुनि श्री 14 अगस्त 2021 को क्षुल्लक दीक्षा दी गई। परमानद जा महाराज, मुनि श्री पद्मसागरजी जिनका नाम क्षुल्लक श्री तुभ्यमसागर रखा महाराज रखागया।
Ref Sankar Sagar - Aug-21
20 वी सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण पट्ट परम्परा में तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी से दीक्षित मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के पंचम पट्टाधिश राष्ट्र गौरव वात्सल्य वारिधि तपोनिधि आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज को त्रिकाल नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु|भरत चक्रवती के नाम पर अवतरित भारत देश मे राज्य मध्यप्रदेश में कई भव्य आत्माओं ने अवतरित होकर श्रमण मार्ग अपनाया है ।
इसी राज्य के खरगौन जिले के सनावद नगर जो कि सिद्ध क्षेत्र श्री सिद्धवरकूट, श्री सिद्धक्षेत्र पावागिरी ऊन, श्री सिद्ध क्षेत्र चूलगिरी बावनगजा बड़वानी के निकट है। इन सिद्ध क्षेत्रों से करोड़ो मुनि मोक्ष गए है।
जन्म:-
ऐसी पवित्र नगरी सनावद में पर्युषण पर्व के तृतीय उत्तम आर्जव दिवस पर एक प्रतिभा शाली कुल परिवार नगर का मान बढ़ाने वाले यशस्वी बालक यशवंत का जन्म माता श्रीमती मनोरमा देवी जैन की उज्जवल कोख से प्रसवित हुआ। आपके पिता श्री कमल चंद जी जैन उपजाति पोरवाड़ से है ।
खिला तेरहवां पष्प:-
बिन्दु से सिन्धु तक का सफर करने वाले साधक की जन्मभूमि है मध्यप्रदेश का प्राचीन गुलशनाबाद वर्तमान का सनावद | 15 से अधिक त्यागियों की जन्मभूमि का गौरव मिलने पर अर्वाचीन अयोध्या से अलंकृत | माता श्रीमती मनोरमा देवी एवं पिताश्री कमलचन्दजी की जीवन बगिया में 19 सितम्बर 1950, भाद्रपद शुक्ला सप्तमी वीरनिसंवत 2007 को खिला तेरहवां पष्प |दशलक्षण महापर्व के उत्तम आर्जव धर्म के दिन पैदा हर बालक को देखकर माँ खिलते-खिलते मुरझाये अपने बारह पुष्प-बारह सन्तानों के निधन की वेदना के घाव पर मरहम लगाकर, उनके दीर्घायु की कामना करने लगी । भव्य ललाट, गोरा बदन काले घुघराले बाल, बादाम जैसी बड़ी आँखें और मुखमण्डल पर अनोखी ओजस्वी आभा | भविष्य में बालक, माता पिता, समाज व गाँव के यश को वृद्धिंगत करेगा इससे अनभिज्ञ माता-पिता ने दुलार से नाम रखा यशवन्त | निजी मान्यतावश यशवन्त की परवरिश हुई मामा-मामी के पास खण्डवा में |
पढ़ाई:-
पढ़ाई का समय आते ही यशवन्त कोखण्डवा से लाकर बाल मन्दिर, बाद में मयाचन्द दि. जैन माध्यमिक स्कूल, सनावद में भर्ती कराया | तेज ग्रहण शक्ति से यशवन्त स्कूल में अव्वल नम्बर से उत्तीर्ण होते रहे । अपने विवेकपूर्ण सौहार्दशील व्यवहार, सबके साथ बनती मेल-जोल से सबके लाडले बने रहे । खेलकूद में गोटी व गिल्लीडण्डा खेलने में बड़ी रुचि थी यशवन्त को | शिक्षा और खेलकूद में दिलचस्पी रहने के बावजूद भी छठी कक्षा में पढ़ रहे यशवन्त ने बीमारी के बिछौने पर लेटी ममतामयी माँ की सेवा जीजान से की । किन्तु अपने बच्चों के लिए तड़पती माँ बच्चों को बिलखते छोड़कर सदा के लिए चल बसी।
माँ के निधन पश्चात्:-
माँ के निधन पश्चात् यशवन्त पढ़ाई खेलकूद के साथ पिताजी के काम में हाथ बँटाने लगे । छोटे भाई का ख्याल रखने लगे | चचेरे बड़े भैया । मोटक्का के जिनालय में वैराग्य का बीजमन्त्र दिया यशवन्त को |
मुक्तागिरि क्षेत्र पर माताजी से 5 साल का ब्रह्मचर्य व्रत:-
माताजी के साथ विहार करके मुक्तागिरि क्षेत्र पर माताजी से 5 साल का ब्रह्मचर्य व्रत, बाद में सन् 1968 में बागीदौरा में आचार्यश्री विमल सागर जी महाराज से लिया मोक्षमार्ग का प्रथम सोपान आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ।मोतीलालजी के साथ मन्दिर व पाठशाला जाने लगे। पहले गोटी, बाद में गिल्ली डण्डा और अब सनावद के निकट बहती भाखड़ी नदी मैं श्वास को रोककर कमलपत्र जैसे तैरते यशवन्त सोच के सागर में डूबे रहते | माँ की मृत्यु की याद आते ही क्या यही संसार है ? संसार में कोई शरण नहीं ? मृत्यु का कोई इलाज नही क्या? जन्म-मरण, संयोग वियोग, सुख-दुःख बस इसी का नाम है संसार ? इसी सोच में आँखों के गीलेपन से दिल का बोझ हल्का कर लेते थे यशवन्त ।
आचार्य श्री महाविरकीर्तिजी और आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज द्वय के बडवानी में ससंघ दर्शन:-
सन् 1964 में आचार्य श्री महाविरकीर्तिजी और आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज द्वय के बडवानी में ससंघ दर्शन आशीर्वाद से अवर्णनीय आनन्दानुभूति से भर गये यशवन्त | क्या मुनि बनने से आचार्य द्वय जैसी समता व शान्ति मिल सकती है ? गहरे चिन्तन में मग्न हो गये यशवन्त । आचार्यश्री महावीर कीर्ति जी व आचार्य श्री विमल सागरजी का दो मुनिराजों के साथ सनावद में पदार्पण से धर्मभावना बढ़ती रही ।सन् 1965 में श्री इन्दुमती माताजी, श्री सुपार्श्वमति माताजी एवं विद्यामती माताजी के चातुर्मास काल में माताजी त्रय के मुखमण्डल पर विलसित आनन्द, भीतर की शान्ति, समता और वात्सल्य-व्यवहार से अभिभूत यशवन्त सोचते है दिन में एक बार आहार और पूरा दिन अपने कार्यों में सलंग्न होते हुए चेहरे पर असीम आनन्द । इस राज को ज्ञात कर लिया यशवन्तजी ने माताजी से पूछकरमाताजी ने सहज बताया "वैराग्यमार्ग पर बढ़ोगे तो तुम्हें भी ऐसा ही आनन्द मिलेगा ।" ये शब्द सीधे उतर गये उनके हृदय में | पढ़ाई के साथ साथ धार्मिक भावना को बढ़ावा मिलता रहा | माध्यमिक शिक्षा पूर्ण कर खण्डवा की कॉलेज में एडमिशन मिलने के बावजूद भी होस्टल के रेक्टर से माँस खरीदकर लाने के आदेश से तिलमिला गए, अहिंसा के पुजारी | दूसरे दिन सुबह पढ़ाई छोड़कर वापस सनावद आकर बडवाह की डिग्री कॉलेज में भर्ती हो गए।
