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#VishuddhaSagarMaharaji1971ViragSagarJi
Acharya Shri Vishuddh sagar ji Maharaj (born 18 December 1971) is one of the best-known modern Digambara Jain Acharya (Digambar Jain Monk). He is also Known for his Preacher on Famous and one of the Most ancient and Old treatise of Jainism composed by Jain Acharya Kunkunda Samaysara, A book is Published naming Samay deshna author Acharya Vishuddh Sagar Ji Maharaj.
परम पूज्य आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के बचपन से प्रारंभिक क्रियायें उनके भविष्य में वैराग्य की और बढ़ते क़दमों का संकेत दे रही थी।उनका विवरण निम्न प्रकार से है।
बचपन से ही जिनालय जाना:- महाराज श्री अल्पायु से अपने पिता जी श्री रामनारायण जी एवं माता जी श्रीमती रत्ती देवी एवं अपने अग्रजों के साथ प्रतिदिन श्री जिन मंदिर जी दर्शनों के लिये जाने लगे थे।
रात्रि भोजन एवं अभक्ष्य वस्तुओं का त्याग:-लला राजेंद्र (आचार्य श्री का बचपन का नाम)ने ७ वर्ष की अल्पायु में श्री जिनालय में रात्रि भोजन का त्याग एवं अभक्ष्य वस्तुओं के त्याग का नियम ले लिया था और उसका पालन भली प्रकार से किया ।
सप्त व्यसनों का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन:- लला राजेंद्र जब ८ वर्ष के थे तभी से उन्होंने सप्त व्यसन का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन करना प्रारंभ कर दिया था।
बिना देव दर्शन भोजन न करने का नियम:- लला राजेंद्र ने १३ वर्ष की अल्पायु में तीर्थराज श्री दिग. जैन सिद्ध क्षेत्र शिखर जी में बिना देव दर्शन के भोजन न करने का नियम ले लिया था ।
स्वत: ब्रहमचर्य व्रत अंगीकार :- अल्पायु में लला राजेंद्र ने अपने ग्राम रुर के जिनालय में भगवान् के समीप स्वयं ही ब्रहमचर्य व्रत ले लिया था ।
अनेक तीर्थ क्षेत्रों की वंदना करने का सौभाग्य :- राजेंद्र लला ने अपने पिता जी माता जी एवं अनेक परिवार जनों के साथ बचपन से ही शिखर जी,सोनागिरी जी,एवं अनेक तीर्थ क्षेत्रों के दर्शन करने एवं वह विराजमान पूज्य महाराजों के दर्शन करना भी उनके वैराग्य का एक बिंदु है।
परमपूज्य गुरुवर १०८ मुनि श्री विराग सागर जी महाराज के प्रथम दर्शन अपनी बहन के यहाँ नगर भिंड में सन १९८८ में प्रथम बार किये ।उनके प्रवचन और दर्शन से राजेंद्र लला के मन में वैराग्य कके बीज अंकुरित होने लगे।
जैन धर्म की पुस्तकों का अध्ययन ,मनन ,चिंतन :- राजेंद्र भैया बचपन से ही ग्रथों का अध्ययन करके उन पर मनन एवं चिंतन करने लगे थे ,जो उनके वैराग्य की और बढ़ने का एक माध्यम बना।
भिंड में आदरणीय संयमी महानुभावों से भेंट :- जैन मंदिर भिंड में आदरणीय पं. मेरु चन्द्र जी(परमपूज्य मुनिश्री विश्व कीर्ति सागर जी महाराज) वर्तमान में समाधिस्थ एवं बाल ब्र. श्री रतन स्वरूप श्री जैन (वर्तमान में आचार्य श्री विनम्र सागर जी महाराज) से मुलाकात भी भैया राजेंद्र के पथ पर बढ़ने में सहायक हुई।
