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#BhadramatiMataajiDeshbhushanJiMaharaj1906
Aryika Shri 105 Bhadramati Mataji recevied the initiation from Aacharya Shri 108 Deshbhushan Ji Maharaj 1906 in 1975.
प. पू. १०५ आ. भद्रमति माताजी
प. पू. १०५ आ. भद्रमति माताजी का नाम सोनूबाई था। लासुर्णेनिवासी शेठ छगनलाल और उनकी पत्नी सोनूबाई से उनका जन्म 1929 में हुआ था। उनका परिवार बहुत धार्मिक था और श्रावक के कर्तव्यों का सख्ती से पालन करता था। उनके बच्चे ताराचंद, धर्मराज, अनंतलाल और पुष्पा एक लड़की है। हर कोई अपने व्यवसाय में अच्छा कर रहा है।
उन्होंने 1975 स्तवनिधि में देशभूषण महाराज से आर्यिका/क्षुल्लिका दीक्षा ली। उस समय उनका नाम पू. १०५ भद्रमति माताजी के रूप में रखा गया। उन्हें 1984 में उदयगिरि खंडगिरि में दफनाया गया था।
मुनि श्री 108 आर्जवनंदी महाराज
श्री. ताराचंद छगनलाल गांधी वालचंदनगर के एक व्यापारी। लासुर्णेनिवासी शेठ छगनलाल और उनकी पत्नी सोनूबाई से उनका जन्म 1929 में हुआ था।
उनका परिवार बहुत धार्मिक था औरश्रावक के कर्तव्यों का सख्ती से पालन करता था। उनके बच्चे ताराचंद, धर्मराज, अनंतलाल और पुष्पा एक लड़की है। हर कोई अपने व्यवसाय में अच्छा कर रहा है
श्रीमान ताराचंद बहुत धार्मिक भी हैं। शिक्षा का अभाव, परंतु धर्म के प्रति समर्पित। वालचंदनगर में स्वाध्याय में नियमित रूप से उपस्थित रहें। उन्होंने 1975 कुंथुसागर महाराज के साथ पैदल शिखरजी तक यात्रा की। उस समय उन्होंने पांच महीने तक टीम में रहकर त्यागी की खूब सेवा की. तभी से उनके मन में वेराग्याके की भावना उत्पन्न होने लगी। इ. स. 2001 में उन्होंने अपने निवास स्थान में श्री सिद्धचक्र विधान बड़े उत्साह एवं भक्तिभाव से मनाया गया ।चतुर्विध संघ यथाशक्ती को दान दिया ।
उसका बड़ा असर हुआ । उन्होंने वालचंदनगर में आने वाले तीर्थयात्रियों की पूरे दिल से सेवा की। मंदिर में नियमित रूप से पूजा-अर्चना भी की जाती थी। उन्होंने कुंथलगिरि में प. पू. आ. देवनन्दी महाराज से 7वीं प्रतिमा और कुछ दिनों बाद 8वीं प्रतिमा प्राप्त की और वे आठवीं प्रतिमा धारक बन गये। निरन्तर से उनकी वैराग्य वृत्ति और भी बढ़ गई ।
इ. स. 2005 में उन्होंने कुन्थुसागर महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ली । और कुछ ही महीनों में पुनः मुनिदीक्षा ले ली ।
उस समय उनका नाम श्री 108 आर्जवनंदी महाराज रखा गया। कुछ समय तक उनकी संघ में रहने के बाद उन्होंने संघ छोड़ दी। प. पू 108 कुमुदनंदी महाराज के साथ कई राज्यों की यात्रा की। इ.स. 2008 का चातुर्मास सागर में हुआ। वे फिलहाल उसी संघ में हैं ।
उनके दो बेटे प्रदीप और मिलिंद हैं। और स्नुशा सौ. छाया प्रदीप एवं सौ.सुरेखा मिलिंद गृहस्थ जीवन से लेकर साधु बनने तक ने उनकी बहुत सेवा की। उनकी सौ. प्रभावती ताराचंद की सल्लेखना 12 अगस्त 2008 को वालचंदनगर में हुई।
#BhadramatiMataajiDeshbhushanJiMaharaj1906
आर्यिका श्री १०५ भद्रमती माताजी
आचार्य श्री १०८ देशभूषण जी महाराज 1906 Aacharya Shri 108 Deshbhushan Ji Maharaj 1906
DeshbhushanJiMaharaj1906Jaikirtiji
Aryika Shri 105 Bhadramati Mataji recevied the initiation from Aacharya Shri 108 Deshbhushan Ji Maharaj 1906 in 1975.