आचार्यश्री शिवसागरजी के संघ में:-
घर वापस आकर कुछ दिन रुककर फिर पहुँचे आचार्यश्री शिवसागरजी के संघ में आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के पास | शास्त्रों के अध्ययन के साथ-साथ, मुनिचर्या को नजदीकी से निहारने का, संघ में साधुओं की वैयावृत्ति कर संघ का छोटा-बड़ा काम करने का मौका मिला ब्र. यशवन्त को | अपनी विनम्रता, औचित्यपूर्ण व्यवहार एवं अध्ययन में विशिष्ट रुचि रखने वाले ब्र. यशवन्त सबके प्रिय बने । प्रतापगढ़ में चातुर्मास पूर्ण कर महावीरजी में शान्तिवीर नगर में पंचकल्याणक हेतु पदार्पण किया । दूसरों के साथ यशवन्तजी ने आचार्य श्री से मुनिदीक्षा के लिए प्रार्थना की । इससे समस्त संघ में आनन्द की लहर फैल गई। आनन्दातिरेक में मुनिश्री श्रेयांससागर ने यशवन्तजी को अपनी गोदी में उठा लिया। आचार्यश्री शिवसागरजी ने सुझाव दिया “ब्रह्मचारीजी आपने श्री सम्मेदशिखरजी की यात्रा नहीं की है तो आप सम्मेदशिखर की यात्र करके आइये, मुनि दीक्षा के बाद न जाने कब होगी यात्रा ? गुरु आज्ञा शिरोधार्यकर दूसरे दिन निकल पड़े श्री सम्मेदशिखरजी की वन्दना हेतु ।
आचार्यश्री शिवसागरजी की समाधि और मुनि दीक्षा :-
उसी दिन दोपहर को अचानक आचार्यश्री शिवसागरजी की समाधि हो गई । यात्रा से आने के बाद दिनांक 24 फरवरी 1969 को मुनिश्री धर्मसागरजी को आचार्यपद प्राप्ति होते ही उसी दिन उनके करकमलों से 11 दीक्षायें सम्पन्न हुई। इसमें सबसे छोटे थे, ब्र. यशवन्तजी | नये स्वावलम्बी साधु जीवन में नाम मिला मुनिश्री वर्धमान सागर | श्री महावीर जी की धरा पर एक और वर्धमान ने जन्म लिया जो सदा होते रहे “वर्धमान" | श्रद्धालु भक्तों को लगा पूरा व्यक्तित्व जैसे सिमटकर उनकी दृष्टि में समा गया हो । वैराग्य, करुणा, शान्ति, समता, समष्टि के प्रति स्नेह भावना झलक रही है मुनिश्री वर्धमानसागरजी के नयनों में | सब लोग एक नये धर्मसूर्य के दर्शन कर रहे हैं मुनिश्री वर्धमान सागर जी में ।सन् 1969 में वर्तमान सदी की श्रेष्ठ साध्वी, शताधिक ग्रन्थों की रचयित्री, हस्तिनापुर, जम्बूद्वीप की पावन प्रेरिका आर्यिका रत्न श्री ज्ञानमती माताजी 4 आर्यिका और 2 क्षुल्लिका के साथ पधारी सनावद | चातुर्मास के दौरान यशवन्त की धर्मरुचि को, संसार से उदासीनता को माताजी ने भली|
आहारचर्या में अन्तराय - 52 घण्टों की गई हुई नेत्र ज्योति ज्यों-की त्यों प्राप्त हुई:-
आहारचर्या में अन्तराय की बहुलता से कमजोर पड़े शरीर में व्याधिओं ने डेरा डाला, शरीर के व्यवधानों को नगण्य मानकरसहजता से उत्साहित रहे मुनिश्री वर्धमानसागरजी महाराज विहार में जयपुर खानियाँ जी में दृढ़ मनोबल के बावजूद भी ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी के दिन बेहोशी आ गई, थोड़ा होश आने पर पसलियों में जोरों का दर्द हुआ एवं तत्क्षण आँखों से दिखाई देना बिल्कुल बन्द हो गया । अपने पाप कर्मो के फल को सहजता से सहते हुए मुनिश्री धैर्य धारणकर मन में शान्ति बनाये बैठे रहे | डॉक्टरों ने बताया कि एलोपैथीक दवाईयाँ और समय पर इलाज नहीं करवाया तो फिर उपचार भी अनुपयोगी साबित हो सकता है।आचार्य श्री धर्मसागरजी ने बताया कि मुनि अवस्था में रहकर एलोपैथीक नहीं दी जा सकती । पूरा संघ चिन्तित है क्या करें ? मुनिश्री वर्धमानसागरजी को परिषहजयी मुनिराजों का स्मरण आया | उन्होंने आचार्य श्री को बताया कि प्रसंग आने पर संल्लेखना ले लूँगा किन्तु मैं इन्जेक्शन आदि नहीं लगवाऊँगा | अतः जिनालय में चन्द्रप्रभ भगवान के पास ले जाने को कहा । मुनिश्री वर्धमानसागरजी ने वहाँ जाकर, चन्द्रप्रभ भगवान के चरणों में नतमस्तक होकर शान्ति भक्ति- "नं स्नेहाच्छरण प्रयान्ति भगवन्..." का पाठ करना शुरु कर दिया | आचार्य श्री सहित संघस्थ सभी मुनिराज, आर्यिका माताजी, त्यागी, श्रावक आदि 24 घण्टे का नियम लेकर उच्चस्वर मे शान्ति भक्ति का पाठ करने लगे । तीन घण्टों की सामूहिक भक्ति से हुआ चमत्कार | मुनिश्री वर्धमानसागरजी महाराज की 52 घण्टों की गई हुई नेत्र ज्योति ज्यों-की त्यों प्राप्त हुई . यह वही शान्ति भक्ति है जिसकी पूज्यपाद स्वामी ने आकाशमार्ग से गमन करते सूर्य की उष्णता से स्वयं की नेत्र ज्योति चली जाने पर रचना करते ही नेत्र ज्योति पुनः प्राप्त की थी । मुनिश्री वर्धमानसागरजी सन्तुष्ट हैं | परिषहजय से, प्रसन्न है भक्ति की शक्ति के परिणाम से, भगवान के आशीर्वाद से पुनः प्राप्त हुई नेत्र ज्योति से जन-जन की अर्न्तज्योति को जगाने का पुरुषार्थ करने की ठान ली मुनिश्री ने।प्रथम चातुर्मास में ही निरन्तर अन्तरायों की बहुलता से शरीर व्याधियों से ग्रस्त हुआ, फिर भी आचार्य गुरुदेव के आशीर्वाद, संघस्थ सभी की सेवा सम्बल से दृढ़ता बढ़ती रही | कसौटी की परीक्षा में शत प्रतिशत खरे उतरे और उनका आत्मबल, तपसाधना और दृढविश्वास हरपल वर्धित होता रहा।