परम पूज्य गुरुवर श्री का वर्ष १९८८ का भिंड में वर्षा योग :- पूज्य मुनि श्री १०८ विराग सागर जी महाराज का १९८८ में पवन वर्षा योग भिंड नगर में हुआ ।भैया राजेंद्र उस अवधि में अपनी बहन के यहाँ भिंड में रहकर पूज्य गुरुवर के संघ में आते रहते थे।इस से लम्बे समय तक गुरुवर का सानिध्य मिला उनके प्रवचन का भी प्रभाव पड़ा ।जिस से उनका मन विराग सागरजी में चरणों में रम गया और वे संघ में ही रहने लगे और वह से विहार करने पर संघ के साथ विहार भी किया।
ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करना:- श्री राजेंद्र भैया पूज्य गुरुवर मुनि श्री १०८ विराग सागर जी के साथ विहार करते हुए अतिशय क्षेत्र बारासों पधारे ।यद्यपि राजेंद्र ने रुर नगर में जिनालय के सामने दीपावली के दिन ब्रह्मचर्य व्रत के लिया था फिर भी यहाँ गुरुवर के समीप दिनांक १६ नवम्वर को १७ वर्षकी उम्र में ब्रहमचर्य व्रत पुन: अंगीकार किया।
ब्रह्मचर्य अवस्था में नग्न होकर अभिषेक करना:- १९८८ में एकांत मे ब्रह्मचर्य अवस्था में नग्न होकर भगवान् का अभिषेक किया था जो उनके भविष्य का संकेत दे रहा था।
क्षुल्लक दीक्षा:- राजेंद्र भैया ने आचार्य विराग सागरजी के कर कमलो से दिनांक ११ अक्टूबर १९८९ को भव्य क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की।उनका नाम रखा गया क्षुल्लक श्री यशोधर सागर जी इस समय इनकी आयु १८ वर्ष की थी।
ऐलक दीक्षा:- परम पूज्य क्षुल्लक श्री यशोधर सागर जी ने आचार्य विराग सागरजी के कर कमलो से २ वर्ष बाद दिनांक १९ जून १९९१ को भव्य ऐलक दीक्षा पन्ना नगर मे ग्रहण की।
मुनि दीक्षा:- ऐलक दीक्षा के ६ माह बाद ही परम पूज्य ऐलक श्री यशोधर सागर जी ने २० वर्ष की आयुमे अपने गुरुवर से श्रेयांस गिरी में दिनांक २१-११-१९९१ को भव्य मुनि दीक्षा ग्रहण की,नाम रखा गया मुनि श्री १०८ विशुद्ध सागर जी महाराज ।
आचार्य पदारोहण:-परम पूज्य मुनि श्री १०८ विशुद्ध सागर जी महाराज को परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी के कर कमलो से ३१ मार्च २००७ को मुनि दीक्षा के १५ वर्ष ६ माह बाद ३५ वर्ष की आयु में दिनांक ३१ मार्च २००७ को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया।
संक्षिप्त परिचय | |
जन्म: | १८ दिसम्बर १९७१ |
जन्म नाम : | राजेन्द्र कुमार जैन |
जन्म स्थान : | भिडं (म.प्र.) |
माता जी नाम : | श्रीमती रत्तीबाई जैन |
पिताजी नाम : | राम नारायण जी जैन (मुनि श्री विश्वजीत सागर जी) |
शिक्षा : | मैट्रिक |
क्षुल्लक दीक्षा : | ११ अक्टुबर १९८९ |
क्षुल्लक दीक्षा स्थान : | भिन्ड |
क्षुल्लक दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
ऐलक दीक्षा : | १९ जून १९९१ |
ऐलक दीक्षा स्थान : | पन्ना |
ऐलक दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
मुनि दीक्षा : | २१ नवंबर १९९१ |
मुनि दीक्षा स्थान : | श्रेयासं गिरि |
मुनि दीक्षा गुरु : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
आचार्य पद : | ३१ मार्च २००७ महावीर जयन्ती |
आचार्य पद स्थान : | ओरंगाबाद महाराष्ट्र |
आचार्य पद प्रदाता : | आचार्य श्री १०८ विराग सागर जी महाराज |
February 22 Update
समाधिमरण