मुनि श्री 108 आर्जवनंदी महाराज
श्री. ताराचंद छगनलाल गांधी वालचंदनगर के एक व्यापारी। लासुर्णेनिवासी शेठ छगनलाल और उनकी पत्नी सोनूबाई से उनका जन्म 1929 में हुआ था।
उनका परिवार बहुत धार्मिक था औरश्रावक के कर्तव्यों का सख्ती से पालन करता था। उनके बच्चे ताराचंद, धर्मराज, अनंतलाल और पुष्पा एक लड़की है। हर कोई अपने व्यवसाय में अच्छा कर रहा है
श्रीमान ताराचंद बहुत धार्मिक भी हैं। शिक्षा का अभाव, परंतु धर्म के प्रति समर्पित। वालचंदनगर में स्वाध्याय में नियमित रूप से उपस्थित रहें। उन्होंने 1975 कुंथुसागर महाराज के साथ पैदल शिखरजी तक यात्रा की। उस समय उन्होंने पांच महीने तक टीम में रहकर त्यागी की खूब सेवा की. तभी से उनके मन में वेराग्याके की भावना उत्पन्न होने लगी। इ. स. 2001 में उन्होंने अपने निवास स्थान में श्री सिद्धचक्र विधान बड़े उत्साह एवं भक्तिभाव से मनाया गया ।चतुर्विध संघ यथाशक्ती को दान दिया ।
उसका बड़ा असर हुआ । उन्होंने वालचंदनगर में आने वाले तीर्थयात्रियों की पूरे दिल से सेवा की। मंदिर में नियमित रूप से पूजा-अर्चना भी की जाती थी। उन्होंने कुंथलगिरि में प. पू. आ. देवनन्दी महाराज से 7वीं प्रतिमा और कुछ दिनों बाद 8वीं प्रतिमा प्राप्त की और वे आठवीं प्रतिमा धारक बन गये। निरन्तर से उनकी वैराग्य वृत्ति और भी बढ़ गई ।
इ. स. 2005 में उन्होंने कुन्थुसागर महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ली । और कुछ ही महीनों में पुनः मुनिदीक्षा ले ली ।
उस समय उनका नाम श्री 108 आर्जवनंदी महाराज रखा गया। कुछ समय तक उनकी संघ में रहने के बाद उन्होंने संघ छोड़ दी। प. पू 108 कुमुदनंदी महाराज के साथ कई राज्यों की यात्रा की। इ.स. 2008 का चातुर्मास सागर में हुआ। वे फिलहाल उसी संघ में हैं ।
उनके दो बेटे प्रदीप और मिलिंद हैं। और स्नुशा सौ. छाया प्रदीप एवं सौ.सुरेखा मिलिंद गृहस्थ जीवन से लेकर साधु बनने तक ने उनकी बहुत सेवा की। उनकी सौ. प्रभावती ताराचंद की सल्लेखना 12 अगस्त 2008 को वालचंदनगर में हुई।
Aryika Shri 105 Bhadramati Mataji
आचार्य श्री १०८ देशभूषण जी महाराज 1906 Aacharya Shri 108 Deshbhushan Ji Maharaj 1906
आचार्य श्री १०८ देशभूषण जी महाराज 1906 Aacharya Shri 108 Deshbhushan Ji Maharaj 1906
Aacharya Shri 108 Deshbhushan Ji Maharaj 1906
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DeshbhushanJiMaharaj1906Jaikirtiji
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