शास्त्रों का अध्ययन विद्यागुरु आचार्यकल्प श्री श्रुतसागरजी के चरण सान्निध्य:-
आगमग्रन्थों, सिद्धान्तशास्त्रों व आचरण सम्बन्धी शास्त्रों का अध्ययन विद्यागुरु आचार्यकल्प श्री श्रुतसागरजी के चरण सान्निध्य में पूर्ण किया | पंचकलायणक के समय पाँचों कल्याणकों की सभी क्रियाओं सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करते रहे मुनिश्री । जैनधर्म की अभूतपूर्व सल्लेखना साधना मृत्यु-महोत्सव को रागद्वेष के अभाव के साथ जिसने आमन्त्रण दिया है ऐसे समाधि-साधना रत त्यागियों की वैयावृत्य में वात्सल्य का भरपूर उपयोग कर संलग्न रहे मुनिश्री । किशनगढ़ में बिहार के दौरान आचार्यश्री ज्ञानसागरजी ससंघ आचार्यश्री धर्मसागरजी ससंघ का अद्भुत मिलन प्रसंग अंकित हो गया मुनिश्री के अन्तरपटल पर, आचार्यश्री धर्मसागर महाराजजी अपने होनहार शिष्य को सभी क्रियाकलापों में साथ रखकर मार्गदर्शन देते रहे।चारित्र चक्रवती आचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज की अक्षुण्ण आचार्य परम्परा के आचार्य के नाते भगवान श्री महावीर स्वामी निर्वाण महोत्सव की राष्ट्रीय कमेटी के प्रमुख धर्माचार्य बने आचार्यश्री धर्मसागरजी, जो कार्यक्रम के मुख्य केन्द्र दिल्ली में ससंघ पधारे थे । कार्यक्रम सम्बन्धी सभी जानकारी, समागत पत्रों के उत्तर व विचार-विमर्श के समय मुनिश्री वर्धमानसागरजी आचार्यश्री के पास ही रहते थे । मुनिश्री की सूझबूझ, गुरुभक्ति, विनयपूर्ण व्यवहार से उपस्थित आचार्यश्री देशभूषणजी और मुनिश्री विद्यानंदजी, मुनिश्री वर्धमानसागरजीको अपने स्नेह से भिगोते रहे।
सन् 1985 में अखिल भारतीय युवा सम्मेलन:-
सन् 1985 में अखिल भारतीय युवा सम्मेलन आयोजित हुआ लुणवाँ में, जिसमें भारत के करीब 5000 से अधिक युवा सम्मिलित हुए . अपने मार्गदर्शन से, अपने वक्तव्य से, वाणी-व्यवहार से उभरते व्यक्तित्व से, युवामुनिश्री वर्धमानसागरजी बस गए युवा भक्तों के हृदय में । आचार्य भगवन्त ने अपने होनहार शिष्य की शक्ति जानकर, परखकर भावी के भीतर में ओझल भविष्य की झलक अपने अतचक्षु में पा ली, सो प्रवचन, ज्ञानाभ्यास, शिक्षण, दीक्षा संस्कार, ज्योतिषज्ञान सभी जरूरी कार्यकलापों के बीच मुनिश्री वर्धमानसागरजी को रखते थे अपने नजदीक | मुनिश्री की सभी क्षेत्रों में कार्यदक्षता से उफरते अनूठे व्यक्तित्व की चर्चा चलती रहती थी समाज में और यह सब जानकर चेहरे पर मुस्कान लिए हर्षित होते रहे आचार्यश्री धर्मसागरजी महाराज पल-पल वर्धित होते अपने मुनिशिष्य को देखकर |
अभिनन्दन ग्रन्थ का कार्य पूर्ण:-
आगम ग्रन्थों की नई टीकाओं को मूल कॉपी से मिलान व प्रुफ सन्शोधन का कार्य करके माँ जिनवाणी की सेवा में भी अछूते नहीं रहे मुनि श्री | ब्र. श्री धर्मचन्दजी शास्त्री द्वारा मिली आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज के अभिनन्दन ग्रन्थ सम्बन्धित सारी साहित्यिक सामग्री को सुव्यस्थित कर, आचार्यकल्प श्री श्रुतसागरजी महाराज के सान्निध्य में अथक पुरुषार्थ और अनन्य भक्ति से विशाल अभिनन्दन ग्रन्थ का कार्य पूर्ण किया।आचार्यश्री धर्मसागरजी महाराज की समाधि के पश्चात् आचार्यपद का भार श्री क्षेत्र केशरियाजी विराजित मुनिश्री अजितसागरजी के मजबूत कन्धों पर रखा गया । मुनिश्री वर्धमानसागरजी सीकर से बिहार कर 20-22 साधु-साध्वीओं सहित पहुँचे मदनगंज | अपनी वैयावृत्य एवं वात्सल्य का परिचय संघस्थ सभीको करवाते चातुर्मास सम्पन्न हुआ मुनिश्री वर्धमानसागरजी का मदनगँज में । आचार्यश्री अजितसागरजी का आमन्त्रण मिलते ही मुनिश्री अपने साथ रहे संघको लेकर भींडर में विराजित आचार्यश्री के चरणों में पहुँचे । मुनिश्री वर्धमानसागरजी आनन्दाश्रुओं से आचार्य श्री के पादपद्मों का अभिषेक करते रहे । आचार्य श्री भी अपने स्नेह आश्रु बरसाते रहे अनन्य शिष्य पर | गुरु शिष्य का पावन मिलन बस गया उपस्थित सभी के अन्तर में।
आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की अक्षुण्ण आचार्य परम्परा का पट्टाधीश नियुक्ति:-
करीब तीन साल के सामीप्य में आचार्यश्री अजितसागरजी ने गूद रहस्यों के साथ बहुत सारी ज्ञान की बातों से मुनिश्री वर्धमान सागरजी को अवगत कराया | मुनिश्री वर्धमानसागरजी आचार्यश्री अजितसागरजी को पिता तुल्यआदर देते हुए सेवा सुश्रूषा व वैयावृत्य में अग्रसर रहे । मुनिश्री वर्धमानसागरजी की तीक्ष्णबुद्धि, समर्पण भाव, निर्मल आगमोक्त आचरण, अनन्य गुरुभक्ति देवशास्त्र गुरु के प्रति असीम श्रद्धा, संघस्थ सभी के साथ वात्सल्यपूर्ण व्यवहार, वक्तृत्व कला, हृदय में भरी पड़ी संघ के साथ उत्थान की भावना ऐसे कुल मिलाकर सभी आयामों से ओजस्वी व्यक्तित्व को परखकर तथा अपनी अत्यधिक अस्वस्थता को देखकर अपने बादसंघ संचालन के लिए लिखित पत्र में यह आदेश दिया कि मै मेरी समाधि के बाद मुनिश्री वर्धमानसागरजी महाराज को आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की अक्षुण्ण आचार्य परम्परा का पट्टाधीश नियुक्त करता हूँ, मुनिश्री ने आचार्यश्री के चरणों में मस्तक झुकाकर प्रार्थना की आचार्य भगवन्त ! मैं तो साधक ही ठीक हूँ, मेरे निर्बळ कन्धों पर इतना भार क्यों डालते हो ? 