गया बिहार- आचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज जी के ससंघ सान्निध्य में आर्यिका श्री विशाश्री माताजी जो विश्रुतश्री माताजी के संघ में थी उनका समाधिमरण गया बिहार में 06 जनवरी 2022 को हुआ। । उदयपुर (राजस्थान)- आचार्य श्री सुनीलसागर महाराज जी के ससंघ सान्निध्य में उनके ही शिष्य सत्यागसागर महाराज जी का समाधिमरण गीगंला सलुम्बर उदयपुर राजस्थान में 18 जनवरी 2022 को दोप. 2.30 बजे हुआ।
Ref - Sanksar_Sagar -Feb 22
February 22 Update
(राजस्थान)- आचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज जी के शिष्य मुनि श्री शुद्धसागर महाराज जी के करकमलों से ब्र. निर्मल भैया घाटोल राजस्थान को दिनांक 7 फरवरी 2022 को क्षुल्लक दीक्षा दी गई ।
Ref - Sanksar_Sagar -Feb 22
November 21 Update
सम्मेद शिखर जी -
आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी के करकमलों से 14 नवम्बर 2021 श्री दिगम्बर सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर जी मधवन विंड में ब्र. श्वातम भया, ब्र ब्रिजेश भैया, ब्र
लभैया, ब्रसंजय भैया, ब्र अंकुश भैया को वरीदीक्षा दी गई। जिनके नाम क्रमशः मुनिश्री थिसागरजी, मुनि श्री निर्माहसागर जी, मुनि श्री निसंगसागरजी, मुनि श्री निवृत्तसागरजी, मुनिश्री निर्विकल्पसागर रखागया।
लखनऊ- आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज के करकमलो से 14 नवम्बर 2021 को डालीगंज लखनऊ में दीक्षायें क्षुल्लक अनुभव सागरजी, ब्र. अशोक भैया आष्टा, ब्र जयकुमार जी भिण्ड, ब्र. राजेश जी भोपाल को जैनेश्वरी दीक्षाये दी गई जिनके नाम क्रमशः मुनि श्री अभेदसागरजी, मुनि श्री अगर्भसागरजी, मुनिश्री अडोलसागर जी, मुनिश्रीअचेलसागरजीरखागया। । मांगीतुंगी महाराष्ट्र- आर्यिका श्री सुनंदामति माताजी करकमलों से क्षुल्लिका सुलोचनामति माताजी को आर्यिका दीक्षा श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी महाराष्ट्र में 16 नवम्बर 2021 को दी गई जिनका नाम आर्यिका सुबोधमति माताजी रखा गया।
Ref - Sanksar_Sagar -Dec 21
Updated on 16-12-2023
1.दिनाँक २० नवम्बर से २४ नवम्बर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव,बड़ौत बागपत, उत्तरप्रदेश।
2.दिनाँक १ दिसम्बर से ५ दिसम्बर श्री आदिनाथ पंचकल्याणक महोत्सव कांधला,जिला-शामली, उत्तरप्रदेश।
3.दिनाँक ११ दिसम्बर से १५ दिसम्बर श्रीमत महावीर जिनेन्द्र पंचकल्याणक, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश।
साहित्यिक कृतियां__
देशना बिंदु,आइना,
देशना संचय,तत्वबोध,विशुद्वि मुक्ति पथ,
विशुद्वा काव्यान्जलि,विशुद्व वचनामृत
साहित्य सम्बन्धी अन्य कृतियां__
समाधितंत्र इष्टोपदेश समीक्षा
पुरुषार्थ देशना अनुशीलन
अध्यात्म देशना अनुशीलन
तत्त्वदेशना समीक्षा
स्वरूप सम्बोधन परिशीलन विमर्श
सर्वोदयी देशना समीक्षा
समय देशना विमर्श
स्वरूप देशना विमर्श
#VishuddhaSagarMaharaji1971ViragSagarJi
आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागर महाराज
आचार्य श्री १०८ विराग सागरजी महाराज १९६३ Acharya Shri 108 Virag Sagarji Maharaj 1963
https://www.facebook.com/sapna.bane.patil
Manasi Shaha translate the content from Hindi to English on 11th - July - 2022.