24 जून 1990 आषाढ़ शुक्ला 2 को राजस्थान के पारसोला नगर में, आचार्यश्री पुष्पदन्त सागर जी के ससंघ सान्निध्य में मुनिश्री वर्धमानसागरजीको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया | इस मंगल अवसर पर पिच्छिका भेजकर आचार्य विद्यानन्दजी ने अपनी स्नेह भावना प्रकट की, धार्मिक अनुष्ठान, प्रवचन, स्वाध्याय के माध्यम से महती धर्म प्रभावना के साथ प्रथम चातुर्मास पारसोला में पूर्ण हुआ |अतिशय क्षेत्र अड्दिा पार्श्वनाथ पर सम्पन्न दूसरा चातुर्मास, खुले में होती क्रियाओं से चतुर्थकालीन आभा से उभारता अविस्मरणीय रहा । यहाँ से उदयपुर बिहार होते ही श्री निर्मल कुमारजीसेठी ने गिरनार आदि गुजरात के सिद्धक्षेत्रों की वन्दना कराने के भाव व्यक्त किये । फौरन स्वीकृति मिलते ही बिहार हुआ और गुजरात के छोटे-छोटे गाँव से शहर गुजरते हुए संघ की चर्या व प्रवचन श्रृंखला से जैन जैनेतर समाज प्रभावित हुई । श्री गिरनारजी, श्री शत्रुजय, श्री पावागढ़ क्षेत्र की वन्दना सानन्द सम्पन्न कर श्री तारंगाजी क्षेत्र पर के चातुर्मास से गुजरात की जनता में धार्मिक जागृति का प्रार्दुभाव हुआऔर जिन शासन की प्रभावना में चार चाँद लग गए।चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज की अक्षुण्ण आचार्य परम्परा में, आचार्य श्री शान्तिसागरजी के अतिरिक्त दूसरे किसी भी आचार्य का सिद्धक्षेत्र पर चातुर्मास स्थापित नहीं हुआ था आचार्य श्री वर्धमान सागरजी का सिद्धक्षेत्र की पावन भूमि पर चातुर्मास समापन पर भगवान श्री बाहुबली स्वामी का महामस्तकाभिषेक किया गया |
1993 के महामस्तकाभिषेक:-
श्री क्षेत्र तारगाँजीसे बिहार कर विजयनगर में आचार्यश्री की मनोभावना के अनुरूप ही समाचार आये कि कर्मयोगी भट्टारकचारुकीर्ति स्वामीजी ने भावना व्यक्त की है । आगामी 1993 के महामस्तकाभिषेक में चारित्र चक्रवर्ती आचार्यश्री शान्तिसागरजीमहाराज की अक्षुण्ण आचार्य परम्परा के आचार्य श्री वर्धमानसागरजी के उपस्थिति अवश्यमेव होनी चाहिए | स्वामीजी का संदेश लाये श्री निर्मलकुमार सेठीजी और श्री नीरज जी । एक ओर श्रवणबेलगोला के भगवान गोम्मटेश के दर्शन नहीं किये हैं फिर भी वात्सल्यमूर्ति ने संघ स्थिति को ध्यान में रखकर मनाकिया, तब संघस्थ मुनि आर्यिकाओं ने आपस में विचार विमर्श कर कुछ माताजी को छोड़कर बाकी संघ के साथ श्रवणबेलगोला जाने का अनुनय किया | गुजरात के विजयनगर से राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के क्षेत्रों की वन्दना करता हुआ संघ कर्नाटक पहुँचा | इसी बीच श्री सिद्धवरकूट के सामीप्य से 26 साल के बाद सनावद की धरती ने अपने दुलारे आचार्य श्री के पादपद्मों से पवित्र होने का प्रसंग पाया | भगवान बाहुबली की मूर्ति के दर्शनोपरान्त महामस्तकाभिषेक में प्रधानाचार्य के रूप में सम्मलित आचार्य श्री वर्धमान सागरजी के दर्शन व आशीर्वाद प्राप्ति हेतु पधारे कर्नाटक के मुख्यमन्त्री, देश के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री । एक ही मंच पर आसीन करीब 80 से अधिक साधु-साध्वीओं का परस्पर में वात्सल्य, एक ऐसी ऐतिहासिक घटना थी, जो आचार्यश्री वर्धमानसागरजीकी समदर्शिता, नम्रता और वात्सल्य की उपज रही । भट्टारक श्री चारुकीर्ति जी को भी आचार्य श्री वर्धमानसागरजी की सरलता, करुणा, सभी की राय लेकर चलना सौहार्दपूर्ण व्यवहार भाया । यहाँ से मैसुर गोम्मटगिरी, हासन, शालीग्राम, कनकगिर क्षेत्रों पर बिहार हुआ। धर्मस्थळ के धर्माधिकारी डॉ. वीरेन्द्रजी हेगड़े की विनती को स्वीकार कर धर्मस्थल में पंचकल्याणक एवं भगवान बाहुबली मस्तकाभिषेक से संघ लाभान्वित हुआ । भोज के समाज प्रमुख के अतीव आग्रह और अपने अन्तर में दादा गुरु के प्रति भक्ति से परमपूज्य आचार्यश्री वर्धमानसागरजी के दर्शन से भोज निकटवर्ती गाँव के समाज के हर्षाश्रु से भरे यही शब्द निकले हमारे शान्तिसागरजी आये है । ऐसा ही लग रहा है । "क्यों ऐसा लगा ? चारित्र चक्रवर्ती आचार्यश्री शान्तिसागरजी की परम्परा का हूबहू पालन करना आचार्यश्री वर्धमानसागरजी का मकसद रहा है। परम्परा को निभाने वाले वात्सल्यवारिधि आचार्यश्री वर्धमानसागरजी इतने खुले, इतने विशाल मना है, करुणा और वात्सल्य से ऐसे छलाछल भरे हुए हैं कि उनके सम्पर्क में आये जैन-अजैन उनके प्रशंसक भक्त बन उनसे बँध जाते हैं । फिर भी जलकमलवत् रहते आचार्यश्री है स्वात्मा में मगन | न नाम, न मान बस सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय-काम | इसलिए दिख रहे हैं आचार्य शान्तिसागरजी जैसे ।कही पंचकल्याणक, कहीं विधान और कुम्भोज बाहुबली में हुआ चातुर्मास | दक्षिण भारत के बिहार के दौरान आचार्यश्री वर्धमानसागरजी, चारित्र चक्रवर्ती आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज से लेकर अपने संघ और अन्य संघ के साधकों की बिहार मार्ग में आती जन्मभूमि की सभी जगहों पर गए और वहाँ आहार भी किया | इससे स्पष्ट झलकता है आचार्यश्री के हृदय में बिना भेदभाव से भरा मोक्षमार्ग के सभी साधकों के प्रति अविरल प्रेम बहता है। बिहार का लम्बा दौर पूर्णकर ठीक समय पर आचार्यश्री पधारे उदयपुर पंचकल्याणक में कहीं दीक्षा संस्कार समारोह, कहीं पंचकल्याणक, कहीं बच्चों से लेकर बूढ़ों तक की धार्मिक शिक्षण संस्कार शिबिर, कहीं विद्वत संगोष्ठी ऐसे जगह-जगह विधिवत आयोजन होते रहे आचार्य श्री इसमें सम्मिलित होकर मार्गदर्शन देते रहे।
सन् 2006 में सम्पन्न भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक महोत्सव:-
सन् 2006 में सम्पन्न भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक महोत्सव में सम्मिलित होने हेतु सन् 2004 में सलूम्बर (राज.) में आचार्यश्री से महोत्सव में सान्निध्य प्रदान करने हेतु प्रार्थना की गई । तदनुसार 4 दिसम्बर 2004 में आचार्यश्री ने ससंघ श्रवणबेलगोल की ओर मंगल बिहार किया | मार्ग में तीर्थो की वन्दना एवं गाँवों और नगरों में धर्मप्रभावना करता हुआ संघ मार्गस्थ अनेक प्रान्तों से गुजरता हुआ लगभग 7 माह के बिहार के पश्चात सन् 2005 के जुलाई माह में श्रवणबेलगोला पहुँचा |इस वर्ष के चातुर्मास के पश्चात सन् 2006 के फरवरी माह में सम्पन्न हुए भगवान बाहुबली के महामस्तकाभिषेक के आचार्यश्री एवं संघ के अतिरिक्त अन्य आचार्य संघ एवं लगभग 250 साधुवृन्द साक्षी बने | महोत्सव में तत्कालीन राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति तथा अनेकों प्रान्तीय राजनेताओं ने आचार्यश्री का मंगल आशीर्वादप्राप्त किया।महोत्सव की सम्पन्नता होने पर श्रवणबेलगोल से तमिलनाडू की ओर बिहार किया | मार्ग में बेंगलुरु महानगर में लगभग 1 माह रुके और दो पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएँ आचार्य श्री के ससंघ सान्निध्य से सम्पन्न हुई । तमिलनाडू में स्थित श्री कुन्दकुन्दाचार्य देव की तपोभूमि पोन्नूरमलै में संघ ने सन् 2006 का चातुर्मास प्रवास बिताया | चातुर्मास के पश्चात् पाण्डीचेरी के लिए बिहार किया | पाण्डिचेरी में पंचकलायणक सम्पन्न कर वहाँ से धर्मस्थल कर्नाटक की ओर संघ का बिहार हुआ | वहाँ भगवान बाहुबली का 12 वर्षीय महामस्तकाभिषेक (द्वितीय बार) कराकर मुडबद्री तीर्थ की वन्दना करते हुए कनकगिरी तीर्थ पर आचार्य संघ के सान्निध्य में एक पंचकल्याणक हुआ | कनकगिरी से श्रवणबेलगोल आकर सन् 2007 का वर्षायोग किया | इस वर्षायोग में आचार्य देवीनन्दीजी महाराज भी ससंघ विद्यमान थे | चातुर्मास के अनन्तर आचार्यश्री ने तीर्थराज श्री सम्मेदशिखरजी की वन्दना हेतु श्रवणबेलगोल से मंगल बिहार किया | कर्नाटक और महाराष्ट्र प्रान्त के गाँव व नगरों में एक महती धर्मप्रभावना हई । इचलकरंजी के निकट ऐनापुर में चारित्र चक्रवर्ती आचार्यश्री शान्तिसागरजी के परम विद्वान शिष्य आचार्य कुन्थुसागरजीके स्मारक में चरण स्थापना कार्य सम्पन्न कर बीजापुर में संघ का पदार्पण हुआ । यहाँ सन् 2005 में प्राचीनतम भगवान महावीर की प्रतिमा के लिए विशाल नूतन जिनालय का शिलान्यास आचार्यश्री की उपस्थिति में हुआ था उसी जिनालय का पंचकल्याणक करवाकर संघ ने आगे बिहार किया |
आचार्य श्रीवर्धमानसागरजी महाराज के निर्यापकत्व में हुई सल्लेखनाएँ : | |
सन् 1987 मदनगंज- किशनगढ़ (राजस्थान): | |
1. मुनिश्री सुदर्शनसागरजी | |
सन् 1992 तारंगाजी गुजरात: | |
1. मुनिश्री ओमसागरजी | |
2.आर्यिकाश्री भद्रमती माताजी | |
सन् 1994 मूडबद्री कर्नाटक : | |
1. ब्र. श्रीचोखेलालजी | |
सन् 1994 धर्मस्थल कर्नाटक | |
1.ब्र. श्रीबाड़ीलालजी | |
सन् 1997 भीण्डर राजस्थान: | |
1. मुनिश्री शाश्वतसागरजी महाराज | |
2. आर्यिका श्री पवित्रमती माताजी | |
3.आर्यिका श्रीचेतनमती माताजी | |
सन् 1997 पारसोला राजस्थान: | |
1. क्षुल्लकश्री नम्रसागरजी | |
सन् 1998 किशनगढ़ राजस्थान : | |
1.आर्यिकाश्री समतामती माताजी | |
2.ब्र. श्री कजोड़मलजी | |
सन् 1999 जयपुर राजस्थान : | |
1. आर्यिका श्रीअचलमती माताजी | |
2.आर्यिका श्री सरस्वतीमती माताजी | |
सन् 2001 धरियावद राजस्थान : | |
1. आर्यिका श्री विपुलमतीजी | |
2.आर्यिका श्री सुपारसमतीजी | |
सन् 2002 नन्दनवन राजस्थान : | |
1. आर्यिकाश्री विशुद्धमती माताजी | |
पारसोला राजस्थान : | |
1.आर्यिकाश्रीसौम्यमती माताजी | |
उदयपुर राजस्थान : | |
1.आर्यिकाश्री मनोज्ञमती माताजी | |
सन् 2003 भीण्डर राजस्थान : | |
1.आर्यिका श्रीमूर्तिमती माताजी | |
सन् 2004 भीण्डर राजस्थान : | |
1.आर्यिकाश्रीअनन्तमती माताजी | |
2.आर्यिकाश्री निसंगमती माताजी | |
सन् 2004 पारसोला राजस्थान : | |
1.आर्यिका श्री सुप्रभामती माताजी | |
सन् 2005 श्रवणबेलगोला (कर्नाटक): | |
1.आर्यिका श्री वन्दितमती माताजी | |
सन् 2006 श्रवणबेलगोला (कर्नाटक): | |
1. गणिनी आर्यिका श्री विजयमति माताजी | |
सन् 2006 बैंगलुरु (कर्नाटक ): | |
1. आर्यिका श्री सुवैभवमती माताजी | |
सन् 2008 सम्मेदशिखरजी (झारखंड): | |
1.आर्यिकाश्री क्षीरमती माताजी | |
2. आर्यिकाश्री दयामती माताजी | |
3.श्रावक श्री राजेन्द्रकुमार | |
सन् 2009 चम्पापुरजी बिहार : | |
1. क्षुल्लिकाश्री मर्यादामती माताजी | |
सन् 2010 गया बिहार: | |
1. मुनिश्री देवेशसागरजी महाराज | |
सन् 2011 कोलकाता बिहार : | |
1. मुनिश्री यशस्वीसागरजी महाराज | |
सन् 2012 पपौराजी मध्यप्रदेश : | |
1.क्षुल्लिकाश्री सम्यक्त्वमती माताजी | |
2.सप्तम प्रतिमाधारी श्रीमती शीलादेवीजी | |
3.श्रावक श्रीविमलकुमारजी | |
सन् 2013 नैनागिरी मध्यप्रदेश : | |
1. मुनिश्री भविकसागरजी महाराज | |
सन् 2013 कुण्डलपुर मध्यप्रदेश : | |
1. मुनिश्री सौम्यसागरजी महाराज | |