VishuddhaSagarMaharaji1971ViragSagarJi
Acharya Shri Vishuddh sagar ji Maharaj (born 18 December 1971) is one of the best-known modern Digambara Jain Acharya (Digambar Jain Monk). He is also Known for his Preacher on Famous and one of the Most ancient and Old treatise of Jainism composed by Jain Acharya Kunkunda Samaysara, A book is Published naming Samay deshna author Acharya Vishuddh Sagar Ji Maharaj.
Acharya Shri Vishuddh sagar Maharaji was born on 18th December 1971 at Roor village located in Bhind, Madya Pradesh. He was the seventh son of Shri Ramnarayanji and Ratibai Jain. As per Jain culture, he was given a name as Rajendra (A.K.A. Lalla) on 2nd February 1972. He was very kind by nature since childhood and never demanding kid. He used to accept what so ever offered to him. Since childhood, he was attracted towards nature and animals. Because of his, this nature he always prefers to visit temple for peace of mind. Slowly he started developed his interest to read Jain Holy Books.
At the age of sixteen after completion of High School, he embarked on the virtuous path of Jain asceticism and adopted Bhramhacharya Vrat. Rajendra Bhaiya received a grand eclipse initiation on October 11, 1989 from Acharya Virag Sagarji Maharaj. He was named as Yashodhar Sagar ji at Bhind (M.P.). Later on Shree Yashodhar Sagar Ji received Ailak Diksha at Panna Nagar on 19 June 1991, after 2 years from Acharya Virag Sagar ji. After 6 month of taking Ailak Dikhsha, On 21st November 1991 he became a Muni Vishuddh Sagar at Shreyansgiri (M.P.). Later on March 31, 2007, he attained the rank of Acharya at Aurangabad (Maharashtra).
The initial actions from the childhood of Param Pujya Acharya Shri Vishuddha Sagar Ji Maharaj were indicating further steps towards dispassion in his future. His details are as follows.
Going to Jinalaya since childhood: Maharaj Shri Ramnarayan Ji and mother Shrimati Ratti Devi and their elders started going to Shri Jin temple every day for Darshan.
Renunciation of night food and inedible things: Lala Rajendra (Childhood name of Acharya Shri) had taken the rule of renunciation of dinner and inedible things in Shri Jinalaya at the age of 7 years and followed it well.
Renunciation of the seven addictions and the observance of the eight basic qualities: When Lalla Rajendra was eight years old, he had started giving up the seven addictions and following the eight basic qualities.
The rule of not eating food without Dev Darshan: Lalla Rajendra, at the age of 13, made Teerthraj Shri Dig. In Jain Siddha Kshetra Shikhar ji, he had taken the rule of not eating food without darshan.
Self-acceptance of Brahmacharya Vrat: In his short life, Lalla Rajendra himself took a vow of celibacy in front of Lord in the Jinalaya of his village, Roor.
The good fortune of worshiping many pilgrimage areas: Rajendra Lalla, along with his father, mother and many family members, visited Shikharji, Sonagiriji, and many pilgrimage areas since childhood and also to see the revered Maharajas who are seated. There is a point of detachment. Param Pujya Guruvar 108 Muni Shri Virag Sagar Ji Maharaj had his first darshan at his sister's house in Bhind town for the first time in the year 1988. Due to his discourses and darshan, seeds of dispassion started sprouting in the mind of Rajendra Lalla.
Study, contemplation of the Jainism books: Rajendra Bhaiya had started contemplating on them after studying the scriptures since childhood, which became a medium for his dispassion.
Meeting with respected Spartan nobles in Bhind: Respected Pt. Meru Chandra ji (Param Pujya Munishri Vishwa Kirti Sagar Ji Maharaj) in Jain temple Bhind, is presently samadhistha and child Br. Meeting with Shri Ratan Swaroop Shri Jain (currently Acharya Shri Humble Sagar Ji Maharaj) also helped in progressing on the path of Bhaiya Rajendra.