सन् 2014 किशनगढ़ राजस्थान : | |
1.श्रावकश्री बोधुलालजी | |
सन् 2015 किशनगढ़ राजस्थान : | |
1.मुनिश्री यशसागरजी महाराज | |
सन् 2016 जयपुर : | |
1. आर्यिका श्री रिद्धीमती माताजी | |
सन् 2016 सिद्धवरकूट मध्यप्रदेश: | |
1. मुनि श्री संवेगसागरजी महाराज | |
सन् 2018 श्रवणबेलगोला कर्नाटक: | |
1. मुनि श्री देवसागरजी महाराज | |
2.आर्यिका श्री शांतमती माताजी | |
सन् 2019 श्रीक्षेत्र धर्मस्थल कर्नाटक: | |
1. मुनिश्री निस्पृहसागरजी महाराज | |
सन् 2019 श्रीक्षेत्र वैणुर कर्नाटक : | |
1.आर्यिका हीरकमती माताजी | |
सन 2019 यरनाल कर्नाटक : | |
1.मुनिश्री नमितसागरजी महाराज | |
सन् 2020 बेलगांव कर्नाटक : | |
1. मुनिश्री सहिष्णुसागरजी महाराज | |
2.आर्यिका श्री श्रेयमती माताजी | |
3. मुनिश्री देवकांत सागरजी महाराज | |
4.मुनिश्री देवप्रभ सागरजी महाराज | |
5. आर्यिका श्री दिव्यमती माताजी | |
6.आर्यिका श्री प्रशमीतमती माताजी | |
7.आर्यिका श्री पूर्वीमती माताजी | |
आचार्य श्री से दीक्षित त्यागीयो की हुई समाधिकी सुचि: | |
सन 2002 सनवाद (मध्यप्रदेश): | |
1. मुनिश्री चारित्रसागरजी | |
सन 2003 खूत (राजस्थान): | |
1. आर्यिका श्री वर्धिमती | |
सन 2013 जयपुर (राजस्थान): | |
1.आर्यिका श्री वैराग्यमति माताजी | |
सन 2013 कानपुर (उत्तरप्रदेश): | |
1. देवेंद्रसागरजी महाराज |
26/April/2023
महावीर स्वामी के जन्मोत्सव पर बालब्रह्मचारी परम परंपरा के पंचम पट्टाधीश वर्धमान सागर को आचार्य शिरोमणि उपाधि से विभूषित किया गया
1. Gingala (Rajasthan)-1991
2. Shravanbelgola (Karnataka)-1993
3. Dharmsthal (Karnatak)-1994
4. Dudhani (Maharashtra)-1996
5. Inchalkaranaji (Maharashtra)-1996
6. Udaypur Sect-11 (Rajasthan)-1996
7. Bhindar(Dhyan Dungari) (Rajasthan)-1997
8. Andeshvar Parshwanath (Rajasthan)-1997
9. Italikheda (Rajasthan)-1997
10. Bijaliya (Rajasthan)-1998
11. Kharka (Rajastan)-1998
12. Mahaveerji(Shantiveernagar) (Rajasthan)-1999
13. Nemisagar colony(Jaypur) (Rajasthan)-2000
14. Dhariyavad (Mahaveer Mandir) (Rajasthan)-2001
15. Nandanvan (Dhariyavad) (Rajasthan)-2001
16. Jhadol (Jasmand) (Rajasthan)-2002
17. Gingala (Kirtisthambh) (Rajasthan)-2002
18. Bhindar (Adinath Bhagvan,Manasthambh) (Rajasthan)-2002
19. Sanavad (Madhya-Pradesh)-2003
20. Bhindar (Shanthinath Mandir) (Rajasthan)-2003
21. Shravanbelgola (Karnataka)-2006
22. Bengluru (Karnataka Jain Bhavan) (Karnataka)-2006
23. Bengluru (Wilsan Gardan) (Karnataka)-2006
24. Poundichiri (Poundichiri)-2006
25. Jinkochipur (Tamilnadu)-2006
26. Melchittapur (Tamilnadu)-2006
27. Tindivanam (Tamilnadu)-2006
28. Dharmsthal (Karnataka)-2007
29. Kanakgiri (Karnataka)-2007
30. Bijapur (Karnataka)-2008
31. Nagpur (Mahrashtra)-2008
32. Sammed-Shikharji (Tis Chobiso) (Zarkhand)-2009
33. Mandargiri (Vedi Pratishtha) (Bihar)-2009
34. Champapur (Terahpanthi-Vedipratishta) (Bihar)-2009
35. Champapur (Bispanthi-Vedipratishta (Bihar)-2009
36. Kolkatta (Chinsura Mandir) (Paschim Bangal)-2010
37. Dabasan Road (Hawada) (Paschim Bangal)-2011
38. Kundalpur (M.P.)-2013
39. Ashtapadkshetra (Gudgoan) (Hariyana)-2014
40. Jaypur (Shyamnagar) (Rajasthan)-2014
41. Bhavi (Jodhpur) (Rajasthan)-2015
42. Ajmer (Babaji ka Nasiya) (Rajasthan)-2015
43. Kishangadh (Shivajinagar) (Rajasthan)-2015
44. Kishangadh (Acharya Shantisagar Smarak) (Rajasthan)-2015
45. Padmpura (Rajasthan)-2016
46. Chakwada (Rajasthan)-2016
47. Jaypur (Badake Balaji)-2016
48. Gambhira (Rajasthan)-2016
49. Nanava (Rajasthan)-2016
50. Sanavad (Madhya Pradesh)-2016
51. Shri Pavangiri Sidhkshetra (Madhya Pradesh)-2016
52. Alarwad (Karnataka)-2017
53. Shravanbelola (Karnataka)-2017
54. Shravanbelgola (Karnataka)-2018
55. Shravanbelgola (Karnataka)-2018
56. Shravanbelgola (Karnataka)-2018
57. Humacha (Karnataka)-2019
58. Yarnal (Karnataka)-2020
59. Belgam (Karnataka)-2021
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
#VardhamansagarjiDharmsagarji
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
आचार्य श्री १०८ वर्धमान सागरजी महाराज (वात्सल्य वृद्धि)
Rajesh Pancholiya Ji - 91-8965065065
आचार्य श्री १०८ धर्म सागरजी महाराज १९१४ Acharya Shri 108 Dharm Sagarji Maharaj 1914
आचार्य पदारोहण स्मृति दिवस (आषाढ़ सुदी-२)
24 जुलाई 1990 : पारसोला राजस्थान
13 जुलाई 1991 : गिंगाला तोलोद
02 जुलाई 1992 : श्रवणबेलगोला कर्नाटक
20 जून 1993 : सांगली
10 जुलाई 1994 : श्रवणबेलगोला कर्नाटक
29 जून 1995 : उदयपुर राजस्थान
17 जुलाई 1996 : सलुम्बर भीलवाड़ा राजस्थान
07 जुलाई 1997 : लूणवाँ (नंदनवन) राजस्थान
26 जून 1998 : टोडारायसिंह
14 जुलाई 1999 : धरियावद (नंदनवन)
03 जुलाई 2000 : उदयपुर
23 जुलाई 2001 : भीण्डर
12 जुलाई 2002 : पारसोला
01 जुलाई 2003 : श्रवणबेलगोला
19 जून 2004 : (अरिहंत गिरी) तिरुमलय
08 जुलाई 2005 : श्रवणबेलगोला
27 जून 2006 : सम्मेदशिखरजी
16 जुलाई 2007 : चम्पापुरजी
04 जुलाई 2008 : कोलकाता
24 जून 2009 : निवाई सिद्धबरकुट
13 जुलाई 2010 : आहारजी श्री क्षेत्र
03 जुलाइ 2011 : कुन्डलपुर
21 जून 2012 : किशनगढ़
10 जुलाई 2013 : कोलकाता
29 जून 2014 : चंपापुरी
17 जुलाई 2015 : श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोला
06 जुलाई 2016 : श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोला
25 जून 2017 : कोथली महाराष्ट्र
14 जुलाई 2018 : बेलगांव
04 जुलाई 2019 : तमिलनाडू
23 जून 2020 : सम्मेद शिखरजी
आचार्य श्री वर्धमानं सागर जी द्वारा १ मई से ५ मई के मध्य उदयपुर मे भव्य पंचकल्याणक संपन्न हुआ ¿
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VardhamansagarjiDharmsagarji
Shrimati. Manorama ji Shriyut Kamal Chand ji at Pancholia. Saptami Arjava gave birth to their 13th child on 18 September 1950 on the third holy day of Paryushan festival.
In 1967, Yashwant took a lifelong Shudra water sacrifice and 5 years Brahmacharya Vrat from Aryika Shri Gyanmati Mataji in Shri Muktagir Siddha area . In 1968 Yashwant took a lifelong Brahmacharya Vrat from Acharya Shri Vimal Sagar Ji Maharaj in Rajasthan.
The third Pattadhish Nutan Acharya Shri Dharma Sagar Ji Maharaj gave 6 initiations, 3 Muni Aryika and 2 Eshulakas with you on Shri Mahavir ji in Fagun Shukla 8( Samvat 2025 ) 24 February 1969.
Shrimati. Manorama ji Shriyut Kamal Chand ji at Pancholia. Saptami Arjava gave birth to their 13th child on 18 September 1950 on the third holy day of Paryushan festival.
In 1967, Yashwant took a lifelong Shudra water sacrifice and 5 years Brahmacharya Vrat from Aryika Shri Gyanmati Mataji in Shri Muktagir Siddha area . In 1968 Yashwant took a lifelong Brahmacharya Vrat from Acharya Shri Vimal Sagar Ji Maharaj in Rajasthan.
The third Pattadhish Nutan Acharya Shri Dharma Sagar Ji Maharaj gave 6 initiations, 3 Muni Aryika and 2 Eshulakas with you on Shri Mahavir ji in Fagun Shukla 8( Samvat 2025 ) 24 February 1969.
UpaSarg: ( Challenges)
In 1969, Acharya Shri Dharma Sagar Ji Maharaj's was travelling to Jaipur Khania from Shri Mahavir Ji.
When they learnt that the the newly initiated Muni Shri Vardhaman Sagar Ji Maharaj lost his vision , at that time his age was only 19 years. Doctors were called and the eyes were tested. They concluded It is impossible to recover the vision without medical help and Injections.
Discussion started in the Sangh that what should be done , since Vardhaman sagar ji was just 19, there was also a discussion of getting medical treatment by breaking the Initiation.
Muni Shri Vardhaman Sagar Ji Maharaj, learnt about this and he said that "I will not take injections, instead I will take samadhi " and he started reciting the Shri Shanti Bhakti.
In a miraculous incident and result of the recitation for 3 consecutive days i.e. for 52 hours without medical treatment and due to his devotion. At that time, 47 sages including Acharya Shri Dharma Sagar ji, 17 sages, 25 Aryakayas, 4 Kshullaks and 1 Khsullika were present along with him.
Acharya,Muni and Aryika Dikshit by Acharya Shri 108 Dharm Sagar Ji Maharaj
1.Muni Shri Daya Sagar Ji Maharaj
2.Muni Shri Puspdant Sagar Ji Maharaj
3.Muni Shri Nirmal Sagar Ji Maharaj
4.Muni Shri Saiyam Sagar Ji Maharaj
5.Muni Shri Abhinandan Sagar Ji Maharaj
6.Muni Shri Sheetal Sagar Ji Maharaj
7.Muni Shri Sambhav Sagar Ji Maharaj
8.Muni Shri Bodh Sagar Ji Maharaj
9.Muni Shri Mahendra Sagar Ji Maharaj
10.Muni Shri Vardhaman Sagar Ji Maharaj
11.Muni Shri Chaaritra Sagar Ji Maharaj
12.Muni Shri Bhadra Sagar Ji Maharaj
13.Muni Shri Buddhi Sagar Ji Maharaj
14.Muni Shri Bhupendra Sagar Ji Maharaj
15.Muni Shri Vipul Sagar Ji Maharaj
16.Muni Shri Yateendra Sagar Ji Maharaj
17.Muni Shri Purn Sagar Ji Maharaj
18.Muni Shri Kirti Sagar Ji Maharaj
19.Muni Shri Sudarshan Sagar Ji Maharaj
20.Muni Shri Samadhi Sagar Ji Maharaj
21.Muni Shri Anand Sagar Ji Maharaj
22.Muni Shri Samta Sagar Ji Maharaj
23.Muni Shri Uttam Sagar Ji Maharaj
24.Muni Shri Nirvan Sagar Ji Maharaj
25.Muni Shri Malli Sagar Ji Maharaj
26.Muni Shri Ravi Sagar Ji Maharaj
27.Muni Shri Jinendra Sagar Ji Maharaj
28.Muni Shri Gun Sagar Ji Maharaj
29.Aryika Shri Anantmati Mata Ji
30.Aryika Shri Abhaymati Mata Ji
31.Aryika Shri Vidyamati Mata Ji
32.Aryika Shri Saiyammati Mata Ji
33.Aryika Shri Vimalmati Mata Ji
34.Aryika Shri Siddhmati Mata Ji