Varsha Yoga of Param Pujya Guruvar Shree in Bhind in the year 1988: Pujya Muni Shree 108 Virag Sagar Ji Maharaj's Pawan Varsha Yoga took place in Bhind city in 1988. Brother Rajendra stayed at his sister's place in Bhind during that period in the union of Pujya Guruvar. Used to keep coming. Due to this, he got the Guruvar's company for a long time, his discourse also had an effect. Due to which his mind was engrossed in the feet of Virag Sagarji and he started living in the Sangh and after visiting him, he also did a Vihar with the Sangh.
Adopting a vow of celibacy: Shri Rajendra Bhaiya, revered Guruvar Muni Shri 108, while visiting Virag Sagar ji, visited the very area of Baraso. Although Rajendra had taken celibacy fast on the day of Deepawali in front of Jinalaya in Rur Nagar, still here it is near Guruvar. On November 16, at the age of 17, he re-adopted the Brahmacharya Vrat.
Anointing naked in the state of celibacy: In 1988, in solitude, in a state of celibacy, anointed the Lord naked, which was indicating his future.
Kshullak Diksha: Rajendra Bhaiya took the grand Ksullaka Diksha from the lotus feet of Acharya Virag Sagarji on 11th October 1989. His name was Ksullak Shri Yashodhar Sagar Ji, at this time his age was 18 years.
Ailak Diksha: Param Pujya Ksullak Shri Yashodhar Sagar ji received the grand Ailak Diksha on 19th June 1991 in Panna Nagar after two years from the lotus blessings of Acharya Virag Sagarji.
Muni Diksha: After 6 months of Ailak Diksha, his Holiness Ailak Shri Yashodhar Sagar ji, at the age of 20, received a grand sage initiation from his Guru at Shreyans Giri on 21-11-1991, named Muni Shree 108 Vishuddha Sagar Ji.
Acharya Padaroh: Param Pujya Muni Shree 108 Vishuddha Sagar Ji Maharaj was granted Acharya Pad on 31 March 2007 at the age of 35 years after 15 years 6 months of Muni initiation on 31 March 2007 from the lotus feet of Param Pujya Acharya Shri 108 Virag Sagar Ji.
As an Acharya, He does not eat salt, curd, rice & oil in addition to what is traditionally prohibited (like onions) by Jainism. He used to come out from Sravakas for a meal between 10:00 a.m.–10:30 a.m. He used to intake food once a day in the palm of his hand, one morsel at a time.
Param Pujya Acharya Ratna Shri 108 Vishuddha Sagar Ji Maharaj handwritten by Kesar,Granth name-Karma Vipak Granth got Golden Book of World of Records.
साहित्यिक कृतियां__
देशना बिंदु,आइना,
देशना संचय,तत्वबोध,विशुद्वि मुक्ति पथ,
विशुद्वा काव्यान्जलि,विशुद्व वचनामृत
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समाधितंत्र इष्टोपदेश समीक्षा
पुरुषार्थ देशना अनुशीलन
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तत्त्वदेशना समीक्षा
स्वरूप सम्बोधन परिशीलन विमर्श
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Acharya Shri 108 Vishuddha Sagarji Maharaj
आचार्य श्री १०८ विराग सागरजी महाराज १९६३ Acharya Shri 108 Virag Sagarji Maharaj 1963
आचार्य श्री १०८ विराग सागरजी महाराज १९६३ Acharya Shri 108 Virag Sagarji Maharaj 1963
Updated on 16-12-2023
1.दिनाँक २० नवम्बर से २४ नवम्बर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव,बड़ौत बागपत, उत्तरप्रदेश।
2.दिनाँक १ दिसम्बर से ५ दिसम्बर श्री आदिनाथ पंचकल्याणक महोत्सव कांधला,जिला-शामली, उत्तरप्रदेश।
3.दिनाँक ११ दिसम्बर से १५ दिसम्बर श्रीमत महावीर जिनेन्द्र पंचकल्याणक, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश।
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Manasi Shaha translate the content from Hindi to English on 11th - July - 2022.
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