35.Aryika Shri Jaimati Mata Ji
36.Aryika Shri Shivmati Mata Ji
37.Aryika Shri Niyammati Mata Ji
38.Aryika Shri Samadhimati Mata Ji
39.Aryika Shri Nirmalmati Mata Ji
40.Aryika Shri Samaymati Mata Ji
41.Aryika Shri Gunmati Mata Ji
42.Aryika Shri Pravachanmati Mata Ji
43.Aryika Shri Shrutmati Mata Ji
44.Aryika Shri Suratnmati Mata Ji
45.Aryika Shri Shubhmati Mata Ji
46.Aryika Shri Dhanyamati Mata Ji
47.Aryika Shri Chaitanmati Mata Ji
48.Aryika Shri Vipulmati Mata Ji
49.Aryika Shri Ratnmati Mata Ji
वात्सल्यवारिधि आचार्यश्री वर्धमानसागरजी महाराज द्वारा प्रदत्त दीक्षायें:-
Book written by Pandit Dharmchandra Ji Shashtri -Digambar Jain Sadhu
Acharya Shri 108 Vardhaman Sagar Ji Maharaj
आचार्य श्री १०८ धर्म सागरजी महाराज १९१४ Acharya Shri 108 Dharm Sagarji Maharaj 1914
Rajesh Pancholiya Ji - 91-8965065065
आचार्य श्री १०८ धर्म सागरजी महाराज १९१४ Acharya Shri 108 Dharm Sagarji Maharaj 1914
आचार्य पदारोहण स्मृति दिवस (आषाढ़ सुदी-२)
24 जुलाई 1990 : पारसोला राजस्थान
13 जुलाई 1991 : गिंगाला तोलोद
02 जुलाई 1992 : श्रवणबेलगोला कर्नाटक
20 जून 1993 : सांगली
10 जुलाई 1994 : श्रवणबेलगोला कर्नाटक
29 जून 1995 : उदयपुर राजस्थान
17 जुलाई 1996 : सलुम्बर भीलवाड़ा राजस्थान
07 जुलाई 1997 : लूणवाँ (नंदनवन) राजस्थान
26 जून 1998 : टोडारायसिंह
14 जुलाई 1999 : धरियावद (नंदनवन)
03 जुलाई 2000 : उदयपुर
23 जुलाई 2001 : भीण्डर
12 जुलाई 2002 : पारसोला
01 जुलाई 2003 : श्रवणबेलगोला
19 जून 2004 : (अरिहंत गिरी) तिरुमलय
08 जुलाई 2005 : श्रवणबेलगोला
27 जून 2006 : सम्मेदशिखरजी
16 जुलाई 2007 : चम्पापुरजी
04 जुलाई 2008 : कोलकाता
24 जून 2009 : निवाई सिद्धबरकुट
13 जुलाई 2010 : आहारजी श्री क्षेत्र
03 जुलाइ 2011 : कुन्डलपुर
21 जून 2012 : किशनगढ़
10 जुलाई 2013 : कोलकाता
29 जून 2014 : चंपापुरी
17 जुलाई 2015 : श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोला
06 जुलाई 2016 : श्री क्षेत्र श्रवणबेलगोला
25 जून 2017 : कोथली महाराष्ट्र
14 जुलाई 2018 : बेलगांव
04 जुलाई 2019 : तमिलनाडू
23 जून 2020 : सम्मेद शिखरजी
आचार्य श्री वर्धमानं सागर जी द्वारा १ मई से ५ मई के मध्य उदयपुर मे भव्य पंचकल्याणक संपन्न हुआ ¿
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1. Gingala (Rajasthan)-1991
2. Shravanbelgola (Karnataka)-1993
3. Dharmsthal (Karnatak)-1994
4. Dudhani (Maharashtra)-1996
5. Inchalkaranaji (Maharashtra)-1996
6. Udaypur Sect-11 (Rajasthan)-1996
7. Bhindar(Dhyan Dungari) (Rajasthan)-1997
8. Andeshvar Parshwanath (Rajasthan)-1997
9. Italikheda (Rajasthan)-1997
10. Bijaliya (Rajasthan)-1998
11. Kharka (Rajastan)-1998
12. Mahaveerji(Shantiveernagar) (Rajasthan)-1999
13. Nemisagar colony(Jaypur) (Rajasthan)-2000
14. Dhariyavad (Mahaveer Mandir) (Rajasthan)-2001
15. Nandanvan (Dhariyavad) (Rajasthan)-2001
16. Jhadol (Jasmand) (Rajasthan)-2002
17. Gingala (Kirtisthambh) (Rajasthan)-2002
18. Bhindar (Adinath Bhagvan,Manasthambh) (Rajasthan)-2002
19. Sanavad (Madhya-Pradesh)-2003
20. Bhindar (Shanthinath Mandir) (Rajasthan)-2003
21. Shravanbelgola (Karnataka)-2006
22. Bengluru (Karnataka Jain Bhavan) (Karnataka)-2006
23. Bengluru (Wilsan Gardan) (Karnataka)-2006
24. Poundichiri (Poundichiri)-2006
25. Jinkochipur (Tamilnadu)-2006
26. Melchittapur (Tamilnadu)-2006
27. Tindivanam (Tamilnadu)-2006
28. Dharmsthal (Karnataka)-2007
29. Kanakgiri (Karnataka)-2007
30. Bijapur (Karnataka)-2008
31. Nagpur (Mahrashtra)-2008
32. Sammed-Shikharji (Tis Chobiso) (Zarkhand)-2009
33. Mandargiri (Vedi Pratishtha) (Bihar)-2009
34. Champapur (Terahpanthi-Vedipratishta) (Bihar)-2009
35. Champapur (Bispanthi-Vedipratishta (Bihar)-2009
36. Kolkatta (Chinsura Mandir) (Paschim Bangal)-2010
37. Dabasan Road (Hawada) (Paschim Bangal)-2011
38. Kundalpur (M.P.)-2013
39. Ashtapadkshetra (Gudgoan) (Hariyana)-2014
40. Jaypur (Shyamnagar) (Rajasthan)-2014
41. Bhavi (Jodhpur) (Rajasthan)-2015
42. Ajmer (Babaji ka Nasiya) (Rajasthan)-2015
43. Kishangadh (Shivajinagar) (Rajasthan)-2015
44. Kishangadh (Acharya Shantisagar Smarak) (Rajasthan)-2015
45. Padmpura (Rajasthan)-2016
46. Chakwada (Rajasthan)-2016
47. Jaypur (Badake Balaji)-2016
48. Gambhira (Rajasthan)-2016
49. Nanava (Rajasthan)-2016
50. Sanavad (Madhya Pradesh)-2016
51. Shri Pavangiri Sidhkshetra (Madhya Pradesh)-2016
52. Alarwad (Karnataka)-2017
53. Shravanbelola (Karnataka)-2017
54. Shravanbelgola (Karnataka)-2018
55. Shravanbelgola (Karnataka)-2018
56. Shravanbelgola (Karnataka)-2018
57. Humacha (Karnataka)-2019
58. Yarnal (Karnataka)-2020
59. Belgam (Karnataka)-2021
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